संस्कृतिसिनेमा फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने वाली महिला सिनेमेटोग्राफर

फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने वाली महिला सिनेमेटोग्राफर

महिलाएं सिर्फ पर्दे पर हीरोइन के तौर पर ही काम कर सकती है। उनकी भूमिका सिर्फ ग्लैमर तक सीमित है इस मानसिकता को तोड़ते हुए महिलाओं ने खुद की ख़ास जगह बनाई। पहले जहां फिल्मों में निर्देशक, सिनेमेटोग्राफर आदि की भूमिकाओं में केवल पुरुष काम करते थे, या यूं कहें कि इन्हें पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था उन विभागों में औरतों ने काम करना शुरू किया।

भारतीय सिनेमा जगत में लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण की फिल्मी पर्दे पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। लेकिन बात जब फिल्म इंडस्ट्री के अंदर की आती है तो वहां से लैंगिक समानता कोसों दूर है। आज भी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की फीस में बड़ा अंतर है। अन्य क्षेत्रों की तरह बॉलीवुड में भी पुरुषों का स्वामित्व बना हुआ है। धीरे-धीरे महिलाएं इसमें खुद की जगह बना रही हैं। महिलाएं सिर्फ पर्दे पर हीरोइन के तौर पर ही काम कर सकती है। उनकी भूमिका सिर्फ ग्लैमर तक सीमित है इस मानसिकता को तोड़ते हुए महिलाओं ने खुद की ख़ास जगह बनाई। पहले जहां फिल्मों में निर्देशक, सिनेमेटोग्राफर आदि की भूमिकाओं में केवल पुरुष काम करते थे, या यूं कहें कि इन्हें पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था उन विभागों में औरतों ने काम करना शुरू किया।

ख़ासकर सिनेमेटोग्राफी को महिलाओं का क्षेत्र नहीं माना जाता था। भारत ही नहीं बल्कि एशिया की पहली महिला सिनेमेटोग्राफर बी. आर. विजयलक्ष्मी ने इस धारणा को तोड़ने का काम किया। 80 के दशक में उन्होंने साहयक सिनेमाटोग्राफर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। इसके बाद बतौर सिनेमेटोग्राफर के तौर पर उन्होंने फिल्मों और टीवी में अलग-अलग काम किया। उनको देखकर दूसरी औरतें भी इस क्षेत्र में आगे आईं। इस लेख के माध्यम से आइए जानते हैं कुछ महिला सिनेमेटोग्राफर्स के बारे में।

प्रिया सेठ

तस्वीर साभारः Digital Studio

प्रिया सेठ ने साल 1996 में अपने करियर की शुरुआत असिस्टेंट कैमरा पर्सन के तौर पर की थी। बतौर कैमरा पर्सन उन्होंने दीपा मेहता की फिल्म ‘अर्थ’ में भी काम किया था। धीरे-धीरे वह सिनेमेटोग्राफी की बारीकियां सीखती रहीं। रोज़ खुद को बेहतर बनाती रहीं और एक दिन प्रिया को सिनेमेटोग्राफर के रूप में काम करने का मौका मिला। साल 2009 में नसीरुद्दीन शाह के अभिनय से सजी फ़िल्म और निर्देशक राजा कृष्णा मेमन की ‘बारहआना’ बतौर सिनेमेटोग्राफर उनकी पहली फिल्म है। इसके बाद उन्होंने 2016 में रिलीज फ़िल्म ‘एयरलिफ्ट’ में काम किया। इसके बाद से लगातार उनकी फिल्में आनी शुरू हो गई। साल 2017 में उनके द्वारा सिनेमेटोग्राफ की गई फ़िल्म ‘शेफ’ रिलीज हुई। प्रिया ने वेबसीरीज ‘करनजीत कौर-द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ सन्नी लियोन’ की सिनेमेटोग्राफी भी की है।

सुनीता राडिया

तस्वीर साभारः Sunitaradia.com

सुनीता राडिया का नाम भारत की सफल महिला सिनेमेट्रोग्राफर में माना जाता है। सुनीता शुरू से ही अपनी आवाज़ कैमरे के जुबानी बोलना चाहती थी। सिनेमेटोग्राफर के रूप में उनका करियर जाने माने सिनेमेटोग्राफर विनोद प्रधान के अस्सिटेंट के रूप में शुरू हुआ। उन्होंने विनोद प्रधान के साथ देवदास, मुन्नाभाई एमबीबीएस, रंग दे बसंती, हीरोज़ जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया। एक सिनेमेटोग्राफर के तौर पर पहला ब्रेक फिल्म ‘आलाप: एक नई रोशनी’ में मिला। उनका दूसरा बड़ा प्रोजेक्ट फिल्म ‘जल’ थी। इस फिल्म ने इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में भी प्रंशसा हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने पंजाबी फीचर फिल्म हरभजन मान की ‘साडे सीएम साहब’, ‘बादशाहो’, ‘हेट स्टोरी-फोर’, ‘पीएम नरेन्द्र मोदी’ जैसी फिल्मों में बतौर सिनेमेटोग्राफर काम किया। उन्होंने कई ऐड फिल्म्स और म्यूजिक वीडियोस भी शूट किए हैं। फिल्मों के अलावा सुनीता ने वेब सीरिज़ ‘आधा इश्क’, ‘कॉल माई एजेंट बॉलीवुड’ में भी सिनेमेट्रोग्राफर के तौर पर काम किया।

