संस्कृतिकिताबें फिरदौसः एक औरत के सेक्स वर्कर होने की तकलीफों से बेचैन करता उपन्यास

फिरदौसः एक औरत के सेक्स वर्कर होने की तकलीफों से बेचैन करता उपन्यास

अफ्रीकी लेखिका, नवल अल सदावी का उपन्यास “फिरदौस” एक महिला के जीवन के बारे में है। उपन्यास की मुख्य चरित्र फिरदौस एक वेश्या थी। वह अपने पूरे जीवन में कई तरह के दमन और उत्पीड़न का सामना करती है और आखिर में फिर उसे अपने ही दलाल की हत्या के आरोप में फांसी दी गई।

“मुझे सजा-ए-मौत इसलिए नहीं दी थी कि मैंने एक आदमी का कत्ल किया था क्योंकि उसी दौरान हर रोज हजारों लोगों का कत्ल होता था, बल्कि इसलिए कि वे मेरे जिंदा रहने से खौफ खाते थे। वे जानते थे कि जब तक मैं जिंदा हूं, वे महफूज नहीं रहेंगे, कि मैं उनका कत्ल कर सकती हूं। मेरी जिंदी का मतलब उनकी मौत, मेरी मौत का मतलब है उनकी जिंदगी ” ये शब्द हैं फिरदौस के। अफ्रीकी लेखिका, नवल अल सदावी का उपन्यास “फिरदौस” एक महिला के जीवन के बारे में है। उपन्यास की मुख्य चरित्र फिरदौस एक सेक्स वर्कर थी। वह अपने पूरे जीवन में कई तरह के दमन और उत्पीड़न का सामना करती है और आखिर में फिर उसे अपने ही दलाल की हत्या के आरोप में फांसी दी गई।

फिरदौस ऐसी औरती की कहानी है जो अंधकारमय जीवन में भी अपनी ताकत को जान कर जीती है। वह निराशाओं से विचलित नहीं होती है। उसने अपनी मुसीबत और मायूसी के बावजूद उन तमाम लोगों को जो उसके आखिरी लम्हें के चश्मदीद रहे उनका आह्वान किया कि वे उन ताकतों को चुनौती दें और उनसे निजात हासिल करे जो इन्सानों को जिंदगी, प्यार और असली आजादी के अधिकार से वंचित करते हैं।

“इज्जत -आबरू की हिफाजत के लिए काफी बड़ी रकम की ज़रूरत होती है, लेकिन इतनी बड़ी रकम बिना इज्जत गवाये हासिल नहीं की जा सकती।”

“मैं एक औरत हूं इसलिए मेरे भीतर कभी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं अपना हाथ उठा सकूं। चूंकि मैं एक वेश्या थी इसलिए मैं अपना डर मेकअप के तहों के नीचे छुपाती थी।” इस उपन्यास में दर्ज फिरदौस की बातें स्त्री-जगत का सार्वभौमिक बयान बन जाता है। उसकी कहानी और संघर्ष औरतों के जीवन की परतों को परत दर परत खोलता जाता है। किताब पुरुषवादी समाज की सोच-व्यवहार के बारीक तार को खोल कर रख देती है। यह किताब पितृसत्ता की सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिकता के खोखलेपन का पाठ कराती है। कैसे मर्दों की दुनिया में स्त्री एक देह तक सीमित है। कैसे पुरुषों की दुनिया उसे एक कातिल बना देती है और जब वह निडर हो जाती है तो उसके बेखौफपन को खत्म करने के लिए उसे फांसी पर लटका देती है।

फिरदौस की कहानी में बचपन से लेकर जीवन के आखिरी मोड़ तक पुरुषों का उसके वर्चस्व को खत्म करने से शुरू होता है। बात चाहे उसके पिता की हो, उसके चाचा, पति या क्लाइट मर्द की हो। घर में पिता उसे और उसकी माँ को परेशान करता उसके बाद चाचा के घर में भी उसे पीछा छुड़ाने की योजनाएं बनती। इन्हीं बीच 19 साल की फिसदौस की शादी साठ साल से ऊपर के शख्स से करा दी जाती। जिसके लिए वह बीवी कम केवल एक जिस्म थी। बेमेल हिसंक शादी से निकलने के लिए वह पति का घर छोड़ कर बाहर निकल जाती है लेकिन वह दोबारा चाचा के घर भी नहीं जाना चाहती है।

पति के घर छोड़ने के बाद उसे बायोमी नाम का एक शख्स उसे बचाता है। शुरू में बायोमी उन मर्दों से बिल्कुल अलग होता है जिनसे उसका वास्ता होता है। दोनों करीब आते है लेकिन जैसे ही फिरदौस उसे अलग अपने लिए नौकरी और बाहर जाकर पैसा कमाने के लिए काम करने की बात करती है वह उसे मारता है। उसे जबरदस्ती कैद कर उस पर शारीरिक हिंसा करता है और अन्य मर्दों से कराता रहा। अंत में इस कैद से बाहर निकल कर सड़क पर दोबारा आ जाती है यहां से फिसदौस के एक सेक्स वर्कर, एक निडर महिला बनने की कहानी शुरू होती है। 

