“कुछ भी सिर्फ इसलिए स्वीकार नहीं करो कि मैंने कहा है। इस पर विचार करो। अगर तुम समझते हो कि इसे तुम स्वीकार सकते हो तभी इसे स्वीकार करो, अन्यथा इसे छोड़ दो।” – पेरियार
आज हम आधुनकिता और तकनीक के क्षेत्र में दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। बेशक कुछ मायनों में ये सच भी है लेकिन जब हम आए दिन जाति के आधार पर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव की ख़बरें देखते हैं तो ये हमारी इस आधुनिकता को सदियों पीछे के उस सड़े समाज की ओर धकेल देता है, जहां हम जाति आधारित भेदभाव से ऊभर नहीं पाए है। ऐसा नहीं है कि इसके ख़िलाफ़ कोई प्रयास नहीं किए गए, भारतीय इतिहास में कई से विचारक और समाज सुधारक हुए जिन्होंने न केवल जातिवाद बल्कि पितृसत्ता और ब्राह्मणवाद की जड़ धर्म के ख़िलाफ़ लंबी लड़ाई लड़ी है, उनके एक एक है – पेरियार। एक कट्टरवादी नास्तिक, जिनकी विचारधारा को कम्यूनिस्ट से लेकर, दलित आंदोलनकारी, तर्कवादी, समतावादी और नारीवादी सभी पढ़ते, जानते, समझते और स्वीकार करते हैं।
पेरियार के नाम से जाने वाले ई.वी रामास्वामी एक सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनकारी थे, जिन्होंने साल 1919 की शुरुआत में कट्टर गांधीवादी और कांग्रेसी के रूप में काम किया। शराब विरोधी, खादी और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी। असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया। कांग्रेस के मद्रास प्रेसिडेंसी यूनिट के अध्यक्ष भी रहे। लेकिन वायकॉम सत्याग्रह की घटना ने उन्हें कांग्रेस से अलग कर दिया। साल 1924 में त्रावणकोर के राजा के मंदिर के रास्ते में जाने वाले दलितों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। दलित इसके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। उस समय गांधीजी ने वहां जाने से मना कर रखा था। फिर भी पेरियार ने मद्रास प्रेसिडेंसी यूनिट के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने दलितों के हक के लिए लड़ाई लड़ी।
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पेरियार की पहचान तर्कवाद, समतावाद, आत्मसम्मान और अनुष्ठानों का विरोधी, जाति और पितृसत्ता के विध्वंसक के रूप में किया जाता है।
वे स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के खिलाफ थे। वे दक्षिण भारत( द्रविड़ देशम) को अलग देश बनाने की मांग करते रहे। तमिलों पर हिंदी थोपने का कड़ा विरोध भी किया। जब वे कांग्रेस में थे, उस समय भी जातीय तौर पर आरक्षण को लेकर संघर्ष किया। लेकिन उन्हें कोई भी सफलता नहीं मिली। बाद में एक रिपोर्ट आई, जिसमें लिखा था कि एक स्कूल में भोजन देने के दौरान ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों के बीच भेदभाव हो रहा है। उस समय उन्होंने दोनों के साथ एक बराबर व्यवहार करने की विनती की।
इसके बाद उन्होंने आत्म-सम्मान आंदोलन किया। और पूर्ण रूप से ब्राह्मणवादी सोच के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनके अनुसार वेदों में लिखी बातें जातीगत तौर पर भेदभाव करती है। उन्होंने बाल-विवाह के उन्मूलन, विधवा महिलाओं को दोबारा शादी करने, पार्टनर चुनने या छोड़ने को लेकर संघर्ष किया। उन्होंने अपने आंदोलनों में पत्नी नागमणि और बहन बालम्बर को भी आने के लिए प्रोत्साहित किया।
शादी में निहित पवित्रता की जगह पार्टनरशिप और महिलाओं से केवल बच्चा पैदा करने के लिए शादी की जगह महिला शिक्षा अपनाने को कहा। शादी के निशान के रूप में सिंदूर और मंगलसूत्र का विरोध किया। उनका मानना था कि यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था के प्रतीक है। यह केवल महिलाओं को दबाने के लिए है। वे इसके माध्यम से ब्राह्मणवादी सत्ता के नीचे दबाए रखते थे। वे इसीलिए एक नारीवादी जनक के रूप में सामने आए। उन्होंने सही मायनों में समझाया की यह रिति-रिवाज, मंदिर धर्म केवल पुरुषावादी और ब्राह्मणवादी विचार से जन्मे है और इनका काम केवल महिलाओं को दबाना है। पेरियार की पहचान तर्कवाद, समतावाद, आत्मसम्मान और अनुष्ठानों का विरोधी, जाति और पितृसत्ता के विध्वंसक के रूप में किया जाता है।
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तस्वीर साभार : up80.online