भारत सहित दुनियाभर में इंटरनेट और ऑनलाइन सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म का विकास एक ऐसे स्पेस के रूप में हुआ जहां कोई भी व्यक्ति अपनी बात बिना किसी रोकटोक के रख सकता है। इस तरह इंटरनेट स्वतंत्रता और मुखरता के दावे के साथ आम जन के जीवन में आया। आज जब दुनिया भर में इंटरनेट स्पीड को बढ़ाने की बात हो रही है तो यह बात कही जा सकती है कि दुनिया की कुल जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इंटरनेट का उपभोक्ता है। यूं तो इंटरनेट को आभासी दुनिया कहा जाता है मगर यहां होने वाला हर काम हमारी वास्तविक दुनिया से न सिर्फ़ प्रभावित होता है बल्कि वास्तविक दुनिया को भी प्रभावित करता है।
एक ओर जहां इंटरनेट सभी को सामान रूप से मुखरता प्रदान करने वाला एक साधन है, वहीं दूसरी ओर हमारे आस-पास प्रभावी पितृसत्तात्मक संस्कृति में महिलाओं का ज़्यादा बोलना निषेध है। पितृसत्ता के बनाए खांचे के अनुसार एक आदर्श महिला केवल पुरुष का कहा सुनती है और ज्यादा नहीं बोलती। इसी द्वंद्व के बीच जब एक महिला इन खांचों को तोड़ना चुनती है और ऑनलाइन माध्यमों पर मुखरता से अपनी बात रखती है तो पुरुष का अहंकार आहत होने लगता है और तब ‘ऑनलाइन जेंडर आधारित हिंसा’ घटती है।
ऑनलाइन जेंडर आधारित हिंसा से तात्पर्य वर्चुअल माध्यमों के ज़रिए महिला, एलजीबीटी+ समुदाय के साथ की जा रही ऐसी हिंसा है जिसके कारणों में उनकी लैंगिक पहचान निहित होती है। ज़ाहिर है यह हिंसा सीधे तौर पर शारीरिक न होकर मानसिक और मौखिक होती है। ट्रोलिंग, रिवेंज पोर्न, सोशल मीडिया स्टॉकिंग, डोज़िंग आदि ऑनलाइन हिंसा के अलग-अलग उदाहरण हैं। मगर जेंडर आधारित यह ऑनलाइन हिंसा इतनी सरल चीज़ नहीं है क्योंकि इसके पीछे सामाजिक कारक लगातार काम करते हैं। आइए उदाहरणों के माध्यम से इसके प्रकारों को समझने की कोशिश करते हैं।
सोशल मीडिया ट्रोलिंग
सोशल मीडिया के विकास के साथ ही लोगों को अपनी अभिव्यक्ति का अच्छा माध्यम भी मिला। मगर महिलाओं (विशेषकर मीडिया और बाहरी कार्यक्षेत्र में संलग्न) के लिए यह माध्यम भी शोषण का एक अन्य केंद्र बन गया है। यहां संगठित तरीके से लोगों को निशाना बनाकर उनपर अभद्र टिप्पणी की जाती है या बलात्कार की धमकियां दी जाती हैं। यही सोशल मीडिया ट्रोलिंग कहलाती है।
एम्नेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में हुए आम चुनाव में महिला नेताओं द्वारा सबसे ज़्यादा ‘अब्यूज़िव लैंग्वेज’ झेली गई। रिपोर्ट की माने तो हर 7 में से 1 ट्वीट में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। यानि हर राजनेता के लिए औसतन 113 आपत्तिजनक ट्वीट किए गए। शीर्ष 10 महिला राजनीतिज्ञों को उल्लेखित करते हुए 79.9% ट्वीट ऐसे किए गए जिनमें अश्लील भाषा का प्रयोग किया गया। कुछ ऐसा ही हाल महिला पत्रकारों का भी है। ‘गुजरात फाइल्स’ की लेखिका और प्रसिद्ध पत्रकार राणा अय्यूब ‘द क्विंट’ से बात करते हुए बताती हैं कि एक बार इन्हीं ट्रोल्स द्वारा उनके चेहरे के साथ छेड़छाड़ करते हुए उसे एक पोर्नोग्राफ़िक वीडियो के साथ अटैच करके उनके रिश्तेदारों और अन्य जान-पहचान के लोगों को भेज दिया गया था। इसी प्रकार महिला पत्रकार नेहा दीक्षित को ट्रोल करते हुए एक आदमी उन्हें अलकायदा के ऑपरेटर की पत्नी बताता है। यूं तो पुरुष पत्रकारों और नेताओं को भी ट्रोल किया जाता है मगर उन्हें ट्रोल करते हुए भी मां-बहन की महिला विरोधी गालियां ही दी जाती हैं। साथ ही एक अंतर यह भी है कि पुरुष पत्रकारों को महिला पत्रकारों की तरह बलात्कार की धमकी नहीं दी जाती बल्कि उनकी पत्नी, मां अथवा बेटी के ख़िलाफ़ यह इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रोलिंग दरअसल हमारे समाज द्वारा महिलाओं के खिलाफ बनाई गई ऑफलाइन धारणा का ही आउटपुट है। हमारे आस-पास के घरों में जैसे एक पुरुष अपनी पत्नी, मां और बेटी पर चिल्ला रहा होता है, गालियां दे रहा होता है या उन्हें पीट रहा होता है, यह ट्रोलिंग उसी धारणा का ऑनलाइन संस्करण है जहां एक पुरुष महिला को एक आसान टार्गेट समझता है और उसका शोषण करता है।
