इंटरसेक्शनलग्रामीण भारत प्रेम करते जोड़े और क्रूरता के रोज़ नये कीर्तिमान रचता ग्रामीण भारत का खाप परिवेश

प्रेम करते जोड़े और क्रूरता के रोज़ नये कीर्तिमान रचता ग्रामीण भारत का खाप परिवेश

ऐसे मामलों में एक बात पर ध्यान हमेशा जाता है कि ऑनर किलिंग हमेशा लड़कियों के ही परिजन करते हैं। समाज में यह मान्यता है कि घर, परिवार, बिरादरी, जाति सबकी इज्ज़त लड़कियों से जुड़ी है।

जब व्यभिचार और बलात्कार में एक ही गाँव के होने का नाता नहीं अड़ रहा है
जब घर में घर के किसी सदस्य द्वारा स्त्रियों के बलात्कार करने से कुल की साख को बट्टा नहीं लग रहा है
तो गाँव में दूसरे थोक में शादी करने से बट्टा कैसे लग जाएगा

ये कवि प्रभात की कविता की पंक्ति है जिसमें कहा गया है कि एक ही गाँव में एक ही घर-घराने में कैसे-कैसे जघन्य अपराध हो जाते हैं तो एक ही गाँव में शादी क्यों नहीं हो सकती। अभी होली के दिन की घटना है, उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के बलुआ गाँव में एक उन्नीस साल के बच्चे की पीट-पीटकर और ईंट से कुचल कर हत्या हो जाती है। यह महज इसलिए हुआ क्योंकि वह अपने ही गाँव की अपनी ही जाति की एक लड़की से प्रेम करता था। स्थानीय अखबार में खबर आती है कि प्रेम-प्रपंच को लेकर बलुआ गाँव में एक युवक की हत्या हो गई। दूसरे दिन फिर इस प्रकरण में अखबार में खबर आती है कि इस मामले चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है।

यह तो हो गई अख़बार की बात जिसमें यह घटना एक सामान्य सी खबर की तरह छपी थी। अब घटना पर आते हैं। एक उन्नीस साल का बच्चा जो गाँव में एक लड़की से आकर्षित होता है। फोन पर बातचीत या मैसेज पर बात होती होगी और होली की शाम मिलने या देखने की बात हुई होगी। लड़का लड़की से मिलने जाता है और गाँव के ही कुछ लड़कों ने उसे इसके लिए पीट पीटकर मार डाला। आप जब घटना की और तह में जाएंगे तो देखेंगे कि यहां बात इतनी भर थी लड़का, लड़की एक ही गाँव के थे। दोनों अपनी उम्र की किशोर अवस्था में थे। उन्हें समझाया-बुझाया जा सकता था प्रेम करना कोई अपराध नहीं होता है। कितना आसान है इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में हत्या जैसा अपराध।

किशोरावस्था को वैज्ञानिक दृष्टि से देखा समझा जाए तो यह एक बेहद नाजुक उम्र होती है, नयी दुनिया को सीखने, समझने, जानने और परखने की। गौर करने वाली बात है जिन्होंने बर्बरता से हत्या की वे सब भी लड़के ही थे। आखिर यह बर्बरता, यह हिंसा कहां से आती है और हमें कहां लेकर जा रही है। एक समाज जो पहले से रूढ़ियों में जकड़ा था, जातीय हिंसा और वर्गभेद आदि दंश व्याप्त थे उसे और भी इन घृणाओं की तरफ धकेला गया। आज किसी भी स्थानीय अखबार को उठाकर देख लीजिए इस तरह की खबरों से भरे हैं अखबार। 

ऑनर किलिंग जैसे इस समाज के लिए कोई बड़ा अपराध ही नहीं है आए दिन यहां कितनी घटनाएं होती हैं उन घटनाओं को महज एक खबर की तरह देखा जाता है। आखिर इतने कानून बनने के बाद भी इस अपराध में कमी क्यों नहीं आ रही है। इसका सीधा सा कारण है कि कानून तो बन रहा है पर उसे लागू करनेवाले इसी सामंती और परंपरावादी व्यवस्था से चलकर आए हैं। उनकी मानसिक चेतना में ये अपराध इतने बड़े अपराध नहीं हैं। यहां के थानों में आप चले जाइए स्त्री हिंसा, हिंसा के लिए शिकायत कर सकते हैं लेकिन एफआईआर मुश्किल होती है क्योंकि वहां बैठे लोग इसे गंभीर अपराध मानते ही नहीं हैं। 

