बीते साल दिसंबर के महीने में कोलकाता के जी.डी बिरला स्कूल में एक चार साल की बच्ची के साथ यौन-शोषण का केस सामने आया, जिसमें स्कूल से घर आने पर उसके निजी-अंगों से ब्लीडिंग होते हुए देखकर उसके माँ-बाप उसे हॉस्पिटल ले गए और फिर पता चला कि उसके अपने ही दो टीचरों ने उसके साथ यौन-शोषण किया था| लेकिन ये मामला सामान्य नहीं है| यह हमारी हर रोज की ज़िन्दगी से परे एक असाधारण घटना नहीं, बल्कि ये हमारे आसपास और हमारे घर के बच्चों की हकीकत है|
महिला और बाल विकास मंत्रालय की तरफ से किये गये एक सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में बारह साल और उससे कम उम्र के 53 फीसद बच्चे यौन-शोषण से का शिकार बन चुके हैं| दिन-प्रतिदिन बाल यौन-शोषण की घटनाओं और लगातार अपराधों के बढ़ते ग्राफ के बावजूद भी हमारा समाज जाने-अनजाने में कई भूल कर रहा है जिसके चलते हमारे बच्चे स्कूल, गलियों और अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है| बाल यौन-शोषण हमारे समाज में मौजूद कई तत्वों की वजह से हावी है, जैसे- शर्म, जागरूकता की कमी, बिना सवाल करें बड़ो की बात का पालन करना, यौन सम्बन्धी सवालों पर चुप्पी साधना और भी कई| ये सारे तत्व मिलकर अपराधी को आरोप से बचने की सुरक्षा दिलवाते हैं और हमें सामूहिक रूप से इन्हीं मुश्किलों से दूर करना है|
हम बच्चों के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं को अपनी इज्जत के पहले बच्चे के स्वास्थ्य और अधिकार के बारे में सोचें, जिसपर हमारा भविष्य टिका है|
बाल यौन-शोषण के बारे में बच्चों को सावधान करने के लिए कई उपाए मौजूद हैंl आइये जानते हैं कि क्या है वे उपाय –
निजी-स्तर पर बाल यौन शोषण की पहचान और उसका सामना
अगर आपके बच्चे में यौन-शोषण के लक्षण दिखाई देते हैं या आपके बच्चे आपको अपने साथ हुए शोषण के बारे में बताते हैं तो ऐसे में आपको ये करना चाहिए कि
1) बच्चे की हर बात ध्यान से सुनें और उसकी हर बात पर गौर करें,
2) उनकी बातों पर भरोसा करें| उनको ऐसा माहौल दें जिसमें वो खुलकर अपनी बात रख सकें,
3) उन्हें भरोसा दिलाये कि वे साहसी हैं और जो उनके साथ हुआ है उसमें उनका कोई दोष नहीं थाl
क्या कर सकते हैं आप?
- जब बच्चे किसी शारीरिक तकलीफ के बारे में बताएं तो उनकी हर बात को जिम्मेदारी और भरोसे के साथ सुनें,
- बच्चे के आसपास रहने बाले बड़ों को इसके बारे में सूचित करें,
- 1098 – चाइल्ड लाइन पर फ़ोन करके उन्हें सूचित करें,
- सुनिश्चित करें कि बच्चे का मेडिकल एग्जामिनेशन जल्द से जल्द हो,
- पास के पुलिस स्टेशन पर बाल यौन-शोषण की रिपोर्ट दर्ज करवाएं,
- बच्चे के सामने उस घटना की ज्यादा चर्चा न करेंl इससे बच्चे मानसिक पीड़ा का शिकार हो सकते हैं|
ज़रुरत है कि हम इस मुद्दे की मौजूदगी को स्वीकारें और यह याद रखें कि ये घटनाएँ हमारे मौजूदा हालात में भी हो सकती है|
क्या नहीं करना चाहिए हमें?
- बच्चे पर दोष डालना या उनकी शिकायत को नजरअंदाज़ करना,
- उत्तेजित प्रतिक्रिया देना जिससे उनके मन में और डर बनने लगे,
- बच्चे को शोषण या शोषित करने वाले इंसान के पास वापस भेजना या इस घटना के बारे में चुप्पी साधने की सलाह देना, इससे बच्चे को बड़ों पर भरोसा करने से और हिचकिचाहट होगी,
- बच्चे की पहचान सबके सामने या मीडिया में घोषित कर देना और बार-बार इस घटना की बातें दोहराना,
- घटना के बारे में पता चलने के बावजूद भी बच्चे को मेडिकल सहायता न दिलवाना|
कानूनी रूप से बाल यौन-शोषण से कैसे निपटा जाए?
POCSO एक्ट (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट) जो साल 2012 में बच्चों को यौन-शोषण से सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया था| इस कानून के अंतर्गत निम्नलिखित निर्देश हैं-
- घटना के बारे में पता चलते ही लोकल पुलिस को चौबीस घंटे के अंदर सूचित करें,
- पुलिस स्टेशन के माहौल के डर से बच्चे की स्टेटमेंट सुविधापूर्ण जगह पर ली जाती है,
- स्टेटमेंट देने के बाद, चौबीस घंटों के अंदर एक महिला डॉक्टर के द्वारा मेडिकल एग्जामिनेशनकिया जाता है,
- स्टेटमेंट मजिस्ट्रेट के सामने रिकॉर्ड की जाती है|
क्या है स्पेशल कोर्ट की प्रक्रियाएं ?
बाल यौन-शोषण का हर केस स्पेशल कोर्ट में जाता है| इस कोर्ट में कई प्रक्रियाएं आम प्रक्रियाओं से अलग होती हैं-
- सबूत देने का बोझ अपराधी पर होता है,
- बच्चे के हित के लिए उसको अपराधी के सामने कोर्ट में गवाही नहीं देनी होती है,
- बच्चे को विशेष अनुवादक भी दिया जाता है,
- शोषित बच्चों को मुआवज़ा भी दिया जाता है|
हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि सिर्फ बाल यौन-शोषण से जुड़े कानून और इससे बचने के तरीकों को जानना काफी नहीं है| बल्कि ज़रुरत है कि हम इस मुद्दे की मौजूदगी को स्वीकारें और यह याद रखें कि ये घटनाएँ हमारे मौजूदा हालात में भी हो सकती है|
अक्सर हम बच्चे के साथ हुई घटनाओं को अपनी इज्जत से जोड़कर देखते हैं और यह मान लेते हैं कि इस समस्या को उजागर करने से हमारी इज्जत कम होगी, जो कि हमारी सबसे बड़ी गलती होती जिसके चलते बच्चों का हमसे विश्वास खत्म हो जाता है| ऐसे में ज़रूरी है कि हम बच्चों के साथ होने वाली ऐसी घटनाओं को अपनी इज्जत के पहले बच्चे के स्वास्थ्य और अधिकार के बारे में सोचें, जिसपर हमारा भविष्य टिका है|
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