इतिहास पप्पा उमानाथ: अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की संस्थापक सदस्य और महिला अधिकार कार्यकर्ता

पप्पा उमानाथ: अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की संस्थापक सदस्य और महिला अधिकार कार्यकर्ता

पप्पा को सीपीआईएम तमिलनाडु राज्य समिति में और बाद में केंद्रीय समिति के लिए चुना गया। वह 1989 में तिरुचि जिले के तिरुवेरुम्बुर निर्वाचन क्षेत्र से तमिलनाडु विधानसभा के लिए भी चुनी गईं। विधानसभा में वह एक जुझारू व्यक्ति के तौर पर जानी जाती थीं।

साल 1989 में तमिलनाडु विधानमंडल के समक्ष ‘महिला संपत्ति अधिनियम’ लाया गया। कुछ पुरुष विधायकों ने इसके विरोध में महिलाओं के अधिकारों की नकल करते हुए कहा, ‘हम (पुरुष) रात 12 बजे बाहर जा सकते हैं। क्या आप आ सकती हैं?’ तभी एक महिला विधायक खड़ी होती हैं और कहती हैं, ‘महिलाएं बाहर नहीं आ सकतीं क्योंकि आप जैसे लोग रात में बाहर घूम रहे हैं।’ पूरी विधानसभा स्तब्ध रह गई। मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इस जवाब की चतुराई का आनंद लिया और फिर ये कानून पारित कर दिया गया। वह महिला विधायक पप्पा उमानाथ थीं। उसी साल वह तिरुवेरमपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुनी गईं। जीवन भर अपनी बहादुरी के लिए जानी जाने वाली पप्पा को लोग ‘कॉमरेड बहादुरी’ और ‘शेर बच्ची’ भी कहते हैं।

पप्पा उमानाथ का जीवन किसी फिल्म से कम नहीं था। उन्हें जन्म से ही ‘कॉमरेड’ कहा गया। बचपन में रेलवे यूनियन कार्यालय में खेलती पप्पा की परवरिश कामरेड जीवा, पी. राममूर्ति, और एम. कल्याणसुंदरम जैसे नेताओं की देख-रेख में हुई। आज़ादी से पहले और बाद के उग्र श्रमिक वर्ग आंदोलनों की अनुभवी और तमिलनाडु में कम्युनिस्ट आंदोलन के वरिष्ठ नेताओं में से एक, कॉमरेड पप्पा उमानाथ ने युवा अवस्था में अपने कई वर्ष जेल में बिताए और दशकों तक महिला आंदोलन में सबसे आगे रहीं। वह मल्लू स्वराज्यम, कनक मुखर्जी, लक्ष्मी सहगल, अहिल्या रंगनेकर, मंगलेश्वरी देब बर्मा, मंजरी गुप्ता, इला भट्टाचार्य, सुशीला गोपालन और विमल रणदिवे जैसे साथियों के साथ अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं।

छोटी उम्र में, पप्पा ने अपनी माँ और रेलवे कर्मचारियों के साथ कई आंदोलनों में भाग लिया। वह केवल 12 वर्ष की थीं जब उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए रेलवे कर्मचारियों के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

कब हुआ जन्म

बचपन में ‘धनलक्ष्मी’ के नाम से जानी जाने वाली पप्पा का जन्म 5 अगस्त 1931 को कराईकल के पास एक गांव कोविलपट्टु में हुआ। उनकी माँ अलमेलू (या लक्ष्मी) जेल अधिकारियों के खिलाफ 23 दिनों के भूख हड़ताल के बाद जेल में मरने वाली पहली महिला थीं। अपने पति के निधन के बाद लक्ष्मी गोल्डन रॉक, तिरुचिरापल्ली चली गईं। लक्ष्मी ने रेलवे कर्मचारियों के लिए गोल्डन रॉक रेलवे वर्कशॉप के पास एक कैंटीन शुरू की। कैंटीन में आने वाले रेलवे कर्मचारी धनलक्ष्मी को ‘पप्पा’ (छोटी बच्ची) कहकर बुलाते थे।  इस तरह धनलक्ष्मी बन गईं पप्पा। 

