1857 के संग्राम में सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई ने ही वीरता का परिचय नहीं दिया था लेकिन इतिहास लिखने वाले तो हमेशा ऊंची जाति के पुरुष ही रहे हैं। ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जाति व्यवस्था हमारे समाज में सदियों से मौजूद है। तो हमेशा की तरह इस संग्राम में दलित, बहुजन, आदिवासियों के योगदान को वह सम्मान नहीं मिला, उनका ज़िक्र उतना नहीं किया गया जिसके वे हकदार थे।कई सेनानी तो इतिहास के इन गलियारों में गुम ही हो गए। ऐसी ही एक सेनानी थी झलकारी बाई। जिनकी बहादुरी का ज़िक्र हमारी इतिहास की किताबों में रानी लक्ष्मीबाई के साथ करना ज़रूरी तक नहीं समझा गया।
संबंधित लेख
बंटवारा और महिला हिंसा: धरती पर खींची लकीरों ने किस तरह स्त्री देह को बनाया रणभूमि
By Shweta Singh
6 min read | Jan 10, 2023