सहमति से सेक्स की उम्र क्या हो भारत में इस पर एक लंबी बहस चल रही है। समय-समय पर सहमति से सेक्स की न्यूनतम उम्र को घटाने पर विचार की भी गुजारिश की गई है। अदालतें, सरकार से बार-बार कह रही हैं कि सहमति से यौन संबंध से जुड़े कानून पर सोचें। दरअसल भारत में सहमति से सेक्स की आयु दिल्ली गैंगरैप के बाद जारी बलात्कार विरोधी अध्यादेश में इसे बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी। इस बदलाव के बाद से किशोरावस्था में सहमति के यौन संबंध बनाने वाले नौजवान अपराधी होने का सामना कर रहे हैं।
बाल अधिकारों पर यूनाइटेड नेशन कन्वेशन के अनुच्छेद 34 पर व्याख्या करते हुए जस्टिस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि पॉक्सो ऐक्ट के तहत सहमति की उम्र 16 से कम कर देनी चाहिए। कहा गया था कि पॉक्सो ऐक्ट का उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार से बचाना है न कि दो व्यक्तियों के बीच सहमति से सेक्स को अपराधीकरण करना है अगर उन दोनों की उम्र 18 साल से कम की है।
लगातार इस विषय में चर्चा चलती आ रही है। बीते वर्ष नवंबर में कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा भारत के विधि आयोग से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की जा चुकी है। इतना ही नहीं भारतीय मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड भी सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र के विषय में विचार करने के लिए संसद से अपील कर चुके हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ओर से आपसी सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 करने की बात की गई है।
क्यों उठ रही है इस पर मांग
दरअसल इज्ज़त के नाम पर भारतीय समाज में ख़ासतौर पर लड़कियों की यौनिकता को नियंत्रित किया जाता है। ऐसे किशोर लड़के-लड़कियों की सहमति से बने संबंधों में लड़के को आरोपी बना देने के कई मामले सामने आ चुके हैं। किशोर अवस्था में लड़का और लड़की के एक-दूसरे के प्रति आकर्षण और उसके बाद सहमति से यौन संबंध बनाए। लेकिन जहां लड़की की उम्र 17 साल या 18 से थोड़ी कम है और लड़के की पूरी 18 भी है तो लड़के पर कठोर धाराओं पर तहत कार्रवाई होती है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के अनुसार हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से सहमति से सेक्स की उम्र घटाने की वकालत करते हुए कहा है कि क्रिमिनल लॉ एक्ट में संशोधन ने समाज के ताने-बाने को बिगाड़ दिया है जिसका परिणाम किशोर लड़के भुगत रहे हैं।
क्या है पॉक्सो ऐक्ट
भारत में सहमति से सेक्स करने की उम्र 18 साल है। साथ ही भारत में बालिग होने की उम्र भी 18 साल है। पॉक्सो ऐक्ट, 2012 के तहत आईपीसी के कई प्रावधानों के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चे पर यौन हमला करता है उसे सात साल की सजा जो आजीवन कारावास और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अगर लड़की की उम्र 16 साल है तो पॉक्सो के तहत वह बच्ची ही मानी जाएगी। किसी भी प्रकार की यहां उसकी सहमति नहीं मानी जाएगी और शारीरिक संबंध को बलात्कार माना जाएगा। पॉक्सो ऐक्ट में संशोधन के बाद पेनिटरेटिव यौन हमले और गंभीर यौन उत्पीड़न के मामलों की सजा को दस और बीस साल बढ़ा दी गई थी। साथ ही आजीवन कारावास और जुर्माना के अलावा मृत्युदंड भी हो सकता है।
द हिंदू में छपी रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ सालों में ऐसे कई उदाहरण हैं जब अदालतों ने बलात्कार और अपरहण के मामलों को इस आधार पर निश्चित होते हुए निरस्त किया है कि कानून का दुरुपयोग या एक पक्ष को लाभ मिल रहा है। अक्सर इन मामलों में आईपीसी की धारा 366, पॉक्सो ऐक्ट की धारा छह और बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा-9 के तहत मामले दर्ज किए जाते हैं।
क्या कानून का दुरुपयोग हो रहा है?