“सभी औरतें दगाबाजी की शिकार हैं। मर्द औरतों के साथ दगा करते हैं और उनको धोखे की सजा देते हैं, उन्हें शादी के बंधन में बांधते हैं और फिर सजा के तौर पर उनसे जिंदगी के सबसे घटिया काम करवाते हैं, उनकी तौहीन करते हैं और उनको पीटते हैं। अब मुझे एहसास हुआ कि औरतों में सबसे कम भ्रम में जीने वाली वेश्या ही होती हैं कि शादी औरतों के लिए सबसे जालिमाना तकलीफों के ऊपर खड़ा किया गया निजाम है।”

फिरदौस अपने जीवन में चाचा से लेकर जिंदगी में आने वाले हर मर्द के लिए एक शरीर बन जाती है। “मैं जानती थी कि मेरा पेशा मर्दों ने इजाद किया है। मर्द ही औरत को कीमत के बदले अपना जिस्म बेचने पर मजबूर करते हैं और यह भी कि सबसे कम कीमत वाला जिस्म बीवी का होता है। चूंकि मैं अक्लमंद थी इसलिए मैंने आजाद वेश्या होना चुना, बजाय एक गुलाम बीवी बनने के।” आगे वह कहती है कि “इज्जत-आबरू की हिफाजत के लिए काफी बड़ी रकम की ज़रूरत शुरू होती है, लेकिन इतनी बड़ी रकम बिना इज्जत गवाये हासिल नहीं की जा सकती।”

यह उपन्यास एक सेकेण्डरी स्कूल सर्टिफिकेट हासिल करी हुई एक लड़की की ख्वाहिशों और उसके अधेरे की दुनिया में भी खुद को महत्व देने वाली औरत की कहानी दर्ज कराता है। देह के व्यापार में वह अपनी अहमियत को महत्व देती है। औरतों को तैयार करने वाले सामाजिक दायरे को खत्म कर वह मर्दों की क्रूरता को समझ कर अपनी खुशी के लिए जीना शुरू कर देती है। बर्बादी, शोषण, हिंसा को सहने के बाद वह कामयाब सेक्स वर्कर बनना चुनती है। जहां वह आलीशान जीवन जीना और मंहगा मेकअप करना अपनी उपलब्धि और गम भुलाने का तरीका मानती है।

“मैं एक औरत हूं इसलिए मेरे भीतर कभी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं अपना हाथ उठा सकूं। और चूंकि मैं एक वेश्या थी इसलिए मैं अपना डर मेकअप के तहों के नीचे छुपाती थी।”

यह पूरा उपन्यास एक औरत के जीवन की तकलीफों का मार्किम वर्णन है। औरत की देह तक सीमित करने वाली दास्तां और उसके अस्तित्व  को कुचलने की कहानी है। फिरदौस भ्रम को दूर कर अपनी दास्तां को बयां करती कहती है “एक कामयाब सेक्स वर्कर एक गुमराह फकीर से कही बेहतर थी। सभी औरतें दगाबाजी की शिकार हैं। मर्द औरतों के साथ दगा  करते हैं और उनको धोखे की सजा देते हैं, उन्हें शादी के बंधन में बांधते हैं और फिर सजा के तौर पर उनसे जिंदगी के सबसे घटिया काम करवाते हैं, उनकी तौहीन करते हैं और उनको पीटते हैं। अब मुझे एहसास हुआ कि औरतों में सबसे कम भ्रम में जीने वाली सेक्स वर्कर ही होती हैं कि शादी औरतों के लिए सबसे जालिमाना तकलीफों के ऊपर खड़ा किया गया निजाम है।” 

इस पूरे उपन्यास में फिरदौस और लेखिका के संवाद से स्त्री के शरीर पर लगे घाव से ज्यादा मन पर लगे घावों की अनकही तहों को बयां करता है। यह कहानी केवल फिरदौस की नहीं बल्कि औरत होने की बात को कहता है। एक औरत होने के जीवन की तकलीफों से बेचैन कर देता है। एक ओर यह फिरदौस की निडरता को दिखता है साथ उस त्रासदी को भी बयां करता है जो महज एक देह के अंतर की वजह से औरतों को सहनी पड़ती है। पितृसत्तात्मक समाज की वास्तविकता को जाहिर करता यह उपन्यास स्त्री होने के जीवन संघर्षों को सोचते हुए नम कर देता है। नवल अल सदावी के ‘वीमन इन प्वाइंट जीरो’ के इस उपन्यास का हिंदी में अनुवाद दिगम्बर ने किया है।


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