विजयलक्ष्मी पंडित भारतीय इतिहास का वो नाम हैं जिन्होंने अपने कार्यों से भारत और उसकी राजनीति को लगभग चार दशकों तक अपनी सेवा प्रदान की। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनायिक और नेता थीं। हिंदुस्तान के प्रभुत्वशाली नेहरू परिवार से आने के कारण भले ही परिवार की छाप उनके नाम के साथ हमेशा रही हो लेकिन उन्होंने वृहत तौर पर काम करके अपनी अलग छाप बनाई। विजयलक्ष्मी पंडित ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इतना ही नहीं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वह कई बार जेल भी गई थी।
शुरुआती जीवन
विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म ब्रिटिश भारत में 18 अगस्त 1900 को उत्तर प्रदेश के जिले इलाहाबाद में हुआ था। इनकी माता का नाम स्वरूप रानी नेहरू और पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था। उनकी प्रारंभिक पढ़ाई मुख्य रूप से इलाहाबाद के उनके घर आनंद भवन से ही हुई। इनका विवाह 1921 में काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील रंजीत सीताराम पंडित से हुआ। शादी के बाद ही उन्होंने विजयलक्ष्मी नाम अपनाया था। अपने परिवार के अन्य सदस्यों की तरह वे भी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से सक्रिय तौर पर जुड़ीं। वह महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थी।
आंदोलन और राजनीति में योगदान
राजनैतिक परिवेश वाले घर में जन्मी विजयलक्ष्मी की रुचि राजनीति, आंदोलन और राष्ट्र विकास में रही। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में आंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। साल 1916 में लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन में उन्होंने हिस्सा लिया। वह सरोजनी नायडू और एनी बेसेंट से बहुत प्रभावित हुई थी। 1920 में उन्होंने अहमदाबाद के निकट एक आश्रम में महात्मा गांधी के साथ समय गुजारा। वह, वहां रोजमर्रा के काम के साथ डेरी से जुड़ा काम और कताई भी किया करती थी। उन्होंने ‘यंग इंडिया’ के दफ्तर में भी काम किया था।
विजयलक्ष्मी पहली ब्रिटिश राज में कैबिनेट के पद पर रहने वाली पहली भारतीय महिला थीं। साल 1936 में उन्होंने आम चुनाव में हिस्सा लिया था और 1937 में संसद की सदस्य बनी थीं। 1937 में वह यूनाइटेड प्रॉविसेंज विधानमंडल के लिए निर्वाचित हुई और वह सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री के पद नियुक्त हुईं। लेकिन उन्होंने अपने बाकी साथियों के साथ 1939 में, ब्रिटिश भारत का द्वितीय विश्व युद्ध में भागीदारी के प्रति विरोध प्रदर्शित करने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया था।
भारत के आजादी के आंदोलन में विजयलक्ष्मी ने लंबा समय जेल में भी गुजारा था। साल 1931 से 1933 के समय वह 18 महीने जेल में रही। 1942 भारत छोड़ो आदोलन के समय भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। अपनी रिहाई के बाद उन्होंने साल 1943 में बंगाल में अकाल पीड़ित लोगों की साहयता की। वह ‘सेव द चिल्ड्रेन फंड कमेटी’ की अध्यक्ष बनी और उन्होंने विशेषतौर पर बच्चों के लिए काम किया। 1944 अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने भारतीय विधवा विरासत कानून में बदलाव के लिए ऑल इंडिया वीमन्स कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर आंदोलन चलाया।
संयुक्त राष्ट्र में पहली महिला अध्यक्ष
भारतीय स्वतंत्रता के बाद राजनायिक के तौर पर काम किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1946-48 में उन्होंने राजदूत के रूप में भारतीय डेलिगेशन अर्थात प्रतिनिधि मंडल का मॉस्को में नेतृत्व किया। ऐसे ही वर्ष 1954-61 में संयुक्त राष्ट्र और स्पेन में 1958-61 तक भारतीय राजदूत के रूप में प्रतिनिधित्व किया। साल 1953 में विजयलक्ष्मी पंडित, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यू.एन. जनरल असेंबली) के आठवें सत्र में पहली महिला अध्यक्ष बनीं। स्वतंत्र भारत में पंडित राजनयिक के रूप में सामने आईं। 1954-61 तक वह इंग्लैंड के लंदन में हाई कमिश्नर के पद पर रहकर कार्य किया। विजयलक्ष्मी की बेबाकी वर्ष 1945 में भी देखी जा सकती है जब वह अमेरिका में भाषण देने गईं और भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में और ब्रिटिश राज के विपक्ष में अपना पूरा भाषण दे कर आईं। वह भारतीय संविधान निर्माण के लिए बनाई गई संविधान सभा की पंद्रह महिलाओं में से एक थी।
1954-61 तक वह इंग्लैंड के लंदन में हाई कमिश्नर के पद पर रहकर कार्य किया। 1962-1964 तक विजयलक्ष्मी महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में कार्यरत रहीं। उसके बाद उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र फूलपुर, उत्तरप्रदेश से लोकसभा चुनावों में हिस्सा लिया और वह वहां से निर्वाचित हुईं। साल 1979 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
विजयलक्ष्मी ने 1941-1943 में ऑल इंडिया वीमंस कांफ्रेंस की अध्यक्षता भी की थी। इसी के साथ वह लैंगिक समानता और महिलाओं के हित में भी काम करती रही। वह हमेशा महिलाओं के अधिकारों के लिए मुखर रही। स्वतंत्रता संघर्ष के अपने साथियों, एच.एन. कुंजरु और शिवा राव के साथ, 1945 में हुए पैसिफिक रिलेशन कांफ्रेंस में भी उन्होंने भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया।
आपातकाल के फैसले पर इंदिरा गांधी का किया विरोध
साल 1975 की इमरजेंसी के दौरान उन्होंने कांग्रेस का काम पसंद नहीं आ रहा था। वह आपातकाल के ख़िलाफ़ थी उन्होंने इंदिरा गांधी के फैसलों की जमकर आलोचना की थी। इसी के बाद से उनका मन राजनीति से हटने लगा और 1977 में वह सेवानिवृत हुईं। इसके बाद वह जनता पार्टी के लिए सामने आईं। वहां उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रति सार्वजनिक रूप से अपनी नाराज़गी जताई और जनता पार्टी को चुनाव जीतने में मदद की। 1979 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में प्रतिनिधित्व करने के बाद वह सार्वजनिक जीवन से सेवानिवृत्त हुईं और देहरादून चली गईं।
विजयलक्ष्मी पंडित ने कई किताबें भी लिखी थी। उनकी लिखी कुछ किताबें ‘द इवोल्यूशन ऑफ इंडिया’, ‘द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस: ए पर्सनल मेमोयर’ और ‘प्रीज़न डेज़’ है। 1 दिसंबर,1990 को विजयलक्ष्मी पंडित ने देहरादून के अपने घर में आखिरी सांसें लीं। विजयलक्ष्मी पंडित भारतीय इतिहास का एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर भारतीय महिला के तौर पर उपस्थिति दर्ज करायी और अपना नाम विश्व की सबसे सशक्त महिलाओं में दर्ज़ कर लिया।
स्रोतः