फौज़िया फ़ातिमा

तस्वीर साभार: Livemint

फौज़िया फ़ातिमा सिनेमा की दुनिया का एक जाना माना नाम हैं। उन्होंने बॉलीवुड, मॉलीवुड (मलयालम), कॉलीवुड (तमिल) तीनों जगह काम किया है। साल 1996-98 में उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से डिप्लोमा इन सिनेमेटोग्राफी किया। फिल्म ‘मित्र-माई फ्रेंड’, ‘कुछ तो है’ जैसी बॉलीवुड फिल्मों को शूट किया। दक्षिण में उन्होंने ‘मुधल मुधल’, ‘मुशाल वराई’ और ‘गुलुमाल: द एस्केप’ फिल्मों में काम किया। फौज़िया फ़ातिमा, मलयालम सिनेमा की पहली महिला स्वंतत्र सिनेमेटोग्राफर हैं। वे सिनेमेटोग्राफर के साथ-साथ एक डायरेक्टर भी हैं। उनके निर्देशन में बनी शॉर्ट फिल्म ‘इंफेक्टेड’ की स्क्रीनिंग बुसान इंटरनैशनल फ़िल्म फेस्टिवल में हुई थी। उन्होंने इंडियन वीमन सिनेमेटोग्राफर्स कलेक्टिव का गठन किया। इस संगठन का उद्देश्य महिला सिनेमेटोग्राफर्स को प्रोत्साहन देना है।

दीप्ति गुप्ता

तस्वीर साभारःHindustan Times

दीप्ति गुप्ता, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे से 1998 में ग्रेजुएशन किया और उसके बाद कैमरे से कहानी कहनी शुरू कर दी। उन्होंने ‘हनीमून प्राइवेट लिमटेड’ (2007),’फकीर ऑफ वेनिस’ जैसी फिल्मों की सिनेमेटोग्राफी की हैं। उन्होंने बहुत सी डॉक्यूमेंट्रीज भी शूट की हैं। उनकी बनाई डॉक्यूमेंट्री ‘लक्ष्मी एंड मी’ को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। इस डॉक्यूमेंट्री को 2007 के सिल्वर वुल्फ आईडीएफए (Silver Wolf IDFA 2007) के लिए नॉमिनेट भी किया गया था। गायिका सोना महापात्रा की ज़िंदगी पर बनाई गई उनकी डॉक्यूमेंट्री ‘शट अप सोना’ (2019) का प्रीमियर मामी मुम्बई फ़िल्म फेस्टिवल में हुआ था।

सविता सिंह

तस्वीर साभारः WICA

सविता सिंह ने सिनेमेटोग्राफर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत साल 2007 में एक शार्ट फ़िल्म ‘क्रमश: टू बी कन्टीन्यूड’ से की। इस फ़िल्म के लिए उन्हें साल 2009 में बेस्ट सिनेमेटोग्राफी का नैशनल अवार्ड भी मिला था। नैशनल अवार्ड हासिल करने वाली वे पहली महिला थी। सविता ने फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे से सिनेमेटोग्राफी की पढ़ाई की। ग्रेजुएशन से आगे सिनेमेटोग्राफी की पढ़ाई के लिए वह बुडापेस्ट सिनेमेटोग्राफी मास्टर क्साल के लिए उनका चयन हुआ। इतना ही नहीं साल 2007 में सविता प्रतिष्ठित कोडक फिल्म स्कूल कंपीटिशन की भारतीय विजेता रहीं। साल 2008 में रिलीज हुई फ़िल्म ‘फूंक’ को शूट करने का मौका उन्हें मिला। इस फ़िल्म की सफलता के बाद उन्होंने ‘हवाईजादा’, ‘वेंटिलेटर’ जैसी फिल्मों की सिनेमेटोग्राफी की।

आज भारतीय सिनेमा जगत में महिला सिनेमेटोग्राफर के नाम की यह लिस्ट बहुत लंबी है। इसमें श्रेया देव, सोलंकी चक्रवर्ती, वंदिता जैन, पूजा शर्मा आदि जानी मानी सिनेमेटोग्राफर्स हैं। पहले के मुकाबले महिलाएं अब इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। हाल ही में आईं फिल्में ‘भेड़िया’ और ‘कला’ में ऋचा मोइत्रा ने बतौर असिस्टेंट सिनेमेटोग्राफर काम किया है। 


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