“एक महिला अपने समुदाय के उत्थान के लिए एक पुरुष के मुकाबले अधिक कुशलता से काम कर सकती है। दुर्भाग्य से पुरुषों को यह बात समझने में बहुत समय लगेगा। लेकिन एक बार जब आप वैचारिक स्पष्टता से सामने आएंगे तो उनके पास आपको माला पहचाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।” ये शब्द हैं केरल की पहली महिला पत्रकार, हलीमा बीवी के।
यह बात उस समय की है जब समाज में महिलाओं की सार्वजनिक जगहों पर उपस्थिति न के बराबर थी। कार्यस्थल में उनका प्रतिनिधित्व तो दूर उनकी मौजूदगी को भी सही नहीं माना जाता था। उस दौर में हलीमा बीवी ने सामाजिक आंदोलन में हिस्सा लिया और पत्रकारिता भी की। हमीला बीवी एक पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी, नारीवादी, संपादक और प्रकाशक थी। वह केरल की पहली महिला पत्रकार थी। उन्होंने महिलाओं के लिए केरल से कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया था। हलीमा बीवी केरल की पहली मुस्लिम महिला थी जो नगरपालिका पार्षद बनी थी।
प्रारंभिक जीवन
हलीमा बीवी का जन्म 1918 में वर्तामान में केरल के पठानमथिठ्ठा जिले के अडूर में हुआ था। उनके पिता का नाम पीर मोहम्मद और माता का नाम मेदीन बीवी था। उन्होंने बेहद कम उम्र में अपने पिता को खो दिया था। हलीमा के सात भाई-बहन थे। उनकी माता ने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की थी। हमीला और उनकी बहन को तमाम विरोध के बाद पढ़ाया गया। उनकी शिक्षा को लेकर रूढ़िवादी धार्मिक विचारकों ने कड़ी नाराज़गी जताई लेकिन उनकी माँ ने दोनों बेटियों की शिक्षा जारी रखी। तमाम विरोध के बीच उन्होंने कक्षा सात तक पढ़ाई की। हमीला बीवी ने अडूर में एनएसएस स्कूल में पढ़ते समय ही सामाजिक सुधारों के बारे में सोचना शुरू कर दिया था।
साल 1938 में हलीमा बीवी ने ‘मुस्लिम महिला पत्रिका’ की शुरुआत की। यह पत्रिका केरल के थिरुवल्ला और बाद में कोडुंगल्लूर से प्रकाशित होती थी। हलीमा ने पत्रकारिता में संपादक के तौर पर काम शुरू किया था।
शिक्षा और वैवाहिक जीवन
सोलह साल की उम्र में हलीमा बीवी का विवाह केएम मोहम्मद मौलवी से हुआ था। उनके पति एक धार्मिक विद्वान और लेखक थे। शादी के बाद हलीमा के जीवन में बेहतरी का एक नया मोड़ लाया। उनके पति ने उन्हें सार्वजनिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। उनके पति वक्कम मौलवी के अनुयायी थे जो ‘अंसारी’ नामक एक पत्रिका चलाते थे। इन्हीं चीजों ने आगे जाकर हलीमा बीवी भी प्रभावित हुई और वह सामाजिक सरोकार और पत्रकारिता के लिए प्रेरित हुईं।
महिला पत्रिका की शुरुआत
साल 1938 में हलीमा बीवी ने ‘मुस्लिम महिला पत्रिका’ की शुरुआत की। यह पत्रिका केरल के थिरुवल्ला और बाद में कोडुंगल्लूर से प्रकाशित होती थी। हलीमा ने पत्रकारिता में संपादक के तौर पर काम शुरू किया था। वे इस पत्रिका की मुद्रक और प्रकाशक भी थी। इस तरह हलीमा बीवी ने मलयायम में पहली मुस्लिम महिला संपादक बनकर इतिहास में नाम दर्ज कराया। इस पत्रिका को स्थानीय रूढ़िवादी समूह से भी काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। हालांकि बाद में वित्तीय समस्या होने की वजह से यह प्रकाशित होने बंद हो गई थी।
हलीमा बीवी की कलम यहां रूकने वाली नहीं थी, इसके बाद उन्होंने 1946 में ‘भरत चंद्रिका’ नाम से साप्ताहिक पत्रिका शुरू की थी। इस पत्रिका को काफी स्वीकृति मिली और बहुत से लोग इससे जुड़े। बाद में 1947 से यह दैनिक पत्र में बदल गया था। भरत चंद्रिका का एक बेहतरीन संपादकीय बोर्ड बना जिसमें वैक्कोम मोहम्मद बशीर, वैक्कोम अब्दुल खादर और वेतुर रमन नायर शामिल थे। मलयालम साहित्य के बड़े नाम पोनुकुन्नम वर्की, बालामणियम्मा, चंगमपुछा, एस. नायर आदि भरत चंद्रिका के प्रमुख लेखक थे।
जब दीवान के विरोध का किया सामना
हलीमा बीवी को अपने काम की वजह से कई तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ा। अपनी स्पष्ट लेखन की वजह से बहुत से लोग उनको नापसंद करने लगे थे। त्रावणकोर में दीवान सी. पी. रामास्वामी के शासन के दौरान प्रिंटिंग प्रेस और अख़बार चलाना बहुत मुश्किल था। उस समय उन्होंने प्रिंटिंग, कम्पोजिंग और बाइडिंग सीखी। बीवी दीवान शासन का विरोध करने वाले लोगों के पत्र छापती थी। मलयालम मनोरमा पर पांबदियों के बाद उन्होंने मनोरमा के मुद्रण काम करने में मदद की। इस वजह से उन्हें त्रावणकोर के सर सीपी दीवान के गुस्से का भी सामना करना पड़ा था।