इस समाज में मर्यादा का सारा बोझ उन्होंने स्त्रियों के सिर पर रखा है। उनकी सामंती-धार्मिक-जातिवादी मूल्य-मान्यताएं सब इतनी अन्यायपूर्ण हैं कि जहां प्रेम जैसी संवेदना के लिए कोई स्थान नहीं है।

स्त्री हिंसा के कई मामले में यहां अभी दिखा कि समझा-बुझाकर वापस भेज देते हैं क्योंकि ऐसी जगहों पर ज्यादातर सामंती पुरुष बैठे हैं जो अपने घर में या आसपास रोज ही ऐसे अपराध करते हैं। जौनपुर ज़िले की ही धरौली गाँव की घटना है जहां एक लड़की की हत्या इसलिए हो जाती है क्योंकि जिसके साथ वह शादी करना चाहती थी वह सजातीय था और उसी गाँव का था। उसके घरवालों ने एक रात पीट-पीटकरकर लड़की को मार डाला और कहा कि लड़की की मौत आत्महत्या से हुई। जबकि आसपड़ोस की स्त्रियां बताती हैं कि रातभर लड़की को पीटा गया था। लेकिन फिर वही बात ये लोग थाना-पुलिस से इतना डरते हैं कि कोई बयान ही न देगें। गाँव में दुश्मनी से भी डरते हैं।

गांव का माहौल और कंडीशनिंग भी ऐसे अपराधों के लिए इतनी ज़िम्मेदार है कि इसे एक तरह से विकल्प माना जाता है। जब तक समाज जातीय गौरव में डूबा रहेगा और अपनी नैतिकता का सारा बोझ स्त्रियों के ऊपर लादकर चलेगा हालात नहीं बदल सकते। ऐसे मामलों में एक बात पर ध्यान हमेशा जाता है कि ऑनर किलिंग हमेशा लड़कियों के ही परिजन करते हैं। समाज में यह मान्यता है कि घर, परिवार, बिरादरी, जाति सबकी इज्ज़त लड़कियों से जुड़ी है। इस समाज में मर्यादा का सारा बोझ उन्होंने स्त्रियों के सिर पर रखा है। उनकी सामंती-धार्मिक-जातिवादी मूल्य-मान्यताएं सब इतनी अन्यायपूर्ण हैं कि जहां प्रेम जैसी संवेदना के लिए कोई स्थान नहीं है।

हमारे देश में प्रेम के कारण मरने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है। नैशनल क्राइम रिकॉड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में होनेवाली हत्याओं में से 10 फीसद हत्या के मामले प्रेम संबंध, एक्सट्रामैरिटल अफेयर से जुड़े होते हैं।

पास के ही गाँव बेनीपट्टी की घटना है। लड़की की उम्र लगभग उन्नीस-बीस साल होगी। वह घर से सात-आठ किलोमीटर दूरी पर एक निजी कॉलेज में पढ़ने जाती थी। रिश्ते के एक लड़के से प्रेम करती थी। चूंकि लड़का बड़ी बहन का देवर था तो कभी-कभी कॉलेज के आसपास मिलने आ जाता था। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन भी वह लड़की से मिलने आया था। घर और कॉलेज के बीच में एक जगह कोई पुराना स्कूल था जहां वे दोनों मिलने गए। पास के गाँव कुछ लड़कों ने देख लिया और वे सब वहां पहुंच गए। लड़के के साथ काफी मारपीट की और लड़की के यौन दुर्व्यवहार करते रहे। लड़की बदनामी के डर से पहले तो डरती रही बाद में शोर करने लगी तो आसपास खेत में काम करने वाले ग्रामीण आ गए और बीच-बचाव किया।