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रिवेंज पॉर्न
रिवेंज पॉर्न से आशय ऑनलाइन माध्यमों ख़ास तौर पर सोशल मीडिया पर किसी भी व्यक्ति की ऐसी तस्वीर या वीडियो साझा करके उसे पब्लिक डोमेन में लाने से है जो इंटिमेट स्पेस में रहते हुए खींची या बनाई गई हो। आसान शब्दों में इसे ऐसे समझिए कि जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की बेहद निजी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल कर देता है। ऐसा आम तौर पर बदले की भावना से किया जाता है इसलिए इसे ‘रिवेंज पोर्न’ कहा गया है।
स्कूपहूप से अपने निजी अनुभव साझा करते हुए एक महिला ने बताया कि कैसे कॉलेज के दिनों में उनके बॉयफ्रेंड के साथ चले 4 साल के लंबे संबंध के बाद जब चीज़ें ख़राब होने लगीं और लड़के ने जब उन पर पाबंदियां लगानी शुरू की तो उन्होंने उससे अलग होने का फैसला किया। लड़का पहले गिड़गिड़ाया और संबंध न तोड़ने की अपील की मगर जब वो लड़की नहीं मानी तो उसने संबंध के दौरान साझा की गई निजी तस्वीरों को पब्लिक करने की धमकी दी। यह सिलसिला लंबा चला। वह कहती हैं कि यह एक ऐसा सिलसिला होता है जो अमूमन खुद की ज़िन्दगी को ख़त्म करने के साथ ही थमता है।
दरअसल रिवेंज पॉर्न पुरुष अभिमान से जुड़ा हुआ मसला है। एक पुरुष जो अपने पार्टनर पर अधिकार जताने लग जाता है और इसके परिणाम स्वरूप उस पर पाबंदियां लगाता है। इसी प्रकार किसी अन्य कारणों से भी जब एक महिला उस पुरुष से अलग होने का निर्णय लेती है तो उसका पौरुष आहत होता है और वह अपने बदला लेने के लिए यह अपराध करता है।
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ऑनलाइन सेक्शुअल हैरेसमेंट
यूं तो उपर दिए गए उदाहरण भी इसके अंतर्गत आता है मगर यहां हम बात कर रहे हैं डेटिंग साइट्स पर होने सेक्शुअल हैरेसमेंट की। मोटे तौर पर ऑनलाइन सेक्शुअल हैरेसमेंट का मतलब किसी भी व्यक्ति को (अमूमन किसी महिला को) शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए धमकाने या फिर उनके लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करना है। प्यू रिसर्च सेंटर के एक शोध के अनुसार एक ओर जहां डेटिंग ऐप का चलन युवाओं में बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर इन प्लैटफ़ॉर्म पर महिलाओं का शोषण भी बढ़ रहा है। शोध के अनुसार क़रीब 19 फीसद महिलाएं ऐसी हैं जिनको इन प्लेटफॉर्म पर शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए धमकाया गया। यह संख्या पुरुषों के मुकाबले (9 फ़ीसद) दोगुनी है।
इंटरनेट और ऑनलाइन सोशल मीडिया प्लेट का विकास एक ऐसे स्पेस के रूप में हुआ जहां कोई भी व्यक्ति अपनी बात बिना किसी रोकटोक के रख सकता है।
ईशनिंदा का झूठा आरोप
हर समाज में धर्म एक महत्वपूर्ण और प्रभावी संस्थान है। इसे एक ऐसे संस्थान के रूप में चिन्हित किया गया है जो आलोचना से परे है और ऐसा करने पर अमूमन लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। धार्मिक नियमों अथवा उसके आराध्यों की आलोचना करने को ही ईशनिंदा कहा गया है। गौरतलब है कि महिलाओं को निशाना बनाने यह तरीका भी बेहद प्रचलित हुआ है। यह बात ध्यान रखने वाली बात है कि हर धर्म अमूमन महिला विरोधी ही रहा है। ऐसे में धार्मिक रिवाज़ और कट्टरपंथ की पितृसत्ता अक्सर मिलकर एक ऐसे आवरण का निर्माण का निर्माण करते हैं जहां किसी महिला पर लगा ईशनिंदा का झूठा आरोप ही उसे मुसीबत में डाल सकता है।
