टोक्यो ओलंपिक का समापन हो गया है। दुनियाभर के खिलाड़ी अब तीन साल बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस में अगले ओलंपिक खेलों के लिए जुटेंगे। दो हफ्ते तक दुनिया के 206 देशों के 11,090 खिलाड़ियों की बीच चली स्पर्धा पूरी हो चुकी है। कोरोना महामारी के चलते एक साल की देरी के बाद ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ। ‘कोविड ओलंपिक’, ‘महामारी ओलंपिक’ जैसे टैग और कई जापानी नागरिकों के विरोध के बीच 2021 में कई आशंकाओं, डर, चिंता और सवालों के घेरे के बाद इन खेलों का आयोजन हो पाया। खेलों का रोमांच और हार-जीत के बाद नये सितारों का पूरी दुनिया के खेल प्रशंसकों ने जमकर स्वागत किया। टोक्यो ओलंपिक कई मायनों में बेहद ख़ास रहा। इस ओलंपिक के दौरान जेंडर के हिसाब से कुछ ऐसी घटनाएं हुई जो पूरी दुनिया के समावेशी समाज के लिए बेहद आवश्यक हैं। भारतीय महिला खिलाड़ियों ने तमाम संघर्षों के बीच जो प्रदर्शन किया वो बहुत ही प्रशंसनीय है। विश्व की कई महिला खिलाड़ियों ने खुलकर ओलंपिक जैसे मंच पर महिला अधिकार, पंसद, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता की बात अपने खेल के माध्यम से कही।
टोक्यो 2020 में भारत का सफ़र
इस बार के खेलों का मुख्य संदेश था, ‘खेल एक उज्जवल भविष्य के दरवाजे खोलेंगे।’ भारत इस बार के अपने प्रदर्शन से निश्चित तौर पर कह सकता है कि देश में उज्जवल भविष्य के लिए खेल एक बेहतर विकल्प है। टोक्यो ओलंपिक में भारत ने एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य पदकों के साथ अब तक का अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। 13 साल बाद भारत को ओलंपिक में स्वर्ण पदक हासिल हुआ। भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा ने अपने पहले ही ओलंपिक में जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) में देश को सोना दिलाया। इससे पहले मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में भारत के लिए रजत पदक जीतकर भारत का खाता खोल दिया था। देश को 21 साल बाद भारोत्तोलन में कोई पदक मिला था। इससे पहले साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता था। हालांकि मीराबाई चानू की जीत के बाद भारतीय पदकों का सिलसिला थम गया था और कुछ अहम पदक दावेदार थोड़ी सी चूक से पदक से दूर रह गए। बैडमिंटन में पीवी सिंधु से पदक की उम्मीद टूर्नामेंट की शुरुआत से ही थी। रियो में पदक जीतने के बाद इस बार सिंधु कांस्य जीतकर कर वह भारत की पहली महिला और दूसरी ऐसी खिलाड़ी बन गई हैं, जिन्होंने लगातार दो ओलंपिक में पदक अपने नाम किया।
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असम की गोलाघाट ज़िले के छोटे से गांव बारोमुखिया की लवलीना बोरगोहन देश में बॉक्सिंग की नई सुपर स्टार बन गई हैं। लवलीना ने टोक्यो में शानदार खेल खेलते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया। साल 2008 बीजिंग ओलंपिक में विजेंदर सिंह और साल 2012 लंदन ओलंपिक में मेरी कॉम ने कांस्य पदक जीता था। बॉक्सिंग में पदक हासिल करने वाली लवलीना तीसरी खिलाड़ी हैं। 57 किलोवर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती में पहलवान रवि कुमार दहिया ने रजत पदक जीतकर भारत को इस बार के टूर्नामेंट में दूसरा रजत पदक दिलाया। पहलवान बजरंग पूनिया 65 किलोवर्ग फ्री स्टाइल कुश्ती के सेमीफाइनल में हार के बाद कांस्य पदक के मुकाबले में उन्होंने वह प्रदर्शन किया जिसके लिए वह जाने जाते हैं। बजरंग का यह पदक इस बार कुश्ती में मिला दूसरा पदक है।
