इंटरसेक्शनलजेंडर नाइट शिफ्ट में महिलाओं को काम करने की आज़ादी क्यों नहीं?

नाइट शिफ्ट में महिलाओं को काम करने की आज़ादी क्यों नहीं?

परिवार का कहना कि ऐसी नौकरी करनी ही क्यों है जिसमें देर रात काम करना पड़े। अगर औरतें इन सारी समस्याओं से खुद ऊपर उठ भी जाती हैं तो घर से दूर रहनेवाली कामकाजी लड़कियों को अलग दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

साइना (काल्पनिक नाम) जिनकी शादी हो चुकी है और वह दो बच्चे की मां भी हैं। शादी के शुरुआती दिन काफी खुशहाली से गुज़रे। साइना को परिवार का साथ मिल रहा था लेकिन साइना एक पढ़ी-लिखी महिला हैं और शादी के बाद उन्हें घर बैठना मंजूर नही था। इसलिए साइना ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया और यहीं से अपने जीवन की नई शुरुआत की। व्यवसाय को अकेले संभालने की वजह से रोज़ाना साइना को घर लौटने में रात के सात-आठ बज ही जाते थे। लेकिन अचानक ही एक दिन साइना के परिवार ने उन्हें घर से बाहर निकल नौकरी करने से साफ मना कर दिया क्योंकि उन्हें अब साइना का देर रात घर आना मंजू़र नहीं था। 

परिवार के संचालन में हर सदस्य की समान भागीदारी और समान महत्व है। लेकिन आज के इस आधुनिक समाज में भी औरतों की स्थिति क्या है यह जानने की कोशिश करेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी। आज भले ही हमारे समाज में बदलाव आए हो लेकिन इस पितृसत्तात्मक समाज की सोच कहीं ना कहीं वहीं पर अटकी है। महिला सशक्तिकरण के जितने भी प्रयास किए जा रहे हो पर औरतों के अस्तित्व को सबसे बड़ी चुनौती उन्हें अपने घर में ही मिल रही है। औरतें आज बाहर निकलकर काम तो कर रही हैं पर उन्हें आज भी खुद से फैसले लेने की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हुई है।

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समाज की धारणा

ऐसा नहीं था की साइना के परिवार को उसके काम से दिक्कत थी बल्कि साइना के परिवार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि आस-पास के लोगों ने साइना के खिलाफ तरह- तरह की बातें बनाना शुरू कर दिया था। अब परिवार कितना भी साथ हो लेकिन कहीं ना कहीं समाज की कुरीतियों का शिकार हो ही जाता है। कुछ ऐसा ही यहां साइना के परिवार के साथ हुआ। समाज में सिर उठाकर चलने की जगह साइना को घर बैठने पर मजबूर कर दिया। समाज के लोग चाहे कितने भी शिक्षित हो लेकिन एक महिला का देर रात काम करना, देर रात घर आना शायद ही समाज को गंवारा हो। आपने साइना की जीवन देखी मगर अफ़सोस यह सिर्फ साइना की ही कहानी नहीं है। ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें अपने काम के कारण हर दिन अलग-अलग तरीकों की यातनाएं का सामना करना पड़ता है। वे चुपचाप सहती हैं या फिर इन सारी चीजों से परेशान होकर अपने कदम पीछे कर लेती हैं।

परिवार का कहना होता है कि ऐसी नौकरी करनी ही क्यों है जिसमें देर रात काम करना पड़े। अगर औरतें इन सारी समस्याओं से खुद ऊपर उठ भी जाती हैं तो घर से दूर रहनेवाली कामकाजी लड़कियों को अलग दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

तो क्या बस यही वह वजह है जिसके कारण महिलाओं को रात में काम करने की इजाज़त नहीं मिलती है। इस सवाल के जवाब से से मैं बिल्कुल असंतुष्ट थी। जिस कारण को जानने के लिए मैंने यह टॉपिक लिया था उसका मकसद पूरा नहीं हुआ था। इसलिए मैंने इस सवाल का जवाब जानने के लिए सुनीता (मेरी मां) जो कि पेशे से एक शिक्षिका हैं उनसे बात की। प्रोफेसर पूजा कौशिक से बात की, मिर्ची वर्ल्ड पॉडकास्ट की राइटर शंपा जी से बात की। सवाल तो एक ही था लेकिन जवाब अलग-अलग मिले। किसी को अपनी सुरक्षा की चिंता थी तो किसी का कहना था कि घरवालों को समाज की बातों का डर था। दूसरे लोग क्या बोलेंगे, क्या सोचेंगे। ऐसे ही कई कारण खुलकर सामने आए जो निम्नलिखित हैं:


