नारीवाद की एक आम परिभाषा है कि महिलाओं को समान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार और अवसर दिए जाने चाहिए। नारीवाद का उद्देश्य यह बिल्कुल नहीं है कि हमें किसी एक लिंग से सत्ता को छीनकर दूसरे लिंग को सौंप देनी चाहिए। नारीवाद का एक अर्थ यह भी है कि एक महिला जो करना चाहती है, जीवन में जो बनना चाहती है उसे वह सब करने की आज़ादी मिले। नारीवाद एक आंदोलन है स्त्री-द्वेष और महिलाओं के शोषण के खिलाफ। नारीवाद केवल महिलाओं के लिए समानता प्राप्त करने के विषय में नहीं है। नारीवाद सभी के लिए समानता चाहता है। यह सिर्फ एक लिंग तक सीमित नहीं है बल्कि यह सभी धर्मों ,वर्गों, जातियों के लोगों के बीच भी समानता की मांग करता है।
नारीवाद प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन को स्वतंत्रता, समानता और गौरव के साथ जीने का अधिकार मांगता है। लेकिन हकीकत यही है कि आज भी नारीवाद को एक विवादास्पद विषय की तरह देखा जाता है। शायद ऐसा इसलिए क्योंकि कई लोगों ने इसे गलत तरीके से परिभाषित किया है। इसीलिए आज भी कई लोग खुद को नारीवाद बोलने से कतराते हैं। कुछ लोगों के लिए तो ‘फेमिनिस्ट’ एक गाली के समान है जो उन औरतों को दी जाती है जो उनके अनुसार समाज को बिगाड़ रही हैं। यह गालियां इस पितृसत्तातमक समाज को औरतों के लिए ही उपयुक्त लगती है क्योंकि उन्हें लगता है कि नारीवादी सिर्फ औरतें ही होती हैं।
नारीवादी आंदोलन का उद्देश्य पितृसत्ता को जड़ से समाप्त करना है क्योंकि पितृसत्ता से सिर्फ महिलाओं को ही नहीं बल्कि पुरुषों को भी नुकसान होता है। उदाहरण के तौर पर- जब एक पुरुष सार्वजनिक रूप से रोकर अपना दुख व्यक्त करता है तो यह कह कर उसकी बेइज्जती की जाती है कि ‘औरतों की तरह क्यों रो रहे हो?’ इस संदर्भ में सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई ये पंक्तियां भी प्रसिद्ध हैं- ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।’ इस पंक्ति का मतलब यह है कि किसी महिला द्वारा बहादुरी दिखाने के बावजूद बहादुरी को नारी का गुण नहीं माना जा सकता इसे अभी एक पुरुष के गुण के रूप में देखा जाता है।
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पुरुषों पर महिलाओं की तुलना में अधिक पैसे कमाने का दबाव होता है। समाज द्वारा तय की गई जेंडर की भूमिका की वजह से महिला और पुरुष दोनों को ही परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नारीवाद का उद्देश्य इसी पितृसत्ता को समाप्त करना है। इसका उद्देश्य पितृसत्ता को खत्म करके मातृसत्ता स्थापित करना कतई नहीं है। इसका सीधा सा उद्देश्य है पुरुष और महिला दोनों के लिए समान अधिकार की वकालत करना। नारीवाद समानता पर ध्यान केंद्रित करता है न कि महिला श्रेष्ठता पर। नारीवाद यह बिल्कुल नहीं मानता कि महिला होना पुरुष होने की तुलना में महान या बेहतर है। नारीवाद का उद्देश्य पुरुषों को नीचा दिखाना उनको अनदेखा करना बिल्कुल नहीं है।
नारीवाद यह बिल्कुल नहीं मानता कि महिला होना पुरुष होने की तुलना में महान या बेहतर है। नारीवाद का उद्देश्य पुरुषों को नीचा दिखाना उनको अनदेखा करना बिल्कुल नहीं है।
नारीवाद का उद्देश्य, समाज में महिलाओं की स्थिति के विशेष कारणों का पता लगाना और उनकी बेहतरी के लिए वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना है। नारीवाद का उद्देश्य लैंगिक समानता प्राप्त करना है। नारीवादियों का तर्क है कि यह जरूरी नहीं कि पुरुषों और महिलाओं की जैविक संरचना और पुरुषत्व और नारीत्व की विशेषताओं में कोई सीधा जुड़ाव हो। बचपन में पालन-पोषण के समय से ही पुरुषों और महिलाओं के बीच कुछ खास तरह के अंतरों की नींव डालने की कोशिश की जाती है और उन्हें बरकरार रखा जाता है। नारीवाद का उद्देश्य लिंग आधारित इस भेदभाव को खत्म करना भी है।
