हमारे इतिहास में अनेक पुरुष हुए हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और उनको सभी जानते भी हैं। लेकिन इन पुरुषों के साथ-साथ अनेक वीरांगनाएं भी हैं जिनके बारे में इतिहास में बहुत कम लिखा गया। उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में जो योगदान दिया है उस पर धूल की एक मोटी परत चढ़ गई। हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्कूलों, कॉलेजों में न जाने कितने पुरुषों की वीरता को याद किया जाता है। हालांकि, आज़ादी की लड़ाई में बड़ी संख्या में महिलाएं भी मैदान-ए-जंग में शामिल हुई थीं। उन्हीं में से एक वीरांगना थीं अंजलाई अम्मल। आज हम यहां उन्हीं की बात करेंगे और जानेंगे कि इस लड़ाई में उनके क्या योगदान थे।
1 जून 1890 को कदलूर (तमिलनाडु) के छोटे से शहर मुथु नगर में जन्मी अंजलाई अम्मल एक सामाजिक सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जन्म बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था। उनकी पढ़ाई कक्षा पांचवी तक ही हो पाई थीं। उनके पति एक मैगज़ीन में ऐजेंट थे। अंजलाई अम्मल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ‘असहयोग आंदोलन’ से की थी यही कारण है कि अंजलाई अम्मल को 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ में भाग लेनेवाली पहली दक्षिण भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। इस आंदोलन का हिस्सा बनने के बाद वह कभी भी पीछे नहीं हटीं। वह लगातार अलग-अलग आंदोलनों में भाग लेती रहीं। उन्होंने राजनीति में भी बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया और इस पुरुष समाज में अपना एक विशेष स्थान बनाया।
उनके हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने अपने 9 साल की बेटी को भी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ छिड़ी मुहिम में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपनी पूरी पारिवारिक संपत्ति को बेचकर उससे पैसों को भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर खर्च कर दिया। उन्होंने विदेशी कपड़ों का विरोध ,नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। साल 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण वह बुरी तरह घायल हो गई थी।
आज़ादी के आंदोलनों में भाग लेने की वजह से अंग्रेजी सत्ता ने उन्हें कई बार जेल में भी डाला। वह पहली बार जेल तब गईं जब उन्होंने कर्नल नील की मूर्ति गिराने के प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इस प्रदर्शन में उनके पति और बेटी भी शामिल थे और उन्हें भी इस प्रदर्शन के बाद जेल भेज दिया गया था। इसी तरह वह करीब साढ़े सात साल जेल में रहीं। अपनी गर्भावस्था के दौरान भी वह जेल में ही थीं। प्रसव पीड़ा के दौरान लिए उन्हें दो हफ्ते के लिए जेल से रिहाई मिली और तभी उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे को जन्म दिया। इसके बाद उन्हें फिर से जेल भेज दिया गया। उन्होंने अपने नवजात बच्चे की देखभाल जेल से ही की। उनके साथ उनकी नौ साल की बेटी भी जेल में रही।
अंजलाई अम्मल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ‘असहयोग आंदोलन’ से की थी यही कारण है कि अंजलाई अम्मल को 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ में भाग लेनेवाली पहली दक्षिण भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त है। इस आंदोलन का हिस्सा बनने के बाद वह कभी भी पीछे नहीं हटीं।
महात्मा गांधी अक्सर जेल में अम्माकान्नु (अंजलाई अम्मल की बेटी) और अंजलाई अम्मल से मिलने जाते थे। उन्होंने अम्मा कन्नू का नाम लीलावती रखा और उसे अपने साथ वर्धा आश्रम ले गए तथा उसकी पढ़ाई-लिखाई की ज़िम्मेदारी उठाई। उनके साहस के कारण गांधी ने उन्हें दक्षिण भारत की झांसी रानी कहा। एक बार गांधी कडलूर आए और वह अंजलाई अम्मल से मिलना चाहते थे लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें अंजलाईं अम्मल से मिलने पर पाबंदी लगा दी। लेकिन अंजलाई अम्मल को यह खबर मिली तो वह बुर्का पहनकर गांधी से मिलने आई।
1947 में जब भारत को जब स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब उन्हें तमिलनाडु विधानसभा के सदस्य के रूप चुना गया। वह आगे भी राजनीति से जुड़ी रहीं इसी प्रकार वह तीन बार लगातार तमिलनाडु विधानसभा की सदस्या रहीं। 20 जनवरी , 1961 को उनकी मृत्यु हो गई ।
स्रोत:
2- The Hindu
बेहतरीन 🤘👍