फिर दिल दो हॉकी को
भारतीय महिला हॉकी टीम पहली बार ओलंपिक खेलों के सेमीफाइनल में पंहुची। पदक से चूकने के बाद भी भारतीय महिला हॉकी टीम की न केवल देश में बल्कि विदेश में भी बहुत प्रशंसा हुई। महिला हॉकी टीम हो या फिर पुरुष टीम, दोनों ही टीमों ने टोक्यो में बेहद शानदार प्रदर्शन किया। भारतीय हॉकी के उस स्वर्णिम इतिहास को फिर से ताज़ा कर दिया गया जो ओलंपिक में पदक की अहम दावेदार मानी जाती थी। आठ बार की ओलंपिक विजेता भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने इस बार कांस्य पदक जीतकर 41 साल बाद कोई पदक अपने नाम किया। सेमीफाइनल में बेल्जियम से हार के बाद टीम ने कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में जर्मनी जैसी मजबूत टीम को पटखनी दी।
वहीं, दूसरी ओर महिला टीम की खिलाड़ी वंदना कटारिया के परिवार को पितृसत्तात्मक जातिवादी समाज की बेहद छोटी सोच की हरकत का भी सामना करना पड़ा। टीम की हार के बाद वंदना के परिवार वालों को जातिसूचक शब्द कहे गए। जहां एक ओर भारतीय महिला खिलाड़ी अपनी मेहनत और अभावों के चलते एक मुकाम पर पहुंच रही है वहीं इस देश की जातिवादी सोच उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही है। खुद कप्तान रानी रामपाल ने इस घटना की आलोचना कि और कहा, “हम जब खेलते हैं तो हम ना किसी जाति और न ही किसी धर्म के होते हैं। हमें उम्मीद है कि देश की आम जनता भी ऐसा ही व्यवहार करे।”
गोल्फ में अदिति का शानदार प्रदर्शन
टोक्यो ओलंपिक से पहले आम भारतीय खेल प्रशंसकों ने शायद ही अदिति अशोक का नाम सुना होगा। टोक्यो में अपने शानदार प्रदर्शन की बदौलत अदिति अशोक भले ही पदक जीतने में सफल न रही हो, लेकिन चौथे नंबर पर भी पहुंचकर उन्होंने गोल्फ जैसे खेल में बहुत बड़ी कामयाबी हासिल की है। दुनिया में 200वीं रैंक की खिलाड़ी अदिति की चर्चा पूरे देश में हो रही है। भारत में क्रिकेट और अन्य खेलों के अलावा गोल्फ के ज़रिये अपनी पहचान बनाती अदिति अशोक इस ओलंपिक के बाद बहुत से खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा होगी।
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महिला खिलाड़ियों ने दिये नये पैगाम
जर्मनी की महिला जिम्नास्टिक टीम ने ओलंपिक में फुल बॉडी सूट पहनने के फैसले ने सबको चौंका दिया। इसके पीछे उनका मकसद केवल इतना था कि कोई भी महिला वह पहन सकती है जो वह चाहती है। कपड़े का चुनाव उनका है, इस पर किसी अन्य का नियम-निर्देश नहीं हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में अक्सर महिला खिलाड़ियों की पोशाक ऊंची, छोटी और तंग रहती है। महिला खिलाड़ियों के ऐसे फैसले केवल उन्होंने अपनी सहूलियत को देखकर लिए हैं। खेलों में महिला शरीर को किसी आकर्षण की तरह से न देखा जाए उसके लिहाज से जर्मन टीम का यह कदम अहमियत रखता है। जर्मन टीम के खिलाड़ियों का ऐसा करना जिन्मास्टिक में महिलाओं के सेक्सुअलाइजेशन के तौर पर देखने का भी विरोध करता है।
यौन शोषण का हुआ विरोध
