पिछले हफ़्ते स्टैंडअप कॉमेडियन अग्रिमा जॉशुआ का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। सालभर पुराने इस वीडियो में अग्रिमा ने कई चीजों के साथ मुंबई में बनने वाले छत्रपति शिवाजी स्मारक पर भी टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी में उन्होंने बताया कि ‘कोरा’ वेबसाइट पर कुछ लोग इस स्मारक के बारे में बेबुनियाद दावे कर रहे थे, जैसे यह कि वह दरअसल स्मारक के रूप में, नई तकनीक से लैस एक हथियार है। इस बात पर अग्रिमा ने व्यंग्य किया कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गौरव के नाम पर झूठे तथ्य फैलाना हमें स्वीकार है मगर ऐतिहासिक हस्तियों के ‘आदर’ और ‘सम्मान’ में ज़रा सी भी कमी हो तो हम जंग छेड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
अग्रिमा की यह टिप्पणी सही साबित हुई जब उनकी इस टिप्पणी से कई लोगों की भावनाएं बेहद आहत हो गई। लोगों ने अग्रिमा पर शिवाजी महाराज का अपमान करने और महाराष्ट्र की जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया। हज़ारों लोगों ने अग्रिमा की गिरफ़्तारी की मांग की और ख़ुद महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने अग्रिमा पर एफ़आईआर दर्ज करने की बात की। सोशल मीडिया पर उन्हें गालियां और धमकियां मिलीं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने उस स्टूडियो को तहस-नहस कर दिया, जहां उन्होंने परफ़ॉर्म किया था। स्थिति इतनी बुरी हो गई कि ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर अग्रिमा को शिवाजी महाराज पर की गई अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी मांगनी पड़ी।
इसके बाद सोशल मीडिया पर अग्रिमा को बलात्कार और जान से मारने की धमकियां देने वाले वीडियो आने लगे। भद्दी भाषा में अग्रिमा और उनके परिवार को नुक़सान पहुंचाने की बात करते इन वीडियोज़ का सोशल मीडिया पर समर्थन भी किया गया। ऐसे वीडियो बनानेवाले कुछ लोगों के नाम सामने आए और वे गिरफ़्तार भी हुए हैं। पर शिवाजी महाराज के इस तथाकथित ‘अपमान’ के लिए अग्रिमा के ख़िलाफ़ यह द्वेष एक विषैला रूप धारण कर चुका है। उनके यौन शोषण से लेकर उनके खुलेआम कत्ल की मांग करनेवालों की कमी नहीं है। ज़्यादातर ट्रोल्स को इसी बात से ऐतराज है कि अग्रिमा एक ईसाई हैं और एक बेबाक, उन्मुक्त सोच वाली औरत हैं। ये दो चीजें पितृसत्ता और धर्मांधता की सड़ांध में फल-फूल रहे इस समाज से बर्दाश्त नहीं होतीं।
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आज अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारे देश में एक मज़ाक बनकर रह गई है। एक फ़िल्म, एक किताब, एक कविता या महज़ एक ‘कॉमेडी शो’ से तथाकथित धर्मरक्षक आहत हो जाते हैं। लेखकों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों को ‘हिंदू विरोधी’, ‘देशद्रोही’, ‘आतंकवादी’, ‘नक्सली’ घोषित करके उन्हें नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। सोशल मीडिया पर धमकियां, लांछन और चरित्र हनन तो है ही, उन्हें दिनदहाड़े जान से मार भी दिया जाता है। यही ज़हर गौरी लंकेश, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे जैसे तमाम लेखकों और चिंतकों की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है, जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों और नाइंसाफियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई।
सिर्फ़ बड़े लेखक और कलाकार ही नहीं, हर वह औरत जो मौजूदा सामाजिक या शासन व्यवस्था का विरोध करने की हिम्मत रखती है, इसी तरह के हमले का निशाना बनती है।
लेखक या पत्रकार हो या कोई अभिनेता या हास्य कलाकार, ‘देश विरोधी’ और ‘हिंदू विरोधी’ होने का इल्ज़ाम कभी भी, किसी पर भी लगाकर उसे हर तरह के शारीरिक हमले और धमकियों का निशाना बनाना अब आम बात हो गयी है और इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ रहा है महिलाओं पर। महिलाओं पर हमला करने का मुख्य तरीका है यौन उत्पीड़न और उनका चरित्र हनन। अग्रिमा अकेली नहीं हैं जिन्हें अपने विचारों के लिए ‘रंडी’ बुलाया गया या बीच सड़क पर उनका शोषण करने की धमकी दी गई। आए दिन हम देखते हैं कैसे सोशल मीडिया पर महिला पत्रकारों, राजनेताओं, कलाकारों, बुद्धिजीवियों के चरित्र और यौनिकता पर सवाल उठाए जाते हैं, उनके नाम पर अश्लील वीडियो और तस्वीरें फैलाई जाती हैं और गंदी भाषा में उन्हें अमानवीय शारीरिक हिंसा की धमकियां दी जातीं हैं।
सिर्फ़ बड़े लेखक और कलाकार ही नहीं, हर वह औरत जो मौजूदा सामाजिक या शासन व्यवस्था का विरोध करने की हिम्मत रखती है, इसी तरह के हमले का निशाना बनती है। हमें याद है किस तरह शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाली महिलाओं पर वेश्यावृत्ति का इल्ज़ाम लगाया गया था। सफ़ूरा ज़रगर के गर्भवती अवस्था में गिरफ़्तार होने पर उनके बच्चे के पिता के परिचय पर सवाल उठे थे और छिछली टिप्पणियां की गई थीं। मुख्यधारा से विपरीत विचार रखनेवाली बेबाक औरतों पर उंगली उठाना तो लगभग रोज़ का मामला है ही।
जिस देश में लगभग हर चौथी औरत बलात्कार और यौन उत्पीड़न का शिकार रह चुकी है, जिसे ‘महिलाओं के लिए सबसे ख़तरनाक देश’ के तौर पर जाना जाता है, वहां इस प्रकार औरतों का लांछन और शोषण कल्पना से परे नहीं है। अग्रिमा जॉशुआ जैसे कलाकार ही नहीं, हम में से कोई भी इसका निशाना बन सकता है। दुख की बात यह है कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के सम्मान के बहाने अग्रिमा जैसी महिलाओं पर आक्रमण किया जाता है, वे खुद ही कभी इसका समर्थन नहीं करते बल्कि वे खुद सबसे पहले इसका विरोध ही करते।
तस्वीर साभार : pardaphash