समाजकानून और नीति राजस्थान में ‘बाल विवाह’ का रजिस्ट्रेशन, क्या है नये संशोधन और क्यों हो रहा है इसका विरोध

राजस्थान में ‘बाल विवाह’ का रजिस्ट्रेशन, क्या है नये संशोधन और क्यों हो रहा है इसका विरोध

पिछले दिनों राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम (राजस्थान कंपलसरी रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरेज एक्ट) 2009 में संशोधन किया गया है। इस संशोधन के विरोध में कहा जा रहा है कि इसके तहत 30 दिनों के भीतर शादी का अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन या पंजीकरण करवाने का प्रावधान बाल विवाह को वैध बनाना होगा। फिलहाल इस बिल पर राजस्थान के गवर्नर द्वारा रोक लगा दी गई है। राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक के अनुसार मूल ऐक्ट में निम्नलिखित बदलाव किए गए हैं:

ऐसी शादी जिसमें लड़के की उम्र 21 से कम और लड़की की उम्र 18 से कम हो, उसका रजिस्ट्रेशन माता-पिता या अभिभावकों द्वारा शादी के 30 दिनों के अंदर किया जा सकता है। इस नए विधेयक के खिलाफ़ हो रहे प्रदर्शन की मुख्य वजह यही संशोधन है। इस बदलाव के पक्ष में संसदीय कार्य मंत्री शांति कुमार धारीवाल का कहना है कि बिल यह नहीं कहता कि बाल विवाह वैध है। इस बिल के अनुसार शादी के बाद सिर्फ रजिस्ट्रेशन जरूरी है। उन्होंने आगे बताया कि बाल विवाह के खिलाफ जिला कलेक्टर चाहे तो कार्रवाई कर सकते हैं। जबकि विपक्ष का कहना है कि इससे बाल विवाह को मज़बूती मिलेगी।

मूल ऐक्ट के सेक्शन 8 में किया गया संशोधन

द हिन्दू में छपी रिपोर्ट बताती है कि नैशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने नाबालिग बच्चों पर इसके संभावित प्रभाव के मद्देनजर इस विधेयक की समीक्षा की मांग की है। एनसीपीसीआर के मुताबिक यह बिल बाल विवाह को ‘वैध’ बना सकता है। राज्य सरकार अब तक इस दलील पर टिकी हुई है कि यह संशोधित विधेयक नाबालिगों की वैवाहिक स्थिति को बदले बिना सिर्फ शादी की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को सरल बनाएंगे। एनडीटीवी की रिपोर्ट अनुसार स्वयंसेवी संस्था सारथी ट्रस्ट की कार्यकर्ता कृति भाटी ने ने भी इस विधेयक के खिलाफ एक याचिका दायर की है।

क्या है राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम 2009

चूंकि राजस्थान के मौजूदा अधिनियम में ही संशोधन किए गए हैं इसलिए हमें मूल कानून की पृष्ठभूमि के बारे में जानना महत्वपूर्ण है। साल 2009 में अधिनियमित राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण कानून अन्य राज्यों के अधिनियमों के समान सभी शादियों की अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की बात करता है। यह साल 2007 के सीमा बनाम अश्विनी कुमार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है, जिसके मुताबिक भारत में सभी शादियों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। साल 2006 में, ‘सीमा बनाम अश्विनी कुमार’ मामले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक ट्रांसफर याचिका पर विचार करते हुए पाया कि अधिकांश राज्यों में कुल शादीशुदा लोगों का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न धर्म के सभी भारतीय नागरिकों को शादी के लिए उनके संबंधित राज्यों में रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य कर दिया जहां शादी की पुष्टि हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को अपनाते हुए कई राज्यों ने अनिवार्य रूप से शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए कानून पारित किया या नियम बनाए।

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बाल विवाह पर क्या कहते हैं आंकड़े

