चालीस साल पहले उत्तरी अमेरिका में हुए वैकल्पिक शिक्षा के आन्दोलन ने यह दर्शाया कि चार साल की उम्र तक एक बच्चा सारे जेंडर भेद सीख लेता है| ऐसे में अगर सारे संसार में पारंपारिक जेंडर भूमिकाओं को युवा पुरुषों व महिलाओं ने चुनौती दी है और उन्हें कुछ हद तक तोड़ा भी है |
किशोरावस्था को बाल्यावस्था से जीवन के अगले पड़ाव में कदम रखने का समय कहा गया है| कुछ लोगों के लिए यह बदलाव एक ही रात में हो जाता है जबकि कुछ लोगों के लिए यह समय छह से आठ या इससे अधिक सालों तक होता है| वैश्विक स्तर पर, किशोरों के अनुभव अलग-अलग होते हैं| उनकी समान उम्र ही उनमें एकमात्र समानता दिखाई पड़ती है| किशोर-किशोरियों और युवा लोगों के लिए उच्च या निम्न सामाजिक आर्थिक वर्ग का होने, शहर या गाँव में रहने, विकासशील या विकसित देश में रहने के परिणाम खास है| हम इस नज़र से कर्ज में डूबी हुई सेक्स वर्कर्स या किसी भी किशोर उम्र की सेक्स वर्कर्स के बारे में सोचना पसंद नहीं करते, लेकिन वास्तविकता ये है कि कई किशोरियां इस हालात में जी रही है| सड़कों पर रहने वाले, एड्स के कारण अनाथ हुए या युवा शरणार्थियों जैसे वंचित वर्ग के किशोरों से मध्यम वर्गीय किशोर-किशोरियों, खासकर विकसित देशों के किशोर-किशोरियों का जीवन कहीं भी मेल नहीं खाता| फिर भी जब बात यौन व प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे की हो, तब युवा होने का मतलब होता है, ज़रूरत से कम सूचनाएं और अधिकार और अधिक अनिश्चितताएं व शर्म और जो कोई भी पसंद नहीं करेगा|
युवा लोग आत्मबोध और आत्मनियन्त्रण से ही वयस्क बन सकते हैं और यौन व्यवहार और भावनाओं से संबंधित अपने निर्णय ले सकते हैं|
यौन स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य की समस्याओं का अंतर युवा लोगों के लिए ख़ास है| महिलाओं को छोटी उम्र से ही प्रजनन स्वास्थ्य की समस्याओं का सामना करना पड़ता है और सेक्स ही हमेशा इन समस्याओं का एकमात्र कारण नहीं होता| मासिक स्राव की समस्या इनमें सबसे मुख्य और सार्वभौमिक है पर फिर भी इन समस्याओं पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है| कई किशोरियों के लिए हर महीने एक सप्ताह तक पीड़ादायक लक्षणों का सामना करते रहना एक सच्चाई है जिसे वे चुपचाप सहती हैं और स्वयं ही इसका इलाज करने का प्रयास कर काम चलाती हैं| योनि से असामान्य स्राव, खुजली और पीड़ा अन्य समस्याएं है जिन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता|
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युवा पुरुषों को निश्चित तौर पर संसार भर में हर साल किशोरियों के गर्भधारण के आधे मामलों की जिम्मेदारी लेना शुरू करना होगा और जहाँ उन्होंने लड़की को सेक्स के लिए मजबूर किया हो वहां इसकी पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होनी चाहिए| पर फिर भी हम देखते हैं कि हमेशा युवा लड़कियों पर ही अनचाहे गर्भ का इल्ज़ाम लगाया जाता है| वहीं परिवार और बेटियों के बीच चुप्पी हैं, चाहे वह यौवनारंभ का मुद्दा हो, मासिक स्राव या यौन संबंध या गर्भनिरोधन के साधन या गर्भसमापन का| दुःख की बात तो यह है कि परिवार के साथ पुत्र के बीच बातचीत पर भी कोई चर्चा नहीं की गई है| इससे यह पता चलता है कि यह चुप्पी कितनी गहरी है| दूसरे युवा लड़के और लड़कियों के बीच में भी चुप्पी है जिनमें परस्पर यौन संबंध हैं|
