समाजपर्यावरण जलवायु संकट किस तरह से विकलांग लोगों के जीवन को प्रभावित करता है?

जलवायु संकट किस तरह से विकलांग लोगों के जीवन को प्रभावित करता है?

समावेशी इन्फ्रास्ट्रक्चर और व्यवहार न होने के कारण आपातकाल के समय विकलांग लोगों को अनेक तरह की भौतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस तरह का माहौल उनकी उपस्थिति को नज़रअंदाज करते हैं। व्यवहार, संचार, शारीरिक, नीतियां, सामाजिक बाधाएं आपातकाल के समय विकलांग लोगों अधिक संकट में डाल सकता है।

इस धरती पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति, जीव इसका हिस्सा है। प्रकृति के होने वाले बदलाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हर किसी के जीवन को प्रभावित करता है। हम उस दौर में है जहां जलवायु परिवर्तन एक भयानक रूप लेती जा रही है। समाज में हाशिये पर रहने वाले विकलांग, गरीब, महिलाएं, बच्चे, लैंगिक अल्पसंख्यक लोगों के जीवन के लिए पर्यावरणीय समस्या ज्यादा चुनौती लेकर आती है। विकलांगता के साथ जीने वाले लोगों की तुलना में मनुष्यों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अधिक तीव्रता से अनुभव होने की संभावना है। चाहे वह बाढ़, सूखा या तूफान की आपात स्थिति हो या समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी क्रामिक आपात स्थिति हो। 

विकलांग लोगों की जनसंख्या जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है क्योंकि विकलांग लोगों की बड़ी संख्या कम संसाधनों और गरीब में रहती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ अनुमानित 1.3 अरब लोग वैश्विक आबादी का लगभग 16 फीसदी वर्तमान में विकलांगता का सामना कर रही है। बावजूद इसके जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नीतियों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनका इनपुट और भागीदारी न्यूनतम है। जलवायु परिवर्तन के संबंध में विकलांग लोगों के बढ़ते जोखिमों को व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है। 

डिसीबिलिटी इनक्लूसिव क्लाइमेट एक्शन रिसर्च प्रोग्राम 2022 के अनुसार पेरिस समझौते के 193 स्टेट पार्टी में से केवल 37 वर्तमान में अपने राष्ट्रीय  स्तर पर निर्धारित योगदान में विकलांग व्यक्तियों का उल्लेख करते हैं, जबकि केवल 46 स्टेट पार्टी अपनी घरेलू जलवायु अनुकूल नीतियों में विकलांग लोगों को शामिल करते हैं। पर्यावरण आपदाओं के प्रभावों को कम करने वाली नीतियों में अक्सर विकलांगता अधिकारों पर चर्चा करने में विफल रहती हैं। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपात स्थितियों के दौरान जो लोग देख, सुन नहीं पाते हैं उन लोगों तक चेतावनी अलर्ट तक समान पहुंच नहीं हो सकती है। जिन लोगों की गतिशीलता प्रतिबंध होती है वे आश्रयों तक पहुंचने में सक्षम नहीं होते हैं। लेकिन नीतिकार यह सुनिश्चित करने में किसी भी तरह के प्रयास करने में विफल रहते हैं कि विकलांग लोगों तक पहुंच बनाई जाएं।

पर्यावरण से संबंधित आपातकाल के कारण विकलांग व्यक्ति संक्रामक रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं जो अक्सर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह और स्वतंत्र रूप से पानी और साफ-सफाई तक पहुंचने में बाधा बन सकते हैं।

जलवायु पर्रिवर्तन का विकलांग व्यक्तियों के जीवन पर असर 

जलवायु संबंधी खतरे विकलांग लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। हीटवेव्स जैसे प्रभाव स्वास्थ्य असमानता को बढ़ा देती है। साल 2022 में डब्ल्यूएचओ के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में विकलांग लोगों तक पहुंचने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर चेतावनी दी थी। विशेषज्ञों के मुताबिक़ विकलांग लोगों को गैर विकलांग लोगों की तुलना में स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच से वंचित किए जाने की संभावना तीन गुना अधिक है। पर्यावरण से संबंधित आपातकाल के कारण विकलांग व्यक्ति संक्रामक रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं जो अक्सर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह और स्वतंत्र रूप से पानी और साफ-सफाई तक पहुंचने में बाधा बन सकते हैं। उदाहरण के लिए कैटरीना तूफान के समय जो लोग देख नहीं पाते है और अन्य किसी तरह की विकलांगता वाले 155,000 लोगों पर असमान रूप से प्रभाव डाला।

