एक आदिवासी लेखिका को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कई चुनौतियों के साथ-साथ उन्हें पितृसत्ता, जाति और नस्लीय भेदभाव के दोगुने शोषण का भी सामना करना पड़ता है।आदिवासियों पर कुछ चर्चित पुस्तकें जैसे द आदिवासी विल नॉट डांस या तो पुरुष आदिवासियों द्वारा लिखी गई हैं; या पूरी तरह गैर आदिवासियों ने लिखी हैं, जैसे लीव्स फ्रॉम द जंगल।
इसके बावजूद यह कहना सही नहीं होगा कि आदिवासी महिलाओं ने कुछ नहीं लिखा है। आदिवासी महिलाएं भी अपनी आवाज़ बुलंद कर आदिवासियों के बारे में लिख रही हैं। असली समस्या तो यह है कि हम इनके बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं। आदिवासी लेखिकाओं के लिए कई सम्मेलन भी हुए हैं, जैसे साहित्य अकादमी ने झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा के साथ मिलकर दो दिवसीय सम्मेलन किया। मुझे आज आपसे कुछ आदिवासी लेखिकाओं के बारे में बात करनी है, जो आदिवासियों के संस्कृति, जीवन और संघर्ष को साहित्य में उतार रही हैं।
1. एलिस इक्का की कहानियां
साल 2015 में प्रकाशित एलिस इक्का की कहानियां, एलिस इक्का ने साल 1950 और साल 1960 में लिखी गई लघु कहानियों का कलेक्शन है। उनकी कहानियों का मुख्य केंद्र प्रकृति और महिलाएं हैं। कोई कहेंगे कि इस प्रकार उनके काम में इको फेमिनिज़्म झलकता है लेकिन, वे आदिवासी महिलाओं की कहानियां बताती हैं, जो प्रकृति के हमेशा पास रहती हैं। उनकी कहानियां सरल और प्राकृतिक हैं। इन्हें पढ़कर कोई भी प्राकृतिक रूप से कहानियों में सम्मिलित हो जाता है। उनकी कहानियों में आदिवासियों के जीवन और संघर्ष को सरलता से दिखाया गया है, जिसे कोई भी समझ सकता है।
साल 1917 में रांची, झारखंड में जन्मी एलिस इक्का को भारत की पहली महिला आदिवासी कहानीकार की तरह जाना जाता है। मुंडा ट्राइब से आने वाली वह पहली महिला आदिवासी थी जिन्होंने अंग्रेज़ी में स्नातक की पढ़ाई की। उनमें आदिवासियों के जटिल मुद्दों को साधारण तरह से कहानियों के माध्यम से बताने की खूबी थी।
और पढ़ें : 5 दलित लेखिकाएं जिनकी आवाज़ ने ‘ब्राह्मणवादी समाज’ की पोल खोल दी !
2. कवि मन जनी मन
साल 2019 में प्रकाशित इस छोटी पुस्तिका में वंदना टेटे ने आदिवासियों के लोक गीतों और कविताओं को सम्मिलित किया है। आदिवासी समाज में मौखिक साहित्य का खजाना है, जो लिखित रूप में संजोया नहीं गया है। आदिवासियों का धनी साहित्य लिखित नहीं, लेकिन गीत और संगीत में बहुत पाया गया हैं। इन लोक-गीतों और कहानियों को जब साहित्य में ढ़ाला जाए तो उसे ‘ओरेचर’ कहते हैं। ओरल यानी मौखिक और लिटरेचर यानी साहित्य; इन शब्दों का मिलन मतलब ओरेचर है। इस श्रेणी की लेखिका हैं वन्दना टेटे, जिन्होंने इस पुस्तिका में लोक-गीतों और कहानियों को जगह दी है।
ओरेचर श्रेणी को सबसे पहले युगांडा के आदिवासी लेखक पियो जिरिमू ने स्थापित किया था, जिससे बहुत आदिवासी लेखकों और साहित्यकारों ने प्रेरणा ली। इनमें अफ्रीका के न्गूगी वा थ्योंगो और भारत की वंदना टेटे प्रमुख ओरेचर साहित्यकार हैं। उन्होंने अपने लेख से लोगों के ज्ञान को मान्यता दी हैं। कवि मन जनी मन में झारखंड के आदिवासी जनी यानी आदिवासी महिलाओं की कविताएं हैं। सभी कविताएं आदिवासी भाषा में लिखी गई हैं। वंदना टेटे झारखंड के सिमडेगा जिले के समतोली गांव से आने वाली एक साहित्यकार और एक्टिविस्ट हैं। जिस प्रकार इंसान के व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन अलग नहीं होते, उनका मानना है कि आदिवासियों के लोक-गीतों को साहित्य में दिखाना ज़रूरी है।
3. आदिवासियों का गौरव हैं वन्दना टेटे
वंदना टेटे रांची और उदयपुर आकाशवाणी से भी जुड़ी रही हैं। इन्होंने आदिवासियों के राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों पर प्रकाशित विभिन्न पत्रिकाएं जैसे, अखरा झारखंड (हिंदी), संस्कृति अखरा (बहुभाषी), सोरिनानिड (खड़िया) और जोहरसहिया (नागपुरी) में भी योगदान दिया है। इनकी अन्य पुस्तकें हैं – पुरखा लड़ाके, किसका राज है, झारखंड : एक अंतहीन समरगाथा, पुरखा झारखंडी साहित्यकार और नये साक्षात्कार, असुरसिरिंग, आदिवासी साहित्य : परंपरा और प्रयोजन और आदिम राग। उन्हें आदिवासी पत्रकारिता के लिए साल 2012 में झारखंड का राज्य सम्मान भी मिला है।
