दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में उसकी महिलाओं की हिस्सेदारी और उनके मुद्दों की समझ और उन पर चर्चा दोनों बहुत कम है। देश के आगामी पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नज़रें टिकी हुई हैं। इस चुनाव में महिला मतदाताओं को हर राजनीतिक दल अपने पाले में डालना चाहता है। थोड़ा पीछे जाने पर देखने को मिलता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में महिला मतदाताओं की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है। मायावती की सरकार से लेकर वर्तमान के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कुर्सी तक पहुंचाने में महिला वोटिंग की हिस्सेदारी काफी रही है। यही कारण है कि कोई भी राजनीतिक दल महिलाओं के वोट बैंक को नकार नहीं सकता है। बीते चुनावों से मतदान में लगातार बढ़ती महिला की भागीदारी के कारण हर दल इस पर अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगा हुआ है।
उत्तर प्रदेश में बढ़ती महिला वोटर्स की भागीदारी
सूबे में महिला मतदाताओं की संख्या 46 प्रतिशत से अधिक है। बीती 8 जनवरी को चुनाव आयोग के द्वारा चुनाव की घोषणा करते समय चुनाव आयुक्त ने विशेष तौर पर बताया कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में महिला वोटरों की संख्या बढ़ी है। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार यूपी में इस वक्त 15 करोड़ मतदाता है जिसमें से महिला वोटर्स की संख्या 6.98 करोड़ और पुरुष मतदाताओं की संख्या 8.04 करोड़ है। इसके अलावा राज्य में 8,853 ट्रांस वोटर है। पांच राज्यों में होनेवाले चुनावों में उत्तर प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या में सबसे अधिक बढ़त देखी गई है। पिछले चुनाव के बाद से 52 लाख नये वोटर जुड़े हैं। 2017 में यूपी में कुल 14.16 करोड़ वोटर थे। इसमें 6.46 करोड़ महिला और 7.7 करोड़ पुरुष थे।
पिछले चुनाव की महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की थी। साल 2017 में 63.31 फ़ीसद यानि 4.5 करोड़ महिला मतदाताओं ने वोट किया था और 59.15फ़ीसद और 4.5 करोड़ पुरुषों ने वोट किया था। प्रदेश में यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। साल 2012 के विधानसभा चुनावों में यही ट्रेंड देखने को मिला था। उस वक्त राज्य में 12.74 करोड़ वोटर थे। इसमें सात करोड़ पुरुष और 5.7 करोड़ महिलाएं थीं। साल 2012 के चुनाव में महिला वोटरों की संख्या कम होने के बावजूद भी उनकी वोटिंग में भागीदारी ज्यादा थी। महिला मतदाताओं ने 60फ़ीसद यानि 4.12 करोड़ और पुरुषों में 58.68फ़ीसद वोटिंग प्रतिशत रहा। यहफ़ीसद साल 2007 की तुलना में ज्यादा था। राज्य में जिस वक्त बसपा सत्ता में आई थी उस समय 5 करोड़ महिला मतदाताओं में से लगभग 42फ़ीसद वोट करने निकली थीं।
और पढ़ेंः उत्तर प्रदेश के ‘विकास’ के दावों की पोल खोलते सरकारी आंकड़े
महिला विधायकों की भागीदारी
उत्तर प्रदेश राज्य में कुल 403 विधानसभा सीट है। विधानसभा की कुल सीट में जीतनेवाली महिला उम्मीदवारों की संख्या चुनाव दर चुनाव बढ़ रही है। हालांकि, प्रतिनिधित्व के लिहाज से यह संख्या आज भी बहुत कम है। इकॉनामिक्स टाइम्स के मुताबिक़ चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि आज़ादी के बाद साल 1952 में हुए पहले यूपी विधानसभा चुनाव में 20 महिलाएं चुनी गई थीं। उसके बाद भी सदन में महिलाओं की उपस्थिति ना के बराबर रही। साल 1985 में 31 महिलाएं चुनी गईं। साल 1989 में यह संख्या केवल 18 हो गई और आगे 1991 में तो केवल दस महिला ही सदन में पहुंच पाई थी। साल 1993 के बाद से लगातार महिला विधायकों की संख्या में इज़ाफा होता गया है। साल 1993 में 14 महिलाएं चुनी गईं। साल 1996 में यह संख्या 20 तक पहुंची और 2002 में 26 महिला विधायक बनीं। हालांकि, साल 2007 में यह संख्या घटकर मात्र तीन रह गई।
सूबे की सियासत में महिला वोटर की सक्रियता बढ़ने के कारण हर दल महिला वोट को पाले में करना चाहता है। सभी राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को ध्यान में रखकर घोषणाएं कर रही हैं। महिलाओं के स्वावलंबन, शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य पर बड़े-बड़े ऐलान किए जा रहे हैं।