अमेरिकी फेंसर टीम के सदस्य एलन हादज़िक पर यौन शोषण का आरोप लगे होने के कारण उन्हीं की टीम के खिलाड़ी उनका विरोध करते दिखें। अमेरिका की ओर से टीम में चयन होने के बाद एलन पर तीन महिलाओं ने साल 2013 से 2015 के बीच उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया। इसी के चलते उनका टीम से निलंबित हुआ था। एलन की अपील के बाद टीम में उनकी वापसी होने के बाद टीम के बाकी सदस्यों ने इस फैसले का विरोध किया। ओलंपिक के पहले ही मैच में टीम के बाकी तीन सदस्यों ने गुलाबी मास्क पहनकर यौन शोषण के सर्वाइवर्स के प्रति अपना समर्थन दिखाया। टीम के अन्य तीन सदस्य जैक हॉयली, कर्टिस मैकडॉवल्ड और येसेर रामिरेज़ ने गुलाबी मास्क पहनकर अपने ही साथी खिलाड़ी एलन का विरोध किया। यह विरोध अपने आप में बहुत अहम है। खेलों में महिलाओं के शोषण के खिलाफ ओलंपिक जैसी स्पर्धा में आवाज़ उठाना महिला खिलाड़ियों को भी हौसला देता है।
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LGBTQAI+ खिलाड़ियों का ओलंपिक में प्रतिनिधित्व
टोक्यो ओलंपिक ट्रांस और नॉनबाइनरी खिलाड़ियों को पहचान देने के लिए विशेष तौर पर ध्यान में रखा जाएगा। कनाडा के महिला फुटबाल टीम के खिलाड़ी क्विन ने ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले ट्रांस, नॉन बाइनरी के तौर पर अपना नाम दर्ज़ कराया है। न्यूजीलैंड की लॉरेल हब्बर्ड भी वह ट्रांस महिला खिलाड़ी हैं जो टोक्यो ओलंपिक में दौरान सुर्खियों में रहीं। टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाले 182 एथलीट एलजीबीटीक्यू समुदाय से थे। यह संख्या 2016 के रियो ओलंपिक संख्या की तीन गुनी है। खिलाड़ियों की यह संख्या समाज में एलजीबीटीक्यू के लोगों की बढ़ती स्वीकृति को भी दर्शाती है। इस साल 30 अलग-अलग देशों के ट्रांस एथलीट्स ने 34 खेल की स्पर्धाओं में हिस्सा लिया। अमेरिका के सबसे ज्यादा 36 ट्रांस खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया। ट्रांस खिलाड़ियों का शामिल होना एक ओर समावेशी समाज की ओर बढ़ता हुआ कदम है।
सिमोन का मानसिक स्वास्थ्य को महत्व
ओलंपिक चैंपियन सिमोन बाइल्स ने मानसिक स्वास्थ्य के कारण शुरुआती व्यक्तिगत स्पर्धा से अपना नाम वापस ले लिया था। सिमोन ने इस बार पांच व्यक्तिगत स्पर्धा के लिए क्वालीफाई किया था। हालांकि बाद में सिमोन बाइल्स ने वापसी करते हुए बैलेंस बीम के फाइनल में कांस्य पदक अपने नाम किया। सिमोन ओलंपिक में अब तक सात पदक अपने नाम कर चुकी हैं। सिमोन का यह कदम खिलाड़ियों की मानसिक स्वास्थ्य की महत्वता और उन पर होने वाले दबाव पर लोग अब खुलकर चर्चा कर रहे हैं।
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टॉम डेली का स्वेटर बुनना बना चर्चा का विषय
ग्रेट ब्रिटेन के तैराक टॉम डैली पदक जीतने के साथ-साथ टोक्यो में अपने स्वेटर बुनने की तस्वीरों के वायरल होने के कारण भी सुर्खियों में छाए रहे। महिला स्प्रिंग बोर्ड फाइनल मैच के दौरान टॉम स्वेटर बुनते नज़र आए। उनका स्वेटर बुनना सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ। पितृसत्तात्मक समाज में जहां कढ़ाई-बुनाई का काम केवल महिलाओं तक ही सीमित रहता है वहां पर एक पुरुष खिलाड़ी का स्वेटर बुनना एक अलग अनुभव था। टॉम अपनी पहचान एक गे के रूप में बताते हैं।