इंटरसेक्शनलजाति कौन गुरु कौन शिष्य?

कौन गुरु कौन शिष्य?

शायद परिवर्तन का नाम ही जीवन हैl हम चाहें तो पूरी उम्र नया सीख सकते हैं और बदल सकते हैंl

मीना बांग्लादेश की निवासी हैंl वह भरतनाट्यम में माहिर हैं और अब वो डांस करने के साथ-साथ युवाओं को डांस सिखाती हैंl वे कला पर लिखती भी हैंl मीना के लिए कला सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नहीं हैl उनके लिए कला समाज परिवर्तन व सुधार का माध्यम हैl

मीना 17-18 साल की थीं, जब पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश बनाने के लिए मुक्ति युद्ध शुरू हुआl पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली अपना अलग देश चाहते थे, जहाँ बांग्ला भाषा और संस्कृति पनप सके और बंगाली इज्ज़त से जी सकेंl अपनी आज़ादी के लिए लोगों को सशस्त्र युद्ध लड़ना पड़ाl लाखों स्त्री-पुरुष मुक्ति वाहिनी में भर्ती हुएl भारतीय सरकार, सेना व जनता ने भी इस मुक्ति युद्ध में सहायता की थीl

मीना का परिवार भी अलग-अलग तरह से मुक्ति युद्ध में सक्रिय थाl मीना और उनकी एक सहेली एक सांस्कृतिक जत्थे में शामिल हो गयींl कलाकारों की यह मंडली एक ट्रक में गावों और शहरों में जाकर गीतों के माध्यम से लोगों का मनोबल बढ़ाती थीl एकजुटता के लिए लोगों को प्रेरित करती थीl साल 1971 में बांग्लादेश आज़ाद हो गयाl इसके बाद मीना ने आगे की पढाई पूरी की, शादी किया और अपना परिवार बनायाl वे दो बच्चों की माँ बनींl बच्चों के बड़े होते ही वे फिर से डांस और कला के क्षेत्र में सक्रिय हो गयींl

मीना की ख़ासियत यह है कि वे कभी सीखना नहीं छोड़तींl वे सदा शिक्षार्थी या तालिब बनी रहती हैंl वे हमेशा नया ज्ञान और अनुभव पाने की कोशिश करती हैं और इसके लिए खूब मेहनत करती हैंl नए ज्ञान की तालाश में वे कहीं भी चली जाती हैंl उनका परिवार हमेशा मीना का साथ देता रहा हैl

जब मीना करीब 40 साल की थीं तो उन्होंने संस्कृत पढ़ने का तय कियाl चूंकि उनकी मातृभाषा बांग्ला, संस्कृत से जन्मी है, वे संस्कृत को और गहराई से समझना चाहती थींl खोजबीन के बाद उन्हें संस्कृत सिखाने वाली एक संस्था का पता चला जो भारत में थीl मीना ने उस संस्था में दाखिला ले लिया और ढाका से भारत पहुँच गईंl

इस प्रशिक्षण में ज़्यादा छात्र पुरुष थे और उम्र में सभी मीना से छोटे थेl उस समूह में मीना एक मात्र मुसलमान थींl बड़ी उम्र की और अलग धर्म और देश की होने के बावजूद मीना जल्दी ही सब के साथ एक दम घुलमिल गयींl वे ज़्यादातर साड़ी पहनती हैं, अच्छी हिंदी बोलती हैं इसलिए वे किसी को भी अलग या परदेसी नहीं लगती थींl यही नहीं, वे संस्कृत में सबसे ज़्यादा माहिर थींl सभी छात्र उन्हें दीदी कहने लगे और उनसे मदद लेने के लिए उनके पास बेझिझक आने लगेl

उनके परिवार ने कभी धर्म या जाति के नामपर किसी तरह का भी भेदभाव नहीं किया था|

प्रशिक्षण के आख़िरी महीने में संस्कृत व्याकरण पढ़ाने किसी दूसरे शहर से एक बुज़ुर्ग अध्यापिका आयींl सबने कहा कि व्याकरण में उनसे ज़्यादा माहिर बहुत कम लोग हैंl दो तीन दिन के अन्दर ही उन्हें मीना की प्रतिभा और संस्कृत सीखने की लगन का पता लग गयाl मीना उन सब सवालों का उत्तर दे पाती थीं जिनका उत्तर अन्य छात्र नहीं दे पाते थेl वे अध्यापिका मीना से बहुत प्रभावित हुईं और उन्हें अधिक से अधिक सिखाने की कोशिश करने लगींl

एक दिन शाम को मीना अपने कमरे में अकेली बैठी थीं और अचानक वे गुरूजी उनके कमरे में चली आयींl मीना ने उनका स्वागत किया और उन्हें कुर्सी पर बैठायाl उन्होंने मीना की बहुत तारीफ़ की और कहा कि अगर मीना और अधिक व्याकरण सीखना चाहती हैं तो वे उनके साथ उनके शहर चल सकती हैं, उनके साथ रह सकती हैं और सीख सकती हैंl मीना की ख़ुशी का ठिकाना नहीं थाl उन्होंने कहा वे ज़रूर गुरूजी से और सीखना चाहेंगी और उनके साथ जाना चाहेंगी तो बात पक्की हो गयीl गुरूजी भी बहुत प्रसन्न थींl

गुरूजी और आराम से बैठ गयीं और मीना के बारे में सवाल पूछने लगींl “मीना मुझे ये तो पता है कि तुम ढाका से आयी हो मगर मुझे तुम्हारा पूरा नाम अभी तक नहीं पताl क्या नाम है तुम्हारा?”