साल 2010 में पाकिस्तान की इसाई महिला आसिया बीबी पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगा। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने पैगम्बर मुहम्मद साहब (इस्लामिक आराध्य) के खिलाफ़ कुछ कहा है। इस बात पर एक छोटे से साबूत के आधार पर उन्हें सजा सुना दी गई जहां आठ साल सज़ा काटने के बाद उन्हें ज़मानत मिल पाई। इसके बाद भी उनके वकील और उन्हें को पकिस्तान छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया।
हाल के दिनों में यह एक ट्रेंड के रूप में उभरा है जहां अरुंधती रॉय, तस्लीमा नसरीन जैसी महिला लेखिकाओं के झूठे बयान या मूल बयान को तोड़-मरोड़ कर सोशल मीडिया में वायरल किया जाता है और उसके बाद इनके लिए सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी और गालियों की बौछार आ जाती है। इसके पीछे भी एक पितृसत्तात्मक सोच काम करती है कि वह महिला जिसे धर्म हमेशा पुरुष से नीचे रखता आया है वह उनके आराध्य या धर्म की आलोचना कैसे कर सकती।
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दरअसल हमने इंटरनेट के प्रसार से पहले ही एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया था जो अपने स्वाभाव में महिला विरोधी था। हमने पति-पत्नी पर आधारित जोक एक से दूसरे को फॉरवर्ड करके इंटरनेट पर महिला विरोधी संस्कृति को पाला है। ‘हसबेंड-वाइफ जोक’ की संस्कृति पर फ़ोर्ब्स मैगज़ीन से बात करते हुए न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में ‘जेंडर स्टडी’ की प्रोफ़ेसर रहीं एलिसा रे कहती हैं कि ‘यूं तो यह केवल हल्के मज़ाक प्रतीत होते हैं लेकिन असल में यह जोक ‘डीह्यूमनाईज़िंग’ हैं और महिलाओं के ऑब्जेक्टीफिकेशन को बढ़ावा देते हैं। यह पुरुषों में यह भावना डालते हैं कि महिलाएं पुरुषों से कमतर हैं और उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। रे के अनुसार, ‘यह जोक महिलाओं में ‘सेल्फ़ ओब्जेक्टीफिकेशन’ को बढ़ावा देते हैं और साथ ही इससे उनमें खुद को हानि पहुंचाने का व्यवहार, एन्गज़ाइटी और अवसाद इत्यादि के लक्षण को पैदा करता है।’
आज महिलाओं को ऑनलाइन मिलने वाली बलात्कार की धमकियां, गालियां, ट्रोलिंग इसी संस्कृति का विस्तृत रूप है। दरअसल यह कहीं बाहर से नहीं आता है यह हमारे समाज में मौजूद पितृसत्ता का ही ‘रिफ्लेक्शन’ है। महिलाओं के चुप रहने उनके ज्यादा न बोलने और सहने को समाज ने सांस्कृतिक आदर्श बनाकर वैधता दे रखी है ऐसे में जब सोशल मीडिया पर आकर महिला मुखर होती है तो यह सांस्कृतिक मूल्य ढहने लगते हैं और इससे पुरुषों का अहंकार चोटिल हो जाता है। वह कराहता है और अहंकार में पुरुष महिलाओं के अस्तित्व पर हमला करने की सोचता है जिसका नतीजा हमें ऑनलाइन जेंडर आधारित हिंसा के रूप में देखने को मिलता है।
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तस्वीर : सुश्रीता भट्टाचार्जी
Aakhir kab tak ladkiya ladko ke barabar maani jaengi,
Aaj bhi har jagah ladkiya chahe kitni bhi badi or bade post pr na chali jaye unhe humesa sabke saamne sir kyu jhukana padta hai.
Sabse badi or important baat ladki ke ghar waale hi kyu de dahej ladke wale kyu naii humesa ladki waale hi kyu jhuke
Ladkiyo pr lagataar ho rahe rapes ka ek hi kanoon hona chahiye or wo hai maut ye kanoon lagu hona bahutt jaruri hai har state me.