अगर आप समाज, राजनीति और मानवाधिकार के मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाते हैं तो आपको विरोध का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन अगर एक महिला और पेशे से पत्रकार हैं और इन विषयों पर लिखती और बोलती हैं तो आपको अपने पुरुष समकक्षों के मुकाबले ज्यादा बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है। सत्ता के ख़िलाफ़ हो या सत्ता के साथ हो महिला पत्रकारों को दुनियाभर में उनके काम के लिए दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। भारत में तो पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद भी उनकी ऑनलाइन ट्रोलिंग हुई थी। उनकी मौत का मज़ाक उड़ाते हुए एक ख़ास विचारधारा के लोगों द्वारा उन्हें अपशब्द कहे गए थे। बलात्कार और मौत की धमकियां, स्त्री विरोधी व्यवहार, क्षेत्रीयता, नस्ल, सेक्सिट जोक्स, तस्वीरों और ऑनलाइन ट्रोलिंग से महिला पत्रकारों को केवल उनके काम की वजह से परेशान करने का चलन पूरी दुनिया में बन गया है।
हाल ही में यूनेस्को और इंटरनैशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट (आईसीएफजे) की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है जिसमें महिला पत्रकारों को अपने काम की वजह से किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है उसका ज़िक्र किया गया है। ‘द चिलिंगः ए ग्लोबल स्टडी ऑफ ऑनलाइन वायलेंस अगेन्सट वीमन जर्नलिस्ट‘ के नाम से इस रिपोर्ट को जारी किया गया है। महिला पत्रकारों के ख़िलाफ ऑनलाइन लैंगिक हिंसा का यह वैश्विक अध्ययन तीन वर्ष किया गया जिसमें 15 देशों की महिला पत्रकार शामिल रही। इसमें लगभग 1,100 महिला पत्रकारों ने हिस्सा लिया हैं। दो बड़े डेटा केस स्टडी में इसमें 2.5 मिलियन सोशल मीडिया पोस्ट का अध्ययन किया गया है। अलग-अलग देशों के 15 मामलों का विस्तृत अध्ययन किया है।
रिपोर्ट के अनुसार 73 फीसदी महिला पत्रकारों को अपने काम की वजह से ऑनलाइन हिंसा का सामना करना पड़ा। इस सर्वे में शामिल महिला पत्रकारों में से 25 फीसदी ने शारीरिक और 18 फीसदी यौन हिंसा की धमकियों का सामना किया। पांच में से हर एक महिला ( लगभग 20 प्रतिशत) ने कहा कि ऑनलाइन होनेवाली घटनाओं का उन पर ऑफलाइन प्रभाव भी पड़ा। जो महिलाएं जेंडर (47 फीसदी), राजनीति और चुनाव (44 फीसदी) और मानवाधिकार और सामाजिक मुद्दों (31 फीसदी) पर काम करती हैं उन्हें ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ता है।
अध्ययन के अनुसार ऑनलाइन होनेवाली हिंसा के असर को लेकर सर्वे में शामिल महिला पत्रकारों में से 26 फीसदी का मानना है कि उन्हें मानसिक अस्वस्थता से गुज़रना पड़ा। 12 फीसदी ने माना है कि हिंसा की वजह से उन्हें डॉक्टर या मनोचिकित्सक की सहायता लेनी पड़ी।
सोशल मीडिया से बनाई दूरी
सर्वेक्षण में शामिल महिला पत्रकारों ने सबसे अधिक बार (30 प्रतिशत) कहा है कि वे ऑनलाइन हिंसा का जवाब देती हैं। 20 प्रतिशत ने बताया है कि वे ऑनलाइन माध्यमों से हट गई हैं और 18 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने ऑडियंस इंगेजमेंट से विशेषतौर पर परहेज कर लिया है। ऑनलाइन हिंसा पूरी तरह से नौकरी और काम करने की क्षमता को प्रभावित करती है। अध्ययन में पाया गया है कि ऑनलाइन हिंसा की वजह से चार फीसदी महिला पत्रकारों ने अपनी नौकरी छोड़ी है और दो फीसदी ने पत्रकारिता छोड़ने तक का फैसला लिया है।
