इंटरसेक्शनलजेंडर कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करते नर्सिंग पेशेवर

कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करते नर्सिंग पेशेवर

नर्सिंग के क्षेत्र की पहचान ऐसे कार्यस्थलों में की गई है जहां कई स्तर पर बुलिंग होती है। नर्सिंग में जेंडर के आधार पर उत्पीड़न से तात्पर्य उनकी लैंगिक पहचान के कारण अनुभव किए गए दुर्व्यवहार से है। यह समस्या पुरुष और महिला दोनों नर्सों को प्रभावित कर सकती है।

कार्यस्थल पर सभी के साथ गरिमा और सम्मान का व्यवहार होना किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का पहला अधिकार है। लेकिन काम और पेशे को लेकर आने वाले पूर्वाग्रह की वजह से लोगों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इसी तरह कुछ लोग नर्स को धमकाने का अपना काम मानते हैं वे उनके काम को कम करके देखते हैं। यह व्यापक समस्या भेदभाव का एक रूप है जो पुरुष और महिला दोनों तरह के नर्सों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, उनके पेशेवर विकास में लगातार बाधा डालती है। इतना ही नहीं जेंडर के आधार पर महिला नर्सों के साथ भेदभाव और उत्पीड़न भी होता है। सहकर्मचारियों से लेकर मरीज और अन्य लोगों के द्वारा उन्हें अपमानित किया था और उनके साथ दुर्रव्यवहार किया जाता है।

नर्सिंग के क्षेत्र में बुलिंग 

नर्सिंग के क्षेत्र की पहचान ऐसे कार्यस्थलों में की गई है जहां कई स्तर पर बुलिंग होती है। नर्सिंग में जेंडर के आधार पर उत्पीड़न से तात्पर्य उनकी लैंगिक पहचान के कारण अनुभव किए गए दुर्व्यवहार से है। यह समस्या पुरुष और महिला दोनों नर्सों को प्रभावित कर सकती है। एक तरह से उनके लिए प्रतिकूल और असुविधाजनक कार्य वाले वातावरण का निर्माण कर देती है। जेंडर आधारित उत्पीड़न विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकता है जैसे कि रूढ़िबद्धता, उत्पीड़न, भेदभाव, असमान अवसर, शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण, रोगियों का पूर्वाग्रह आदि।

नर्सिंग एडमिनिस्ट्रेटिव क्वार्टली की रिपोर्ट के अनुसार 34 फीसदी नर्से बुलिंग के कारण अपना काम छोड़ देती है या छोड़ने का सोचती है। नर्सों के साथ बुलिंग कई स्तर पर हो सकता है। साल 2018 के जर्नल नर्सिंग मैनेजमेंट के अध्ययन के अनुसार 60 फीसदी नर्स मैनेजर, डायरेक्टर और अधिकारियों ने कार्यस्थल पर बुलिंग का सामना किया है।

विश्व स्तर पर हुए कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि नर्सों को कार्यस्थल पर उत्पीड़न का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। अमेरिकन नर्सिंग एसोसिएशन के मुताबिक़ चार में एक नर्स उत्पीड़न का सामना करते हैं। केवल 20-60 प्रतिशत केस ही दर्ज हो पाते हैं। नर्सिंग पेशे में कार्यस्थल पर नर्सो के साथ लगातार होने वाले उत्पीड़न को एक गंभीर मुद्दा माना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कार्यस्थल पर उत्पीड़न  में वैश्विक वृद्धि को नर्सों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक गंभीर खतरे के रूप में पहचाना है। इसने प्राथमिकता के तौर पर व्यावसायिक हिंसा को कम करने की आवश्यकता पर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। 

कार्यस्थल पर उत्पीड़न तब होता है जब किसी कर्मचारी को लंबे समय तक नकारात्मक व्यवहार का सामना करना पड़ता है, जिसके खिलाफ कोई स्वयं का बचाव करने में असमर्थ महसूस करने लगता है। ये नकारात्मक व्यवहार व्यक्तिगत हो सकते हैं, जैसे कि व्यक्तिगत विशेषताओं, गपशप और सामाजिक अभाव के साथ-साथ काम से संबंधित प्रकृति की अत्यधिक आलोचना आदि। किसी की उपलब्धियों को लगातार कमतर आंकना और अनुचित अपेक्षाएं या शारीरिक धमकी जैसे आक्रामक टिप्पणियां और किसी की निजता पर आक्रमण आदि करना।

तस्वीर साभारः Health Times

नर्सिंग एडमिनिस्ट्रेटिव क्वार्टली की रिपोर्ट के अनुसार 34 फीसदी नर्से बुलिंग के कारण अपना काम छोड़ देती है या छोड़ने का सोचती है। नर्सों के साथ बुलिंग कई स्तर पर हो सकता है। साल 2018 के जर्नल नर्सिंग मैनेजमेंट के अध्ययन के अनुसार 60 फीसदी नर्स मैनेजर, डायरेक्टर और अधिकारियों ने कार्यस्थल पर बुलिंग का सामना किया है। इनमें से 26 फीसदी ने बुलिंग को गंभीर माना है। दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. माया जॉन, जो यूनाइटेड नर्सेज ऑफ इंडिया से भी जुड़ी है का कहना है कि सार्वजनिक अस्पतालों में कई ऐसे क्षेत्र भी है, जो विशाल संरचनाओं वाले है, परंतु खराब रोशनी वाले है और महिलाओं के लिए बहुत असुरक्षित है। 

