समाजकार्यस्थल लड़कियों के लिए आज भी बुरा समझा जाता है नर्स बनना

लड़कियों के लिए आज भी बुरा समझा जाता है नर्स बनना

ग्रामीण परिवेश में आज भी नर्स बनने के लिए लड़कियों की चुनौती सालों पहले फ्लोरेंसे नाइटेंगल जैसी ही है, जिनके लिए समय कभी अनुकूल रहा ही नहीं|

एक सामान्य लड़की थी फ्लोरेंस| धनी परिवार में जन्मी फ्लोरेंस के घरवाले चाहते थे कि उनकी शादी किसी अमीर घर में हो और उनकी ज़िन्दगी तमाम ऐशोआराम में बीते| लेकिन फ्लोरेंस को ये मंजूर नहीं था, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का मतलब दूसरों की सेवा में तलाशा था और उन्होंने नर्स बनने की ठानी| पर उन्होंने जब ये फैसला लिया तो वो दौर इस फैसले के बिल्कुल अनुकूल नहीं था| क्योंकि उस दौर में अच्छे घर की लड़कियां नर्स नहीं बनती थी| इसकी कई वजहें थी, पर मूल था इस काम को बेहद छोटा समझना|

लेकिन फ्लोरेंस नाइटिंगल ने इस बात की कभी परवाह नहीं की और उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा करने और दुनियाभर में नर्सिंग की मिशाल गढ़ने में गुजार दी| समाज में फ्लोरेंस के इस अमूल्य योगदान के लिए उन्हें ‘दी लेडी विथ दी लैंप’ की उपाधि दी गयी| फ्लोरेंस नाइटिंगल नर्सिंग की जनक मानी जाती है| आज भी दुनियाभर में नर्सिंग क्षेत्र से जुड़ने वाली नई सिस्टर सबसे पहले मरीजों की सेवा से जुड़ी ‘द नाइटिंगल’ प्लेज’ लेती हैं, जो फ्लोरेंस के नाम पर है| इतना ही नहीं, हर साल भारत में राष्ट्रपति शानदार काम करने वाली नर्सों को नेशनल फ्लोरेंस नाइटिंगल अवार्ड से सम्मानित करते हैं|

आप सोच रहे होंगें कि मैं आपको फ्लोरेंस नाइटिंगल की कहानी क्यों सुना रही हूँ| तो आपको बताऊं कि आज मैं आपके साथ नर्सिंग से जुड़ी एक जमीनी रिपोर्ट साझा करने जा रही हूँ, जिसके लिए नर्सिंग के स्वर्णिम इतिहास का परिचय बेहद ज़रूरी है|

चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टर और नर्स सिक्के के दो पहलू की तरह हैं|

कहानी पूनम (बदला हुआ नाम) की है, जो बिहार के गाँव की रहने वाली है| गरीब परिवार में जन्मी पूनम को हमेशा से नर्सिंग का कोर्स करने का मन था| पढ़ाई में अच्छी पूनम ने अपनी मेहनत से बिहार की सरकारी परीक्षा पास करके सरकारी नर्सिंग कॉलेज में एडमिशन लिया|

आज पूनम नर्सिंग का कोर्स पूरा कर चुकी है| अपने तीन साल के अनुभव को जब पूनम ने मुझसे साझा करना शुरू किया तो उन्हें सुनने के बाद ऐसा लगा कि सालों पहले फ्लोरेंस नाइटिंगल ने अपने अथक प्रयासों से जिस दिशा के द्वार खोले थे, वास्तव में आज भी उसके स्वरूप में कोई ख़ास बदलाव नहीं आ सका है|

नर्स बनने के लिए पढ़ाई की क्या ज़रूरत?

पूनम ने बताया कि जब उसने नर्सिंग कोर्स में एडमिशन लिया तो आस-पड़ोस और रिश्तेदारों ने इसकी खूब निंदा की| वे कहते कि ‘अरे! पढ़ना ही था तो डॉक्टर की पढ़ाई करती| ये नर्स वाला काम करने के लिए क्या पढ़ाई कर रही है?’ गाँव में नर्सिंग के कोर्स को टाइम पास वाला कोर्स समझा जाता है| वे मानते हैं कि ये बेहद छोटा काम है, जिसके लिए पढ़ाई की ज़रूरत नहीं है| हाँ ये अलग बात है कि जब उसी ग्रामीण क्षेत्र में नर्सिंग के संबंधित कोई सरकारी नौकरी की बहाली आती है तो यही लोग अपनी पत्नी, बहन और तमाम रिश्तेदारी की लड़कियों की फर्जी डिग्री या घूसखोरी से उन्हें नौकरी दिलवाने की कतार में सबसे आगे रहते हैं|

नर्सिंग का कोर्स और चरित्र पर सवाल

ये ऐसी चुनौती थी जिसका सामना हमेशा पूनम को अपने घर आने पर करना पड़ता है| ढ़ेरों सलाहों के साथ नाते-रिश्तेदार उसे हर कदम अपनी संकीर्ण मानसिता का परिचय देते| लेकिन ये चुनौतियों का अंत नहीं था| कोर्स के दौरान अपने अनुभव को बताते हुए पूनम ने कहा कि जब उन्हें अपने कोर्स के अंतर्गत फील्ड वर्क के लिए भेजा जाता था तब उन्हें समाज का एक बेहद अज़ीब या यों कहें कि सड़ा हुआ रूप देखने को मिला| कोर्स के अंतर्गत नर्सिंग की छात्राओं को गाँव में जाकर महिलाओं को जनसंख्या रोकने के बारे में जागरूक करने का जिम्मा दिया गया, जिसमें उन्हें कंडोम के इस्तेमाल से लेकर नशबंदी जैसे उपलब्ध सभी उपायों के बारे में महिलाओं को जागरूक कर उनमें व्यवहारात्मक बदलाव लाना था|

