एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिज़म इन इंडिया हिंदी और DW हिंदी की सहभागिता के तहत प्रकाशित किया गया है। इसके तहत हम DW हिंदी की नई पॉडकास्ट सीरीज़ ‘वो कौन थी’ के अलग-अलग एपिसोड्स को फीचर करेंगे। इस सीरीज़ के तहत पॉडकास्ट की होस्ट और DW हिंदी की डेप्युटी हेड ईशा भाटिया सानन उन महिलाओं की जीवनी और योगदान को अपने श्रोताओं तक पहुंचा रही हैं जिन्होंने लीक से हटकर काम किया और सपने देखने की हिमाकत की।
यह बात सुनकर शायद आप चौंक जाएं या आपको भरोसा ही न हो कि दुनिया में जिसने पहली बार गाड़ी चलाई थी वह एक औरत थी! आपका चौंकना जायज़ भी है क्योंकि हमारा पितृसत्तात्मक समाज आज भी औरतों को गाड़ी की स्टीयरिंग व्हील थामे नहीं देख पाता। अगर वह ऐसा करने में सहज होता तो यह रुढ़ीवादी सोच आज भी हमारे बीच मौजूद न होती कि औरतें खराब ड्राइवर होती हैं। DW हिंदी के पॉडकास्ट ‘वो कौन थी’ के पहले एपिसोड में पॉडकास्ट की होस्ट ईशा भाटिया सानन एक ऐसी महिला की कहानी बता रही हैं, जिन्होंने इस दुनिया की पहली कार का टेस्ट ड्राइव किया था। बता दें कि ऐसा करने वाली वह महिला दुनिया की पहली शख्स थीं, तो उन्हें दुनिया की पहली ड्राइवर भी कह सकते हैं। पॉडकास्ट की शुरुआत भी कुछ इन्हीं बिंदुओं पर की गई है, जहां ईशा कहती हैं कि कुछ पेशे ऐसे होते हैं जिनसे हमेशा महिलाओं को जोड़कर देखा जाता है। मसलन, नर्स, एयरहोस्टेस या टीचर। लेकिन इन कामों को भी तो कभी दुनिया के किसी कोने में किसी ने पहली बार किया होगा और जब पहली बार कोई कुछ करता है तो उसके सामने असीम चुनौतियां होती हैं।
वो कौन थी के पहले एपिसोड में ऐसी ही एक महिला की कहानी बताई गई है जिसने इस ज़माने की लीक से हटते हुए पहली बार कुछ किया था, और वह महिला थी बेर्था बेंज़। पॉडकास्ट की शुरुआत ईशा जर्मनी के एक छोटे से शहर Pforzheim से करती हैं जहां बेर्था रहा करती थी। बेर्था को कार्ल बेंज नाम के एक इंजीनियर से मोहब्बत हुई और फिर दोंनो ने शादी कर ली। कार्ल एक मेकैनिकल इंजीनियर थे और वह कारों के बेहद शौकीन थे। कार्ल के बारे में ये बातें बताते हुए पॉडकास्ट के बैकग्राउंड म्यूज़िक के रूप में एक मेकैनिक के गराज में काम करने की आवाज़ें मौजूद हैं, जिससे इस पॉडकास्ट को सुनते वक्त शायद आप कार्ल को अपने गराज में काम करते हुए महसूस करते सकते हैं। आगे ईशा बताती हैं कि किस तरह कार्ल जो भी अपनी वर्कशॉप में बनाते थे उसके बारे में बेर्था को वह ज़रूर बताते। मशीनों के बारे में कार्ल की इन बातों को बेर्था बड़े चाव से सुनती, इसका ही नतीजा था कि इंजीनियरिंग की डिग्री न होते हुए भी बेर्था को कार्ल की बनाई हर मशीन के बारे में मालूम था।
कार्ल का एक सपना था, मोटरकार बनाने का और इस बारे में सिर्फ बेर्था जानती थीं। पॉडकास्ट में कार्ल के इस सपने से होते हुए होस्ट ईशा बेहद ही खूबसूरती से साल 1886 में ले जाती हैं, जब कार्ल को पहली मोटरकार बनाने का पेटेंट मिला। वह मोटरकार जो तीन पहियों पर चलती थी। इस कार की बारीकियों के बारे में भी पॉडकास्ट में विस्तार से बताया गया है। कार्ल इस कार को बनाने में बहुत वक्त ले रहे थे, देखते-देखते दो साल बीत गए। इसलिए बेर्था बेहद परेशान हो गई लेकिन इस परेशानी का हल भी बेर्था ने ही निकाला। एक रोज़ परेशान होकर बेर्था ने एक चिट्ठी लिखी और कहा वह बच्चों के साथ अपने मायके जा रही हैं। लेकिन बेर्था गई कैसे यह जानने के लिए आपको पॉडकास्ट के इस एपिसोड को सुनना होगा। ये पल बेर्था और कार्ल की ज़िंदगी को बदलने वाला था।
