इंटरसेक्शनलजाति लव मैरिज के बीच क़ायम जाति संघर्ष | नारीवादी चश्मा

लव मैरिज के बीच क़ायम जाति संघर्ष | नारीवादी चश्मा

आमजीवन में जातिगत भेदभाव को भले की कुछ हद तक कम किया है लेकिन निजी ज़िंदगी और रिश्तों में इस भेदभाव को क़ायम रखने का सिलसिला आज भी क़ायम है।

प्रतिमा (बदला हुआ नाम) ने नीरज (बदला हुआ नाम) से लव मैरिज शादी की। कॉलेज में ही साथ पढ़ाई करने के बाद प्रतिमा और नीरज ने मिलकर अपनी एक संस्था की शुरुआत कर गाँव में महिलाओं और किशोरियों के साथ काम करना शुरू किया। पिछड़ी जाति की प्रतिमा के बारे में तथाकथित ऊँची जाति के नीरज के घरवाले अच्छे से जानते है। नीरज की बहनें प्रतिमा से काफ़ी घुली-मिली थी। वे जब भी किसी परीक्षा या ख़रीददारी के लिए शहर आती तो प्रतिमा के घर ही रुकती। प्रतिमा अपने माता-पिता की एकलौती बेटी थी। बड़े ओहदे पर कार्यरत पिता ने अपनी बेटी को बेहद नाज़ों के पाला था। जब तक प्रतिमा और नीरज का रिश्ता दोस्ती तक रहा तब तक दोनों परिवार में किसी को कोई आपत्ति नहीं रही। लेकिन जैसे ही दोनों ने शादी का मन बनाया तो आर्थिक रूप से ज़मीन-आसमान के फ़र्क़ और जाति की खाई बीच आ गयी। नीरज ऊँची जाति से तो थे लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर थे और प्रतिमा पिछड़ी जाति की लेकिन आर्थिक रूप से बेहद मज़बूत।

नीरज के माता-पिता शादी को लेकर असमंजस में थे, क्योंकि उन्हें इसबात की बेहद ख़ुशी और नाज़ था कि उनकी होने वाली बहु उस नामी कॉलेज से पढ़ी है जहां लोग पढ़ने का सपना देखते है और अपने काम के लिए ढ़ेरों ईनाम भी मिल चुके है। पर वहीं उन्हें इसबात का मलाल भी था कि प्रतिमा पिछड़ी जाति है। प्रतिमा और नीरज ने मंदिर में बेहद साधारण ढंग से शादी की, जिसमें सिर्फ़ प्रतिमा के परिवारवालों ने हिस्सा लिया। लेकिन नीरज के परिवारवाले सिर्फ़ जाति अलग होने की वजह से इस शादी में शामिल नहीं हुए। यही नहीं शादी के बाद से ही नीरज की बहनों ने प्रतिमा से कोई ताल्लुक़ या बातचीत नहीं रखी, लेकिन माता-पिता संपर्क में रहे। आज प्रतिमा और नीरज की शादी को पाँच साल बीत चुके है। प्रतिमा के सास-ससुर फ़ोन पर उससे हमेशा बातें करते हैं, लेकिन आजतक वे कभी प्रतिमा से मिलने नहीं आए। इतना ही नहीं, नीरज के परिवारवालों ने अपने रिश्तेदारों से भी प्रतिमा और नीरज की शादी के बारे कुछ भी नहीं बताया है। रिश्तेदारों और गाँववालों की नज़र में नीरज आज भी कुंवारा है।

इस संदर्भ में प्रतिमा कहती है कि ‘नीरज किसी भी पूजा या धार्मिक कार्यक्रम में पंडित के गोत्र पूछने पर मुझे टोकते है कि अब तुम्हारा और मेरा गोत्र एक (यानी ऊँचे कुल) है। इसपर मैं हमेशा कहती हूँ कि गोत्र का नाम बदलने से मेरे जाति के संघर्ष नहीं बदल जाएँगें।‘ वह आगे बताती है कि ‘आर्थिक रूप से सशक्त होने की वजह से मुझे कभी-कहीं भी पिछड़ी जाति के आरक्षण का लाभ नहीं मिला, जिसके चलते मुझे कभी भी पिछड़ी जाति से होने का एहसास तक नहीं हुआ। लेकिन शादी के बाद नीरज के परिवार से दूरी का मुख्य कारण मेरी जाति का होना मुझे हर पल दुखी करता है।‘

आमजीवन में जातिगत भेदभाव को भले की कुछ हद तक कम किया है लेकिन निजी ज़िंदगी और रिश्तों में इस भेदभाव को क़ायम रखने का सिलसिला आज भी क़ायम है।

और पढ़ें : हमारे समाज में औरत की जाति क्या है?

जाति के संदर्भ में अक्सर कहा जाता रहा है कि अंतरजातिय विवाह ही इस व्यवस्था को ख़त्म करने का सटीक तरीक़ा है। क्योंकि आधुनिक दौर में हमने कार्यस्थल और आमजीवन में जातिगत भेदभाव को भले की कुछ हद तक कम किया है लेकिन अपनी निजी ज़िंदगी और रिश्तों में इस भेदभाव को क़ायम रखने का सिलसिला आज भी क़ायम है। इसलिए जाति के संघर्ष से दो चार होने वाली प्रतिमा अकेली नहीं है, ऐसे कई युवा है जो समाज में जाति व्यवस्था को चुनौती देकर अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनका संघर्ष आज भी क़ायम है।

अपनी जाति में लव मैरिज का अरेंजमेंट

आजकल युवाओं में अपनी जाति की लड़की या लड़के से प्रेम कर उनसे शादी करने का चलन काफ़ी ज़ोरों पर है। बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में पढ़ने वाले युवाओं में ये चलन साफ़ देखा जा सकता है, जहां किसी से दोस्ती या प्यार बक़ायदा ये देखकर किया जाता है कि वो अपनी जाति की है या नहीं। क्योंकि तमाम पढ़ाई-लिखाई और बौद्धिक विकास बावजूद हमारे आज के युवा जाति व्यवस्था को चुनौती देने से पीछे हट रहे हैं। वे अपनी लव मैरिज को भी अरेंज का स्वरूप दे रहे है, जिससे ये मालूम हो रहा है कि आने वाले समय में जाति व्यवस्था की जड़ता पर कोई ख़ास प्रभाव या बदलाव नहीं आने वाला है। इसका ऊपरी स्वरूप भले ही अपडेटेड लगे लेकिन मूल जस का तस रहेगा।

जाति पितृसत्ता का एक प्रमुख साधन है समाज में भेदभाव और संकीर्ण वर्गीकरण को क़ायम रखने का। बदलते समय के साथ भले ही लोग सोशल मीडिया से अपना सरनेम हटाकर जाति व्यवस्था पर अविश्वास का दावा करें, लेकिन निजी में इसे सख़्ती और प्लान के साथ लागू करने का दौर आज भी क़ायम है। आज भी प्रतिमा जैसी लड़कियों को सिर्फ़ अपनी जाति की वजह से एक पायदान पीछे किया जाता है, और किसी विशेष जाति का होने का एहसास उन्हें हमेशा करवाया जाता है। ये सब ज़ारी है और जाति के आधार पर भेदभाव का क़ायम होना बेहद निराशाजनक भी। इन सबके बीच प्रतिमा और नीरज जैसे चुनिंदा युवाओं की अंतरजातिय विवाह पहल बदलाव की एक उम्मीद जगाते है।   

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तस्वीर साभार : philstar.com

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