अब इसमें यह होना चाहिए था कि उन अपराधी लड़कों को सज़ा मिलनी चाहिए थी। पुलिस में शिकायत करनी चाहिए थी लेकिन इकट्ठा हुए सारे लोग लड़की को दोष दे रहे थे कि पढ़ने आती हो कि ये सब करने। लड़की को इतना भला-बुरा कहा गया कि वह इस भय और शर्मिंदगी जीवनभर निकल ही नहीं पाएगी। घर-परिवार से पूरे समाज में हर कोई उसे ही दोष दे रहा था। किसी ने इस पूरी पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाया। इस अपराध के लिए सब ने एक ही बात कही कि लड़की वहां लड़के से मिलने गई ही क्यों। कुल मिलाकर बस प्रेम करनेवाले मनुष्य इस इस परंपरावादी सामाजिक संरचना में सबसे बड़े दोषी हैं।

समाज में स्त्रियों को वे अधिकार यहां अब भी नहीं मिले जो पुरुषों को मिले हैं। इस लिहाज से प्रेम उनके लिए बहुत सी वर्जनाओं को तोड़ेगा उनके लिए दुनिया कुछ अधिक खूबसूरत बनाएगा।

आए दिन हम अखबारों में खबरें पढ़ते हैं कि प्रेमी-प्रेमिका ने नदी में कूदकर जान दी, असफल प्रेम के चलते युवक/युवती की आत्महत्या से मौत, सम्मान की खातिर घरवालों ने लड़की को मौत के घाट उतारा, अंतरधार्मिक प्रेम विवाह पर साम्प्रदायिक संगठनों का बवाल। इस तरह की जाने कितनी खबरें बताती हैं कि हमारे देश में प्रेम के कारण मरने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है। नैशनल क्राइम रिकॉड्स ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में होनेवाली हत्याओं में से 10 फीसद हत्या के मामले प्रेम संबंध, एक्सट्रामैरिटल अफेयर से जुड़े होते हैं।

कितनी बड़ी विडंबना और दुख है कि दो लोग प्रेम और सहवास को अपनी मर्जी से चुनना चाहते हैं और उनकी हत्या हो जाती है। हम अपने मनपसंद साथी के साथ रहना चाहते हैं, उन्हें छूना चाहते हैं, चूमना चाहते हैं  प्रकृति ने हमें इसी तरह बनाया था। यह इच्छा आदिम है, किसी परंपरा या बाज़ार की बनाई हुई इच्छा नहीं है। हम मूल रूप से इन्हीं इच्छाओं से बने हैं जिन्हें नष्ट करना हमेशा सत्ताओं का मुख्य उद्देश्य रहा है। प्रेम अपने आप बहुत बड़ा विद्रोह ह। प्रेम करने या होने से बहुत सी ग्रंथियां टूट जाती हैं। प्रेम आज़ादी का प्रतीक है जिसे गुलाम बनाने वाला समाज पसंद नहीं करता।

लगातार समाज में हो रही प्रेम को लेकर हत्याएं यह बताती हैं कि प्रेम को समाज में कितना बड़ा अपराध माना गया। है इन मौतों को एक ही तरीके से रोका जा सकता है वो है प्रेम को उच्च मानवीय गुण के बतौर स्थापित करके। प्रेम को लेकर कानूनी व्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाया जाए। साथ-साथ समाज मे उसको दो व्यक्तियों के निजी मामले के रूप में स्थापित करके बताया जाए कि ऐसे मामले में हिंसा बहुत घिनौना अपराध जिसे समाज में गर्व का विषय माना जाता है। सामंती मूल्यों की वाहक परंपराओं और मूल्यों को चिन्हित कर उनके दोषों को बताया जाए। ख़ासकर स्त्री और हाशिये की जेंडर पहचान से आनेवाले लोगों के लिए ये समाज अब भी पुरुष की अपेक्षा ज्यादा कठोर है। समाज में स्त्रियों को वे अधिकार यहां अब भी नहीं मिले जो पुरुषों को मिले हैं। इस लिहाज से प्रेम उनके लिए बहुत सी वर्जनाओं को तोड़ेगा उनके लिए दुनिया कुछ अधिक खूबसूरत बनाएगा।


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