कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप हमारे देश में अपने उच्चतम शिखर पर जा चुका है, वहीं वैक्सीन जैसी मूलभूत सेवाओं की पहुंच में लैंगिक अंतर सामने आने लगा है। अधिकतर राज्य कोविड-19 वैक्सीन की कमी के बारे में रिपोर्ट कर रहे हैं, साथ ही टीकाकरण नीति में लैंगिक असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। महिलाओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के शरीर पर वैक्सीन के प्रभावों पर कम शोध का असर देखने को मिल रहा है। आइए, कोविड-19 टीकाकरण को जेंडर के आधार पर समझने की कोशिश करें।
1- टीकाकरण अभियान
कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप हमारे देश में अपने उच्चतम शिखर पर जा चुका है, वहीं वैक्सीन जैसी मूलभूत सेवाओं की पहुंच में लैंगिक अंतर सामने आने लगा है। वैक्सीन का समान वितरण और वैक्सीन तक आसान पहुंच कुछ ऐसी चीज़े हैं जिन पर सवाल उठ रहे हैं। ज़्यादातर मामलों में सरकार की असमान नीतियां और संस्थागत असमानताएं काफी हद तक दिखाई दे रही हैं।
2- जेंडर गैंप और वैक्सीन
अधिकतर राज्य कोविड-19 वैक्सीन की कमी के बारे में रिपोर्ट कर रहे हैं, साथ ही टीकाकरण नीति में लैंगिक अंतर भी सामने आने लगा है। वैक्सीन निर्माण, परीक्षण और वितरण की शुरुआत से ही लैंगिक असमानता देखी गई है। अब इसका सीधा असर महिलाओं और अन्य अल्पसंख्यकों समुदायों में देखने को मिल रहा है।
3- टीकाकरण में असमानता
भारत के केवल चार राज्यों केरल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश ने अब तक पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं का टीकाकरण किया है। वहीं, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पुरुष- महिला टीकाकरण संख्या में लगभग 14 प्रतिशत का व्यापक अंतर है।
4- महिलाएं और टीकाकरण
अमेरिका में जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन के बाद महिलाओं में खून के थक्के जमने और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रिवेशन के अध्ययन के मुताबिक, फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन लेने के बाद 79% महिलाओं में इसके दुष्प्रभावों की रिपोर्ट आई है। पुरुषों और महिलाओं की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के बीच अंतर होता है, लेकिन फिर भी इस क्षेत्र में पर्याप्त रिसर्च नहीं हुई है। महिलाओं पर वैक्सीन के अलग-अलग प्रभावों को नजरअंदाज किया गया है।
5- ट्रांस समुदाय के लिए वैक्सीन
भारत में ट्रांस समुदाय की 4.87 लाख आबादी में से केवल लगभग 3.97% का ही टीकाकरण हुआ है। वैक्सीन परीक्षण में ट्रांस प्रतिनिधित्व की कमी के कारण ट्रांस समुदाय के शरीर पर वैक्सीन के प्रभाव को लेकर संदेह बना हुआ है।
5- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए वैक्सीन
महिलाओं के शरीर पर वैक्सीन के प्रभाव पर शोध और डेटा की कमी के कारण, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए वैक्सीन को लेकर कई गलतफहमियां मौजूद हैं। शुरुआत में, भारत सरकार ने उन्हें वैक्सीन लगाने वाले समूह से अलग रखा था। हाल ही में सरकार ने स्तनपान कराने वाली महिलाओं के टीकाकरण के निर्देश दिए है। हालांकि, अभी भी गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की इम्यूनिटी पर वैक्सीन के प्रभाव को लेकर कोई डेटा उपलब्ध नहीं है क्योंकि उनको ध्यान में रखकर परीक्षण नहीं किए गए थे।
6- लैंगिक गरीबी और वैक्सीन तक पहुंच
महिलाओं और हाशिए पर गए अलग-अलग समुदायों को महामारी के प्रभाव का खामियाजा भुगतना पड़ा है। महामारी की वजह से करोड़ों बेरोज़गार हो गए, जिससे लैंगिक गरीबी बढ़ी है। यूएन वीमन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 महामारी 2021 तक करीब 9.6 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी की ओर धकेल देगी जिनमें से 4.7 करोड़ महिलाएं और लड़कियां होंगी। लैंगिक गरीबी, वैक्सीन और महामारी के उपचार से संबंधित एक ऐसा मुद्दा है जिस पर गंभीरता से दोबारा सोचने की ज़रूरत है।