इतिहास दर्शन रंगनाथनः ऑर्गेनिक केमिस्ट्री के क्षेत्र में काम करनेवाली भारत की शुरुआती महिला वैज्ञानिक| #IndianWomenInHistory

दर्शन रंगनाथनः ऑर्गेनिक केमिस्ट्री के क्षेत्र में काम करनेवाली भारत की शुरुआती महिला वैज्ञानिक| #IndianWomenInHistory

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में जहां एक धारणा है कि विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित केवल पुरुषों के क्षेत्र हैं। वहां, दर्शन रंगनाथन उन महिलाओं में हैं जिन्होंने न इस धारणा को गलत साबित किया है बल्कि अपने शोध में सफलता हासिल कर विज्ञान जगत में अपनी एक पहचान भी बनाई।

क्या आपने कभी कटहल खाया है? खाया नहीं है तो देखा तो जरूर होगा और उससे आती सुंगध को भी महसूस किया होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कटहल में कई ख़ास रासायनिक यौगिक साइक्लोआर्टनाल होता है। इसका उपयोग फार्मास्यूटिक्स में स्टेरॉयड बनाने में किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी खोज किसने की थी, अगर नहीं तो उनका नाम हैं दर्शन रंगनाथन। भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में जहां एक धारणा है कि विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित केवल पुरुषों के क्षेत्र हैं। वहां, दर्शन रंगनाथन उन महिलाओं में हैं जिन्होंने न इस धारणा को गलत साबित किया है बल्कि अपने शोध में सफलता हासिल कर विज्ञान जगत में अपनी एक पहचान भी बनाई। दर्शन रंगनाथन एक भारतीय रसायनिक वैज्ञानिक हैं जो बायो-ऑर्गैनिक केमिस्ट्री के क्षेत्र में अपने काम के लिए पूरी दुनिया में जानी गईं।

शुरुआती जीवन

दर्शन रंगनाथन का जन्म 4 जून 1941 में नई दिल्ली के करोल बाग में विद्यावती मार्कन और शांतिस्वरूप मार्कन के घर हुआ था। वह अपने माता-पिता की तीसरे नंबर की संतान थीं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा आर्यसमाज गर्ल्स प्राइमरी स्कूल हुई। इसके बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई इंद्रप्रस्थ हायर सेकेंडरी स्कूल से की। यहां उनके शिक्षक एस.वी.एल.रतन का उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने दर्शन को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित किया।

आगे चलकर दर्शन रंगनाथन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इस विषय में स्नातक किया। साथ ही यहीं से रसायन विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। अपनी पीएचडी के दौरान उन्होंने मिरांडा कॉलेज में भी पढ़ाया था। अकादमिक क्षेत्र में उत्कृष्ठ काम करने के लिए उन्हें रॉयल कमीशन की प्रतिष्ठित सीनियर रिसर्च स्कॉलरशिप मिलीं। इसके तहत उन्होंने इंपीरियल कॉलेज, लंदन में प्रोफेसर डी.एच.आर. बॉर्टन के साथ काम किया।

काम और रिसर्च

लंदन में अपने काम के दौरान उन्होंने जैविक प्राकृतिक उत्पादों पर किया। यहीं पर उन्होंने अपने शोध में कटहल को केंद्र में रखकर साइक्लोआर्टनाल की संरचनात्मक व्याख्या की। इसी दौरान उनकी व्याख्या के आधार पर डॉ बार्टन साइक्लोआर्टनाल की वास्तविक संरचना का अध्ययन करना चाहते थे। लेकिन लंदन में कटहल न होने के कारण वे ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पा रही थी। इस समस्या के समाधान के लिए दर्शन ने दिल्ली में अपनी मां को एक पत्र लिखा और उनके गृहनगर से लंदन डाक द्वारा कटहल पहुंचाया गया। लंदन में अपना शोध काम पूरा कर वह दिल्ली वापस लौटी और आगे के काम में जुट गई।

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साल 1969 में लंदन से वापस लौटकर उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक के पद पर काम करना शुरू कर दिया। इसी दौरान 1970 में दिल्ली में प्राकृतिक उत्पादों पर ‘इंडो-सोवियत द्विराष्ट्रीय सम्मेलन’ में इनकी मुलाकात डॉ सुब्रमण्यम रंगनाथन से हुई। इसके बाद इन दोनों ने शादी कर ली। शादी के बारह दिन बाद दर्शन रंगनाथन आईआईटी कानपुर से फेलो के तौर पर जुड़ी। यहां दोनों पति-पत्नी मिलकर शोध के क्षेत्र में काम करने लगे। दोनों ने कई रिसर्च पेपर और किताबें साथ पब्लिश की।

दर्शन रंगनाथन अपने समय की भारत की सबसे प्रमुख रसायन वैज्ञानिक थीं। उन्होंने दुनिया के उल्लेखीन जर्नल में अपना काम प्रकाशित करा कर विश्वभर में नाम कमाया। पितृसत्तात्मक समाज के बनाए गए पूर्वाग्रहों को गलत साबित करते हुए वह अपने काम में लगी रहीं।

इसके अलावा आर्गेनिक रसायन विज्ञान से जुड़े कई कोर्स और लेक्चर भी शुरू किए। उन्होंने साल 1972 में चैलेंजिंग प्रॉब्लम इन ऑर्गेनिक रिएक्शन मैकानिजम, 1976 में बॉयोसिंथेसिसः द सिंथेसिसटिक कमैस्टि चैलेंज और 1980 में द फ्यूचर चैलेंजिंग प्रॉब्लम इन ऑर्गेनिक रिएक्शन मैकानिजम पब्लिश किया। साथ ही विश्वभर में महशूर करेंट ऑर्गेनिक केमेस्ट्री हाईलाइट्स को भी मिलकर संपादित किया।

