‘मम्मी मेरा नाश्ता ला दो और मेरा स्कूल बैग भी तैयार कर दो जल्दी से’, सुबह-सुबह नाश्ते की टेबल पर राहुल ने माँ को पुकारते हुए कहा। अभी ला रही हूँ, किचन से प्रिया की आवाज़ आई। तभी दूसरी तरफ से टीना ने आवाज़ दी – मम्मी, मेरी इंग्लिश की बुक नहीं मिल रही है! प्लीज जल्दी ढूंढ कर दे दो। ‘आ रही हूँ बेटा’- प्रिया ने टीना को जवाब दिया। भागते-दौड़ते घर के और बच्चों के काम निपटाते हुए प्रिया ने दीवार घड़ी की ओर नज़र दौड़ाई। उसमें घंटे की सुई आठ पर पहुँच कर प्रिया को ऑफिस के लिए देर होने का इशारा कर रही थी। लेकिन क्या किया जा सकता था। बच्चे भी तो उसके थे। उसी को संभालना था। हालांकि प्रिया के पति आकाश नाश्ते की टेबल पर आराम से नाश्ता कर रहे थे लेकिन उन्होंने उठ कर बच्चों के कामों को करने की कोई कोशिश नहीं की। ये सारे काम रोज़ के थे और प्रिया को ये काम रोज़ ही करने होते थे।
बच्चे अपने कामों के लिए माँ को ही पुकारते थे। वे अपने पिता को केवल बाहर घूमने जाने या पैसों के लिए याद करते थे। इन सब कामों के अलावा उसे ऑफिस भी जाना होता था। प्रिया एक एमबीए की हुई पढ़ी-लिखी नौकरी पेशा महिला है। रोज़ की इस भाग दौड़ और उलझन भरी ज़िन्दगी से वह अब तंग आ गई है। तनाव के कारण प्रिया के सिर में दर्द की शिकायत अधिक रहने लगी है और उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन अधिक आ गया है। इसीलिए उसने जल्द ही नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया है। असल में प्रिया अपने घर में ‘डिफ़ॉल्ट पैरेंट’ की भूमिका में है।
डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम क्या है?
डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम एक ऐसा मुद्दा है जिसको मनोविज्ञान की दुनिया में अधिक व्यापक रूप से स्वीकार किया जा रहा है। इस मुद्दे पर अब चर्चा भी खुल के हो रही है। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि आज के समय में बात बराबरी की हो रही है और महिलाएं भी पुरुषों के साथ मिलकर कार्यभार उठा रही हैं। शादी के बाद दोनों पार्टनर काम पर जाते हैं और घर की जिम्मेदारियों को आपस में बांट लेते हैं। बच्चा होने के बाद जब ऐसी स्थिति आती है कि दोनों में से बच्चे की पूरी ज़िम्मेदारी या अधिक ज़िम्मेदारी कौन ले? कई जगह देखा गया है कि बच्चे को संभालने की ज़िम्मेदारी दोनों पार्टनर बराबर उठाते हैं। मगर ऐसे केस कम ही देखने को मिलते हैं। ज़्यादातर केस ऐसे देखने को मिलते हैं जहां बच्चे को संभालने और उनकी परवरिश करने की जिम्मेदारी सिर्फ एक पैरेंट पर ही डाल दी जाती है (अधिकतर यह कार्य महिलायें करती हैं)। इसी स्थिति को ‘डिफॉल्ट पैरेंट’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, डिफ़ॉल्ट पैरेंट वही होता है जो बच्चे के बारे में प्रश्न होने पर पहले प्रत्युत्तर देने वाला होता है। विशेषज्ञ डिफ़ॉल्ट माता/पिता को मुख्य रूप से बच्चे से संबंधित हर चीज के प्रभारी के रूप में परिभाषित करते हैं। ‘सिंड्रोम’ को लक्षणों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो लगातार एक साथ होते हैं। इसमें राय, भावनाओं या व्यवहारों का एक विशिष्ट संयोजन भी शामिल है।