बचपन से ही लड़कों और लड़कियों को इस तरह प्रशिक्षित किया जाता है कि उनके बीच व्यवहार, खेलकूद ,पहनावे आदि के आधार पर आधारित अंतर कायम हो जाए। इसके पीछे मुख्य लक्ष्य ही होता है कि हर लड़का या लड़की खुद को समाज द्वारा पहले से तय जेंडर की भूमिका में ही ढाले। इसीलिए नारीवादी इस बात पर जोर देते हैं की खास तौर पर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं और मान्यताएं लिंग आधारित भेदभाव के कारण बनते हैं। सदियों से समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव होता रहा है। महान दार्शनिक अरस्तु महिलाओं की नागरिकता के खिलाफ थे। सदियों से महिलाओं को दबाकर रखा गया और उनके अधिकारों को नजर अंदाज किया गया। उन्हें समाज के निचले हिस्से के रूप में माना गया और उनकी भूमिका को घर के कामों ,बच्चे को जन्म देने और उसकी परवरिश करने तक सीमित रखा गया।
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नारीवादी लेखिका सिमोन द बुआ ने इस संदर्भ में लिखा है कि ‘कोई जन्म से ही औरत नहीं होती बल्कि औरत बना दी जाती है।’ कुदरत ने मर्द और औरत में फर्क कम दिए हैं और समानता ही ज्यादा ,मर्द और औरत में फर्क केवल प्रजनन के लिए दिए हैं। यह कुदरत ने नहीं बताया था कि कौन नौकरी करेगा और कौन खाना बनाएगा। वहीं, भारत की प्रसिद्ध नारीवादी कमला भसीन कहती हैं, ‘नारीवादी होने का यह मतलब नहीं है कि आप को बदलना होगा कि आप कौन हैं? आप कैसे कपड़े पहनते हैं या आप कितना मेकअप करती हैं। नारीवाद सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं है कोई पुरुष भी नारीवाद हो सकता है। हर व्यक्ति नारीवादी है जो यह विश्वास करता है कि महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार और समान अवसर दिए जाने चाहिए। नारीवाद केवल महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय के लिए आवाज नहीं उठाती है बल्कि पुरुषों के लिए भी उठाती है।’
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नारीवाद के संबंध में प्रचलित कई अफवाहें भी है, जैसे, कुछ लोगों का मानना है कि नारीवादी होने का मतलब पुरुषों का विरोध है। नारीवाद पुरुषों की अनदेखी बिल्कुल नहीं करता है बल्कि यह समानता के बारे में बात करता है। कई लोगों का यह भी मानना है कि नारीवादी धर्म के खिलाफ होती हैं नारीवादी धर्म और संस्कृति के खिलाफ नहीं हैं, बशर्ते वह समानता की बात करता हो। एक नारीवादी केे तौर पर यदि मेरा धर्म और संस्कृति मुझे कमतर मानते हैं तो मैं उसके खिलाफ हूं। वहीं, कई लोगों का यह भी मानना है कि नारीवादी परिवारों को तोड़ती है। जबकि नारीवादी परिवारों को तोड़ना नहीं चाहते बल्कि वे परिवारों के बीच बराबरी का दर्ज़ा चाहते हैं।
कई लोग यह भी का मानते हैं कि नारीवादी विचारधारा पाश्चात्य संस्कृति की उपज है। नारीवादी पश्चिम से आई विचारधारा नहीं है, बल्कि यह वह विचारधारा है जिसे समय-समय पर अलग-अलग वर्ग और समुदायों ने अपनाया है। नारीवाद सबके लिए है और हम सभी को नारीवादी होना चाहिए और कमला भसीन की यह बात याद रखनी चाहिए- ऐसी औरतें भी होती हैं जो दूसरी औरतों के साथ गलत करती हैं और ऐसे मर्द भी होते हैं जो दूसरी औरतों के साथ अच्छा करते हैं। समस्या मर्द होने में नहीं है ,सोच में है।
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यह लेख रिया यादव ने लिखा है जो दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान की छात्रा हैं।
तस्वीर साभार : feminisminindia
Feminism से जुड़ी सभी रूढ़ियों को दूर करने एवं अतिआवश्यक तथ्यों को सामने रखने वाला पोस्ट लगा मुझे ये। शानदार लेखन रिया जी💙
very well written riya👏👏
Very nice riya👍
i want to quote here Kamla bhasin ji she said FEMINISM IS NOT BIOLOGICAL IT’S JUST AN
IDEOLOGY …💜💜💜💜
well written RIYA 😘😘
Absuletly right
Wow👏👏
Very nice.
Yatra naryastu pujyante
Ramante Tatra devta.