और पढ़ें : पितृसत्ता को चुनौती देतीं 5 समकालीन हिंदी लेखिकाएं
4. मौनोतर आत्मपथ
तूलिका चेटिया यें की इस पुस्तक में उन्होंने अपने अनुभव पर आधारित कविताएं लिखी हैं। तूलिका असम के ताई अहोम ट्राईब से हैं। उन्होंने इस पुस्तक में अपने आदिवासी अनुभव को ज़ाहिर किया है। यह पुस्तक लोक कहानियों, कविताओं और रिसर्च में जाना माना नाम हैं। उन्होंने ताई अहोम की संस्कृति के बारे में बहुत लिखा है। ऑल इंडिया रेडियो, डिब्रूगढ़ उनके कविताओं, कहानियों और साहित्य को ‘साहित्य कानून’ प्रोग्राम से संचारित करता रहता है। उनके अन्य प्रकाशित काम हैं, हनहिर आकाश प्रिमोर आकाश, शा पुहरोट सिवसगर और स्वप्न प्रिमोर प्रथोना। वे आसाम साहित्य सभा की सदस्य भी रही हैं। उन्हें अंतरराष्ट्रीय तथागत क्रिएटिव अवॉर्ड 2018 से भी नवाज़ा गया है।
5. द ब्लैक हिल, बदलते समय में ज़रूरी है यह किताब पढ़ना
साल 2014 में प्रकाशित किताब 1945 की आज़ादी से पहले उत्तर पूर्व क्षेत्र की कहानी बताती है। यह किताब काल्पनिक लेखन है, लेकिन ये असल घटनाओं पर आधारित है, जो आज के वर्तमान हालातों पर भी सोचने को मजबूर करती है। इसे साल 2017 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड से नवाजा गया है। इस कहानी में अभोर और मिष्मी ट्राइब के लोग मिशनरी के काम से चिंतित हैं। उन्हें डर है कि अगर चर्च बन गया तो उसके बाद अंग्रेज़ उनकी ज़मीन पर आ जाएंगे और उनकी ज़िंदगी और संस्कृति को खत्म कर देंगे। इसके साथ ही एक प्रेमी युगल में अंतर-जनजातीय प्यार हो जाता है जो कि ट्राइब्स में वर्जित है। लेकिन, वे फिर भी इस रिवाज़ को तोड़ते हुए अपने जीवन की कल्पना करते हैं।
6. ममांग दाई
लेखिका ममांग दाई अरुणाचल प्रदेश की पहली महिला थी, जिन्होंने आई.ए.एस. क्वालीफाई किया। इसके बावजूद ममांग दाई ने जर्नलिज़्म और लेखन चुना। उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स, द टेलीग्राफ और सेंटिनल समाचार पत्रों के साथ काम किया है और अरुणाचल प्रदेश यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की प्रेसिडेंट भी रही हैं।
इनके अन्य काम हैं 2003 की रिवर पोएम्स। इनकी किताब अरुणाचल प्रदेश: द हिडेन लैंड के लिए इन्हें वेरियर एलविं अवॉर्ड से भी नवाजा गया है। इनकी अन्य पुस्तकें हैं द स्काई क्वीन, स्टुपिड क्युपिड और माउंटेन हार्वेस्ट : द फूड ऑफ अरुणाचल प्रदेश।
7. तेमसुला आओ
साल 2013 की साहित्य अकादमी अवार्ड विनर लेखिका, तेमसुला आओ की रचित इस पुस्तक में कई कहानियां हैं। इस पुस्तक में उन्होंने अपने आओ नागा आदिवासियों के जीवन को कहानियों में ढाला है। एक कहानी में एक लड़की को लबुर्णम के फूल अपने बालों में पहन्ने की बहुत ख्वाहिश होती है। लेकिन उसे फूल नहीं नसीब होता, इसलिए उसकी अंतिम इच्छा होती है कि मरने पर उसके कब्र पर ये फूल पहनाए जाए। इनकी दूसरी कहानी है एक शिकारी की जिसे उसके शिकार की आत्मा परेशान कर रही है और वह आत्मा तब ही शांत होगी जब शिकारी उससे क्षमा मांगेगा।तेमसुला आओ नागालैंड के आओ ट्राइब से आती हैं। आओ भाषा भी “Endangered languages” में दर्ज है। उन्हें पद्म श्री से भी नवाज़ा गया है। उनके काम को हिंदी, बंगाली, आसामी, फ़्रेंच और जर्मन में भी ट्रांसलेट किया गया है। इनकी अन्य पुस्तकें हैं, वंस उपों ए लाइफ और आओ नागा ओरल ट्रेडिशन।
इन आदिवासी लेखिकाओं के अलावा भी कई नाम हैं जो साहित्य में योगदान दे रहे, जैसे रोज केरकेट्टा और सुशीला समद। हमें आदिवासी समाज और लोगों पर गर्व होना चाहिए कि वे दुनिया को ऐसे रत्न दे रहे है। क्या आपको कोई आदिवासी लेखिकाओं के बारे में पता है? हमें ज़रूर बताइए।
और पढ़ें : 9 नारीवादी लेखिकाओं के लेखन से समझें नारीवाद
यह लेख दीप्ती मेरी मिंज ने लिखा है,जिसे इससे पहले आदिवासी लाइव मैटर में प्रकाशित किया जा चुका है।
तस्वीर साभार : कैनवा