समाजख़बर अब ट्रोल्स तय करते हैं कि कौन सा मुद्दा है कितना अहम

अब ट्रोल्स तय करते हैं कि कौन सा मुद्दा है कितना अहम

ट्रोल्स किसी प्रमाण की ज़रूरत को नहीं समझते और उनका टारगेट अगर कोई महिला है तो उनकी ट्रोलिंग तुरंत चरित्र हनन का रूप ले लेते हैं। फिर वे तुरंत ही महिला के शरीर से लेकर उसके निजी जीवन के ऊपर अभद्र टिप्पणी करने लगते हैं।

आज का दौर ट्रेंड का दौर कहा जा सकता है, जहां किसी भी मुद्दे को मिनट नहीं लगते ट्रेंड होने में। बीते दिनों में कई ऐसे उदाहरण सामने आए। आज के दौर में सोशल मीडिया पर मुद्दों में भी क्लास देखने को मिलने लगा है। यहां लोग जरूरी मुद्दों पर बहस नहीं चाहते है, बस चाहते हैं तो अपने आनंद की संतुष्टि। वैसे भी इस समाज में महिलाओं और लड़कियों को सिर्फ संभोग और आनंद की वस्तु मात्र समझा जाता है। महिलाओं की रक्षा, सुरक्षा, बराबरी की सिर्फ यहां बातें होती हैं। असल में ज़मीनी हकीकत इन सब से कोसों दूर है। बीते दिनों सोशल मीडिया पर श्वेता नाम की लड़की का नाम बहुत ट्रेंड कर रहा था। इसके पीछे की वजह थी, एक ज़ूम क्लास के दौरान उसकी निजी बातचीत का लीक हो जाना। हुआ कुछ यूं कि एक ज़ूम कॉल के दौरान श्वेता अपना माइक बंद करना भूल गई और फोन पर बात करती रही। उनके फोन कॉल को किसी ने रिकॉर्ड कर वायरल कर दिया। इतना होना था कि पूरे सोशल मीडिया पर मीम्स की बौछार आ गई और लोगों ने श्वेता का खूब मज़ाक बनाया। उस ऑडियो में ऐसा क्या था कि उसे वायरल करने में इस समाज को तनिक भी शर्म नहीं आई। दरअसल, उस कॉल में श्वेता अपनी दोस्त को अपने बॉयफ्रेंड की सेक्स लाइफ़ के बारे में बताती हैं। बस फिर क्या था, लोगों को मौका मिल गया मजे लेने का, सोशल मीडिया पर मीम्स बनाने वालों की संख्या में इजाफा हुआ। जिस हद तक हो सकता था उस हद तक उस हद तक इस बात का मजाक उड़ाया गया, उस ऑडियो को शेयर किया गया।

मगर भारत में जहां एक ओर श्वेता इंटरनेट पर ट्रेंड कर रही थी। वहीं, दूसरी ओर उन्नाव में उसी वक्त दो दलित बच्चियों की संदिग्ध हाल में लाशें पाई गई थी। जबकि उन्हीं के साथ मौजूद एक और बच्ची की हालत गंभीर बताई जा रही थी। मगर भारतीय ब्राह्मणवादी समाज को श्वेता से फुर्सत मिलती तब तो दलित बच्चियों पर बात होती। सोशल मीडिया के जितने फायदे नहीं है उससे कहीं ज्यादा नुकसान देखने को मिलते हैं। जहां उन्नाव में हुई दो नाबालिग लड़कियों की निर्मम हत्या पर आवाज़ उठानी जानी चाहिए थी। वहां पर श्वेता माइक ऑफ करो जैसे मुद्दा ट्रेंड करता है। टेक्नोलॉजी का यह दौर बदलाव के मामले में सबसे भयानक दौर समझा जाना चाहिए, जहां किसी के लिए अभिव्यक्ति का पर्सनल स्पेस जैसा कुछ नहीं है। श्वेता का मजाक उड़ाना एक ओछी मानसिकता की निशानी है। वही दलित लड़कियों की मौत पर न बोलना इस पुरुष प्रधान समाज का अहम् है।

ट्रोल्स किसी प्रमाण की ज़रूरत को नहीं समझते और उनका टारगेट अगर कोई महिला है तो उनकी ट्रोलिंग तुरंत चरित्र हनन का रूप ले लेते हैं। फिर वे तुरंत ही महिला के शरीर से लेकर उसके निजी जीवन के ऊपर अभद्र टिप्पणी करने लगते हैं।

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इस घटना पर उन्नाव के एसपी आनंद कुलकर्णी ने बताया कि संदिग्ध हालात में मिली तीन लड़कियों में से दो लड़कियों की मौत हो चुकी है जबकि तीसरी लड़की का इलाज जारी है। लड़कियों के परिवार के मुताबिक, ये तीनों लड़कियों जानवरों के लिए चारा इकट्टा करने खेत गई थी लेकिन वापस नहीं लौटी। उन्हें खेत में बेहोशी की हालत में पाकर स्थानीय लोग उन्हें अस्पताल ले गए, जहां दो बच्चियों की मौत हो गई जबकि 17 साल की नाबालिग को कानुपर अस्पताल रेफर किया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है। जिन दो लड़कियों की मौत हुई है, उसमें से एक की उम्र 13 और दूसरे की 16 साल थी। वहीं तीसरी लड़की 17 साल की है। पीटीआई के मुताबिक,उन्नाव के पुलिस अधीक्षक आनंद कुलकर्णी ने कहा कि लड़की का बयान मंगलवार सुबह को दर्ज किया गया। 28 साल का युवक विनय जिस लड़की का इलाज चल रहा है उसे पसंद करता था और उसने लड़की से उसका मोबाइल नंबर मांगा था लेकिन लड़की से इससे इनकार कर दिया, जिसके बाद नाराज होकर युवक ने पानी में जहर मिलाकर लड़की को दे दिया था। पुलिस के मुताबिक, ‘आरोपी ने तीनों लड़कियों को पानी में कीटनाशक मिलाकर पिलाया था।

