प्राचीन काल में लोग कहते थे कि औरत का सुशील स्वभाव और सौम्यता ही उसकी पहचान होती है। यह पितृसत्ता समाज एक औरत को हमेशा उसके सौंदर्यता या सहनशीलता के पैमाने पर तौलता है। ऐसे ही खूबसूरत औरत थी- तारकेश्वरी सिन्हा। वह कोई राजकुमारी या अभिनेत्री नहीं बल्कि एक राजनेत्री थी, जो अपने नेतृत्व क्षमता के लिए बेहद मशहूर थी। उनका जन्म 26 दिसंबर 1926 को नालंदा जिला के तुलसीगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉक्टर श्री नंदन प्रसाद सिन्हा था। इनकी माता का नाम राधा देवी था। तारकेश्वरी सिन्हा की दो बहन और एक भाई था। उनके पिता पेशे से एक सिविल सर्जन थे। खुद शिक्षित होने के साथ-साथ उस समय में भी उनके पिता लड़कियों की शिक्षा को बहुत महत्व देते थे।
तारकेश्वरी की प्रारंभिक शिक्षा बड़ौदा से हुई थी। जिसकी गिनती पूरे हिंदुस्तान में लड़कियों के लिए सबसे अच्छे विद्यालयों में होती थी। तारकेश्वरी ने वहां से अपना मैट्रिकुलेशन किया, फिर इनका नामांकन पटना के बांकिपुर कॉलेज में हुआ। वहां वह कॉलेज राजनीति में खा़सी दिलचस्पी लेने लगी और पहली ही दफा में इन्हें बिहार के छात्र कांग्रेस का वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया। तारकेश्वरी की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी को देख इनके पिता घबरा गए। उन्होंने जल्द ही उनकी शादी सिवान में स्थित चैनपुर ग्राम के श्री निधि देव नारायण सिन्हा से कर दिया। वह कोलकात्ता में पति के साथ उनकी पैतृक हवेली में रहने लगी। उनके पति पेशे से अधिवक्ता थे लेकिन बाद में उन्होंने इंडियन ऑयल में बतौर मैनेजर भी काम किया। इनकी दो बेटे और दो बेटियां थी। उनके पिता ने तो तारकेश्वरी की शादी यह सोचकर कराई थी कि अब शायद वह गृहस्थी में मन लगाएंगी। लेकिन तारकेश्वरी चाह कर भी खुद को राजनीति से दूर नहीं रख पाईं।
जब 1942 में देश में भारत छोड़ो आंदोलन की लहरें उठी तब तारकेश्वरी सिन्हा ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
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जब साल 1942 में देश में भारत छोड़ो आंदोलन की लहरें उठी तब तारकेश्वरी सिन्हा ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसी बीच लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से वह इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करने लंदन चली गई। वहां भी वह डिबेट में हिस्सा लेती रहती और अपने तर्कों से लोगों पर एक गहरा प्रभाव डालती थी। हालांकि उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वापस लौटना पड़ा। आजादी के पहले तक तो बिहार के सभी नेता उनके व्यक्तित्व से रूबरू हो चुके थे। लेकिन भारत के आजाद होते ही केंद्र मे जवाहरलाल नेहरू और दूसरे नेता भी उन्हें जानने- पहचानने लगे थे।
साल 1952 में उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया और बिहार की राजधानी पटना के पूर्वी क्षेत्र का उम्मीदवार बनाया। उस क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानी पंडित शीलभद्रया जी का खूब वर्चस्व था लेकिन तारकेश्वरी सिन्हा ने उन्हें भारी मतों से हराया और कांग्रेस पार्टी की ओर से वह संसद पहुंची। मात्र 26 साल की उम्र में ही संसद में पहुंचने वाली वह पहली महिला थी। जब संसद में इन्होंने अपना पहला वक्तव्य दिया था। न्यूयॉर्क टाइम्स ने 5 मार्च 1971 को छपे एक अंक में इस बात की पुष्टि भी की थी कि एक जमाने में इंदिरा गांधी ने उन्हें जितना नापसंद किया था शायद ही किसी और को किया होगा। इंदिरा गांधी के बाद वह एकमात्र महिला थी जो उस समय हमेशा सुर्खियों में रहती थी।
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जब मोरारजी देसाई तो वित्त मंत्री बनाया गया तब तारकेश्वरी सिन्हा को उप-वित्त मंत्री का पद दिया गया। साल 1969 में जब कांग्रेस पार्टी दो भागों में बंटी तब उन्होंने भी मोरारजी खेमे का ही समर्थन किया लेकिन साल 1977 में वह फिर से कांग्रेस में वापस लौट आईं। साल 1977 में उन्होंने बिहार के बेगुसराय ज़िले से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गई। इसके बाद उन्होंने साल 1978 में समस्तीपुर से भी चुनाव लड़ा लेकिन इन्हें दोबारा हार का सामना करना था। आखिरकार राजनीति छोड़कर वह समाज सेवा के कामों में व्यस्त हो गई।
तारकेश्वरी सिन्हा के भाई गिरीश नारायण सिंह हिंदुस्तान में एयर इंडिया में पायलट थे। छोटी उम्र में ही एक प्लेन क्रैश में उनका देहांत हो गया था। तारकेश्वरी ने उनके नाम पर तुलसी गढ़ में एक अस्पताल का निर्माण कराया जहां मुफ्त में इलाज होता था। वह अस्पताल आज भी कार्यरत है। उन्हें पढ़ने-लिखने का बड़ा शौक था। वह हमेशा लेख लिखती रहती थी। बड़े समाचार पत्रों में इनके लेख छपते थे। इनका देहांत 80 साल की उम्र में 14 अगस्त 2007 को हुआ पर अफसोस की बात है की ऐसी प्रतिभाशाली, विकासशील महिला की मृत्यु किसी भी अखबार या पत्रिका का समाचार नहीं बनीं।
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