समाजराजनीति क्यों महिलाओं के हित में नहीं है बाल विवाह के ख़िलाफ़ असम सरकार की मौजूदा कार्रवाई

क्यों महिलाओं के हित में नहीं है बाल विवाह के ख़िलाफ़ असम सरकार की मौजूदा कार्रवाई

असम में बाल विवाह रोकने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने 14 साल के कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के ख़िलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई करने का फैसला किया।

बाल विवाह को रोकने के उद्देश्य से, असम सरकार ने राज्य में बाल विवाह करने वाले लोगों के ऊपर गिरफ़्तारी की कार्रवाई की जा रही है। ये कार्रवाई इस रूप में कठोर और अन्यायपूर्ण है कि इसका विपरीत प्रभाव राज्य के ग़रीब परिवारों की महिलाओं पर अत्यधिक पड़ रहा है जिनके परिवार के पुरुषों को गिरफ्तार किया गया है। सरकार के इस अभियान के परिणामस्वरूप रोज़ी-रोटी कमानेवाले अपने पतियों और बेटों की गिरफ्तारी से परेशान महिलाएं बड़ी संख्या में इसका विरोध कर रही हैं।

बीते महीने असम में बाल विवाह रोकने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने 14 साल की कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के ख़िलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई करने का फैसला किया। राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा ने कहा कि सरकार बाल विवाह को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर राज्य में अभियान शुरू करने का निर्णय लेगी। इस घोषणा के बाद राज्य में बड़े स्तर पर पुरुषों की गिरफ़्तारी होनी शुरू हो गई जिनकी पत्नी की उम्र कम है।  

द प्रिंट में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक अब तक 3058 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी हैं। ये गिरफ्तारियां राज्य के अलग-अलग ज़िलों से हो रही हैं। दो फ़रवरी की रात को शुरू हुए इस अभियान के तहत अब तक बाल विवाह के संबंध में चार हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं जिसमे शुरू में असम के धुबरी जिले में सबसे ज़्यादा मामले और गिरफ्तारियां दर्ज की गई। सरकार की इस कार्रवाई के तहत 14-18 साल के बीच की लड़कियों से शादी करनेवाले लड़कों पर बाल-विवाह निषेध अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है।

राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण-5 के अनुसार साल 2019-21 में 20-24 साल की 31.8% ऐसी औरतें हैं जिनकी शादी 18 साल से पहले हो गई थी। वहीं एनएफएचएस-4 में यह आंकड़ा 30.8 था।

मीडिया में छपी ख़बरों के अनुसार इन गिरफ्तारियों का असम में बड़े स्तर पर विरोध हो रहा है। महिला सड़कों पर उतर सरकार के इस फैसले के विरोध में प्रदर्शन कर ही हैं। पुलिस स्टेशन के बाहर महिला प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस लाटीचार्ज और आंसूगैस का भी इस्तेमाल कर रही है। इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार इस कार्रवाई में अबतक राज्य की 93 महिलाओं की गिरफ्तारी भी हो चुकी हैं।

असम में बाल विवाह का आंकड़ा

असम राज्य सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए कानूनी कार्रवाई को रोकने के इस प्रावधान को सही ठहराते हुए कहा था कि ऐसा फैसला कर्नाटक सरकार द्वारा भी लिया जा चुका है। अगर असम में बाल विवाह से जुड़े आंकड़े की बात करे तो राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण-5 के अनुसार साल 2019-21 में 20-24 साल की 31.8% ऐसी औरतें हैं जिनकी शादी 18 साल से पहले हो गई थी। वहीं एनएफएचएस-4 में यह आंकड़ा 30.8 था। अन्य राज्यों की तुलना में, असम देश में 18 वर्ष की उम्र से पहले होनेवाली शादियों में 3% का योगदान देता है। 20-24 साल की महिलाएं जिनकी 18 साल से पहले शादी की गई धुबरी में यह दर 50.8 प्रतिशत है। दक्षिण सलमारा में 44 प्रतिशत है। 

सरकार की ओर से मातृत्व सुरक्षा की दलील

असम सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के डेटा को आधार बनाकर बात रखी है। सरकार का कहना है कि बाल विवाह की वजह से राज्य में मातृत्व मृत्यु दर बहुत अधिक है। सरकार का कहना है कि मातृत्व स्वास्थ्य की समस्या को कम करने के लिए यह कार्रवाई जरूरी है। मातृत्व मृत्यु पर दी गई सरकार की दलील हालांकि शोध के सामने टिकती नहीं है। अंतरराष्ट्रीय और भारतीय शोध इस बात को साफ़-साफ़ साबित कर चुके हैं कि मातृत्व मृत्यु दर का अधिक संबंध एनीमिया से करीब से जुड़ा है। साल 2016 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित जानकारी के अनुसार मातृत्व मृत्यु दर की एनीमिया के साथ संबंध की बात करता है। नैशलन फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक असम में 15-49 उम्र की गर्भवती महिलाओं में से 54.2 फीसदी एनीमिक हैं। एनएफएचएस-4 के मुताबिक़ यह संख्या 44.8 है।