जब हम इन दोनों अवधारणाओं (डिफ़ॉल्ट पैरेंट और सिंड्रोम) को एक साथ रखते हैं, तो हम देख सकते हैं कि कैसे डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम केवल एक व्यक्तिगत समस्या से अधिक है; बल्कि, यह एक व्यवस्थित और सामूहिक अनुभव है जिसमें पालन-पोषण और घर से संबंधित कार्यों के लिए प्राथमिक देखभाल प्रदान करने में महिलाओं और माताओं के प्रति पूर्वाग्रह है। यह पूर्वाग्रह काफी हद तक पितृसत्तात्मक सांस्कृतिक इतिहास के दशकों का उत्पाद है जो हमारे पूरे समय में विभिन्न तरीकों से विकसित होता रहा है।
डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम में परिवार के अंदर बच्चे से जुड़ी सभी या ज्यादातर जिम्मेदारियां किसी एक पैरेंट पर होती हैं जबकि दूसरा पैरेंट इन सब कार्यों में लगभग निष्क्रिय भूमिका निभाता है। इसमें एक ही एक्टिव पैरेंट होता है जिसके ऊपर बच्चे की परवरिश से जुड़ी ज्यादा या सारी जिम्मेदारियां होती हैं। डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम से अधिकतर ग्रस्त औरतें होती हैं। परिणामस्वरूप इसके कारण से उन्हें अपने करियर या मर्जी और पसंद की चीजों के साथ समझौता करना पड़ता है।
महिलाओं के प्रति पक्षपात
इस डिफ़ॉल्ट भूमिका को पूरा करने के प्रति पूर्वाग्रह के साथ यह एक प्रणालीगत अनुभव है। दिलचस्प बात यह है कि हम ऐसे समय में रह रहे हैं जहां कई महिलाएं स्वीकार करती हैं कि उनके पुरुष साथी सहायक, व्यस्त और उन्हीं के साथ सक्रिय पैरेंट हैं। फिर भी कई घरों में बच्चों के पालने का कठिन कार्य मुख्य रूप से महिलाओं के कंधों पर पड़ता है और उनपर हमेशा भारीपन बना रहता है। बच्चे के शौच करने पर या नाक आने पर माँ को ही आवाज़ दी जाती है। बच्चों के स्कूल के कार्य में माँ ही हाथ बांटती है। बच्चों के कपड़े बदलने, नहलाने जैसी ज़िम्मेदारियां भी माँ को ही करनी होती हैं। बच्चों को स्कूल बस तक छोड़ने जाने वाले पैरेंट को यदि देखा जाये तो पता चलेगा कि उन्हें बस तक छोड़ने आने वाली ज़्यादातर माताएं ही हैं।
डिफ़ॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम के दुष्प्रभाव
डिफ़ॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम से ग्रसित महिलाओं में सबसे अधिक रोग चिंता और डिप्रेशन का होता है। नींद का न आना, सिर दर्द, भूलने की बीमारी भी इसी के अन्य बड़े दुष्प्रभाव हैं। डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम की वजह से एक्टिव पैरेंट में चिड़चिड़ाहट, थकान, गुस्सा या नाराजगी पैदा हो जाती है। कई बार इसके कारण परिवार के अंदर गलत पॉवर डाइनेमिक भी बन जाता है। बच्चों के सामने जेंडर रोल और जिम्मेदारियों को लेकर गलत उदाहरण पेश होते हैं। बच्चे यही सोचते हैं कि घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी केवल महिला (माँ) की होती है। एक्टिव पैरेंट को अपनी नौकरी को छोड़ना पड़ता है या उसके साथ समझौता करना पड़ता है।
माताएं आमतौर पर डिफ़ॉल्ट पैरेंट क्यों होती हैं ?
