लक्ष्मी एन. मेनन का परिचय केवल एक राजनयिक तक सीमित नहीं है। एक बेहतरीन राजनयिक होने के साथ-साथ उन्होंने बतौर सामाजिक कार्यकर्ता महिला अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए काम किया। वह आज भी महिला संगठनों के लिए एक मार्गदर्शक मानी जाती हैं। इसके साथ-साथ बतौर लेखक और शिक्षक उन्होंने महिलाओं को अकादमिक संस्थानों तक भी पहुंचाया। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी महिलाओं और भारत का प्रतिनिधित्व किया।
शुरुआती जीवन
लक्ष्मी मेनन का जन्म त्रिवेंद्रम में साल 1899 में हुआ था। उनके पिता रामवर्मा थम्पन और माता माधविकुट्टी अम्मा थीं। मेनन की शुरुआती शिक्षा महाराजा स्कूल से हुई थी। इसके बाद वह महाराजा आर्ट्स कॉलेज से इतिहास में बीए करने पहुंची। मेनन ने अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान में परास्नातक भी किया। एक शिक्षक के तौर पर मेनन ने अपना करियर महाराजा आर्ट्स कॉलेज में ही शुरू किया। इसके बाद साल 1922 में मेनन ने मद्रास के लेडी विलिंगटन ट्रेनिंग कॉलेज में शिक्षक का पद संभाला। साथ ही मेनन ने द मारिया ग्रे ट्रेनिंग कॉलेज, लंदन का एक दौरा किया, जहां वह एनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू और मार्गरेट कजिन्स जैसे लोगों के मार्गदर्शन में रहीं और उनके विचारों से काफी प्रभावित हुईं।
मेनन ने साल 1930 में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वीके नंदन मेनन से शादी की। यह बाद में त्रावनकोर और पटना विश्वविद्यालयों के कुलपति भी रहे। मेनन ने शादी के बाद लखनऊ में बतौर प्रोफेसर इसाबेला थोबर्न कॉलेज में भी पढ़ाया। इसी दौरान उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की और साल 1935 तक वकालत की प्रैक्टिस की। 1939 में मेनन ने फ्रेंच भाषा भी सीखी। 1951 से 1953 तक वह पटना के महिला प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्राचार्य रहीं और इसी दौरान उन्होंने सामुदायिक लंच जैसे कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं को अपने लिए समय निकालने और कार्यस्थल पर एक स्वतंत्र माहौल तैयार करना था।
राजनीतिक जीवन
साल 1927 में जब वह लंदन में पढ़ रही थीं। यहां उनकी मुलाक़ात पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई। तब वह मॉस्को में सोवियत संघ की 10वीं वर्षगांठ समारोह का हिस्सा थीं। बाद में वह रूस में भी एक साथ किसी सम्मेलन में शामिल हुए थे। साल 1948 और 1950 के दौरान मेनन संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं की स्थिति पर बने एक पैनल के लिए चुनी गईं। अमेरिका के अपने दौरे के दौरान उन्हें नेहरू का संदेश मिला= “तुम्हें तुरंत भारत लौट जाना चाहिए, आपको राज्यसभा के उम्मीदवार के रूप में नामांकित किया गया है।” वह शुरू में दिलचस्पी नहीं ले रही थीं। फिर वह नेहरू के सुझाव पर सहमत हुईं और बिहार से राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं। उस समय वह पटना के महिला प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्राचार्य थीं। शुरू में, उन्होंने सोचा कि वह दोनों जिम्मेदारियों को एकसाथ निभा सकती हैं। बाद में, नेहरू ने उन्हें उप-मंत्री का पद देने की बात कही तो उन्होंने सीधे मना कर दिया। फिर मेनन ने संसदीय सचिव का पद स्वीकार किया।
मेनन के काम से प्रभावित होकर उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा में नियुक्त किया गया था। उन्होंने भारत की विदेश नीति को ढालने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह साल 1952 से 1957 तक विदेश मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में बनी रहीं और भारत की विदेश नीति को समझा। मेनन ने नेहरू के पंचशील समझौते और गुटनिरपेक्षाता की नीति के विचार को आगे बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही मेनन 1957 से 1962 तक उपमंत्री के पद पर आसीन रहीं। साल 1966 तक वह राज्यमंत्री रहीं और 1967 में लक्ष्मी ने राजनीतिक सेवा से सेवानिवृत ली और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में प्रवेश किया।
सामाजिक कार्य
अपने राजनीतिक जीवन से सेवानिवृत्ति के बाद मेनन अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की संरक्षक और अध्यक्ष रहीं। जहां उन्होंने महिला सशक्तिकरण और कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काम किया। उन्होंने महिलाओं में निरक्षरता के उन्मूलन के लिए अखिल भारतीय समिति की अध्यक्ष के रूप में काम किया। 1972 से 1985 तक मेनन ने कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। मेनन ने मोरारजी देसाई के साथ अखिल भारतीय निषेध परिषद के उपाध्यक्ष के तौर पर भी काम किया और जॉनसन जेई और एपी उदयभानु के साथ अल्कोहल एंड ड्रग इंफॉर्मेशन सेंटर की भी स्थापना भी की थी।
मेनन ने महिलाओं के जीवन को संबोधित करते हुए जो किताबें लिखीं उनमें ब्रेस्टफीडिंग: ए रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड राइट ईशू और बीइंग मदर फ्रेंडली: ए प्रैक्टिकल गाइड फॉर वर्किंग वुमेन जैसी किताबें शामिल हैं। बाद में उन्होंने ब्रेस्टफीडिंग एंड ग्रिन्डिंग रियलिटीज़: वुमेन एंड ब्रेस्टफीडिंग इन द इनफोर्मल सेक्टर किताब भी लिखी। मेनन मोरारजी देसाई के साथ अखिल भारतीय निषेध परिषद की उपाध्यक्ष भी रहीं और जीवन के आखिर तक इसके अध्यक्ष के रूप में काम करती रहीं। 30 नवंबर 1994 को मेनन ने अपनी आखिरी सांसें लीं।