https://www.youtube.com/watch?v=j7c2CYNke2A&t=108s

नार्थयूरोप की लोक-कथाओं में एक ऐसे बदशक्ल और भयानक जीव का जिक्र आता है, जिसका नाम ट्रोल था। इस जीव से लोग डरकर अपनी यात्रा नहीं कर पाते थे।लोक-कथाओं के राहगीर की तरह सोशल मीडिया पर भी उसके यूज़र को भी ट्रोलिंग की वजह से बहुत सारी तकलीफ सहनी पड़ती है। सोशल मीडिया की भाषा में ट्रोल उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी ऑनलाइन कम्युनिटी में अभद्र, अपमानजनक, भड़काऊ, या अनर्गल पोस्ट करता है पर भारत में ट्रोलिंग एक सोचे-समझे एजेंडा के तरह की जाती है। इसका एक मात्र उद्देश्य अपना संख्या बल दिखाना होता है जो किसी मुद्दे को ढकने के लिए उसमे कूदते हैं और विषय से भटका देते है। ट्रोल्स किसी प्रमाण की ज़रूरत को नहीं समझते और उनका टारगेट अगर कोई महिला है तो उनकी ट्रोलिंग तुरंत चरित्र हनन का रूप ले लेते हैं। फिर वे तुरंत ही महिला के शरीर से लेकर उसके निजी जीवन के ऊपर अभद्र टिप्पणी करने लगते हैं। महिलाओं को तंग या अपमानित करने के लिए ट्रोल्स सेक्स-संबंधी अप्रत्यक्ष इशारों. तस्वीरों और भाषा का खुलकर सहारा लेते हैं।

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भारत में सोशल मीडिया जैसे प्लेटफ़ॉर्म हिंसा की बढ़ती घटनाओं के लिए एक खुला मंच है। साल 2019 में एक्स्पोजिंग ऑनलाइन एब्यूज फेस् बाई वीमेन पोलिटिशयंस नाम के एक अध्धयन में पता चला है की भारतीय महिलाओं को ट्विटर पर लगातार ट्रोल का सामना करना पड़ता है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा किए गए इस अध्धयन में 95 भारतीय महिला नेताओं के किये गये ट्वीट की समीक्षा की गई थी। इस अध्ययन के मुताबिक भारत में महिलाओं के लिए हर सात में से एक ट्वीट आपत्तिजनक था। इस ट्रोलिंग के बारे में मनोवैज्ञानिक डॉ नीतू कहती हैं कि सोशल मीडिया पर लगातार ट्रोल होने से मानसिक तनाव बढ़ सकता है ,खुद को लेकर हीनभावना और असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है। ऑनलाइन उत्पीड़न के शिकार लोग अलग-थलग रहेने लगते है और बाकियों से दूरी बनाने लगते हैं।

हमारे देश में महिलाओं को देवी मानने वाले श्लोक सिर्फ और सिर्फ कथनी है इसका किसी भी तरह का संबंध करनी से नहीं है। नफरत जैसे शब्द को परिभाषित करना है शायद सबसे कठिन सवालों में से एक है जब-जब स्त्री के प्रति नफरत, अपमान और शोषण होता है। अब इस नफ़रत का रूप ऑनलाइन भी मौजूद है। कहने को तो हम 21वीं शताब्दी में हैं मगर हमारी सोच आज भी विकसित नहीं हुई है। भारत में समाज का माहौल दयनीय और चिंताजनक है। यह देश महिलाओं को कानून और उन्हें एक सुरक्षित वातावरण देने में अक्षम है। इस पर हमें सोचने की ज़रूरत है और इस पर समाज का नजरिया बदलना होगा। तकनीक के इस दौर में महिलाओं के प्रति परिवार, समाज का नजरिया बेहद घटिया है। ऐसा क्यों है, इसका जवाब हमें खोजना होगा। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इतने बड़े सख्त कानून है और इन सब पर निगरानी तंत्र के पुख्ता होने के दावे भी किए जाते हैं पर ये सिर्फ दावे ही हैं। जिस देश में किसान आंदोलन, पेट्रोल-डीजल-गैस की कीमत, उन्नाव में दलित लड़कियों की मौत, इन सब बारे में चर्चाएं होनी चाहिए थी उस जगह पर इतने बड़े-बड़े मुद्दों को छोड़ कर एक श्वेता नाम की लड़की के चैट को लीक कर उसे चर्चा का मुद्दा बना दिया जाता है। यह सवाल इसलिए ज़रूरी है क्योंकि बदलते समय के साथ तकनीकी विकास को काफी बल मिला है लेकिन महिलाओं का सरंक्षण और विकास किसी कानून या तकनीक से नहीं बल्कि लैंगिक रूप से संवेदनशील समाज बनाने से होगा।

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