अबॉर्शन के बाद किसी औरत के भाव को हम बेहद आसानी से उसके खुदगर्ज या गैर-जिम्मेदार होने से आंकते है| पर इसमें आपका नहीं बल्कि समाज में अबॉर्शन को लेकर प्रचलित धारणाओं का दोष है जिसके तहत हमने हमेशा से ‘अबॉर्शन’ के संदर्भ में यही सीखा है कि ‘ये गलत है|’ ‘असंवैधानिक या अमानवीय है|’ और जब एक औरत इसे खुद चुनती है तो ‘ये एक संज्ञेय अपराध है|’
देश के विकास के साथ हम लाख कदम-से-कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हों पर कुछ मुद्दों पर आज भी हमारी सोच बेहद संकीर्ण है। जिनमें से एक गंभीर मुद्दा है – अबॉर्शन। जिस तरह सेक्स करना किसी भी महिला का अपना फैसला है, ठीक उसी तरह अबॉर्शन भी अपने शरीर, जीवन और भविष्य को लेकर उसका अपना फैसला है। जिस तरह काम करना, खाना-नहाना, चलना-फिरना या किसी के साथ सेक्स करना हमारा अपना फैसला है, ठीक उसी तरह अबॉर्शन भी किसी भी स्वस्थ महिला का अपना फैसला है और जिसके आधार पर महिला के चरित्र, संस्कार या व्यक्तित्व पर सवाल खड़े करना मूर्खतापूर्ण है।
हमारे समाज में अबॉर्शन एक ऐसा विषय है जिसके बारे में हर किसी की एक मजबूत राय होती है। फिर चाहे वो इसका समर्थन करते हों या इसके खिलाफ हों। साथ ही इससे जुड़े कई सारे गलत मिथ्य भी समाज में प्रचलित है जिनके आधार पर अबॉर्शन को लेकर लोगों के मन में कई सारी गलत धारणाएं अपनी पैठ मजबूत कर लेती है। इस लेख में हम अबॉर्शन से जुड़ें ऐसे ही कुछ गलत मिथ्य की चर्चा करेंगे। अबॉर्शन के जुड़े इन तमाम गलत मिथ्यों को जानने के बाद अब आप इस मुद्दे पर क्या नजरिया रखते हैं? हमें विडियो पर कमेंट देकर बताएँ।