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार भारत में 20-24 साल की उम्र की 27 फीसद महिलाओं की शादी 18 वर्ष की न्यूनतम उम्र से पहले हो गई। यह एनएचएफ़एस-3 के आंकड़ों के मुकाबले 47 फीसद से कम है। यह गिरावट राजस्थान में भी देखी गई। एनएचएफएस-3 के अनुसार इस आयु वर्ग की 65 प्रतिशत महिलाओं की शादी न्यूनतम आयु 18 वर्ष से पहले हो गई थी। वहीं, एनएफ़एचएस-4 में यह आंकड़ा 35 प्रतिशत रहा।

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2020 में बाल विवाह के मामले बीते साल के मुकाबले 50 फीसद अधिक दर्ज किए गए। एनसीआरबी के मुताबिक साल 2020 में बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत साल 2020 में कुल 785 केस दर्ज किए गए। वहीं साल 2019 में 523 और साल 2018 में 501 केस दर्ज किए गए थे। कानूनी तौर पर अवैध होने के बावजूद, यूनिसेफ़ के अनुसार आज भी भारत में हर साल 18 साल से कम उम्र की कम से कम 1.5 मिलियन लड़कियों की शादी कर दी जाती है। वैश्विक स्तर पर भारत बाल विवाह के कुल मामलों का एक तिहाई हिस्सेदार है।

द वायर में छपी रिपोर्ट के अनुसार महिला और बाल विकास मंत्रालय को किए गए एक आरटीआई आवेदन से पता चलता है कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान साल 2019 की तुलना में बाल विवाह की संख्या में 33 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोतरी हुई। यह बढ़ोतरी अगस्त के महीने में 88 फीसद से भी ज्यादा दर्ज की गई। वहीं, सदन में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से मिले डेटा अनुसार लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह के मामलों में कोई बढ़ोतरी नहीं होने की बात कही थी।

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विभिन्न राज्यों में बाल विवाह के मद्देनजर अधिनियमों में किए गए बदलाव

उत्तराखंड अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम 2010 के अनुसार शादी की रजिस्ट्रेशन कराने की जिम्मेदारी लड़के (पति) की होती है। लड़के की उम्र 18 साल से कम होने पर रजिस्ट्रेशन लड़की (पत्नी) को करवाना अनिवार्य है। यदि लड़की की उम्र 18 साल से कम है तो रजिस्ट्रेशन कराने की जिम्मेदारी उसके माता-पिता की होगी। लेकिन जहां शादी का कोई पक्षकार (लड़का या लड़की) नाबालिग हैं, वहां रजिस्ट्रार को स्थानीय पुलिस को सूचित करना होगा कि शादी बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम, 1929 के उल्लंघन में किया गया है। इस तरह ऐसे मामलों में संभवतः बाल विवाह को रोका जा सकता है। इसके अलावा, इस तरह हुई शादियों को सरकार का अमान्य घोषित करना भी आसान होता है। साल 2016 में कर्नाटक सरकार के बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में किए गए संशोधन अनुसार संशोधन के लागू होने की तारीख को या उसके बाद हर बाल विवाह को अमान्य कर दिया गया।

राजस्थान का संशोधित विधेयक बाल विवाह को मान्य या वैध बनाने की बात नहीं करता लेकिन यह अनिवार्य रूप से बाल विवाह सहित हर शादी की रजिस्ट्रेशन की बात कहता है। आज यह सामाजिक समस्या न सिर्फ हमारी संस्कृति का एक हिस्सा बन गई है बल्कि यह एक आर्थिक, राजनीतिक और महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या भी बन गई है। भारत में समस्या बाल विवाह के कानूनों में एकरूपता न होने और बाल विवाह की कानूनी स्थिति को लेकर भी है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि सरकार खुद बाल विवाह की समस्या को स्वीकारे, अहमियत दे और खत्म करने का प्रयास करे।

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तस्वीर साभार : The New Humanitarian

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