हमारे पड़ोसी देश नेपाल में कई जगहों पर ऐसी मान्यता है कि लड़की पीरियड के समय अपवित्र हो जाती है। यों तो ये मान्यता हमारे भारतीय समाज में बेहद प्रचलित है लेकिन नेपाल में पीरियड के दौरान लड़की को घर के बाहर झोपड़ी में या पशुओं के बाड़े में रहने पर मजबूर होना पड़ता है। इस प्रथा को छौपदी कहा जाता है, जिसका मतलब है अनछुआ। ये प्रथा सदियों से नेपाल में जारी है।
कुछ ही दिन पहले यह खबर आई थी कि नेपाल में पन्द्रह साल की एक लड़की की मौत हो गई। लड़की के पीरियड चल रहे थे और उसे घर से बाहर निकालकर एक झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था। ठंड की वजह से लड़की ने झोपड़ी में आग जला रखी थी, जिसके धुंए से उसका दम घुट गया और उसकी मौत हो गई। दरअसल, नेपाल में कई जगहों पर ऐसी मान्यता है कि लड़की पीरियड के समय अपवित्र हो जाती है। इस दौरान लड़की को घर के बाहर झोपड़ी में या पशुओं के बाड़े में रहने पर मजबूर होना पड़ता है।
पाबंदियों वाली छौपदी
पीरियड या डिलिवरी के चलते लड़कियों को अपवित्र मान लिया जाता है। इसके बाद उन पर कई तरह की पाबंदिया लगा दी जाती हैं, जैसा कि भारतीय समाज के भी कई क्षेत्रों में इसपर विश्वास किया जाता है| नेपाल में इस दौरान वह घर में नहीं घुस सकतीं। पेरेंट्स को छू नहीं सकती। खाना नहीं बना सकती और न ही मंदिर और स्कूल जा सकती हैं और उन्हें खाने में सिर्फ नमकीन ब्रेड या चावल दिए जाते हैं। छौपदी को नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में गैरकानूनी करार दिया था। संसद ने पीरियड्स में औरतों को अछूत घोषित करने और घर से बाहर निकालने की हिंदू प्रथा छौपदी को अपराध की श्रेणी में डाल दिया है और संसद में इस कानून को सर्वसम्मत वोट से पारित कर दिया गया है|
इतना ही नहीं, इस अपराध की सजा भी तय कर दी गई है| अगर कोई भी व्यक्ति किसी महिला को इस प्रथा को मानने के लिए मजबूर करता होगा, तो उसे तीन महीने की सजा या 3,000 जुर्माना या दोनों हो सकती है|
हालांकि, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने करीब एक दशक पहले ही छौपदी को बैन कर दिया था लेकिन फिर भी ये प्रथा पूरी तरह बंद नहीं हुई है| इसलिए अब संसद ये कानून लेकर आया है| इस नए कानून में कहा गया है कि ‘कोई भी महिला जो, पीरियड्स में हो, उसे छौपदी में नहीं रखा जाएगा और उससे अछूत, भेदभाव और अमानवीय व्यवहार नहीं किया जाएगा|’ ये कानून एक साल के वक्त में प्रभाव में आएगा|
तमाम डरों में घेरने वाली छौपदी
ये प्रथा महिलाओं पर पीरियड्स के अलावा बच्चे के जन्म के बाद भी लागू होती है| छौपदी इन महिलाओं के लिए नर्क की सजा से कम नहीं होती है और इस दौरान उनकी हालत एक अछूत जैसी होती है| न उन्हें घर में जाने की इजाजत होती है, न खाना-पीना छूने की इजाजत होती है| यहां तक कि वो जानवरों का चारा भी नहीं छू सकतीं| जिस झोपड़ी में वो रहती हैं, उनमें तमाम तरह के खतरे होते हैं| जानवरों का खौफ तो छोड़िए, उन्हें बलात्कार के डर का भी सामना करना पड़ता है|
यहां तक कि इस प्रथा के चलते कई औरतों की जान भी जा चुकी हैं| हाल ही में यह खबर आई थी कि एक लड़की की झोपड़ी में सांप काटने की वजह से मौत हो गई थी| एफपी एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2016 में भी ऐसी दो घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें झोपड़ी में गर्माहट के लिए आग जलाने की वजह से लगी आग में जलकर मौत हो गई थीं और एक महिला की मौत कारण सामने नहीं आ पाया था| लेकिन इन झोपड़ियों में बलात्कार की घटनाएं होती रहती हैं|
सामाजिक कार्यकर्ता पेमा ल्हाकी ने एफपी से कहा कि ‘कानून किसी पर थोपा नहीं जा सकता| ये सही है कि नेपाल का पितृसत्तात्मक समाज औरतों पर ये प्रथा थोपता है लेकिन औरतें खुद भी इस प्रथा को नहीं छोड़ती हैं| वो खुद इस प्रथा को मानती हैं क्योंकि ये उनके बिलीफ सिस्टम में घुसा हुआ है|’
छौपदी प्रथा को निभाने के लिए किराए पर लेते हैं बाड़ा
एक्शन वर्क नेपाल की चीफ राधा पौडेल के मुताबिक, वेस्टर्न नेपाल की 95 फीसद लड़कियां-महिलाएं इस प्रथा को निभाती हैं।इतना ही नहीं, जिन फैमिली के पास गाय का बाड़ा नहीं होता, वह दूसरे के बाड़ों में एक रूम किराए पर लेते हैं। करीब 77 फीसद लड़कियों-महिलाओं को पीरियड के दौरान अपमान और हिंसा भी सहन करनी पड़ती है।
और पढ़ें : हैप्पी डेज में बदल डालो पीरियड्स के उन पांच दिनों को