हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। लेकिन आज के दिन हम याद कर रहे हैं उन दलित, बहुजन, आदिवासी और मुस्लिम शिक्षाविदों को जिन्होंने शोषित-वंचित समुदाय को शिक्षित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन अक्सर शिक्षक दिवस के मौके पर हम उन्हें और उनके योगदान को याद करने से चूक जाते हैं।
1. ज्योतिबा फुले
ज्योतिबा फुले वह शिक्षक थे जिसने दलित, बहुजनों और महिलाओं की शिक्षा के लिए जीवन भर काम किया। एक ऐसा समाज जो ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता पर आधारित था उस समाज में ज्योतिबा फुले ने दलितों और महिलाओं को शिक्षित करने की लड़ाई लड़ी।
2. सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले भारत की पहली शिक्षिका थी। लैंगिक और जातिगत भेदभाव के खात्मे के लिए सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा फुले ने शिक्षा का रास्ता अपनाया। जब सावित्री बाई स्कूल जाने के लिए निकलती थी तो उन पर उच्च जाति के लोगों द्वारा गोबर और पत्थर फेंके जाते थे लेकिन इन मुश्किलों ने उन्हें हारने नहीं दिया।
3. फ़ातिमा शेख़
भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका जिन्होंने फुले दंपत्ति के साथ मिलकर लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया। लेकिन फ़ातिमा शेख़ के इस योगदान को भुला दिया गया। जब फुले दंपत्ति को उनके घर से निकाल दिया गया था तब फ़ातिमा शेख़ और उनके भाई उस्मान शेख़ ने ही उन्हें आसरा दिया था।
4. राम दयाल मुंडा
राम दयाल मुंडा एक शिक्षाविद, लेखक, भाषाविद और संगीतज्ञ थे जो आदिवासियों के हक के लिए लड़ा करते थे। 1985 में उन्हें रांची विश्वविद्याल का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया था। उन्होंने शिकागो और मिनिसोटा विश्वविद्यालय में भी कुछ समय तक अध्यापन का काम किया।
5. बेगम हमीदा हबीबुल्ला
बेगम हमीदा हबीबुल्ला एक सामाजिक कार्यकर्ता, नेता और शिक्षाविद थी। उन्होंने वंचित समुदाय की लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया। वह लखनऊ के पहले महिला डिग्री कॉलेज की अध्यक्ष भी बनी। वह उत्तर प्रदेश में मंत्री भी रही और बाद में कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा की सदस्य भी।
6. डॉ. भीमराव अंबेडकर
भीमराव अंबेडकर ज्योतिबा फुले और जाति के खिलाफ उनके आंदोलन से बेहद प्रभावित थे। डॉ. अंबेडकर ने हमेशा शोषित-वंचित वर्ग के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। वह दलित महिलाओं की शिक्षा को लेकर भी काफी गंभीर थे जिसका उल्लेख हमें नागपुर में हुए ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास वीमन कॉन्फ्रेंस के दौरान मिलता है।