इतिहास कमला दास : प्रभावशाली और बेबाक़ एक नारीवादी लेखिका | #IndianWomenInHistory

कमला दास : प्रभावशाली और बेबाक़ एक नारीवादी लेखिका | #IndianWomenInHistory

कमला दास आजाद भारत की एक प्रभावशाली नारीवादी लेखिका थी,जिन्होंने मासिकधर्म, यौवन, महिलाओं के यौन जीवन, लेस्बियन सेक्स जैसे मुद्दों पर बेबाक़ी से लिखा।

“मेरे चारों ओर शब्द हैंऔर शब्द और केवल शब्द हैंवे मुझ पर पत्ते की तरह उगते हैं।” कमला दास
(अंग्रेजी में लिखी कविता, ‘शब्द’ का मेरे द्वारा किया गया हिंदी में अनुवादित अंश)

कमला दास, जिनके चारों ओर केवल शब्द थे। भीतर सेवे उनके थे लेकिन वे शब्द कहते उनकी नहीं बल्कि एक पुरुष प्रधान समाज में अलगथलग पड़ी महिलाओं की कहते थे, जिसे यह समाज अपना नहीं लगता है।

कमला दास आजाद भारत की एक प्रभावशाली नारीवादी लेखिका थी,जिन्होंने मलयालम और अंग्रेजी भाषा में लगातार मासिकधर्म, यौवन, प्रेम, महिलाओं के यौन जीवन, लेस्बियन सेक्स, बाल विवाह जैसे मुद्दों पर बेबाक़ी से लिखा। ये वो दौर था जब लोग इन मुद्दों पर बातें क्या इनका नाम सुनकर लोग मुँह चुराने लगते थे। उनकी लेखनी हमेशा अपनी मातृभाषा में रही। लेकिन अंग्रेजी में भी उन्होंने काफी लिखा, जिसके चलते उन्हें ‘द मदर ऑफ मॉडर्न इंग्लिश पोएट्री’ के नाम से जाना जाने लगा।

कमला दास का जन्म 31 मार्च 1934 को ब्रिटिश इंडिया के मालाबार जिले में हुआ था (वर्तमान में भारत के केरल राज्य के त्रिशूर जिले)। बचपन में उनका नाम ‘कमला सुरैया’ था। शादी के बाद उनका नाम ‘कमला दास’ हुआ। उनके बचपन का पहला हिस्सा उनके पैतृक घर मालाबार में ही बीता और दूसरा कलकत्ता में, जहां उनके पिता वी.एम नायर की नियुक्ति हुई थी।

कविता के प्रति उनका प्रेम कम उम्र में ही उनके बड़े चाचा नलपत नारायण मेनन की संगत में शुरू हुआ और वे अपनी मां बालमणि अम्मा की तरह  ही एक उत्कृष्ट कवयित्री बनी। जब वे महज छह साल की थी तब उन्होंने एक पांडुलिपि पत्रिका शुरू की, जिसमें वो गुड़ियों के बारे में उदासीन कविताएं लिखा करती थी, जो अपना सिर खो चुकी थी।

किशोरावस्था में उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर बच्चों का थिएटर शुरू किया, जिसमें वो विक्टर ह्यूगो के नाटक लेश मिसरेबर से लेकर कालिदास के शकुंतला तक के नाटक किए। मंच उनके पैतृक घर के आंगन में स्थापित किया गया था और सभी ग्रामीणों के देखने के लिए खुला था। पंद्रह साल की बेहद ही कम उम्र में उनकी शादी रिजर्व बैंक के कर्मचारीमाधव दाससे की गयी।

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लेखन की ‘माधवीकुट्टी’

माधवीकुट्टीनाम कमला अपने लेखन के लिए इस्तेमाल करती थी। उन्होंने बेहद ही कम उम्र में अपने पति, अपने परिवार और समाज की अपेक्षाओं के बोझ तले एक पत्नी और मां के रूप में अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए, अपने लिखने की कला के जुनून को आगे बढ़ाने का रास्ता बनाया।

