‘भक्ति आंदोलन’ भारत के इतिहास का एक बहुत ज़रूरी हिस्सा है। ये सिर्फ़ एक धार्मिक पंथ ही नहीं बल्कि सदियों पुरानी सामाजिक व्यवस्थाओं के ख़िलाफ़ एक आंदोलन भी था। धर्म को एक ख़ास अभिजात वर्ग के क़ब्ज़े से छुड़ाकर उसे सार्वजनिक और समावेशी बनाना ही इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था। हम भक्ति पंथ के जितने भी महान संतों को जानते हैं, वे सब समाज के अलग अलग तबकों से आते थे। कोई मीराबाई की तरह राजघराने का सदस्य था तो कोई कबीरदास की तरह जुलाहा। भक्ति आंदोलन ने भगवान को सिर्फ़ ब्राह्मणों तक सीमित नहीं रखा बल्कि उसे समाज के हर शोषित और पीड़ित वर्ग तक पहुंचाया, और इसीलिए भक्ति संतों की एक बड़ी संख्या दलितों और महिलाओं की है। एक ऐसी ही महान महिला संत की बात हम करने जा रहे हैं। महादेवी अक्का।
महादेवी, जिन्हें सम्मानपूर्वक ‘महादेवी अक्का’ कहते हैं, का जन्म साल 1130 में कर्नाटक के शिवमोग्गा के पास एक गांव में हुआ था। उनका बचपन ही एक आध्यात्मिक माहौल में गुज़रा था। उनके माता पिता, निर्मल शेट्टी और सुमति, लिंगायत या वीरशैव संप्रदाय के थे और इसीलिए महादेवी भी शिव की पूजा करते हुए बड़ी हुईं। अपनी उम्र की बाकी लड़कियों की तरह उन्हें खिलौनों में या बाहर खेलने-घूमने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे हर वक़्त अपने आराध्य शिव की मूर्ति के सामने ध्यानमग्न बैठी रहती थी। छोटी सी उम्र में ही वे अपने देवता के स्मरण में, अपनी मातृभाषा कन्नडा में छोटी छोटी कविताएं, जिन्हें ‘वचन’ कहते हैं, लिखने लगी थीं। इन सभी वचनों में उन्होंने शिव को ‘चेन्न मल्लिकार्जुन’ नाम से संबोधित किया, जिसका मतलब है, ‘जो मोगरे के फूल की तरह श्वेत है।’
महादेवी अपने आराध्य को देवता से ज़्यादा एक प्रेमी, एक पति के तौर पर देखा करती थीं। उनका एक वचन है जिसमें वे कहती हैं: ‘मेरे प्रभु, चाहे आप सुनें या न सुनें, मैं आपका गुणगान किये बिना रह नहीं सकती। आप मेरी पूजा स्वीकार करें या न करें, मैं आपकी पूजा किए बिना रह नहीं सकती। आप मुझसे प्यार करें या न करें, मैं आपकी बांहों में रहे बिना चैन से जी नहीं सकती। आप मेरी तरफ़ देखें या न देखें, मैं आपको जी भरकर देखे बिना रह नहीं सकती। ओ चेन्न मल्लिकार्जुन, आपकी पूजा करके ही मुझे सुख प्राप्त होता है।’
कहते हैं महादेवी देखने में अत्यंत सुंदर थीं। जब तक वे सोलह साल की हो गईं, उनकी तरह सुंदर और कोई न था और उनके चाहनेवाले भी हज़ार थे। उनसे प्यार करनेवाले हर मर्द का प्रस्ताव वे ठुकरा देती थीं क्योंकि वे मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान चुकी थीं। उन्होंने ठान लिया था कि वे किसी इंसान से प्यार या विवाह नहीं कर पाएंगी क्योंकि उनका पति तो स्वयं भगवान है। एक वचन है जिसमें वे कहती हैं, ‘ये जो पुरुष हैं, जो एक समय के बाद मर जाते हैं और जिनकी लाशें सड़ जाती हैं, इन्हें दूर ले जाओ मेरी नज़रों से और अपनी रसोई के चूल्हे में फेंक दो!’
