भारत को नई दिल्ली के अलावा एक और राजधानी बनानी चाहिए। ऐसा करना जलवायु, सुरक्षा, उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच के तनाव को कम करने के लिहाज से बहुत जरूरी है। यह विचार दिया था बाबा साहेब आंबेडकर ने। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध ने किसी भी देश के लिए दो राजधानी बनाने के सिद्धांत (Two capital concept) को चर्चा का विषय बना दिया है क्योंकि इन दोनों देश के बीच युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान यूक्रेन की राजधानी कीव को झेलना पड़ा है। आइए जानते हैं कि कैसे आज से लगभग 72 साल पहले विज़नरी बाबा साहब आंबेडकर ने भारत की भी दो राजधानी होनी चाहिए जैसे विषय पर अपने विचार रखे थे।
मुगलों-अंग्रेजों के समय में रहीं दो राजधानियां
देश में राज्यों का पुनर्गठन करने की प्रक्रिया चल रही थी। उन्हीं दिनों बाबा साहब ने देश की दो राजधानी बनाने का विचार दिया। उनका कहना था कि भारत में अंग्रेज़ों के आने से पहले हमेशा से ही दो राजधानियां रही हैं। अंग्रेजों के आने पर भी दो राजधानी का सिद्धांत जारी रहा। अंग्रेजों ने कलकत्ता (अब कोलकाता) और शिमला को अपनी राजधानी बनाया। यहां तक कि जब अंग्रेजों ने कलकत्ता छोड़ 1911 में दिल्ली को नई राजधानी बनाया, उस समय भी शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए रखा। बाबा साहब का तर्क था कि जलवायु संबंधी कारणों के चलते मुग़लों और अंग्रेजों ने दो राजधानी का सिद्धांत अपनाया था क्योंकि दिल्ली की गर्मी से बचने के लिए अंग्रेजों ने भी शिमला को राजधानी बनाया था।
दो राजधानी बनाने के पीछे बाबा साहेब का दूसरा तर्क था कि मुगलों या अंग्रेजों के समय में जनता की सरकार नहीं थी लेकिन आज़ादी के बाद देश में जनता द्वारा चुनी गई सरकार है और जनता की सुविधा भी एक अहम पहलू है। दक्षिण भारतीयों की भावनाओं के लिहाज से दूसरी राजधानी होनी चाहिए। बाबा साहब कहा करते थे कि दक्षिण भारतीयों का विचार है कि देश की राजधानी उनसे बहुत दूर है और वह ऐसा महसूस करते हैं कि उन पर उत्तर भारतीयों का शासन है।
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युद्ध की स्थिति में दिल्ली दुश्मन देशों के लिए आसान टारगेट
तीसरा तर्क सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। वह यह था कि दिल्ली एक सहज भेद्य स्थान है। युद्ध की स्थिति में कोई भी दुश्मन देश राजधानी को ही सबसे पहले टारगेट करना चाहते हैं। दिल्ली की दूरी पड़ोसी देशों के लिए बहुत ही कम है जहां पड़ोसी देश युद्ध की स्थिति में बड़ी आसानी से बमबारी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में यदि भारत को युद्ध का सामना करना पड़ा तो भारत सरकार को दिल्ली छोड़कर कहीं और अपनी सुविधा के लिए राजधानी की तलाश करनी होगी।
‘हैदराबाद’ बने भारत की दूसरी राजधानी
दूसरी राजधानी के लिए क्या बंबई (अब मुबंई) के नाम विचार किया जा सकता है। इस पर बाबा साहब ने कहा था कि बंबई एक बंदरगाह है और इस लिहाज से ये जगह राजधानी बनाने के लिए सही नहीं हो सकती। उनकी नज़र में हैदराबाद सबसे सटीक जगह थी। उनका मानना था कि हैदराबाद भारत की राजधानी होने की सभी आवश्यकताएं पूरी करता है।
हैदराबाद की सभी राज्यों से लगभग समान दूरी है। उनका ये भी मानना था कि प्रतिरक्षा की दृष्टि से हैदराबाद को दूसरी राजधानी बनाना भारत सरकार को सुरक्षा प्रदान करेगी। साथ ही दक्षिण भारतीय लोगों को भी यह संतोष होगा कि देश की सरकार कुछ समय के लिए उनके यहां से भी चलती है। बाबा साहेब का कहना था कि हैदराबाद में संसद भवन को छोड़कर तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं जो दिल्ली में हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि यह काम इसी समय हो जाए जब हम देश में राज्यों का पुनर्गठन कर रहे हैं।
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पहले राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर बने 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश
बता दें कि 1950 का दशक था जब देश में राज्य पुनर्गठन आयोग अस्तित्व में आया। 22 दिसंबर 1953 में न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ। इस आयोग के तीन सदस्य न्यायमूर्ति फजल़ अली, हृदयनाथ कुंजरू और केएम पाणिक्कर थे। इस आयोग ने 30 दिसंबर 1955 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग ने राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक और वित्तीय व्यवहार्यता, आर्थिक विकास, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा और भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार बनाया। सरकार ने इसकी संस्तुतियों को कुछ सुधार के साथ मंजूर कर लिया। इसके बाद 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद ने पास किया। इसके तहत 14 राज्य तथा 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।
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तस्वीर साभार: Indian Today
स्रोत:बाबा साहब डॉ. आंबेडकर, संपूर्ण वांग्मय, खंड-1