अधीनता, असमानता, भेदभाव, क्रांति और विरोध का अपना एक इतिहास है। इस भूगोल में महिलाएं अपने व्यक्तित्व की पहचान के लिए लंबे समय से संघर्ष करती आ रही हैं। यह संघर्ष आज भी चल रहा है। महिलाओं का अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना, सड़कों पर धरने-प्रदर्शन, रैलियां निकालने का अपना एक विस्तृत इतिहास है। ये आंदोलन महिलाओं की स्वायत्तता बनाने, उत्पीड़न से मुक्ति और महिलाओं के अधिकारों की अलग-अलग आवाज का प्रतिनिधि करते रहे हैं। कहां से महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी शुरू की। कैसे उन्होंने अपने दृढ़ हौसलों से पितृसत्तात्मक दुनिया में अपने लिए समानता की मांग की शुरुआत की। आइए जानते हैं महिलाओं के विद्रोह के इतिहास से जुड़े कुछ आंदोलनों के बारे में।
महिला अधिकार आंदोलन
महिला अधिकार आंदोलन, जिसे महिला मुक्ति आंदोलन भी कहा जाता है। यह आंदोलन एक विविध सामाजिक आंदोलन था। इसकी शुरुआत मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। इसमें शांतिपूर्ण तरीके से गुलामी, नस्लभेद और महिलाओं को दिए गए दूसरे दर्जे जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर विरोध-प्रदर्शन किए गए। 1960 और 70 के दशक में महिलाओं के लिए समान अधिकारों, समान अवसर और महिलाओं के लिए निजी स्वतंत्रता की मांग की गई। महिलाओं के लिए कानूनी अधिकार जैसे संपत्ति का अधिकार, तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी के मुद्दे उठाए गए।
महिलाओं का अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना, सड़कों पर धरने-प्रदर्शन, रैलियां निकालने का अपना एक विस्तृत इतिहास है। ये आंदोलन महिलाओं की स्वायत्तता बनाने, उत्पीड़न से मुक्ति और महिलाओं के अधिकारों की अलग-अलग आवाज का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।
कई महिलाएं पेशेवर अध्यापक थीं लेकिन 19वीं सदी तक महिलाओं के लिए कई पेशों में काम करने तक की मनाही थी। उदाहरण के लिए बहुत से राज्यों में महिलाओं को कानून पढ़ना मना था। महिलाएं लोकतंत्र में वंचित नागरिक थीं जिन्हें वोट करने का अधिकार भी नहीं था। हालांकि महिलाओं ने 1770 में ही प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। 1848 में न्यूयार्क के सेनेका फॉल में महिलाओं के लिए मताधिकार के लिए आंदोलन शुरू हुआ। अगले 72 वर्षों तक, अगस्त 1920 में 19वें संशोधन तक महिलाओं ने वोट के अधिकार के लिए सक्रिय रूप से अपना आंदोलन जारी रखा।
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मिस अमेरिका का विरोध
दूसरी लहर की नारीवादियों द्वारा सबसे प्रसिद्ध विरोध प्रदर्शनों में से एक ‘ब्रा बर्निग मिस अमेरिका मार्च’ है। 7 सिंतबर 1968 को महिलाओं ने अटलांटिक सिटी कन्वेंशन सेंटर के सामने ‘मिस अमेरिका प्रतियोगिता’ के विरोध में प्रदर्शन किया गया था। यह विरोध प्रदर्शन ‘न्यूयार्क रेडिकल वुमेन’ द्वारा आयोजित किया गया था। इस आंदोलन में नारीवादियों ने ‘फ्रीडम ट्रैश कैन’ के चारों ओर मार्च किया। इसमें उन्होंने उन चीज़ों को फेंक दिया जिन्हें वे महिला के उत्पीड़न का प्रतीक मानती थीं जैसे उंची एड़ी के सैंडल, मेकअप, हेयरस्प्रे, ब्रा और अन्य समान। प्रदर्शनकारियों ने कॉन्टेस्ट हॉल के अंदर वीमेंस लिबरेशन का बैनर लहराया। विरोध-प्रदर्शन को पूरे देश के समाचार पत्रों में कवर किया गया। ‘ब्रा बर्निंग’ की बात ने लोगों का ध्यान खींचा और यह बात नारीवादी संघर्ष की अहम घटना बनकर उभरी।
द लेडीज होम जर्नल सिट-इन (1970)
‘लेडीज होम जर्नल’ में जिस तरह महिलाओं को चित्रित किया जा रहा था उससे तंग आकर महिलाओं के एक समूह ने धरना-प्रदर्शन करना तय किया। 18 मार्च 1970 को नारीवादियों ने ‘द लेडीज होम जर्नल’ की कार्यशैली के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और उसके ऑफिस के सामने धरना शुरू कर दिया। इसमें सौ से अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया था। प्रदर्शनकारियों ने 11 घंटे तक लगातार दफ्तर की घेराबंदी की गई थी। नारीवादियों की प्रमुख मांगों में शामिल थीं- महिला एडिटर इन चीफ की नियुक्ति और संपादकीय टीम में महिलाओं की नियुक्ति, महिलाओं के विषय पर लेख लिखने के लिए महिलाओं को वरीयता, पुरुष पूर्वाग्रहों को नज़रअंदाज करने की मांग, टीम में ब्लैक महिलाओं की नियुक्ति, महिलाओं के वेतन बढ़ाने की मांग, फ्री डे-केयर सर्विस की मांग, महिलाओं को नीचा दिखाने वाले विज्ञापन या महिलाओं का शोषण करने वाली कंपनियों के विज्ञापन चलाना बंद करना।