लगभग सभी घरों में महिलाएं ही ‘डिफ़ॉल्ट पैरेंट’ होती हैं। बच्चों का सब काम, घर का कार्यभार, सभी काम महिलाओं के कंधों पर होता है। कुछ घरों में ‘टू-डू सूची’ का प्रभार महिलाओं के कन्धों पर लाद दिया जाता है। लेकिन कई घरों में न चाहते हुए भी एक माँ डिफ़ॉल्ट पेरेंटिंग भूमिका ग्रहण कर लेती है। क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करती है तो उसे एक ‘अच्छी माँ’ न होने की उपाधि मिल जाती है।
माताओं के डिफ़ॉल्ट पैरेंट होने के पीछे पितृसत्तात्मक प्रणाली
इतिहास में अगर पीछे की ओर जाया जाए तो पता चलता है कि दोनों पैरेंट में से पिताओं की अपेक्षा माताओं ने हमेशा अपने बच्चों के लिए प्राथमिक पैरेंट की भूमिका निभाई है। अगर देखा जाए तो हमारे समाज में, सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में यही पितृसत्तात्मक प्रणाली काम कर रही है। और हम सभी इसी प्रकार की पितृसत्तात्मक विश्वास प्रणाली के साथ ही बड़े हुए हैं। यह एक ऐसी संरचना है जहां पुरुष प्राथमिक रूप से कमाने वाला होता है और महिला घर और बच्चों के पालन-पोषण की सभी चीजों से संबंधित होती है। जो माताएं ऐसा नहीं करती बल्कि अपनी नौकरी को या अन्य किसी कार्य को बच्चों पर तरजीह देती हैं उन्हें बुरी माँ माना जाता है। क्योंकि पितृसत्तात्मक प्रणाली के अनुसार बच्चों की देखभाल का जिम्मा माताओं का है। उनका कहना है कि पिता ऐसा करते अच्छे नहीं लगते या उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
डिफ़ॉल्ट पैरेंट होने का संघर्ष
डिफ़ॉल्ट पैरेंट के रूप में कार्य करने वाली माताएँ अपनी सिंगल मदर समकक्षों की तुलना में अधिक घरेलू कार्य करती हैं। माता-पिता दोनों वाले घर में, डिफ़ॉल्ट पैरेंट का आवाज़ देने पर हमेशा जवाबदेह होना और व्यवधान डालने वाला होने में कोई गौरव नहीं है। डिफ़ॉल्ट पैरेंट होना पालन-पोषण, ऊर्जा, धैर्य और अन्य जगहों से उपस्थिति को कम करता है। डिफ़ॉल्ट पैरेंट के पास हमेशा बहुत क्षमता, ऊर्जा मौजूद हो ऐसा ज़रूरी नहीं है। कई बार डिफ़ॉल्ट पैरेंट की मानसिक स्थिति और क्षमता भी जवाब दे देती है।
कई लोग यह नहीं मानते हैं कि परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी माता को ‘डिफ़ॉल्ट पैरेंट’ की पहचान नहीं करने के नकारात्मक परिणाम होते हैं। उदाहरण के लिए, “गैर-डिफ़ॉल्ट पैरेंट” निम्न बातें अनुभव कर सकते हैं जैसे डिफ़ॉल्ट माता की क्षमता के बारे में अवास्तविक अपेक्षाएं, डिफ़ॉल्ट माता से भावनात्मक वियोग और साथी द्वारा दूरी और पालन-पोषण के कौशल या देखभाल करने की गुणवत्ता में कमी, जिससे बच्चों के साथ संबंधों में दरार भी आ सकती है।
इसी तरह, जो बच्चे एक ऐसे सिस्टम के भीतर रहते हैं जहां डिफॉल्ट पैरेंट सिंड्रोम मौजूद है, वे अनुभव कर सकते हैं:
- डिफ़ॉल्ट माता की क्षमता के बारे में अवास्तविक अपेक्षाएं। बच्चों कि नज़र में माँ के काम की अहमियत नहीं रह पाती है।
- गैर-डिफ़ॉल्ट पिता के लिए कम उम्मीदें,
- माता की थकान और हताशा के स्तर के कारण डिफ़ॉल्ट माता के साथ संबंध की गुणवत्ता में कमी। क्योंकि डिफ़ॉल्ट माता हमेशा थकी-थकी और काम करने में ही व्यस्त रहती हैं।
- संपर्क और देखभाल के अवसर की कमी के कारण गैर-डिफ़ॉल्ट पिता के साथ संबंध की गुणवत्ता में कमी। कई फॅमिली में बच्चे डिफ़ॉल्ट माता के साथ अधिक जुड़ जाते हैं क्योंकि वह उनकी हर आवाज़ पर उपस्थिति होती है।