 • दूसरे लोग क्या बोलेंगे
 • औरतों का घर आते ही उनका घर के कामों में लग जाना
• पितृसत्तात्मक समाज लड़कों को ‘रोक नहीं पाता’ इसलिए लड़कियों पर पाबंदी लगाता है
• यातायात की समस्या
 • समाज का मानना कि औरतें घर संभालने के लिए होती हैं
 • लड़कों के साथ बाहर घूमेगी
 • घरवालों का टीचर, बैंक जैसी नौकरियों करने की सलाह देना ताकि वे शाम में आकर घर संभाल सकें।

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परिवार का कहना कि ऐसी नौकरी करनी ही क्यों है जिसमें देर रात काम करना पड़े। अगर औरतें इन सारी समस्याओं से खुद ऊपर उठ भी जाती हैं तो घर से दूर रहनेवाली कामकाजी लड़कियों को अलग दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पीजी और मकानमालिकों के ताने सुनने पड़ते हैं। ऐसी ही कहानी है रितिका कि जो कुछ सालों पहले पीजी में रहती थीं। काम में व्यस्ता के कारण देर रात पीजी लौटती थीं जो कि उनके मकानमालिक को पसंद नहीं था। आखिरकार रोज़-रोज़ की परेशानी की वजह से रितिका को पीजी छोड़ना पड़ा।

बात सिर्फ़ महिलाओं को घर से बाहर निकल रात में काम करने की नहीं है बल्कि इससे बड़ी बात है तो उनके साथ होनेवाले उत्पीड़न हैं जिसकी वजह से उन्हें रात में काम करने की मंजूरी नहीं मिलती है।

आपने भी इस तरह की सोच का सामना किया होगा। आज भी भले ही कहा जाता है कि महिला पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं लेकिन आपने घर में ही देखा होगा कि शाम होते ही महिलाएं घर की जिम्मेदारी, बच्चों में उलझकर रह जाती हैं और अगर किसी भी तरह से इससे ऊपर उठकर आगे बढ़ने की कोशिश करती भी है तो उन्हें सड़क पर, ऑफिस में अलग-अलग तरह की हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसका सामना सिर्फ बड़े शहरों में रहनेवाली महिला/लड़की को ही नहीं बल्कि छोटे शहरों, गांवों की भी तक़रीबन हर महिला/लड़की को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। शिक्षित होने के बावजूद भी उन्हें इन समस्याओं के कारण घर पर ही बैठा दिया जाता है। परिवार का कहना ऐसी नौकरी करनी ही क्यों है जिसमें देर रात तक घर के बाहर रहकर काम करना पड़े। महिलाओं के प्रति इन्हीं सारी गलत धारणाओं, यात्रा के दौरान उत्पीड़न, सुरक्षा की चुनौतियां होने के कारण महिलाओं को रात में काम करने की इजाज़त नहीं है।

बात सिर्फ़ महिलाओं को घर से बाहर निकल रात में काम करने की नहीं है बल्कि इससे बड़ी बात है तो उनके साथ होनेवाले उत्पीड़न हैं जिसकी वजह से उन्हें रात में काम करने की मंजूरी नहीं मिलती है। कंपनी में महिलाओं के अनुकूल माहौल नहीं होता। महिलाएं जिस भी कंपनी में काम करती हैं उस कंपनी का दायित्व बनता है कि उन्हें एक संवेदनशील और सुरक्षित काम का माहौल दिया जाए। जहां वे खुलकर अपनी बात रखें ताकि वे सुरक्षित महसूस कर सकें। कैंटीन, शौचायल, क्रेस, परिवहन आदि की सुविधा हो।

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आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए की महिला कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने के लिए, केंद्र द्वारा श्रम कानूनों में किए जा रहे बदलाव के ड्राफ्ट के तहत यह अनिवार्य होगा कि कारखानों और निर्माण फर्मों सहित, जहां महिलाओं ने शाम शाम बजे के बाद काम करने के लिए अपनी सहमति दी है, उन्हें न केवल परिवहन प्रदान करें, लेकिन यह भी सुनिश्चित करें कि परिसर में एक शिशुगृह है। इसके अलावा, ऐसे प्रतिष्ठानों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कार्यस्थल अच्छी तरह से प्रकाशित हो और परिसर में पर्याप्त स्वच्छता और कैंटीन की सुविधा उपलब्ध हो। अधिनियम महिला श्रमिकों को यह तय करने का विकल्प देता है कि क्या वे रात में काम करना चाहती हैं। 

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तस्वीर साभार : Sayfty

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