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समान अधिकार संशोधन मार्च
नारीवादी आंदोलन की दूसरी लहर के प्रमुख कारणों में से एक ‘समान अधिकार संशोधन’ की मांग भी थी। समान अधिकार संशोधन, अमेरिका के संविधान में एक प्रस्तावित संशोधन था जिसमें सभी नागरिकों के लिए बिना किसी लैंगिक भेदभाव के समान कानूनी अधिकारों को देने के लिए बनाया गया था। महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने की मांग में यह संशोधन मील का पत्थर बना। इसका पहला ड्राफ्ट एलिस पॉल और क्रिस्टल ईस्टमैन ने दिसंबर 1923 में क्रांग्रेस के सामने रखा था। साल 1972 में कांग्रेस के द्वारा पारित किया गया। इस संशोधन का इलिनोइस जैसे कुछ राज्यों ने हठपूर्वक विरोध किया।
‘नेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर वीमन’ जैसे संगठन ने इस ओर ध्यान दिया। मई 1976 में पहला विशाल प्रदर्शन स्प्रिंगफिल्ड में हुआ। इस प्रदर्शन में ‘नेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर वीमन’ की ओर से 16,000 प्रदर्शनकारियों ने हिस्सा लिया। इस संगठन की ओर से समान अधिकारों की मांग में मार्च चलते रहे। 1980 में ‘मदर्स डे’ पर शिकागो में समान अधिकारों की मांग में 90,000 लोग सड़कों पर उतरें। हालांकि, इलिनोइस लगातार अपना विरोध जारी रखे हुए था, लेकिन समान अधिकार संशोधन की मांग के लिए होनेवाले मार्च महिला आंदोलनों के प्रयासों को परिभाषित करने के लिए मुख्य बना।
‘टेक बैक द नाइट’
‘टेक बैक द नाइट’ एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आंदोलन और संगठन है। इसका लक्ष्य सभी रूपों में यौन हिंसा और घरेलू हिंसा को समाप्त करना है। हर साल दुनिया के 30 से अधिक देशों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कार्यक्रम में बलात्कार, यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के खिलाफ सीधी कार्रवाई की मांग के लिए विरोध-प्रदर्शन, रैलियां निकलती हैं। साल 1970 से वर्तमान तक ‘टेक बैक द नाइट’ के झंडे तले रात में मार्च और रैलियां महिला समानता की मांग में दुनियाभर में निकलती आ रही हैं। 1978 में ‘टेक बैक द नाइट’ इवेंट्स के तहत सैन फ्रांसिस्को में पोर्नोग्राफी के खिलाफ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ।
‘टेक बैक द नाइट’ का प्रमुख मार्च 1 अक्टूबर 1975 में फिलाडेल्फिया, पेनसिल्वेनिया में आयोजित किया गया था। मार्च में एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट सुज़ैन अलेक्जेंडर स्पीथ की अकेले घर जाते समय चाकू से हुई हत्या के बाद महिलाएं बड़ी संख्या में रात में सड़कों पर मोमबत्ती लेकर निकलीं। यह रैली महिलाओं के खिलाफ होनेवाली यौन हिंसा की घटनाओं के विरोध में थी। ‘टेक बैक द नाइट’ मार्च वर्तमान में भी हर साल दुनियाभर के कई शहरों में होता है। इसमें महिलाएं सड़क पर यौन हिंसा के विरोध में रात में हाथ में मोमबत्ती लिए रैलियां निकालती हैं।
द मार्च फॉर वीमन्स लाइव्स
महिलाओं के शरीर की स्वायत्ता और प्रजनन अधिकारों की मांग के लिए ‘वीमन्स लाइव्स’ मार्च निकाला गया। संख्या बल में ताकत होती है और इस मार्च में शामिल महिलाओं की संख्या यह बात मज़बूत करती दिखी। 25 अप्रैल 2005 में नेशनल मॉल, वाशिंगठन पर 500,000 से 800,000 के बीच प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरें। इस प्रदर्शन में सुसान सरंडन, व्हूपी गोल्डबर्ग और कैथलीन टर्नर जैसी हस्तियों ने भी भाग लिया था। इसका आयोजन बड़ी संख्या में महिला संगठनों ने मिलकर किया था। इस विरोध-प्रदर्शन में विशेष रूप से तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की गर्भसमापन-विरोधी नीतियों को टारगेट किया गया था।
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तस्वीर साभारः Literary Hub