कई अदालतें इस तरह के फैसलें सुना चुकी हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा था कि एक नाबालिग लड़के और लड़की के इस तरह के आपराधिक मुकदमे के प्रभाव से परिवार समेत सभी को बहुत परेशानी हो रही हैं। कभी-कभी दो किशोर के बीच रिश्ते को खराब करने के लिए माता-पिता केस दायर करते हैं। द स्क्रोल में छपी ख़बर कर्नाटक हाई कोर्ट इस तरह के मामले में विधि आयोग से पोक्सो ऐक्ट के तहत समहति से सेक्स की उम्र पर दोबारा से पुनर्विचार के लिए कह चुका है। इसी तरह मद्रास हाई कोर्ट की तरफ से भी 16 से 18 साल की उम्र के बीच बने यौन संबंधों को पॉक्सो कानून से बाहर लाने का सुझाव दे चुकी है। न्यायाधीश वी पार्थिबन ने पोक्सो के तहत 10 साल की सजा पाए एक आरोपी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह सुझाव दिया था।
साल 2019 पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट द्वारा हुई रिसर्च “व्हाय गर्ल रनअवे मैरिज”के अनुसार भारत में सहमति से सेक्स की उम्र, जल्दी शादी पर अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में किशोरों की स्थिति और सामाजिक और कानूनी स्थिति को जांचा गया है। सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए सहमति की उम्र कम करने, बड़े किशोरों को कानून के दुरुपयोग से बचाने, माता-पिता द्वारा बच्चे को नियंत्रित करना कि वे किससे शादी करना चाहते है जैसे मुद्दों का अध्ययन किया गया है। कई मामलों में माता-पिता के विरोध की वजह से जोड़ा भाग जाता है। उसके बाद ऐसी स्थिति पैदा होती है कि परिवार मामला पुलिस में मामला दर्ज कराता है जो लड़के पर पॉक्सो ऐक्ट के तहत बलात्कार और आईपीसी या आईपीसी के तहत शादी के इरादे से अपहरण का मामला दर्ज करते हैं।
भारत में बढ़ रहे हैं पॉक्सो के मामले
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार बच्चों के ख़िलाफ़ बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे है। क्राइम इन इंडिया 2011 के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में 7112 मामले आईपीसी की धारा 376 के तहत दर्ज किए गए थे। वहीं 2019 के आंकड़ों के मुताबिक ऐसे मामले 4977 दर्ज किए गए। यह कमी इसलिए देखी गई की साल 2019 में पॉक्सो ऐक्ट के तहत यौन हिंसा के मामले अलग से दर्ज किए गए। साथ ही 2019 का डाटा यह भी दर्शाता है कि पॉक्सो की धारा-4 और धारा-6 के 26,192 मामले दर्ज किए गए। बच्चों के ख़िलाफ़ बलात्कार के मामलों की दर 2011 में 0.6 थी जो 2019 में बढ़कर 5.9 तक हो गई। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के ख़िलाफ़ यौन अपराधों की रिपोर्टिंग बढ़ गई है। लेकिन इसका एक तथ्य यह भी हो सकता है कि बलात्कार की परिभाषा पॉक्सो ऐक्ट तहत भी विस्तारित की गई है।
पॉक्सो के तहत मिली शिकायतें सहमति से बने रिश्ते
डीडब्ल्यू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के तीन राज्यों में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज हुए मामलों को लेकर एक अध्ययन किया गया। साल 2022 में हुए इस अध्ययन में पाया गया था कि 23.4 फीसद मामले सहमति से बने रिश्ते थे। जहां सर्वाइवर और आरोपी के बीच यौन संबंध आपसी सहमति के बाद बनाए गए थे। इस सर्वे में पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र के 7,064 मामलों की जांच की गई। यह सर्वे यूनिसेफ और यूएनएफपीए ने एक हेल्थ ट्रस्ट के साथ मिलकर किया था। इस रिपोर्ट में इन केसों में नोट किया गया कि 70.8 प्रतिशत मामलों में लड़की के माता-पिता ने पुलिस को सूचना दी थी।