मानसिक स्थिति पर पड़ता है गहरा असर
अध्ययन के अनुसार ऑनलाइन हिंसा के असर को लेकर सर्वे में शामिल महिला पत्रकारों में 26 फीसदी का मानना है कि उन्हें मानसिक अस्वस्थता से गुजरना पड़ा। 12 फीसदी ने माना है कि हिंसा की वजह से उन्हें डॉक्टर या मनोचिकित्सक की सहायता लेनी पड़ी। इससे आगे 11 फीसदी यह भी माना है कि मानसिक तनाव के वजह से उन्हें अपने काम से ब्रेक भी लेना पड़ा। लगभग 48 फीसदी महिला पत्रकारों ने बताया है कि सोशल मीडिया पर उन्हें निजी संदेश भेजकर परेशान भी किया गया।
अमर उजाला में काम करने वाली डिम्पल का कहना है, “यह दौर सूचनाओं का है। हर इंसान, हर वक्त इंटरनेट की पहुंच में है। आप बतौर पत्रकार अपनी कोई राय या कुछ भी सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं तो ट्रोलिंग होना आम हो गया है। हम कुछ लिखते हैं जो किसी एक इंसान को पसंद नहीं आया और उसकी एक प्रतिक्रिया के बाद पूरा नोटिफिकेश फीड बदल जाता है। फेसबुक पर कई बार अपनी राय रखने की वजह से इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा है। पहले तो इनबॉक्स में महिला पत्रकारों को गालियों और धमकियों का सामना करना पड़ता था अब तो खुलेआम पोस्ट पर कमेंट करके अभद्रता की जाती है। इस तरह के व्यवहार के बाद मैं अब ऑनलाइन स्पेस में बहुत सोच-समझकर ही बातें रखती हूं।”
भारत में महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ हिंसा
डीआरएटी सेंटर फॉर जर्नलिज्म एंड ट्रॉमा के अनुसार भारतीय खोजी पत्रकार राणा अयूब अपनी लैंगिक पहचान, धर्म और पेशे की वजह से दुनिया के सबसे प्रताड़ित किए जानेवाले पत्रकारों में से एक हैं। उनके ख़िलाफ़ ऑनलाइन हिंसा अब पीछा करने और राज्य से जुड़े कानूनी उत्पीड़न के रूप में ऑफलाइन हो गई है। राणा अयूब के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले में संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ भी भारत की आलोचना कर चुके हैं।
सर्वेक्षण में शामिल महिला पत्रकारों ने सबसे अधिक बार (30 प्रतिशत) कहा है कि वे ऑनलाइन हिंसा का जवाब देती हैं। 20 प्रतिशत ने बताया है कि वे ऑनलाइन माध्यमों से हट गई हैं और 18 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने ऑडियंस इंगेजमेंट से विशेषतौर पर परहेज कर लिया है।
ओआरएफ के रिसर्च पेपर में भी भारत में फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया की वजह से प्रभावित पत्रकारिता की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिज़म (सीपीजे) के अनुसार ऑनलाइन नीलामी (ऑक्शन ऐप) के बाद से भारत में महिला पत्रकार अधिक खतरे का सामना करती है। बता दें कि इस साल की शुरुआत में मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी (सुल्ली डील्स) की गई थी जिसमें कई महिला मुस्लिम पत्रकार भी शामिल थीं।
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इडेक्स 2022 में दुनिया के 180 देशों में भारत की 150वीं रैंक है। भारत में मीडिया की स्थिति क्या है यह किसी से छिपी नहीं है। महिला पत्रकारों को उनके काम की वजह से ख़ास तौर पर सत्ता से सवाल करनेवाली महिला पत्रकारों को ज्यादा आलोचनाओं और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।