समाजकानून और नीति संपत्ति में आखिर अपना हक़ मांगने से क्यों कतराती हैं महिलाएं?

संपत्ति में आखिर अपना हक़ मांगने से क्यों कतराती हैं महिलाएं?

अधिकांश महिलाओं के पास ज़मीन का मालिकाना हक नहीं है जबकि देश में ऐसे कानून मौजूद हैं जो संपत्ति में महिलाओं के हक़ को बढ़ावा देते हैं।

आज भी औरत को सिर्फ खेतों में काम करने वाले मजदूर की तरह देखा जाता है, न कि मालिक की तरह। वे खेती से जुड़े हर काम में शामिल तो होती हैं लेकिन ज़मीन का मालिकाना हक़ उनमें से अधिकतर के पास नहीं होता। ग्लोबल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट लंदन की अप्रैल 2020 में आई रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 16 फीसद महिलाएं, भारत की सम्पूर्ण कृषि भूमि की मालिक हैं। ये हाल तब है जब एग्रीकल्चरल वर्कफोर्स का लगभग 47 फीसद शेयर महिलाओं का होता है। कृषि और खेती के काम में इतने योगदान के बावजूद, 2 फीसद से भी कम कृषि भूमि पर भारतीय औरतों का मालिकाना हक़ है।

अधिकांश महिलाओं के पास ज़मीन का मालिकाना हक नहीं है जबकि देश में ऐसे कानून मौजूद हैं जो संपत्ति में महिलाओं के हक़ को बढ़ावा देते हैं। हिन्दू महिलाओं की संपत्ति से संबंधित अधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में दिए हुए है। साल 2005 में इस कानून में ये प्रावधान डाला गया कि बेटियों को भी बेटों की तरह, पिता की पैतृक सम्पत्ति