समावेशी इन्फ्रास्ट्रक्चर और व्यवहार न होने के कारण आपातकाल के समय विकलांग लोगों को अनेक तरह की भौतिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस तरह का माहौल उनकी उपस्थिति को नज़रअंदाज करते हैं। व्यवहार, संचार, शारीरिक, नीतियां, सामाजिक बाधाएं आपातकाल के समय विकलांग लोगों अधिक संकट में डाल सकता है। नीतिगत बाधाएं ऐसी बाधा है जिसके कारण अनेक बाधाओं और असमानताओं को बल मिलता है। नीतिगत बाधाएं अक्सर जागरूकता की कमी या मौजूदा कानूनों को लागू करने से जुड़ी होती हैं। सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेनशन के अनुसार कार्यक्रमों और गतिविधियों को विकलांग लोगों के लिए सुलभ बनाना आवश्यक है। 

व्यवस्थागत तरीके से विकलांग लोगों को नज़रअंदाज किया जाता है

तस्वीर साभारः Ford Foundation

जब जलवायु संकट की बात आती है तो विकलांग लोगों को दुनिया भर की सरकारों द्वारा व्यवस्थित रूप से नजरअंदाज किया जा रहा है, भले ही वे विशेष रूप से पर्यावणीय बदलाव के प्रभावों से जोखिम में हों। इस मुद्दे की व्यापक समीक्षा के अनुसार कुछ देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल योजना बनाते समय विकलांग लोगों की ज़रूरतों के लिए प्रावधान करते हैं लेकिन किसी ने भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने कार्यक्रमों में विकलांग लोगों का उल्लेख नहीं किया है। डिसेबिलिटी इनक्लूजन इन नैशनल क्लाइमेट कमिटमेंट एंड पॉलिसी अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु संकट पर विकलांग लोगों को व्यवस्थित रूप से नज़रअंदाज किया जा रहा है। समावेशी माहोल न होने के कारण जलवायु संकट के समय व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले लोग फंसे रह जाते हैं। 

अध्ययन में उदाहरण देते हुए कहा गया है कि 2005 में अमेरिका में कैटरीना तूफान के समय व्हीलचेयर का उपयोग करने वाले लोग फंसे हुए थे क्योंकि निकासी की कोई योजना नहीं थी और वे गैर-अनुकूलित वाहनों का इस्तेमाल करने में असमर्थ थे। इस अध्ययन में विस्तृत जलवायु प्रतिज्ञाओं और नीतियों की जांच की, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के रूप में जाना जाता है जिन्हें देशों को 2015 के पेरिस समझौते के तहत प्रस्तुत करना होगा। अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान सहित प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं ऐसी मान्यता को शामिल करने में विफल रहीं। साथ स्टडी में पाया गया कि जिन देशों ने विकलांग लोगों के लिए विशिष्ट संसाधन शामिल किए उनमें से अधिक ने ऐसा सरसरी तरीके से, विकलांग लोगों के परामर्श करने या उनके अधिकारों का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए तंत्र शामिल किए बिना किया। 

डिसेबिलिटी इनक्लूजन इन नैशनल क्लाइमेट कमिटमेंट एंड पॉलिसी अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु संकट पर विकलांग लोगों को व्यवस्थित रूप से नज़रअंदाज किया जा रहा है। समावेशी माहोल न होने के कारण जलवायु संकट के समय व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाले लोग फंसे रह जाते हैं। 

विकलांग लोगों को सशक्त बनाने का वातावरण बनाना है ज़रूरी

बीबीसी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार डिसएब्लड पीपल अगेनस्ट कट्स के एंडी ग्रीन का मानना है कि विकलांग लोगों को जलवायु परिवर्तन की चर्चाओं में शामिल होने की अधिक ज़रूरत है। विशेष तौर पर जब नए कानून लाए जाते हैं क्योंकि सरकारें अक्सर विकलांग लोगों पर कानून के प्रभाव को नज़रअंदाज कर देती है।  प्लास्टिक स्ट्रा के बैन की करवाई इसका उदाहरण है। सिंगल यूज प्लास्टिक बैन के बाद से प्लास्टिक स्ट्रा बंद होने के कारण विकलांग लोगों के जीवन पर अलग तरह से प्रभावित करती है क्योंकि कुछ लोगों विकलांगता की वजह से स्ट्रा की मदद से ही पानी या अन्य पेय पदार्थ पी पाते हैं। प्लास्टिक से बना स्ट्रा ज्यादा आसानी तक हर किसी की पहुंच में है। 

ठीक इसी तरह पर्यावरण संरक्षण के लिए साइकिल को प्रमोट करना और साइकिल लेन के लिए रास्ता बनाने के लिए विकलांग पार्किंग बे को हटाना। इस तरह का भेदभाव का वर्णन करने के लिए एको एबलिज़्म शब्द का उपयोग किया जा रहा है और यह नीति-निर्माताओं और कार्यकर्ताओं की इस बात पर विचार करने में विफलता को दर्शाता है कि कुछ पर्यावरणीय कार्रवाई विकलांग लोगों के जीवन को और कठिन बनाती है इसलिए विकलांग लोगों को केवल ध्यान में रखते हुए नहीं बल्कि उनसे विचार-विमर्थ करते हुए नीतियों को बनाने और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।

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