इतिहास रेणुका रे: महिला अधिकारों की पैरोकार और स्वतंत्रता सेनानी| #IndianWomenInHistory

रेणुका रे: महिला अधिकारों की पैरोकार और स्वतंत्रता सेनानी| #IndianWomenInHistory

संविधान सभा के कुल सदस्यों में 15 महिलाएं भी शामिल थीं, इन्हीं 15 महिलाओं में से एक थीं रेणुका रे। रेणुका रे संविधान सभा की सदस्य होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, दूसरी और तीसरी लोकसभा की सक्रिय सांसद भी रहीं।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए संविधान निर्माण करना कोई आसान काम नहीं था। देश के संविधान निर्माण में 2 साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा। संविधान को बनाने में जितना पुरुषों का योगदान रहा उतना ही महिलाओं का भी बराबर योगदान रहा है। दोनों पक्षों की ओर से कड़ी मेहनत और अथक प्रयासों से देश को संविधान के समक्ष संविधान रखा गया था। संविधान सभा के कुल सदस्यों में 15 महिलाएं भी शामिल थीं, इन्हीं 15 महिलाओं में से एक थीं रेणुका रे। रेणुका रे संविधान सभा की सदस्य होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, दूसरी और तीसरी लोकसभा की सक्रिय सांसद भी रहीं। वह अपनी सामाजिक-आर्थिक समझ के आधार पर एक उत्कृष्ट सांसद के रूप में आज भी जानी जाती हैं।

वंचित समुदाय के विकास के लिए मंडल आयोग के नाम से प्रचलित उनकी सिफारिशों को मील का पत्थर माना भी जाता है। रेणुका रे की अगुवाई में ही 1959 में समाज कल्याण और पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए एक समिति का निमार्ण हुआ था जिसको रेणुका रे कमेटी के नाम से जाना जाता है। इस समिति द्वारा गृह मंत्रालय के अंतर्गत पिछड़े वर्ग के लिए एक विभाग बनाने की सलाह दी गई। इसी कमेटी के सुझाव के बाद काका कालेकर कमेटी का सफर शुरू हुआ।

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व्यक्तिगत जीवन

रेणुका रे बेहद प्रसिद्ध परिवार से तालुक्क रखती थीं। उनका जन्म साल 1904 में बंगाल में हुआ था। उनके पिता सतीश चंद्र मुखर्जी एक आईसीएस अधिकारी थे। उनकी माँ चारुलता मुखर्जी एक सामाजिक कार्यकर्ता और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सदस्य थीं। इसी तरह उनके दादा पीके रॉय पहले ऐसे भारतीय थे जिन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी फिल की डिग्री प्राप्त की थी। साथ ही वह कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज के पहले भारतीय प्रिंसिपल बने थे। उनकी दादी सरला रॉय एक प्रसिद्ध समाज सेविका थीं जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए काम किया था। वह गोखले मेमोरियल स्कूल और कॉलेज की संस्थापक भी थीं।

संविधान सभा के कुल सदस्यों में 15 महिलाएं भी शामिल थीं, इन्हीं 15 महिलाओं में से एक थीं रेणुका रे। रेणुका रे संविधान सभा की सदस्य होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, दूसरी और तीसरी लोकसभा की सक्रिय सांसद भी रहीं।

आर्थिक रूप से बेहद संपन्न और पढ़े-लिखे परिवार से होने के चलते रेणुका की पढ़ाई लंदन के केंसिंगटन हाई स्कूल में हुई। साथ ही उनकी आगे की पढ़ाई लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई के दौरान रेणुका के मित्रों में हेराल्ड लास्की, बेवेरिज, क्लीमेंट एटली जैसे लोग शामिल थे।

