क्या आपको पता है कि फास्ट फैशन लैंगिक भेदभाव, बाल श्रम और पर्यावरण को किस प्रकार से प्रभावित करता है? फास्ट फैशन की दुनिया में लैंगिक भेदभाव की मौजदूगी की वजह से महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है और बाल श्रम को बढ़ावा दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री दूसरे नंबर पर पानी का सबसे ज्यादा उपयोग करती है। इसके अलावा सभी इंटरनेशनल फ्लाइट्स और मैरीटाइम शिपिंग मिलकर जितना कार्बन उत्सर्जन करती हैं, उससे कहीं ज्यादा फैशन इंडस्ट्री करती है जो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 8- 10 फीसद है।
फास्ट फैशन क्या है?
फास्ट फैशन को सस्ते, ट्रेंडी कपड़ों के रुप में परिभाषित किया जा सकता है जो कि सेलेब्रेटी स्टाइल पर आधारित होता है। इसमें लेटेस्ट लुक्स और सेलिब्रिटीज स्टाइल्स की नकल करके कम उत्पादन की लागत पर बहुत तेज़ी से कपड़े बनाए जाते हैं यानी कि हर मौसम, हर सप्ताह, नया कलेक्शन। फास्ट फैशन का बिजनेस मॉडल कपड़ों के डिजाइन को जल्दी बदलने के ऊपर आधारित है।
फास्ट फैशन में क्या गलत है?
फास्ट फैशन के उपभोक्ताओं को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि फैशन की इस चमचमाती दुनिया के पीछे कितने मजदूरों का दिन-रात शोषण किया जाता है। कई फैशन ब्रांड्स ये दावा करते हैं कि वे अपने यहां काम करने वाले श्रमिकों को न्यूनतम कानूनी वेतन देते हैं लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि इन श्रमिकों का अपनी आजीविका चलाना भी दूभर हो जाता है। फास्ट फैशन के कपड़ों के उत्पादन के हर चरण में पानी की बर्बादी और जहरीले और खतरनाक रसायनों के इस्तेमाल से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है।
क्या है फास्ट फैशन के पीछे की असली तस्वीर?
ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में श्रमिक बेचे जाने वाले कपड़ों की कीमत का 2% जितना कम कमाते हैं। लेबर बिहाइंड द लेबल अभियान के मुताबिक, भारत में श्रमिकों ने मौखिक उत्पीड़न, लिंग भेदभाव और बिना जानकारी के वेतन कटौती की सूचना दी। ‘द ट्रू कॉस्ट डॉक्यूमेंट्री‘ के मुताबिक, बांग्लादेश की कपड़ा मिलों में काम करने वाले मज़दूरों को दुनिया में सबसे कम वेतन मिलता है। इनमें से कुछ तो 3 डॉलर प्रति दिन के हिसाब से काम करते हैं। कपड़ा मिलों में काम करने वाले श्रमिकों को अक्सर सप्ताह में 7 दिन 14 से 16 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
24 अप्रैल 2013 में बांग्लादेश के ढाका में राणा प्लाजा के ढहने से 1134 श्रमिकों की मौत और 2500 से ज्यादा घायल हुए थे जिसने पूरी फैशन इंडस्ट्री के दमनकारी पक्ष को उजागर कर दिया था।
लैंगिक भेदभाव और बाल श्रम
फास्ट फैशन की दुनिया में महिलाओं और बच्चों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है। यहां पर भी लैंगिक भेदभाव की मौजदूगी की वजह से महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है, चाहे दोनों समान काम ही क्यों न कर रहे हों। इन मिलों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था भी नहीं होती है। इतने कड़े कानूनों के बावजूद भी इन मिलों में बाल श्रम भी कराया जाता है।
फास्ट फैशन और पर्यावरण प्रदूषण
फास्ट फैशन की वजह से कई पैमानों पर पर्यावरण प्रदूषण होता है। सिंथेटिक फाइबर्स जैसे पॉलिएस्टर, एक्रिलिक, स्पैन्डेक्स और नायलॉन से बने कपड़ों की धुलाई से समुद्र और नदियों में प्लास्टिक खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। बिजनेस इनसाइडर के मुताबिक, कपड़ों की धुलाई से हर साल 500,000 टन माइक्रोफाइबर समुद्र में रिलीज होते हैं, जो 50 अरब प्लास्टिक की बोतलों के बराबर है।
गारमेंट इंडस्ट्री वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 10% के लिए जिम्मेदार है। हर साल खरीदे जाने वाले लाखों कपड़ों के उत्पादन, निर्माण और परिवहन के दौरान उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का अधिक उत्सर्जन हो रहा है। अधिकांश कपड़ों का उत्पादन चीन, बांग्लादेश या भारत जैसे देशों में होता है जिनमें कपड़ा मिलें अधिकतर कोयले से संचालित होती हैं जो प्रदूषण में वृद्धि करता है। एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के मुताबिक, कपड़ों का 1% से कम भी रिसाइकल नहीं किया जाता है और हर साल 35,618 अरब रुपए के मूल्य के कपड़े नष्ट हो जाते हैं।
रेयॉन और विस्कोस जैसे फेब्रिक बनाने के लिए लकड़ी की लुगदी का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी वजह से हर साल हजारों हेक्टेयर पर फैले लुप्तप्राय और प्राचीन जंगलों को काट दिया जाता है। इन फैब्रिक्स के उत्पादन के लिए हर साल 150 मिलियन से अधिक पेड़ काटे जाते हैं जिनकी मात्रा अगले दशक तक दोगुना होने की उम्मीद है। मिट्टी का बड़े पैमाने पर वैश्विक क्षरण वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है और यह ग्लोबल वार्मिंग को भी बढ़ावा देता है।
फास्ट फैशन के अलावा क्या विकल्प है?
उत्पादों और पर्यावरण की इस बर्बादी से बचने का विकल्प है, सस्टेनेबल फैशन। सस्टेनेबल फैशन का मतलब है, ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करना जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं। सस्टेनेबल विस्कोस, ऑर्गेनिक कॉटन और ऊन जैसी कुछ सामग्रियां पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहतर होती हैं। एनबीसी न्यूज़ के मुताबिक, अगर आप एक जोड़ी कपड़े को 9 महीने ज्यादा तक उपयोग करते हैं तो इससे 30 फीसद तक कार्बन फुटप्रिंट कम हो सकता है। वहीं क्रोन 4 न्यूज (KRON 4 News) के मुताबिक, अगर हर व्यक्ति इस साल नया आइटम लेने की बजाय एक रिसाइकल्ड आइटम खरीदता है तो तो इससे 6 पाउंड यानी कि लगभग 2.7 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम हो सकता है।