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आईआईटी कानपुर में दर्शन रंगनाथन अपना रिसर्च का काम एक फेलोशिप के तौर पर कर रही थीं। तमाम अनुभव और उपलब्धियों के बावजूद वह वहां एक फैक्लटी के पद पर काम नहीं कर सकी। आईआईटी कानुपर में एक अलिखित और अनौपचारिक नियम के अनुसार पति-पत्नी अनुसंधान संस्थानों में एक ही विभाग में काम नहीं कर सकते थे। हितों का टकराव और पेशेवर गलत व्यवहार को रोकने जैसी स्थितियां सामने रखी गईं। पितृसतात्मक समाज की इस नियमावली ने दर्शन रंगनाथन के रिसर्च के प्रति लगन में कोई बाधा नहीं आने दी। इन सभी परेशानियों, पूर्वाग्रहों और बाधाओं को पार करने हुए उन्होंने अपनी आगे की खोज जारी रखी। आगे चलकर ‘इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस’ से जुड़कर स्वतंत्र रिसर्च पेपर पब्लिश किए।

अपने जीवन में दर्शन रंगनाथन को अनेक फेलोशिप मिली थीं, जिसके तहत उन्होंने रसायन विज्ञान में अपने शोध को जारी रखा। उन्हें इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस (1991), द इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी (1996), जवाहर लाल नेहरू बर्थ सेन्टीनरि विजिटिंग फेलोशिप, सुखदेव इन्डाउमंट लेक्चर शामिल हैं। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अतुल्यनीय योगदान के लिए साल 2000 में ‘थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंस अवार्ड’ (टीडब्ल्यूएएस) तेहरान, ईरान की ओर से सम्मानित किया गया। साल 1992 में दर्शन रंगनाथन को उनकी पहली नौकरी रिजनल रिसर्च लैबोरेटरी, त्रिवेंद्रम (वर्तमान में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डिसीपिलीनिरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी) में मिली। जहां उन्होंने बॉयो आर्गेनिक में रिसर्च के लिए अपनी लैबोटरी स्थापित की। संस्थान के समर्थन पर उन्होंने ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन केमिकल सोसयटी’ में कई लेख प्रकाशित किए। लेकिन उनके इस काम पर उस समय बहुत लोगों का ध्यान नहीं गया।

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दर्शन की सारी रिसर्च फेलोशिप के माध्यम हुई। उन्हें काम के लिए देश में कोई सम्मान नहीं मिला लेकिन उन्होंने इस बात की कभी परवाह नहीं की। दर्शन रंगनाथन ने आर्गेनिक रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अपनी लगन से काम करके अनेक उपलब्धियां अपने नाम कर भारतीय समाज में विज्ञान के क्षेत्र में कदम रखने के लिए अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं।

1998 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी से डिप्टी डॉयरेक्टर के रूप में जुड़ीं। वह अपने परिवार के साथ हैदराबाद में रहने लगी थी। इस दौरान उन्होंने अमेरिका की डॉ ईसाबेल कार्ले के साथ मिलकर यूएस नवल रिसर्च लेबोटरी, वाशिंगटन के लिए रिसर्च की। हालांकि, इन दोनों की व्यक्तिगत रूप से कभी मुलाकात नहीं हुई थी लेकिन दोनों ने मिलकर कई पेपर पब्लिश की किए। इन दोनों ने पत्र-व्यवहार कर ही अपना सारा काम एक साथ किया।

टीडब्ल्यूएएस तेहरान में लेक्चर देते समय उन्हें बोलने में बहुत परेशानी हो रही थी। बाद में भारत लौटकर उन्होंने हैदराबाद में अपने स्वास्थ्य की जांच करवाई। जांच में पाया गया कि वह ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही है। कैंसर की लड़ाई में उनके पति और उनका बेटा अंतिम वक्त तक साथ रहे। कैंसर से लड़ते हुए 4 जून 2001 में साठ साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

दर्शन रंगनाथन अपने समय की भारत की सबसे प्रमुख रसायन वैज्ञानिक थीं। उन्होंने दुनिया के उल्लेखीन जर्नल में अपना काम प्रकाशित करा कर विश्वभर में नाम कमाया। पितृसत्तात्मक समाज के बनाए गए पूर्वाग्रहों को गलत साबित करते हुए वह अपने काम में लगी रहीं। आईआईटी कानपुर में पदोन्नति न मिलने के कारण उन्होंने अपना काम नहीं रोका। उन्होंने यूरिया साइकिल की कामकाजी संरचना विकसित कर बायो-आर्गेनिक केमेस्ट्री में विशेष योगदान दिया। उन्होंने सुपर मॉड्यूलर एसेंबली, मॉल्यूकर डिजाइन, केमिकल सिम्यूलेशन ऑफ की बॉयलॉजिकल प्रोसेस, सिन्थसिस ऑफ फक्शनल हाईब्रिड पेप्टाइड और सिन्थसिस ऑफ नैनोट्यूब को विकसित किया। दर्शन की सारी रिसर्च फेलोशिप के माध्यम हुई। उन्हें काम के लिए देश में कोई सम्मान नहीं मिला लेकिन उन्होंने इस बात की कभी परवाह नहीं की। दर्शन रंगनाथन ने आर्गेनिक रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अपनी लगन से काम करके अनेक उपलब्धियां अपने नाम कर भारतीय समाज में विज्ञान के क्षेत्र में कदम रखने के लिए अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं।

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स्रोत:

medium.com

Darshan Ranganathan

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