बचपन से सामाजिक लड़ाइयों में रही आगे

छोटी उम्र में, पप्पा ने अपनी माँ और रेलवे कर्मचारियों के साथ कई आंदोलनों में भाग लिया। वह केवल 12 वर्ष की थीं जब उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए रेलवे कर्मचारियों के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।  हालांकि नाबालिग होने के कारण मजिस्ट्रेट ने उन्हें रिहा कर दिया। वह 1946 में हड़ताल के दौरान रेलवे कर्मचारियों के साथ थीं और उन्होंने पोनमलाई में पुलिस गोलीबारी में पांच श्रमिकों की हत्या होते देखी थी। 1947 में आज़ादी के बाद जनता का संघर्ष जारी रहा। 1948 में रेलवे एसोसिएशन की मान्यता रद्द कर दी गई। कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस कारण माँ-बेटी पार्टी का काम करने के लिए चेन्नई चली गई।

भूख-हड़ताल शुरू होने के 23वें दिन वीरताई लक्ष्मी अम्माल की मृत्यु हो गई। इस बीच जेल प्रशासन ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वह पार्टी छोड़ देंगी तभी वह अपनी माँ के अंतिम संस्कार में जा सकती हैं। पप्पा ने जेल प्रसाशन की यह शर्त न मानते हुए अपने हड़ताल पर डटी रही।  

भूख हड़ताल से पप्पा की माँ की मृत्यु

पी राममूर्ति, श्रीनिवास राव और एम कल्याणसुंदरम जैसे वरिष्ठ नेता गिरफ्तारी से बचने के लिए उनके साथ रहे। लेकिन परिवार के सदस्यों को 1950 में गिरफ्तार कर लिया गया और सैदापेट जेल में बंद कर के उन्हें यातनाएं दी गईं। कॉमरेड उमानाथ, कल्याणसुंदरम, आलवंदर, लक्ष्मी अम्माल, पांडियन और पप्पा ने जेल में हो रही क्रूरता की निंदा करते हुए भूख हड़ताल शुरू कर दी। पप्पा को पहले कमरे में और लक्ष्मी अम्माल को चौथे कमरे में बंद किया गया था।

तस्वीर साभार: The Hindu, Tamil

सामने खाना  देने के बावजूद उन्होंने खाने से साफ इनकार किया। लगभग 10 दिन बाद उन्हें सुनाई देना कम हो गया। भूख-हड़ताल शुरू होने के 23वें दिन वीरताई लक्ष्मी अम्माल की मृत्यु हो गई। इस बीच जेल प्रशासन ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वह पार्टी छोड़ देंगी तभी वह अपनी माँ के अंतिम संस्कार में जा सकती हैं। पप्पा ने जेल प्रसाशन की यह शर्त न मानते हुए अपने हड़ताल पर डटी रही। इतिहास में दर्ज है कि लक्ष्मी अम्मा जेल में भूख हड़ताल पर मरने वाली पहली महिला थीं।

शादी के बाद का जीवन

अदालत ने फैसला सुनाया कि प्रतिबंध और गिरफ्तारी गलत थी और सभी को बरी कर दिया गया। पप्पा पोनमलाई वापस आकर ट्रेड यूनियन द्वारा संचालित पत्रिका की उप-संपादक के रूप में कई गलत कामों का पर्दाफाश किया। अपनी रिहाई के बाद पप्पा ने अन्नामलाई विश्वविद्यालय के छात्र कॉमरेड उमानाथ से शादी की, जिन्होंने पार्टी का काम करने के लिए अपनी शिक्षा छोड़ दी थी। दाम्पत्य जीवन सुखमय था। उनके तीन बच्चे हुए, जिनके नाम लक्ष्मी नेत्रवती, वासुकी और निर्मलरानी हैं। विधानसभा के सदस्य बालभारती का कहना है कि उनके पूरे जीवन में कभी छोटी सी भी लड़ाई नहीं हुई। पप्पा और उमानाथ के मित्रों की मंडली बहुत बड़ी थी जिसमें क्रांतिकारी कवि भारतीदासन, लोकप्रिय कवि पट्टुकोट्टई, अभिनेत्री राधा और भावलार वरदराजन भाई जैसे कई लोग शामिल थे। 