“ जी मेरा नाम मीना रहमान हैl” मीना ने जवाब दियाl

“ क्या? मीना रहमान? यह नाम तो हिन्दू नाम नहीं लगता?” गुरूजी ने कुछ हैरानी से  कहाl

“ जी, मैं हिन्दू नहीं हूँ| मैं मुस्लिम परिवार से हूँ”| मीना ने अपने उसी शांत लहजे में जवाब दियाl

यह सुनते ही मानो गुरूजी को सांप सूंघ गया होl वे एकदम कुर्सी से उठीं और बिना कुछ कहे तीर की तरह कमरे से बाहर चली गयींl

मीना हैरान थींl वे न कुछ कह पायीं न कुछ कर पाईंl इसके पहले कभी किसी ने उन्हें उनके धर्म के कारण इस तरह नकारा नहीं थाl उनके परिवार ने कभी धर्म या जाति के नामपर किसी तरह का भी भेदभाव नहीं किया था, इसलिए वे सोच भी नहीं सकती थीं कि कुछ लोग इस तरह सोच सकते हैं और व्यवहार कर सकते हैंl

बड़ी उम्र की और अलग धर्म और देश की होने के बावजूद मीना जल्दी ही सब के साथ एक दम घुलमिल गयींl

अगले दिनों में उनकी कक्षा में गुरूजी न मीना की तरफ देखती थीं और न ही पहले की तरह उनसे प्यार से सवाल पूछती थीं जैसे पहले पूछा करती थींl गुरूजी के इस व्यवहार पर मीना बहुत चकित और दुखी थींl उन्हें इस बात का भी दुःख था कि वे इन गुरूजी से अब अधिक व्याकरण नहीं सीख पाएंगीl

प्रशिक्षण खत्म होने के एक दिन पहले शाम को अचानक गुरूजी फिर मीना के कमरे में आयीं और खड़े-खड़े ही बोलीं,” सुनो, तुम अगर और व्याकरण सीखना चाहती हो तो कल रात को मेरे साथ मेरे शहर और मेरे घर चल सकती होl बताओ, चलना है?”

मीना हक्का-बक्का थींl बिना सोचे और समझे हडबड़ा कर बोलीं, “जी,जीl मैं चलूंगी आपके साथl”

यह सुनकर गुरूजी बिना कुछ और कहे और बिना मुस्कुराए चली गयीं और मीना सोचती रहीं कि आखिर हो क्या रहा है और उन्हें क्या करना चाहिएl पर अब करने को और था क्या? उन्होंने तो हाँ कर दी थीl अगले दिन रात को गुरु और शिष्य रेलगाड़ी से यात्रा करके गुरूजी के शहर और घर पहुँच गयींl रास्ते में बहुत ही कम बातचीत हुईl

गुरूजी एक छोटे से फ्लैट में रहती थींl उन्होंने मीना को घर दिखाया, मीना का कमरा दिखाया और फिर रसोई दिखाई और कहा, “यह रसोई हैl तुम्हें इसके अन्दर नहीं घुसना हैl मैं खाना बनाकर तुम्हें दूँगी, तुम यहाँ बाहर मेज़ पर बैठकर खाओगीl वहां अपने बर्तन साफ़ करके मेज़ पर रख दिया करनाl ठीक है? समझ में आ गया?”

मीना ने सिर हिलाकर और अपनी हैरानी को छुपाकर कहा, ’जी! ठीक है”l

अगले दिन से गुरु जी ने मीना को पढ़ाना शुरू कियाl दिन में कई घंटे पढ़ाती थींl फिर दोनों के लिए खाना बनाती थींl मीना अलग बाहर बैठकर खाना खाती थींl मीना ने व्याकरण के साथ-साथ और भी बहुत कुछ सीखा और समझने की कोशिश कीl जिस विषय पर वह सोचती रहती थी उसकी बात न गुरूजी ने की और न ही मीना नेl

मीना के जाने के एक दिन पहले गुरूजी ने मेज़ पर कुछ सब्जियां रखी और मीना को बुलाकर कहा, “ मीना बेटी, आज शाम का भोजन तुम बनाओगी, रसोई में और हम दोनों यहाँ मेज़ पर बैठकर एक साथ खायेंगे”l मीना को अपने कानों और आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था हल्का-सा मुस्कुराकर उन्होंने जवाब दिया, “जी ठीक हैl आज भोजन मैं बनाउंगी, रसोई में और हम दोनों इकठ्ठे खायेंगेl”

मीना मन ही मन मुस्कुरा रही थीं और एक बार फिर से बहुत हैरान थींl वह सोच रही थीं कौन,कब,कैसे बदल जाए कहा नहीं जा सकताl शायद परिवर्तन का नाम ही जीवन हैl हम चाहें तो पूरी उम्र नया सीख सकते हैं और बदल सकते हैंl मीना खुश थीं कि वे गुरूजी के नकारात्मक व्यवहार से आक्रोश में नहीं आयीं और गुरूजी को सोचने, समझने और बदलने का मौक़ा दे पाईंl

और पढ़ें : गिरिजा देवी: ममतामयी व्यक्तित्व वाली महान शख्सियत 


तस्वीर साभार : thehindu

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content