और पढ़ें : उमाबाई दाभाडे : मराठाओं की इकलौती वीर महिला सेनापति
महादेवी की सुंदरता की बात वहां के राजा कौशिक तक पहुंच गई और उन्होंने ठान लिया कि वे उनसे शादी करेंगे। प्रस्ताव लेकर वे महादेवी के यहां पहुंचे तो महादेवी ने बाक़ायदा उन्हें ये कहकर नकार दिया कि, ‘मेरे चेन्न मल्लिकार्जुन के सामने तो हर मर्द पुतला है!’ अब कौशिक और महादेवी में फ़र्क़ सिर्फ़ राजा और प्रजा का ही नहीं बल्कि धर्म का भी था। कौशिक जैन थे और महादेवी शिव भक्त। महादेवी के माता-पिता को डर था कि राजा क्रोधित होकर उन्हें सज़ा देंगे क्योंकि महादेवी ने सिर्फ़ विवाह का प्रस्ताव ही नहीं ठुकराया बल्कि शंकर भगवान को अपना पति बताकर राजा की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई।
भक्ति संतों की एक बड़ी संख्या दलितों और महिलाओं की है। एक ऐसी ही महान महिला संत की बात हम करने जा रहे हैं – महादेवी अक्का।
ये डर सच हुआ। राजा वाक़ई नाराज़ हुए थे और उन्होंने महादेवी को डरा-धमकाकर उन्हें राज़ी कराने की कोशिश की। कुछ सूत्रों का मानना है कि महादेवी राज़ी हुईं थीं मगर इस शर्त पर कि राजा उन्हें कभी हाथ तक नहीं लगाएंगे और बाद में राजा ने इस शर्त को तोड़ दिया। कुछ और सूत्र कहते हैं कि राजा ने महादेवी का अपहरण करके उनसे ज़बरदस्ती ब्याह रचाई और उनका बलात्कार किया। जो भी है, राजा कौशिक से शादी होने के बाद ही महादेवी एक दिन महल से निकल गईं। उन्हें निकलते देख राजा क्रोधित होकर बोले, “अगर जा रही हो तो वे सारे कपड़े और गहने लौटा दो जो मैंने तुम्हें दिए हैं, और जो तुमने पहने हैं!” इस बात पर उन्होंने अपने गहने कपड़े उतारकर फेंक दिए और शरीर को अपने लंबे, घने बालों से ढककर हमेशा के लिए गांव छोड़कर चली गईं।
अपना गांव छोड़ने के बाद वे पश्चिम कर्नाटक के कल्याण में आ पहुंची जहां प्रसिद्ध लिंगायत संत बासवेश्वर उर्फ़ ‘बासवन्ना’ ने अनुभवमंडप की शुरुआत की थी। अनुभवमंडप लिंगायत संतों की सभा है जहां आध्यात्मिक मुद्दों पर चर्चा की जाती है और जिसका लक्ष्य जात-पात की सामाजिक पाबंदियों से मुक्ति पाना है। यहां प्रवेश पाना आज भी उतना ही मुश्किल है जितना उस समय था क्योंकि एक ऐसे सच्चे भक्त को ही यहां शामिल होने की अनुमति है, जिसे संसार और सांसारिक सुख और दुःख से कोई लेना देना नहीं है।
और पढ़ें : गुलबदन बानो बेग़म : मुग़ल साम्राज्य की इतिहासकार
नंगे घूमने की वजह से महादेवी को वैसे भी हज़ार बातें सुननी पड़ती थीं, क्योंकि उस समय साधु-संतों का नंगा घूमना आम बात होने के बावजूद किसी महिला संत ने ऐसा नहीं किया था। पर जब वे अनुभवमंडप में पहुंची तब उन्हें वहां जाने से रोका गया क्योंकि उन्होंने अपना शरीर बालों से ढक रखा था, जिससे ये साबित होता था कि वे सामाजिक शर्म-हया की परवाह करती हैं और भक्ति में पूरी तरह विलीन नहीं हुई हैं। एक लंबी और कठिन परीक्षा के बाद ही उन्हें अनुभवमंडप का हिस्सा बनने की अनुमति मिली। जल्द ही वे वहां के वरिष्ठ सदस्यों में से एक मानी जाने लगीं और लोग उन्हें ‘अक्का’ या ‘बड़ी बहन’ कहके संबोधित करने लगे।
कुछ साल अनुभवमंडप की सदस्य बने रहने के बाद 25 साल की उम्र में महादेवी श्रीशैलम पर्वत चली गईं। पर्वत की एक गुफ़ा में उन्होंने अपनी ज़िंदगी के अंतिम पांच साल गुज़ारे। यहां वे प्रकृति से एक हो गईं। उन्हें हर पेड़, हर पत्ते, हर झील में शिव नज़र आने लगे। 1160 में क़रीब 30 साल की उम्र में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और शिव के साथ उनकी आत्मा का मिलन हो गया। कहा जाता है कि उनके देहांत से पहले राजा कौशिक उनसे क्षमा मांगने आए थे।
महादेवी अक्का की कहानी ज़रूरी है क्योंकि एक धार्मिक संत होने के अलावा वे एक बेबाक और साहसी औरत थीं जो समाज की पाबंदियों का उल्लंघन करने और शोषणकारी ताकतों का विरोध करने से डरती नहीं थीं। 12वीं सदी में उन्होंने समाज द्वारा तय की गई औरत की भूमिका को नकारा और अपना रास्ता ख़ुद चुनने की हिम्मत की। इतिहास में न जाने ऐसी कितनी अनोखी औरतें हैं जिनके नाम तक हम नहीं जानते।
तस्वीर साभार : pragyata
Really great article. And still people(bhakts 😁) say that feminism in India is anti Hindu 🤦🏾♂️