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युवा लोग अपने आप में यौन और प्रजनन शक्ति रखने वाले होते हैं, पर उनके समाज में यह नहीं माना जाता है कि उनके भी यौनिक अधिकार होते हैं| उन्हें कहीं-कहीं पर बहुत कम प्रजनन अधिकार दिए जाते हैं| जहाँ कुछ समाजों में युवा महिलाओं से बच्चे पैदा करवाना एक गंभीर समस्या समझी जाती है, वहीं कुछ अन्य समाजों में विवाह के पहले साल में, चाहे वह किशोरावस्था में ही क्यों न हो, यह एक ख़ास सामाजिक ज़रूरत होती है| अधिकतर वयस्कों को यह विचार गैर-ज़रूरी लगता है कि युवा लोगों के भी यौनिक अधिकार होते हैं| वे यह भूल जाते हैं कि उनकी खुद की युवावस्था में उनके अनुभव कैसे थे| अपने बच्चों पर उनके अधिकार की भावना बहुत ज्यादा होती है जो कि समुदाय और सामाजिक मूल्यों से समर्थित होती है| यहाँ तक कि जब वे यह चाहते हैं कि उनके बच्चों के लिए हालात अलग हों, तब भी वे उन पर प्रतिबन्ध लगाते हैं क्योंकि उन्हें ना लगाने की कीमत बहुत ऊंची समझी जाती है| युवा लोगों को अभी जो कोई अधिकार लेने हैं उनका एक छोटा हिस्सा प्रजनन और यौन अधिकार हैं|
युवा लोग अपने आप में यौन और प्रजनन शक्ति रखने वाले होते हैं, पर उनके समाज में यह नहीं माना जाता है कि उनके भी यौनिक अधिकार होते हैं|
अधिकतर देशों में सेक्स करने, विवाह करने, काम करने, वोट देने, शराब पीने या वाहन चलाने की क़ानूनी उम्र अलग-अलग होती है| यह ज़रूरी नहीं कि कानून में यह बताया गया हो कि किस उम्र में किशोर व्यक्ति सेक्स कर सकता है या गर्भनिरोधन के साधन (कंडोम, कॉपर-टी, आई-पिल व अन्य) ले सकता है| पर अक्सर इस मुद्दे पर माता-पिता अपनी राय तो देना ही चाहते हैं, भले ही वे इसपर शिक्षा दें या नहीं इसके अलावा विषमलिंगीं या समलिंगी सेक्स के लिए सहमति की उम्र में अंतर हो सकता है, जबकि कुछ देशों में समलिंगी सेक्स पूरी तरह से अवैध है|
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माना कि जीवन के संदर्भ में हर पहलू पर किशोर-किशोरियां और युवा वर्ग बेहद परिपक्व फैसले न ले पाए पर इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें कोई अधिकार नहीं है| दूसरे शब्दों में कहें तो कि युवा लोग आत्मबोध और आत्मनियन्त्रण से ही वयस्क बन सकते हैं और यौन व्यवहार और भावनाओं से संबंधित अपने निर्णय ले सकते हैं| अब यह उन लोगों पर है जो सूचनाओं, विचारों और सेवाओं को नियंत्रित करते है कि वे किस तरह से सीखने के साधन युवाओं को मुहैया कराते हैं जिससे उन युवाओं को यह पता हो कि उनके पास क्या विकल्प हैं और उन्हें चुनने पर उसके क्या परिणाम, उनके और दूसरे लोगों के लिए होंगें|
यह लेख क्रिया संस्था की वार्षिक पत्रिका युवाओं के यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकार (अंक 2, 2007) से प्रेरित है| इसका मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें|
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तस्वीर साभार – scoopwhoop
Swati lives in Varanasi and has completed her B.A. in Sociology and M.A in Mass Communication and Journalism from Banaras Hindu University. She has completed her Post-Graduate Diploma course in Human Rights from the Indian Institute of Human Rights, New Delhi. She has also written her first Hindi book named 'Control Z'. She likes reading books, writing and blogging.