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अमृता प्रीतम और उनके विचार

अमृता प्रीतम का जन्म 1919 में गुजरांवाला (पंजाब) में हुआ था। बचपन लाहौर में बीता और शिक्षा भी वहीं पर हुई। उन्होंने पंजाबी लेखन से शुरुआत की। किशोरावस्था से ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू किया। 31 अक्टूबर 2005 में अमृता ने 86 छियासी साल की उम्र में आखिरी सांस ली और वह पीछे छोड़ गई अपनी 100 से अधिक कृतियां और वह कविता जिसकी पहली लाइन शायद सबके ज़हन से कभी न मिटने वाली लाइन बन चुकी है।

1- “भारतीय मर्द आज भी औरतों को परंपरागत काम करते देखने के आदि हैं। उन्हें बुद्धिमान औरतों की संगत तो चाहिए होती है लेकिन शादी के लिए नहीं। एक सशक्त महिला के साथ की कद्र करना अब भी उन्हें नहीं आया है।”

2. “जब कोई पुरुष महिलाओं की शक्ति को नकराता है, तो वह अपने ही अवचेतन को नकार रहा होता है।”

3. “ऐसी कई कहानियां हैं जो कागजों में नहीं हैं, बल्कि औरतों के शरीर और उनके अंदर लिखी हुई हैं।”

4. “जिंदगी तुम्हारे उसी गुण का इम्तिहान लेती है, जो तुम्हारे भीतर मौजूद है…. मेरे अंदर इश्क़ था।”

5. “कहानी लिखने वाला बड़ा नहीं होता, बड़ा वह है जिसने कहानी अपने जिस्म पर झेली है।”

6. “प्रेम में पड़ी स्त्री को, तुम्हारे साथ सोने से ज़्यादा अच्छा लगता है तुम्हारे साथ जागना! पर अफसोस हमारे पुरुष प्रधान समाज की अधिकांश आबादी स्त्री को कामवासना की पूर्ति के साधन के अलावा कुछ समझ नहीं पाया ! मुझे ऐसे लोगों की सोच पर तरस आता है।”

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