कार्यस्थल पर नर्सो को कई तरह से उत्पीड़ित किया जाता है। रेखा कुमार (बदला हुआ नाम) बिजनौर की रहने वाली है। वह एक एएनएम कर्मचारी है और उत्तर प्रदेश के एक जिला अस्पताल में काम करती है। कार्यस्थल पर सुरक्षा के विषय पर उनका कहना है कि मेरी ज्वाइनिंग अभी कुछ ही महीने हुए है। जब मैं इस हॉस्पिटल में आई तो यहां के अन्य हिस्सों से अपरिचित थी। तब मेरे साथ अंधेरी जगह पर छेड़खानी करने का प्रयास किया गया था। 

नर्सिंग में लैंगिक उत्पीड़न से संबंधित आंकड़े

जेंडर के आधारित पर उत्पीड़न और भेदभाव में आपत्तिजनक टिप्पणियां, लिंगभेदी चुटकुले या यहां तक कि अनुचित शारीरिक गतिविधि भी शामिल है। ये व्यवहार अपमानजनक है और प्रतिकूल कार्य वातावरण बना सकते है। ऐसे व्यवहार आमतौर पर पर्यवेक्षकों या सहकर्मियों द्वारा भी किये जाते हैं। एक अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि 48% पंजीकृत नर्सों ने स्वीकार किया कि उन्हें कार्यस्थल पर पिछले छह महीनों में उत्पीड़न का सामना किया है। 35% ने बताया कि उन्होंने इसे साप्ताहिक रूप से अनुभव किया था और 28% ने बताया कि उन्होंने इसे दैनिक रूप से अनुभव किया था।

नर्सिंग के क्षेत्र में कार्यस्थल पर सीनियर नर्स द्वारा युवा सहकर्मियों को बुली करने के मामले भी सामने आए हैं। सीनियर नर्स, युवा सहकर्मियों के अनुभव की कमी या काम के छोटे-छोटे तत्वों से अपरिचितता का फायदा उठाते हैं। पुरुष नर्स, महिला नर्सों को धमका सकते हैं। जानबूझकर किसी सहकर्मी को बातचीत या समूह की गतिविधि में शामिल न होने देना, किसी सहकर्मी के बारे में अफवाह फैलाना।

नर्सों के प्रति रोगी का पूर्वाग्रह 

नर्सों के प्रति रोगी का पूर्वाग्रह एक चिंताजनक मुद्दा है जो स्वास्थ्य सेवा वितरण की गुणवत्ता और नर्सिंग पेशेवरों के खिलाफ़ है। इसमें लिंग, जाति, उम्र या यहां तक कि नर्स की उपस्थिति या उच्चारण सहित विभिन्न कारकों के आधार पर नर्सों के प्रति रोगियों और उनके परिवारों द्वारा प्रदर्शित पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता या भेदभावपूर्ण व्यवहार शामिल है। रोगी के पूर्वाग्रह के कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जो समग्र रूप से स्वास्थ्य विभाग के साथ साथ समाज पर भी इसका हानिकारक परिणाम देखने को मिलता है। 

रोगियों के द्वारा भेदभाव का सामना एक पुरुष और महिला नर्स में से दोनों को सामना करना पड़ता है। मरीज़ पुरुष नर्सों की क्षमता पर सवाल उठा सकते हैं, यह मानते हुए कि वे कम देखभाल करने वाले या कुशल हैं, या महिला नर्सों के बारे में निराधार धारणाएं रख सकते हैं, जैसे कि शारीरिक रूप से कठिन कार्य करने की उनकी क्षमता नही है। मरीजों के पूर्वाग्रह पर बतौर एएनएम काम करते हुए मेरा अनुभव रहा है, “नर्सो के ख़िलाफ़ मरीजों का पूर्वाग्रह हम सभी को बेहद अपमानित महसूस कराता है। ये तो हम नर्से हमेशा ही महसूस करती हैं, बहुत से मरीज पूर्वाग्रह से ग्रसित होते है, वे हमसे इंजेक्शन नहीं लगवाना पसंद करते हैं। उनका मानना होता है की नर्स जब इंजेक्शन लगाती हैं तो बहुत अधिक दर्द होता है, जबकि डॉक्टर के लगाने पर ऐसा नहीं होता है। मरीज के साथ आये हुए परिजन हमेशा चाहते है कि उनके मरीज का सारा काम, उनका सारा ट्रीटमेंट मुख्य डॉक्टर ही करें। उनका नर्सो के प्रति जो रवैया होता है वह बिलकुल निंदनीय और अपमानजनक होता है।”

दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. माया जॉन, जो यूनाइटेड नर्सेज ऑफ इंडिया से भी जुड़ी है का कहना है कि सार्वजनिक अस्पतालों में कई ऐसे क्षेत्र भी है, जो विशाल संरचनाओं वाले है, परंतु खराब रोशनी वाले है और महिलाओं के लिए बहुत असुरक्षित है।

नर्सिंग में लैंगिक उत्पीड़न चिकित्सा क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित कर रही है 

अमेरिकन नर्सिंग सेंटर के अनुसार, कार्यस्थल पर उत्पीड़न बहुत निंदनीय है और इससे नर्सों के लिए विभिन्न नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। उत्पीड़न का सामना करना नर्सों में अवसाद, चिंता और संकट के लक्षणों से जुड़ा है। इसके अलावा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न से तनाव बढ़ सकता है और इन सहकर्मियों में नौकरी को लेकर संतुष्टि कम हो सकती है। इन परिणामों का स्वास्थ्य देखभाल संगठनों और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली देखभाल की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि वे नर्सिंग में काम करने वालो की संख्या को कम कर सकते हैं और कर्मचारियों के प्रतिस्थापन और भर्ती के मामले में अतिरिक्त और काफी अधिक लागत का सामना करना पड़ सकता है।


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