ऐश्वर्या रेड्डी लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक कर रही थी। वह सेकंड ईयर की छात्रा थी। 8 नंवबर 2020 की रात एक चिट्ठी अपने पीछे छोड़कर वह इस दुनिया से चली गईं। तेलुगु में लिखी गई अपनी आखिरी चिट्ठी में उन्होंने लिखा, “मेरे मां-बाप मुझ पर बहुत पैसे ख़र्च कर चुके हैं। मैं उनपर बोझ हूं। मेरी पढ़ाई एक बोझ बन चुकी है, लेकिन मैं पढ़े बिना नहीं रह सकती। बहुत सोचने के बाद मुझे लगा कि आत्महत्या ही एक रास्ता है।” ऐश्वर्या की मां सुनीता रेड्डी पेशे से एक टेलर हैं और पिता श्रीनिवास रेड्डी एक मोटर मैकेनिक। उन्होंने अपने बच्चों को परिवार की आर्थिक हालात के बारे में बताते हुए कहा कि शायद उन्हें हैदराबाद के उस दो कमरे के मकान को बेचना पड़े और सुनीता के गहनों को गिरवी रखकर वे अपना घर चला पाएं। तेलंगाना बोर्ड से बारहवीं में 98.5% प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाली विद्यार्थी दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पढ़ती थी। ‘स्कॉलरशिप फ़ॉर हाइयर एजुकेशन’ के तहत 10,000 छात्रों में अपनी जगह बनाते हुए अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए उन्हें स्कॉलरशिप मिलती थी।
क्या ‘ऑनलाइन क्लास’ शिक्षा के लिए पर्याप्त ढांचा है?
लॉकडाउन के वक्त मार्च में ऐश्वर्या लेडी श्रीराम कॉलेज के हॉस्टल से हैदराबाद के शादनगर स्थित अपने घर पहुंची। कोविड-19 के कारण दिल्ली विश्वविद्यालय में इस अकादमिक सत्र की स्नातक की पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है। उनके कॉलेज यूनियन द्वारा करवाए गए एक सर्वे के जवाब में उन्होंने लिखा था कि उनके पास निश्चित और बेहतर रूप से काम करने वाला इंटरनेट कनेक्शन नहीं है और लैपटॉप भी नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उनके पिता बताते हैं कि ऐश्वर्या को पढ़ाई के लिए लैपटॉप की जरूरत थी। ऐश्वर्या ने एक बार उनसे कहा था कि पुराना लैपटॉप भी मिल जाता तो वह अपनी पढ़ाई कर पाएंगी। पिता ने उनसे कुछ दिन इंतजार करने को कहा चूंकि उनकी कमाई लॉकडाउन से प्रभावित होकर न्यूनतम हो चुकी थी। ऐश्वर्या ने इससे जुड़ी कोई बात दोबारा श्रीनिवासन से नहीं की। 14 सितंबर को अभिनेता सोनू सूद द्वारा शुरू किए एक स्कॉलरशिप व्यवस्था के जवाबी ईमेल में ऐश्वर्या लिखती हैं, “मेरे पास लैपटॉप नहीं है, मैं प्रैक्टिकल पेपर नहीं दे पा रही हूं। मुझे डर है मैं इनमें फेल न हो जाऊं। हमारा परिवार कर्ज़ में डूबा है इसलिए हम लैपटॉप खरीदने में असमर्थ हैं मुझे नहीं पता मैं अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर पाऊंगी या नहीं।”
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जानकारी के लिए बता दें दिल्ली विश्वविद्यालय में अभी भी विश्वविद्यालय के सभी कॉलेजों की क्लासेज़ ऑनलाइन चल रही हैं। एक सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालय में पढ़ने आए दूरदराज के छात्र के पास या तो निजी यानी प्राइवेट कॉलेज में दाखिला लेने का आर्थिक सामर्थ्य नहीं होता या उनके अपने राज्य में शिक्षा की हालत खस्ता होती है। ऐसे में राजधानी दिल्ली के विश्वविद्यालयों में कश्मीर से लेकर बिहार, उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर दक्षिण भारत के हर आर्थिक वर्ग, जातीय, जन-,जातीय धार्मिक अस्मिता से संबंध रखने वाले विद्यार्थी होते हैं। उनके ऊपर ‘अच्छा प्रदर्शन’ करने और पारिवारिक जिम्मेदारियों और उम्मीदों का भारी बोझ होता है। ऐसा ही ऐश्वर्या के मन में चल रहा होगा जब उन्होंने उस नोट में लिखा, “मुझे माफ़ कीजिएगा मैं एक अच्छी बेटी नहीं बन पाई।”
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के लिए उनके पिता बताते हैं कि ऐश्वर्या को पढ़ाई के लिए लैपटॉप की जरूरत थी। ऐश्वर्या ने एक बार उनसे कहा था कि पुराना लैपटॉप भी मिल जाता तो वह अपनी पढ़ाई कर जाएगी। पिता ने उनसे कुछ दिन इंतजार करने को कहा चूंकि उनकी कमाई लॉकडाउन से प्रभावित होकर न्यूनतम हो चुकी थी।
हफिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार लेडी श्रीराम कॉलेज की छात्राओं का कहना है कि देश के प्रतिष्ठित कॉलेज ने अपने एक विद्यार्थी को उसके कमज़ोर समय में निराश किया है। पिछले साल घोषित की गई कॉलेज की नई होस्टल पॉलिसी से ऐश्वर्या और अन्य कई बच्चे बहुत परेशान चल थे। यह नई पॉलिसी केवल फर्स्ट ईयर के छात्रों को हॉस्टल में रहने की अनुमति देती है। ऐश्वर्या की एक साथी कहती हैं, “वह डटी थी, एक महीने से चल रही ऑनलाइन क्लासेज़ भी लेने की कोशिश करती रही। जब होस्टल प्रशासन ने सेकंड ईयर के छात्रों को हॉस्टल खाली करने को कहा तब समस्या और गंभीर हो गई। होस्टल से बाहर रहने में महीने का 12000-14000 ख़र्च आता है, ऐश्वर्या का परिवार इतने पैसे देने में सक्षम नहीं होता।” ऐश्वर्या अपने स्कॉलरशिप को लेकर भी परेशान थीं। ‘स्कॉलरशिप फ़ॉर हाइयर एजुकेशन’ (एसएचई) की घोषणा 2019 में कर दी गई थी। डिपार्टमेंट के एक कर्मचारी के मुताबिक़, “इसकी राशि एक साल देरी से दी जाती है ताकि पहले साल के बाद कॉलेज छोड़ने वाले विद्यार्थियों तक ना पहुंच पाए।” इस देरी के कारण ऐश्वर्या चिंतित थी, ऐश्वर्या ने अपने आखिरी नोट में यह भी लिखा कि स्कॉलरशिप राशि उनके परिवार तक पहुंचा दी जाए। ऐश्वर्या की बहन वैष्णवी कक्षा सातवीं में है और फिलहाल पैसे न होने के कारण स्कूल से उसका नाम कट चुका है।
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शिक्षण संस्थाओं का समावेशी न होना कितना असर डालता है विद्यार्थियों पर?
लेडी श्रीराम कॉलेज के कुछ विद्यार्थी समूहों द्वारा चलाए जा रहे सोशल मीडिया हैंडलस ने इस घटना को अकादमिक जगत और महाविद्यालयों के समावेशी नहीं बन पाने का दुखद नतीज़ा बताया है। ऐश्वर्या रेड्डी जिस मानसिक यातना से गुज़री वह विश्वविद्यालयों में होता आया है। ऑनलाइन क्लासेज़ का ढांचा जो केवल समृद्ध परिवार के विद्यार्थियों के लिए उपाय की तरह था वह सभी पर थोप दिया गया। ऐश्वर्या का नोट उस मनोस्थिति को दर्शाता है जो इस संस्थागत भेदभाव और अपने भविष्य के सपनों के बीच जूझ रहा है। कॉलेज की प्रिंसिपल ने कहा है कि ऐश्वर्या का जाना एक बड़ी क्षति है। हालांकि उसने कभी होस्टल प्रशासन या शिक्षकों से मदद नहीं मांगी। हमारे पास मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसिल हैं, वह उनसे मदद नहीं ले पाई। एलएसआर के छात्रों ने प्रिसिंपल के इस बयान की निंदी की है और इसे असंवेदनशील भी बताया है।
उन्नीमया, लेडी श्रीराम कॉलेज की विद्यार्थी प्रतिनिधि और एसएफआई. की सदस्य के मुताबिक ओबीसी आरक्षण पर काम करना एक अच्छा कदम था लेकिन होस्टल से दूसरे साल के विद्यार्थियों को हटा दिया जाना एक ग़लत तरीका है। उपाय होस्टल बेड की संख्या बढ़ा कर किया जा सकता था।मिरांडा हॉउस कॉलेज में अंग्रेजी विभाग की शिक्षक देवजानी रॉय ने 8 अप्रैल 2020 को ‘स्क्रॉल’ में प्रकाशित एक लेख में बताता था कि कैसे हेल्पलाइन नंबर्स मानसिक स्वास्थ्य की दिक्कतें उठा रहे विद्यार्थियों के लिए एक हल नहीं बन सकता। वह लिखती हैं, “कॉलेज के काउंसिलर को विद्यार्थियों से बात करने कहा जा रहा है, फ़ोन या मेल पर। अप्रैल 6 को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने विद्यार्थी समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हेल्पलाइन नंबर्स की सुविधा देने की बात की। इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि यह काफ़ी नहीं है। कई विद्यार्थी बिना किताब के घर पर हैं, कइयों ने मज़बूरी में होस्टल खाली किया है।”
ऑनलाइन क्लासेज़ तो चल रही हैं लेकिन इस दौरान किसी के पास स्मार्टफोन नहीं हो तो किसी के पास लैपटॉप, किसी के पास इंटरनेट नहीं है तो किसी का पास नेटवर्क। लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन क्लासेज़ से जुड़ी ऐसी पहली घटना नहीं हुई है। ऐसे में सवाल उठना चाहिए हमारी शिक्षा व्यवस्था पर कि वह कितनी समावेशी है, समाज के कितने छात्रों की पहुंच इस शिक्षा व्यवस्था तक है क्योंकि समस्या की असली जड़ यही है।
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