पूनम बताती है कि जब वे महिलाओं को गर्भनिरोधों के बारे में बताती तो महिलाएं उनकी बातें सुनने की बजाय उनके ही चरित्र पर सवाल खड़े करने लगती| वे कहती कि ‘इन कुआंरी लड़कियों को ये सब बात करने में जरा भी शर्म नहीं आती है| न जाने कैसे-कैसे परिवार की हैं जो ऐसी बातें कर रही हैं|’ उनकी बातें इतने में ही खत्म नहीं होती वे आगे कहती कि ‘लगता है तुमलोग इन सबका इस्तेमाल करती हो| तभी बहुत जानकारी है|’

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ग्रामीण महिलाओं की इन बातों को आप अशिक्षा से जोड़कर स्पष्ट कर सकते हैं| लेकिन यहाँ हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि अगर किसी लड़की को लगातार ऐसी बातें बोली जायेंगीं तो वो कितने देर वहां टिकेगी| गौरतलब है कि वो लड़की भी ग्रामीण परिवेश की है जो अपने और समाज के बेहतर भविष्य की कल्पना के साथ अपने काम को करने की कोशिश कर रही है|

जब वे महिलाओं को गर्भनिरोधों के बारे में बताती तो महिलाएं उनकी बातें सुनने की बजाय उनके ही चरित्र पर सवाल खड़े करने लगती|

नर्सिंग के दौरान अपने अनुभव को बताते हुए पूनम ने कहा कि कोर्स के तीन सालों में उसे डिलीवरी करवाने का भी कोई प्रशिक्षण नहीं मिल पाया, जिसका मुख्य कारण था ग्रामीण समाज की मानसिकता| जब भी पूनम और उसके जैसी अविवाहित नर्सिग की छात्रा किसी डिलीवरी केस को देखती तो कई बार गर्भवती महिला या उसके परिवार उन लड़कियों से डिलीवरी करवाने से मना कर देते| इसके वे कई कारण बताते, कभी उनका अविवाहित (यानी कि जिसकी शादी न हुई हो उसे डिलीवरी का अनुभव कैसे होगा?) होना तो कभी उनके चरित्र को गलत बताकर| नतीजतन गाँव के उस सरकारी अस्पताल में शादीशुदा की अधेड़ नर्स की डिलीवरी करवाती|

नर्स बनने पर शहर की तरफ रुख

इन अनुभवों के बाद अपने भविष्य की योजना बताते हुए पूनम ने बताया कि वो अब किसी शहर में ट्रेनिंग लेकर वहीं पर काम करेगी| गाँव के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर और नर्स के बिना खस्ता हाल व्यवस्था को पूनम ने बचपन से देखा था| वो नर्सिंग कर खुद इस व्यवस्था में सुधार करना चाहती थी, लेकिन समाज के संकीर्ण नजरिये ने उसे पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया|

आधुनिकता के दौर में स्मार्ट सिटी का सपना लिए तकनीकी पहियों वाले समाज की ये वो सच्चाई है, जहाँ कुछ बुनियादी सवाल आज भी समाज की संकीर्ण मानसिकता के कटघरे में खड़े हैं| इतना ही नहीं, इनकी सड़ी-गली मानसिकताओं की पैठ इतनी मजबूत है कि पैसे और जिंदगी दोनों गवाने के बावजूद उनमें कोई बदलाव नहीं आ रहा है| आज हम शहर के किसी भी अस्पताल में इलाज़ के लिए गाँव से आये लोगों की भीड़ देख सकते हैं, जहाँ कई बार वो बड़ी लूट का शिकार बन अपने पैसों और ज़िन्दगियों से हाथ धो बैठते हैं| वहीं दूसरी तरफ आये दिन मीडिया गाँव में खस्ताहाल पड़े सरकारी अस्पतालों की पड़ताल हमारे सामने रखती है| ऐसे में हमें रूककर ये सोचने की ज़रूरत है कि आखिर इस खस्ताहाल व्यवस्था की वजह क्या है?

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क्या हम इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि अगर पूनम और उसके साथ ही तमाम लड़कियों को नर्सिंग कोर्स के दौरान इतने कड़वे अनुभव नहीं मिले होते तो शायद वो अपने गाँव के सरकारी अस्पताल का हिस्सा बनकर लोगों की सेवा करती| लेकिन गाँव में नर्स को लेकर तो लोगों के अलग ही मानक मिले, जिसके लिए उसका शादीशुदा होना ज़रूरी था| तभी उसका काम चरित्र के दायरे में आता|

कहते हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र में डॉक्टर और नर्स सिक्के के दो पहलू की तरह हैं| इनदोनों में से एक के बिना चिकित्सा क्षेत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है| पर दुर्भाग्यवश ग्रामीण परिवेश में आज भी नर्स बनने के लिए लड़कियों की चुनौती सालों पहले फ्लोरेंसे नाइटेंगल जैसी ही है, जिनके लिए समय कभी अनुकूल रहा ही नहीं| यहाँ कहानी में थोड़ा-सा बदलाव ये आया कि नर्स के लिए गाँव में अनुकूल माहौल नहीं है, खासकर अविवाहित और आत्मनिर्भर लड़की के लिए| लेकिन उसके लिए शहरों में बेहतर भविष्य का अंबार है, जिसके चलते आसानी से वो शहर की तरफ रुख कर लेती है और गाँव जस-के-तस रह जाते है|

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तस्वीर साभार : नॉन स्टॉप न्यूज़

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