एक महिला लेखक के रूप में उन्होंने लिखा कि ‘एक महिला को खुद को पहले एक अच्छी पत्नी, एक अच्छी मां बनकर साबित करना होगा, इससे पहले कि वह कुछ और बन सके। इसका मतलब था, साल दर साल इंतजार करना। मेरे पास प्रतीक्षा करने का समय नहीं है, मैं अधीर हूं। इसीलिए, मैंने अपने जीवन में काफी पहले लिखना शुरू कर दिया था। और शायद मैं भाग्यशाली थी। मेरे पति ने इस तथ्य की सराहना की। मैं परिवार की आय के पूरक बनने की कोशिश कर रही थी। इसीलिए, उन्होंने मुझे रात में लिखने की अनुमति दी। मैं सभी काम पूरे होने के बाद, अपने बच्चों को खाना खिलाने और किचन की साफ-सफाई के बाद लिखने के लिए बैठती थी और सुबह तक लिखती थी। जिससे मेरे स्वास्थ्य पर भी काफी गहरा असर पड़ा।’

 कविता उन लोगों की नहीं होती है,जो इसे लिखते हैं, यह उन लोगों का हैं, जिन्हें इसकी आवश्यकता है। – मारियो रूपोपोलो

कमला दास की लेखनी और उनकी कविताओं की सबसे ज़्यादा ज़रूरत तो इस पुरूष प्रधान समाज की दमित महिलाओं को थी। महिलाएं जिन्हें यह समाज भूल गया था, कि वे भी इंसान हैं। उनकी पास भी सोचने की शक्ति होती है।

उनकी सबसे पहली रचनाओं में से एक कविताएन इंट्रोडक्शनमें उन्होंने अपनी नाराजगी जेंडर भूमिकाओं तक सीमित रहने को लेकर लिखा है, जो उन्होंने खुद के लिए नहीं चुना था और उन्हें तोड़ने की उनकी इच्छा थी। इसमें वह लिखती हैं –

 फिर मैंने एक शर्ट और एक काले रंग की साड़ी पहनी, अपने बालों को छोटा किया और इस नारीत्व को अनदेखा किया।

 साड़ी में पोशाक, लड़की हो या पत्नी हो, वे रोए।

 नौकर बनो, खाना बनाओ या नौकरों से झगड़ा करो।

जब उनके परिवार को वित्तीय संकट में जूझना पड़ा तो उसे उन्हें अपना पेशा एक कवयित्री से एक स्तंभकार के रूप में बदलना पड़ा, क्योंकि इसमें बेहतर भुगतान मिलता और कविता उनके जीवन से गौण हो गई। उन्होंने लोकप्रिय साप्ताहिक मलयालनाडु के लिए नियमित रूप से लिखा। उन्होंने एक निश्चित अपराध-बोध वाली ईमानदारी के साथ नारीत्व के अपने अनुभवों का वर्णन किया, जो कि केरल के लोगों ने अब तक नहीं देखा था। 

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बेशक कमला दास अपनी साहसिक और स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं। उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएं प्रेम और स्वीकारोक्ति के इस्तेमाल के साथ एक तेज जुनून है। कमला ने साल 1984 में भारत के लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उनका राजनीतिक सफर आगे नहीं बढ़ा।

कमला दास ने साल 1999 में धर्म परिवर्तन किया और घोषणा किया कि उन्होंने अपने मुस्लिम प्रेमी से शादी करने की योजना बनाई है, लेकिन उन्होंने कभी पुनर्विवाह नहीं किया। 31 मई 2009 को 75 वर्ष की उम्र में, उनकी पुणे के एक अस्पताल में मृत्यु हो गई।

Also read in English: Kamala Das – The Mother Of Modern Indian English Poetry | #IndianWomenInHistory


तस्वीर साभार : facebook

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