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होना

तस्वीर साभार: The New Indian Express

1962 में उन्हें सुरक्षा कैदी के रूप में वेल्लोर जेल भेज दिया गया। निरंतर राजनीतिक रुझानों के कारण 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी दो भागों में विभाजित हो गई। पप्पा और उमानाथ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गये। 9 दिसंबर, 1973 को मदुरई के डिंडीगुल में पप्पा ने लोकप्रीय नेत्री, केपी जानकी अम्मल के साथ एक महिला संगठन की शुरुआत की, जिसका नाम ‘तमिलका डेमोक्रेटिक मटर संगम’ रखा गया। इस संगठन को महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को समाप्त करने और नारीवादी सोच को बढ़ावा देने के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से आगे बढ़ने के लिए तैयार किया गया। पप्पा उमानाथ को संगठन की प्रथम संयोजिका चुना गया। 1981 से इस संस्था ने ‘ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक मदर्स एसोसिएशन’ के नाम से काम करना शुरू किया।

पप्पा को सीपीआईएम तमिलनाडु राज्य समिति में और बाद में केंद्रीय समिति के लिए चुना गया। वह 1989 में तिरुचि जिले के तिरुवेरुम्बुर निर्वाचन क्षेत्र से तमिलनाडु विधानसभा के लिए भी चुनी गईं। विधानसभा में वह एक जुझारू व्यक्ति के तौर पर जानी जाती थीं।

पद्मिनी केस में पप्पा की भूमिका

यह संगठन महिलाओं के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में खड़ा था। 1992 में चोरी के एक मामले में कथित संदिग्ध की पत्नी पद्मिनी अन्नामलाई नगर पुलिस स्टेशन पर ले जाया गया जहां पुलिस ने सामूहिक बलात्कार किया। उनके पति नंदगोपाल को 30 मई 1992 को पूछताछ के लिए चिदंबरम के अन्नामलाई नगर पुलिस स्टेशन ले जाया गया और 2 जून 1992 तक हिरासत में रखा गया। नंदगोपाल की पुलिस के अत्याचार में मौत हो गई थी। पूरे तमिलनाडु में मथार संगम के कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई। कोर्ट में मुकदमा भी चला। पुलिसकर्मियों को 10 साल की सजा और पद्मिनी को न्याय दिलाने और एक लाख के मुआवजे के साथ सरकारी नौकरी दिलाने में पप्पा ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की।

सामाजिक कामों में आगे रही पप्पा

पप्पा को सीपीआईएम तमिलनाडु राज्य समिति में और बाद में केंद्रीय समिति के लिए चुना गया। वह 1989 में तिरुचि जिले के तिरुवेरुम्बुर निर्वाचन क्षेत्र से तमिलनाडु विधानसभा के लिए भी चुनी गईं। विधानसभा में वह एक जुझारू व्यक्ति के तौर पर जानी जाती थीं। वह महिलाओं के साथ रोजाना हो रहे हिंसा को लेकर मंत्रियों से गुहार लगाया करती थी। उयाकोंडान नदी की शाखा चैनल में विष्णुवथलाई नामक एक बांध था जिसे आक्रमणकारियों ने ताला लगाकर बंद कर दिया। पानी नहीं आ रहा था और उन्होंने यह भी कहा कि वहां कोई शैतान है। विधान सभा में पप्पा ने मंत्रियों से जोर दिया कि वे इसे खोलें। 1986 में विश्व शांति सम्मेलन में भाग लेने के लिए पप्पा मैथिली शिवरामन के साथ रूस गईं। वहां उनकी मुलाकात वेलेंटीना से भी हुई जो अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला थीं। 17 दिसंबर, 2010 को 80 वर्ष की आयु में एक संक्षिप्त बीमारी के बाद तिरुचि में कॉमरेड पप्पा का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार पोनमलाई संघ में एक बड़े जुलूस के साथ हुआ।

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