कई अध्ययन से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि एनीमिया का संबंध उम्र के अलावा गरीबी के साथ जुड़ा हुआ है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार असम में चाय के बागानों में कार्यरत महिला वर्कर्स में बड़ी संख्या में एनीमिया से प्रभावित हैं। बाल विवाह के प्रचलित होने का कारण गरीबी है। अतः बाल विवाह रोकने से मातृत्व मृत्यु में कोई बदलाव नहीं आएगा। इसके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान देना ज़रूरी है। 

असम के मुख्यमंत्री ने राज्य में उच्च शिशु और मृत्यु दर का हवाला देते हुए कहा है राज्य में 11.7 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने कम उम्र में माँ बनने का बोझ उठाया है। इंडिया टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 18 साल की उम्र से पहले माँ बनने की राज्य में महिलाओं की दर का आंकड़ा इस प्रकार है। राज्य के कई जिलों जैसे दक्षिणी सलमारा में 22 प्रतिशत, दरांग में 16 प्रतिशत, कामरूप में 15 प्रतिशत, होजाई में 15.6 फीसद, बोगाईगाँव में 15.4 फीसदी और नगाँव में 15 फीसद कम उम्र में माँ बनना दर्ज किया गया है। असम के जिन जिलों में बाल विवाह के ज्यादा मामले होने के आंकड़े दिए हैं उन इलाकों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है।

कैसे बाल-विवाह रोकने से अधिक राजनीति

असम राज्य में बाल-विवाह की कुरीति का बड़ा दोष मुस्लिमों पर लगाया जा रहा है। मीडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के मुख्यमंत्री ने जो आंकड़े पेश किए हैं उनमें कई जिले मुस्लिम आबादी बहुत है। दरअसल अल्पसंख्यक-मुस्लिम समुदाय असम राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। भारत सरकार के डेटा के मुताबिक़ पूर्वोत्तर राज्यों के 31 मिलियन लोगों में से 34 फीसद मुसलमान हैं। राज्य के 31 जिलों में से कम से कम नौ जिलों की आधी आबादी मुस्लिम है। समुदाय के लोगों का मानना हैं कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार उन्हें निशाना बनाने के लिए इस तरह के कठोर अभियान का सहारा ले रही है। यह बिलकुल राजनीति से प्रेरित कदम लग रहा है। 

राज्य के कई जिलों जैसे दक्षिणी सलमारा में 22 प्रतिशत, दरांग में 16 प्रतिशत, कामरूप में 15 प्रतिशत, होजाई में 15.6 फीसद, बोगाईगाँव में 15.4 फीसदी और नगाँव में 15 फीसद कम उम्र में माँ बनना दर्ज किया गया है।

बाल विवाह की समस्या को किसी धर्म से जोड़ना जायज नहीं है क्योंकि यह कुरीति समाज में शिक्षा की कमी और आर्थिक असमानता की वजह से बनी हुई है। अगर मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर की बात करे तो साल 2019-21 में यह दर 2.3 दर्ज की गई है जो पिछली रिकॉर्ड दर से कम है। साल 2015-16 के एनएफएचएस सर्वे में यह दर 2.6 दर्ज की गई है। साल 1992-93 में मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर 4.4 दर्ज की गई थी। भारत सरकार के आंकड़े साफ करते हैं कि मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर घट रही है।

सुविधाओं के अभाव में कैसा न्याय

यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 223 मिलियन बाल वधूओं का गढ़ है जिसमें 102 मिलियन बालिका वधूओं की 15 वर्ष की आयु होने से पहले ही शादी हो गई थी। रिपोर्ट ने चेताया की भारत में अधिकतर बाल विवाह गरीब परिवारों व ग्रामीण क्षेत्रों में होते है। बाल विवाह होने वाली लड़कियां कम शिक्षा प्राप्त कर पाती हैं। असम में हो रहे बाल विवाह को खत्म करने के अभियान में फिर से गरीब और वंचित महिलाएं परेशानियों का सामना कर रही हैं। वे घर से बाहर निकलकर अपने परिवार के पुरूषों को छुड़ाने के प्रदर्शन कर रही हैं। 

इस बात में कोई संदेह नहीं है की गिरफ्तार हुए पुरूष बाल विवाह जैसी पितृसत्तात्मक और शर्मनाक सामाजिक बुराई के कारण जेल में हैं जिससे निपटने के लिए समाज में कोई भी ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए। लेकिन अपने पतियों और बेटों पर आश्रित ये महिलाएं बेबस होकर आत्महत्या तक के कदम उठा रही है। सामाजिक कुरीति को खत्म करने के लिए राजनीति से प्रेरित योजना के बजाए सरकार को व्यवहारिक समाधान निकालने की आवश्यकता है। वास्तव में असम में धरातल स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, शैक्षिक और आर्थिक समानता लाने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। 


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