साल 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से 33 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया था, जिनमें से 22 ने जीत हासिल की थी। पिछले विधानसभा चुनाव में अब तक की सबसे ज्यादा महिला विधायकों ने जीत दर्ज की। 17वीं उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 38 महिला विधायक सदन पहुंचीं। बीजेपी की ओर से सबसे ज्यादा 43 महिलाओं को चुनाव टिकट दिए गए। बीजेपी की 43 महिला उम्मीदवारों में से 32 ने जीत हासिल की थी। बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस की दो-दो महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। सपा और अपना दल की एक-एक महिला उम्मीदवार विधानसभा पहुंची थीं।
प्रदेश के चुनाव में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत साल 1991 में 44.2फ़ीसद था और 2019 तक यह 59.56 तक पहुंच गया है। महिला वोटिंग में पिछले तीन दशकों में 15फ़ीसद की बढ़त हुई है। महिलाओं में बढ़ती राजनीतिक चेतना के साथ-साथ चुनावों में उनकी रुचि का यह साफ संकेत है। महिलाएं राजनीतिक रूप से लामबंद हो रही हैं और निर्णायक वोट बैंक के तौर पर उभर रही हैं। यह सिलसिला साल 2017 और साल 2019 में भी जारी रहा। आंकड़ों से यह बात साफ हो गई है कि महिलाओं का जिस दल की ओर झुकाव रहा है वह सत्ता में पहुंचने में कामयाब रहा है। पिछले आम चुनाव और राज्य चुनाव के परिणाम यह बात साफ करते हैं।
और पढ़ेंः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव : हमेशा की तरह आज भी मुसहर समुदाय के नेतृत्व का ज़िक्र तक नहीं है
महिलाओं का चुनाव में बढ़ता प्रतिनिधित्व उनकी सजगता का ही परिणाम है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से उनके मुद्दों पर चर्चा ज्यादा होगी। महिला प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी होने से कानून निर्माताओं के स्तर पर महिला के पक्ष का दायरा बढ़ेगा।
हर दल अपने तरीके से लुभा रहा महिला वोटरों को
सूबे की सियासत में महिला वोटर की सक्रियता बढ़ने के कारण हर दल महिला वोट को पाले में करना चाहता है। सभी राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को ध्यान में रखकर घोषणाएं कर रही हैं। महिलाओं के स्वावलंबन, शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य पर बड़े-बड़े ऐलान किए जा रहे हैं। यह घोषणाएं साफ जाहिर करती हैं कि पार्टियां महिला मतदाताओं की अहमियत को नकार नहीं रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों जगहों पर महिला मतदाताओं की वोट को अपने पाले में करने के लिए पार्टियां घोषणा कर रही हैं।
सत्ताधारी भाजपा ने महिला वोट की अहमितयत के कारण ही चुनाव घोषणा से ठीक पहले प्रधानमंत्री अपनी रैली में स्कीम वर्कर्स के लिए योजनाएं घोषित की। समाजवादी पार्टी ने महिलाओं के लिए विशेष तौर पर घोषणापत्र में संकल्प लिए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती महिला वोटर्स की सुरक्षा, सम्मान और समानता के मुद्दों को उठा रही हैं। एक प्रदेश जहां मायावती चार बार मुख्यमंत्री रहीं वहां महिला वोटरों की अहमियत अपने-आप बढ़ जाती है। यही नहीं हर छोटे से छोटा दल महिलाओं के कल्याण के लिए अपनी पार्टी की ओर से वादें कर रहा है।
और पढ़ेंः बिहार विधानसभा चुनाव 2020 : जब टिकट ही नहीं मिलता तो सदन तक कैसे पहुंचेंगी महिलाएं
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में साल 1993 के बाद से महिला वोटफ़ीसद 50फ़ीसद तक बना हुआ है। साल 2007 में यह नीचे रहा था लेकिन साल 2017 की विधानसभा में सबसे अधिक रहा। पार्टियां भी चुनाव में महिला उम्मीदवारों पर दांव लगा रही है। प्रियंका गांधी के 40फ़ीसद महिला उम्मीदवार के बाद से तो प्रदेश की राजनीति में महिला वोटरों पर सभी पार्टियों का ध्यान बना हुआ है। साल 2022 के उम्मीदवारों की लिस्ट जारी होनी शुरू हो गई है। महिला उम्मीदवारों को टिकट देकर हर पार्टी महिला सशक्तिकरण की बात कर रही है।
महिलाओं का चुनाव में बढ़ता प्रतिनिधित्व उनकी सजगता का ही परिणाम है। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से उनके मुद्दों पर चर्चा ज्यादा होगी। महिला प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी होने से कानून निर्माताओं के स्तर पर महिला के पक्ष का दायरा बढ़ेगा। महिलाओं की सियासत में बढ़ती भागीदारी आंकड़ों में स्पष्ट तौर पर दिखती है। महिलाएं धीरे-धीरे अपने प्रतिनिधित्व को बढ़ाकर अपने हिस्से की राजनीति कर रही हैं। बराबरी का रास्ता बहुत लंबा है लेकिन शुरुआत हो चुकी है।
और पढ़ेंः क्या सच में महिलाओं के लिए सुरक्षित हो गया है उत्तर प्रदेश?
तस्वीर साभारः indiaspendhindi.com
संदर्भः