इतिहास संविधान निर्माता के साथ-साथ संगीत प्रेमी भी थे बाबा साहब आंबेडकर

संविधान निर्माता के साथ-साथ संगीत प्रेमी भी थे बाबा साहब आंबेडकर

बाबा साहब आंबेडकर का नाम सुनते ही हर किसी के ज़हन में उनके संविधान निर्माता, दलितों के लिए आवाज़ बुलंद करने वाले मसीहा, कानून के विशेषज्ञ, जातिगत भेदभाव के खिलाफ़ और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बोलनेवाले शख्स की छवि उभरकर सामने आती है। लेकिन उनके जीवन के कुछ ऐसे भी पहलू हैं जिनसे हम आज तक अंजान है। ऐसा ही एक अंजान, अनसुना पहलू है बाबा साहब का संगीत और कला के प्रति प्रेम। 

करीब 17 साल तक यानि साल 1940 से लेकर बाबा साहब के महापरिनिर्वाण के समय तक एक व्यक्ति था जो बाबा साहब के साथ उनके साये की तरह ही रहा। यह थे बाबा साहब के निजी सचिव नानक चंद रत्तू। नानक चंद रत्तू की एक किताब है ‘डॉ.आंबेडकर के कुछ अनछुए प्रसंग।’ इसी किताब से बाबा साहब के बारे में जानकारी मिलती है कि वह संगीत-कला के कितने बड़े प्रेमी थे। 

वायलिन के छात्र आंबेडकर

पुस्तक ‘डॉ. आंबेडकर के कुछ अनछुए प्रसंग’ में ‘वायलिन और संगीत’ शीर्षक के तहत लिखा गया है कि कला, पेंटिंग और चित्रकारी की तरह बाबा साहब को वायलिन जैसे वाद्य यंत्र भी अच्छे लगते थे। इसी शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने एक वायलिन खरीद लिया और उसे सीखने के लिए शिक्षक भी रख लिया था। शिक्षक का नाम मुखर्जी था। कुछ समय बाद इस शिक्षक की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। उसके बाद जब कभी उनका मूड होता था और उनके पास फुर्सत होती थी, वह वायलिन का अभ्यास किया करते थे। बाबा साहब ने वायलिन बजाने का विधिवत प्रशिक्षण मुंबई के साठे ब्रदर्स से लिया था। साठे ब्रदर्स ने अपने संस्मरण में लिखा है, “डॉ. आंबेडकर हमारे बहुत आज्ञाकारी, अनुशासित और समर्पित कला-विद्यार्थी थे। जब कभी भी हम उनको वायलिन बजाने की शिक्षा देने जाते, हमेशा ही वे समय पर मौजूद रहते और बताए गए पाठ को भी तैयार करके रखते थे।” 

बाबा साहब आंबेडकर का नाम सुनते ही हर किसी के ज़हन में उनके संविधान निर्माता, दलितों के लिए आवाज़ बुलंद करनेवाले मसीहा, कानून के विशेषज्ञ, जातिगत भेदभाव के खिलाफ़ और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बोलनेवाले शख्स की छवि उभरकर सामने आती है।

बाबा साहब का संगीत से कितना लगाव था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे जब कभी शर्ट पहनते तो शर्ट के सबसे निचले बटन पर वायलिन के तार पर मारने जैसी मुद्रा में वे अपनी अंगुली मारना कभी नहीं भूलते थे। पुस्तक ‘डॉ. आंबेडकर के कुछ अनछुए प्रसंग’ में ही लेखक ने 13 नवंबर, 1955 की एक घटना का ज़िक्र किया है जिसमें उन्होंने बताया है कि वह 26, अलीपुर रोड, दिल्ली स्थित बाबा साहब के आवास पर तड़के 8.30 पहुंचे। उन्होंने देखा कि मुख्य हॉल में जहां बाबा साहब का विशाल पुस्तकालय था, पुस्तकों की अलमारियों की कतारों के बीच इधर-उधर टहलते हुए वायलिन बजा रहे थे। वह दृष्य अद्भुत था।  

जब बाबा साहब ‘इकतारा’ मंगाकर गाने लगे

बाबा साहब के संगीत प्रेम का जिक्र तत्वलीन स्वरूप चंद्र बौद्ध की किताब ‘दिल्ली का दलित इतिहास: कुछ अनछुए प्रसंग’ में भी मिलता है। घटना है कि बाबा साहब ने स्वामी तुलादास से आग्रह किया कि वे इन ‘सत्संगियों’ का सत्संग मेरी कोठी पर आयोजित करें। वह इन्हें देखना चाहते हैं। स्वामी जी ने दिल्ली के सत्संगियों का जमावड़ा बाबा साहेब की कोठी पर किया। बड़ी संख्या में लोग अपना इकतारा, खंजरी, ढोलक, पखावज ‘हाथ की उंगलियों में फंसाकर बजाने वाला साज’ लेकर पहुंचे। कोठी पर जमकर सत्संग हुआ। धीर-गंभीर माने जाने वाले बाबा साहेब भी इस समय अपने को नहीं रोक पाए और अपने सहयोगी से ‘इकतारा’ मंगाकर स्वयं भी गाने लगे। 

बाबा साहब की स्मृति

बाबा साहब आंबेडकर के बारे में यदि और जानने की इच्छा हो तो आंबेडकर म्यूजियम जरूर जाना चाहिए। बाबा साहब के म्यूजियम को खुली किताब के रूप में ढाला गया है। आंबेडकर म्यूजियम में बाबा साहब को लाइव भाषण देने के साथ-साथ उनसे संबंधित हर चीज को देख ही नहीं बल्कि सुन भी सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। संविधान को लाइव पढ़ भी सकते हैं। यहां जाकर आप बाबा साहब के ज़माने को बखूबी फील कर सकते हैं। बता दें कि 26 अलीपुर रोड स्थित भवन में बाबा साहब आंबेडकर ने 1 नवंबर 1951 से लेकर अपने महापरिनिर्वाण 6 दिसंबर 1956 तक निवास किया था। दरअसल, यह संपत्ति राजस्थान के सिरोही के महाराज की थी। बाबा साहब के 1951 में केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा देने के बाद उन्हें यहां पर रहने के लिए आमंत्रित किया गया था। अब यह भारत सरकार की संपत्ति है। अब यहीं पर केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने डॉ.आंबेडकर नेशनल मैमोरियल तैयार किया है। बाबा साहब अंबेडकर की जन्मभूमि (मऊ, मध्य प्रदेश), शिक्षा भूमि (लंदन), दीक्षा भूमि (नागपुर, महाराष्ट्र), महापरिनिर्वाण भूमि (अलीपुर रोड़, दिल्ली) और चैत्य भूमि (दादर, महाराष्ट्र जहां अंतिम संस्कार हुआ) को पंच तीर्थ नाम दिया गया है। इस म्यूजियम को विकसित करने का मकसद भी यही था कि पांचों तीर्थों का सुख एक जगह मिले और लोगों को बाबा साहब के बारे में जानकारी मिले।


तस्वीर साभार : DailyO

स्रोत :
Dr. Ambedkar : Kuchh Anchhuye Prasang

DELHI KA DALIT ITHIHAS KUCH ANCHUYE PARSANG

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