अगर आप आज गाड़ी चला रहे हैं तो एक बार इस पॉडकास्ट को ज़रूर सुनें ताकि आप उस बेर्था को जान सकें जिसने ये सब मुमकिन कर दिखाया।
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हम थोड़ा सा हिंट आपको अगर दें तो हुआ कुछ यूं कि बेर्था पिछले दो साल से अपने पति के गराज में पड़ी कार लेकर मायके के लिए निकल पड़ीं थी। इस तरह वह इस दुनिया की पहली शख्स बनीं जिसने दुनिया की पहली कार की टेस्ट ड्राइव की थी। बेर्था कार लेकर निकल तो गईं, हालांकि अपनी मां के घर तक पहुंचने का रास्ता उनके लिए आसान नहीं था। अपने मायके पहुंचने के दौरान दुनिया की पहली कार लेकर निकली बेर्था को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा इसे बेहद बारीकी से ईशा ने बताया है। कभी पेट्रोल खत्म तो कभी गाड़ी का कोई पुर्जा खराब। ऐसी ढेर सारी चुनौतियों का सामना करते हुए बेर्था अपने रास्ते पर बढ़ी चली जा रही थीं। इस बीच आस-पास के गांवों में यह अफ़वाह भी उड़ चली कि एक चुड़ैल जादूई गाड़ी दौड़ाती हुई एक गांव से दूसरे गांव जा रही है। ईशा बताती हैं कि इस दौरान बेर्था जहां भी जाती वह अपने पति के आविष्कार के बारे में बताती चलती। इसे ईशा आज के ज़माने की मार्केटिंग स्ट्रैटजी कहती हैं। उबड़-खाबड़ रास्तों, पहाड़ियों, ढलानों पर बेर्था दुनिया की इस पहली कार को लेकर बढ़ी जा रही थीं। ऐसा नहीं है कि इस दौरान वह सिर्फ कार को घसीटे जा रही थीं। रास्ते में कई बार कार खराब हुई लेकिन बेर्था हर बार एक नए उपाय के साथ आती और कार को ठीक कर देती।
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यह बेर्था की इस टेस्ट ड्राइव का ही नतीजा था कि उनके वापस लौटने के बाद कार्ल ने अपनी कार में कई सुधार और बदलाव किए ताकि वह और बेहतर बन सके। इस तरह कार्ल बेंज की कंपनी अस्तित्व में आई। यह कंपनी 1890 के दशक में कार बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी थी। अगर बेर्था ने वह टेस्ट ड्राइव न की होती तो आज दुनिया की सड़कों पर फर्राटे से मर्सिडीज़ बेंज़ की गाड़िया न दौड़ रही होती। ईशा बताती हैं कि बेर्था के जन्म पर उनके परिवार वाले बेहद नाखुश थे क्योंकि वह एक लड़की थीं। ऐसा बिल्कुल न सोचें कि मर्सिडीज़ बेंज बनाने वालों की ज़िंदगी सुख-सुविधाओं से संपन्न थी! निजी जीवन में बेर्था और कार्ल ने किन चुनौतियों का सामना किया इस बारे में भी पॉडकास्ट में विस्तार से बताया गया है। बेर्था ने न सिर्फ इस दौर में जेंडर भूमिकाओं को चुनौती दी बल्कि आने वाली पीढ़ी की औरतों के लिए भी अवसर के कई द्वार खोल दिए।
इस पॉडकास्ट की आसान भाषा, कहानी सुनाने का दिलचस्प अंदाज़ बेर्था की जीवनी को बेहद रोचक बनाते हैं। पॉडकास्ट का बैकग्राउंड म्यूज़िक भी इसे ख़ास बनाता है। चाहे वह घोड़ों की टाप हो, सड़क पर गाड़ी के दौड़ने की आवाज़ या कार्ल के वर्कशॉप में चलती मशीनों की खट-पट, ये आवाज़ें पॉडकास्ट को जीवंत बनाती हैं। अगर आप आज गाड़ी चला रहे हैं तो एक बार इस पॉडकास्ट को ज़रूर सुनें ताकि आप उस बेर्था को जान सकें जिसने ये सब मुमकिन कर दिखाया। क्या पता अगर उस दिन बेर्था गराज से गाड़ी निकालती ही नहीं तो कार्ल का वह आविष्कार सालों-साल वहीं पड़ा रहता। साथ ही अगली बार जब आप अपनी गाड़ी चला रहे हों और मन में यह ख्याल आए कि दुनिया में पहली बार गाड़ी किसने चलाई थी तो आपको इस सवाल का जवाब मालूम हो: वो कौन थी।
तस्वीर : फेमिनिज़म इन इंडिया