हलीमा बीवी ने अपने अख़बार भरत चंद्रिका में सर सीपी के डर के शासन के ख़िलाफ़ खुलकर लिखने के वजह से काफी विरोध का सामना किया। एक समय सर सीपी के आधिकारिक प्रतिनिधि ने बीवी से इस वादे के साथ संपर्क किया कि वे उनके पक्ष में लिखना शुरू कर दें, उसके बदले उन्हें जापान से एक प्रिटिंग मशीन लाकर देने का प्रस्ताव दिया गया। हलीमा बीवी के इस प्रस्ताव को ठुकराने के बाद उन्हें दीवान के गुस्से का और ज्यादा सामना करना पड़ा। बदले की कार्यवाही के चलते उनके पति के शिक्षण के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया। साल 1949 में आर्थिक असमर्थता के चलते भरत चंद्रिका का प्रकाशन रूक गया था। 1970 में उन्होंने ‘आधुनिक वनिथा’ ने नाम से एक पत्रिका भी निकाली थी हालांकि यह भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी थी।
पहली महिला कॉन्फ्रेंस का किया आयोजन
हलीमा बीवी हमेशा से मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्थिति को बेहतर करने के लिए काम किया। पत्रकारिता के साथ उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के सरोकार के लिए 1938 में तिरुवल्ला में एक वीमन कांफ्रेंस की थी। इसमें 200 से भी अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया था। यह केरल के इतिहास में पहला महिला सम्मेलन था। इसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को इकठ्ठा करना और कॉलेज स्तर पर इसकी यूनिट बनाना था। इसके बाद इसका मासिक आयोजन किया गया जिसमें त्रावणकोर की मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा की बेहतर सुविधाओं को देने का प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में साथ में आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की लड़कियों को छात्रवृत्ति देने और मुस्लिम महिलाओं के सरकारी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व को लेकर मांग की गई।
हलीमा बीवी के विश्वविद्यालयों में होने वाले सम्मेलनों में स्त्री और पुरुष दोनों की भीड़ मौजूद रहती थी। इस तरह के दृश्य उस समय बिल्कुल नये थे। इन सम्मेलनों ने रूढ़िवादी चलन को तोड़ने का काम किया क्योंकि सम्मेलनों में वक्ता के तौर पर केवल पुरुष वक्ताओं को ही माना जाता था। उन्होंने समुदाय के पाखंड को उजागर करने में बहुत काम किया। उन्होंने धार्मिक रिवाज़ों की आलोचना करते हुए तलाक के बाद या परिवार से अलग हुई महिलाओं के लिए आश्रय की मांग की थी।
पत्रकारिता के साथ उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के सरोकार के लिए 1938 में तिरुवल्ला में एक वीमन कांफ्रेंस की थी। इसमें 200 से भी अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया था। यह केरल के इतिहास में पहला महिला सम्मेलन था।
केरल की पहली महिला नगरपालिका पार्षद
हलीमा बीवी, राजनीति में भी बहुत सक्रिय थी। उन्होंने बहुत सक्रियता के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिस्सा लिया था और वह कई बार गिरफ्तार भी हुई। साल 1953 में हलीमा बीवी ने कोच्चि में मुजाहिद महिला सम्मेलन में भाषण दिया था। इसके अलावा उनके कई अन्य भाषण भी बहुत प्रसिद्ध हुए। हलीमा कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता और डीसीसी की सदस्य भी थी। वह त्रावणकोर की नगरपालिका की पहली महिला पार्षद भी थी।
साल 2000 में हलीमा बीवी ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। हलीमा बीवी, महिला सशक्तिकरण का एक प्रतीक हैं। मुस्लिम धार्मिक सुधार और सामाजिक आंदोलनों के इतिहास में उनकी अद्वितीय उपस्थिति हैं। पत्रकारिता, राजनीति, शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन के लिए उनका योगदान न केवल केरल में बल्कि भारतीय महिला इतिहास में एक समृद्ध विरासत है। हलीमा बीवी के जीवन के सफ़र को “हलीमा बीवी- द जर्नलिस्ट” के नाम से एक किताब में भी दर्ज किया जा चुका है।
स्रोतः