“एक दशक का समय कानून में बदलाव के बाद निकल गया है। बड़ी संख्या में लोग इन केसों को उठा रहे हैं लेकिन कही कोई चर्चा नहीं है। ठीक है एक कानून बनाया गया था उस वक्त माहौल अलग था और अपराधीकरण करके चीजों को नियंत्रित करने का सोचा गया था। ऐसा नहीं है कि तब विरोध नहीं हुआ था जो लोग इस क्षेत्र में सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं वे लगातार इस बात को उठा रहे हैं।”
सहमति से सेक्स के संबंधों पर क्या है राय
इस विषय पर हमने कई लोगों से बातचीत की इसमें मेडिकल की पढ़ाई करने वाली छात्रा श्रेया का कहना है, “विज्ञान के अनुसार 8 से 15 साल की उम्र में लड़का हो या लड़की दोनों प्यूबर्टी हासिल करते हैं। ऐसे में उनके शरीर में बहुत बदलाव होते हैं। इन्ही बदलावों में से एक है अपने से विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण और यह बहुत सामान्य है। इस प्रक्रिया में किशोर इन बदलावों को जानने समझने के लिए भी बहुत उत्सुक होते हैं। ऐसे में अक्सर युवा एक-दूसरे के प्रति आकर्षित भी होते हैं और वे अपनी उत्सुकता और आकर्षण में सहमति से सेक्स तक पहुंच जाते हैं। बिना कानूनी जानकारी और सामाजिक स्थिति को समझे वे ऐसी गतिविधियां करते हैं। इसलिए हमारे देश में भी सहमति से सेक्स की उम्र अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर हो तो ज्यादा बेहतर रहेगा।”
‘एक दशक बाद कानून का रिव्यू होना चाहिए’
इस विषय में क्रिया संस्था में बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम करने वाली बबीता सिन्हा का कहना हैं, बात जब हिंसा, पसंद, अधिकारों और सहमति की आती है हम उसे केवल कानून के परिदृश्य से देखते हैं। तो फिर हमें सिर्फ काला या सफेद ही चीजें समझ में आती है और देखना भी वहीं तक चाहते है। लेकिन चीजें इससे हटकर होती है। अगर पॉक्सो के कानून के संदर्भ में ही बात करे तो जब यह कानून बनाया गया था तभी अपराधीकरण की बात पर भी विरोध किया गया था। जो लोग अधिकारों को लेकर काम कर रहे हैं हम सब जानते हैं अपराधीकरण करने से ये घटनाएं बंद नहीं होंगी। हम इस तरह के बदलाव करके चीजों को बढ़ावा ही देते है। पॉक्सो के कानून को भी दाँवपेंज की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। जिन लोगों को इससे फायदा पहुंच रहा हैं वे लाभ ले रहे हैं। क्योंकि हमारे समाज में हर तरह की प्रथाओं से लड़कियों और महिलाओं को नियंत्रित किया जाता है। तो इस कानून को भी इस्तेमाल कर रहे हैं।”
वे आगे कहती हैं, “हमारे भारतीय समाज में सहमति और पसंद के अधिकारों को ताक पर रख दिया जाता है। और जब हम अदालत और न्याय प्रणाली के बारे में बात कर रहे है तो हमें ये भी देखना चाहिए कि ये कितना बड़ा मानवाधिकार का उल्लंघन भी है। एक लड़की की 18 साल की उम्र हो जाने पर परिवार उसकी शादी कर देता है। अगर वह अपनी पसंद से उम्र पूरी होने के एक महीना पहले शादी करती है तो उसे अपराध बता दिया जाता है। तो कंसेंट, पसंद और यौनिकता का पूरा पहलू ही बाहरी मूल्यों पर नियंत्रित किया जाता है और कानून और न्याय को लेकर भी बात ऐसे ही आगे बढ़ती है। साथ ही हमें पॉक्सो के तहत आने वाले इस तरह के मामलों को इंटरसेक्शनल लैंस भी देखना चाहिए। अक्सर लड़के-लड़कियों के इस तरह के मामलों में जाति की राजनीति भी शामिल होती है। अगर युवा अपनी जाति, समुदाय से अलग अपने साथी का चुनाव करते हैं तो वहां पर इसमें वर्ग, जाति भी मुद्दा होता है और इस तरह के मामलों में पॉक्सो को हथियार बनाकर इस्तेमाल किया जा रहा है।”