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राजनीतिक सफर

रेणुका ने साल 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया था। उस वक्त उनकी उम्र केवल 16 वर्ष थी। वह महात्मा गांधी से मिलीं और उनसे प्रेरित होकर गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता बन गईं। उनकी इच्छा थी कि वह पढ़ाई छोड़कर वह महात्मा गांधी की सहयोगी बन जाएं। लेकिन उनके समझाने पर रेणुका ने अपनी पढ़ाई जारी रथी। उन्होंने अपने आंदोलन के लिए शिक्षित कार्यकर्ताओं के महत्व से उन्हें अवगत कराया। आगे चलकर रेणुका कांग्रेस की सदस्य बनी।

उन्हें 1940 के आसपास में महिलाओं से संबंधित कानूनों में संभावित वैधानिक परिवर्तनों के बारे में विचार-विमर्श के लिए अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की प्रतिनिधि की हैसियत से केंद्रीय विधानसभा में मनोनीत किया गया था।

कांग्रेस की सदस्य होने के बावजूद वह कांग्रेस की नीतियों की आलोचना किया करती थीं। लेकिन विरोध में आकर कभी उन्होंने अन्य राजनीतिक संगठनों में अपनी सहभागिता नहीं दिखाई। जिस समय में रेणुका सामाजिक कार्यों के सक्रियता से शामिल थीं उसी दौरान उनकी मुलाकात आईसीएस सत्येंद्रनाथ रे से हुई जिनसे उन्होंने 1925 में शादी भी कर ली।

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1982 में उनकी पुस्तक ‘माई रीमिनिसेंस सोशल डेवलपमेंट गांधी इरा एंड ऑफ्टर‘ आई। रेणुका रे की इस किताब में भारत में महिलाओं की स्थिति का जिक्र है। भारत के इतिहास में हुए राष्ट्रवादी आंदोलन के विकास और विभाजन पर भी पुस्तक में विस्तृत चर्चा है।

पुस्तक का एक हिस्सा पूर्वी क्षेत्र पर विभाजन के प्रभाव पर है, जब वह पांच साल तक पश्चिम बंगाल में पुनर्वास और राहत मंत्री थीं। अपने राजनीतिक सफर के दौरान ही उन्होंने महसूस किया कि राजनीति में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का मुद्दा कितना ज़ूरी और उपयोगी है। वह महिला आरक्षण की विरोधी थी लेकिन बाद उन्होंने महिला आरक्षण का विरोध नहीं किया।

उन्हें 1940 के आसपास में महिलाओं से संबंधित कानूनों में संभावित वैधानिक परिवर्तनों के बारे में विचार-विमर्श के लिए अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की प्रतिनिधि की हैसियत से केंद्रीय विधानसभा में मनोनीत किया गया था। साल 1934 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के कानूनी सचिव के रूप में उन्होंने जाँच आयोग के समक्ष भारत में ‘Legal Disabilities of Women in India’ नाम का एक दस्तावेज़ पेश किया।

साथ ही उन्होंने शारदा विधेयक का विरोध किया था जिसमें लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई थी। रेणुका ने एक समान व्यक्तिगत कानूनी संहिता के लिए लड़ाई लड़ी, यह दावा करते हुए कि भारतीय महिलाओं की स्थिति दुनिया में सबसे अन्यायपूर्ण है।

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मालदा जिले के रतुआ निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर रेणुका ससंद में पहुंची। योजना आयोग पर आधारित राष्ट्रीय विकास परिषद की योजना परियोजना समिति के अंतर्गत समाज-कल्याण और पिछड़ी जातियों के कल्याण के लिए अध्ययन दल के नेता के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई, तब दो साल के रिसर्च और विचार-विमर्श के बाद उन्होंने गृह मंत्रालय से पिछड़ा आयोग बनाने की सिफारिश की।

उनके द्वारा 1930-34 में झारखंड के कोयला खदानों का दौरा किया गया। महिलाएं वहां किन परिस्थितियों में श्रम करती हैं इसका अध्ययन कर उन्होंने इस पर एक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में उन्होंने महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए कोयला खदान में काम करने के ढंग को हानिकारक बताया। 93 की उम्र में उनका साल 1997 में निधन हो गया।

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