“एक दशक का समय कानून में बदलाव के बाद निकल गया है। बड़ी संख्या में लोग इन केसों को उठा रहे हैं लेकिन कही कोई चर्चा नहीं है। ठीक है एक कानून बनाया गया था उस वक्त माहौल अलग था और अपराधीकरण करके चीजों को नियंत्रित करने का सोचा गया था। ऐसा नहीं है कि तब विरोध नहीं हुआ था जो लोग इस क्षेत्र में सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं वे लगातार इस बात को उठा रहे हैं। लेकिन क्या समय के बाद कानून का रिव्यू नहीं होना चाहिए, क्या स्टेट को इस दिशा में सोचना नहीं चाहिए। साथ ही इसे सहमति के अधिकार और पसंद के अधिकार से जोड़कर भी देखना चाहिए।”
दूसरे देशों में क्या है उम्र
भारत में पॉक्सो ऐक्ट 2012 से पहले यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन राइट्स ऑफ चाइल्ड के अनुसार बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रतिबंध था। दुनिया के कई देशों में सहमति से सेक्स की उम्र 16 वर्ष है। फिलीपींस में यह 12 वर्ष है। दुनिया के सभी देशों में सहमति की सबसे कम उम्र नाइजीरिया में 11 साल है। यूरोप के अधिकतर देशों में 14 से 16 वर्ष सहमति की उम्र है। द गार्डियन में छपी ख़बर के अनुसार हाल में यौन अपराधों से जुड़े कानून में बदलाव करते हुए जापान में सहमति से सेक्स की उम्र 13 से बढ़ाकर 16 की गई है। गौरतलब है कि दुनिया भर में सहमति से सेक्स की उम्र को लेकर अलग-अलग राय है। भारत में पहले यह उम्र 16 ही थी। अब 18 साल के बाद से नौजवान लड़कों पर इसका बुरा असर देखने को मिल रहा है। नौजवान लड़के अपराधी बनकर जेलों में डाले जा रहे हैं। भारत जैसे देश में जहां सेक्स बहुत ही टैबू विषय है उस पर खुलकर चर्चा नहीं होती है। वहां किशोरों पर नैतिकता के आधार पर पहरेदारी और किशोरावस्था में यौन संपर्कों को व्यापता से देखने की आवश्यकता है।
अपडेटः 14 जुलाई 2023 को एक केस की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट ने देश में सेक्स के लिए सहमति की उम्र कम करने पर सोचने के लिए कहा है। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार अदालत ने उदाहरण देते हुए कहा है कि कई अन्य देशों में सहमति की उम्र 14 से 16 साल के बीच है। अदालत ने तर्क देते हुए कहा है कि वर्तमान की 18 साल की उम्र वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है। सहमति से नाबालिगों के संबंधों के लिए उन्हें सजा देना उनके हित में नहीं होगा। जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल जज बेंच ने कहा है कि पॉक्सो ऐक्ट विपरीत सेक्स प्रति स्वाभाविक भावनाओं को नहीं रोक सकता है ख़ासकर किशोरों में बॉयोलोजिकली और मनोवैज्ञानिक बदलावों के कारण। अदालत ने कहा है कि एक नाबालिग लड़के को एक नाबालिग लड़की के साथ संबंध बनाने के लिए दंड देना बच्चे के सर्वोत्तम हित के ख़िलाफ़ होगा।