अपनी फसलों के लिए न्यूनत समर्थन मूल्य यानी एमएसपी समेत कई मांगों को लेकर भारत के किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं। पंजाब-हरियाण की सीमा शंभू बॉर्डर पर टैक्टरों की लंबी-लंबी कतारे लगी हुई हैं। ‘दिल्ली चलो मार्च’ के तहत पंजाब से आ रहे किसानों को कई लेयर बैरिकेंटिग करके रोका गया है। सीमेंट के बैरिकेट, सड़क में कील गाढ़ने के साथ-साथ उन पर पानी की बौछारें और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। इतना ही नहीं किसानों पर आंसू गैस छोड़ने के लिए सरकार ने ड्रोन का सहारा लिया। एक तरफ तो किसानों के प्रतिनिधियों से बातचीत चल रही थी दूसरी तरफ उनके साथ ऐसा बर्ताव किया गया। सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में घायल किसानों की तस्वीरें भी सामने आई है। किसानों ने अपनी मांग के लिए 16 फरवरी को संयुक्त किसान मोर्च और ट्रेड यूनियन ने भारत बंद का एलान किया था जिसका असर भी साफ देखने को मिला। सरकार और किसानों के बीच बैठकों का दौर जारी है।
क्यों किसान विरोध कर रहे हैं?
किसान इससे पहले काले कृषि कानूनों को लेकर सिंघु बॉर्डर पर विरोध कर चुके हैं। 13 महीने बाद आखिर में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेस में ऐलान करते हुए तीनों बिलों को रद्द करते हुए किसानों की मांगों को मांगने की बात कही थी लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत अन्य वादों पर सरकार की कथनी और करनी में अंतर रहा और एक बार फिर से किसानों ने दिल्ली कूच करने का एलान किया। किसान फसलों के लिए कानून द्वारा न्यूतम समर्थित मूल्य (एमएसपी) की गांरटी की मांग कर रहे हैं। इसके साथ कर्ज मांफी और पिछले आंदोलन में किसानों पर हुए मुकदमें वापस लेने की भी मांग कर रहे हैं। सरकार ने किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य सी2+50% लागू नहीं किया जैसा कि एम.एस.पी. ने सिफारिश की। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार सरकार एक बेंचमार्क स्थापित करन के लिए हर साल 20 से अधिक फसलों के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा करती है लेकिन राज्य एजेंसियां समर्थन स्तर पर केवल चावल और गेहूं खरीदती है जिससे लगभग सात फीसदी किसानों को लाभ होता है।
साल 2021 में सरकार ने काले कानूनों को रद्द करते हुए कहा था कि वह सभी उपज के लिए समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के तरीके खोजने के लिए उत्पादकों और सरकारी अधिकारियों का एक पैनल स्थापित करेगी। किसानों ने सरकार पर वादा पूरा करने में धीमी गति से चलने की बात कही है। कृषि नीति विशेषज्ञों का तर्क है कि राज्य द्वारा निर्धारित न्यूतम समर्थन मूल्य पर सभी कृषि उपज खरीदना आर्थिक रूप से अव्यवहारिक है। किसानों का मुख्य मुद्दा सरकार द्वारा निर्धारित तय कीमतों फसलों की खरीदारी पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर है ताकि किसान अपनी मेहनत का सही मूल्य हासिल कर सकें।
बड़ी संख्या में किसान हुए घायल
किसानों को रोकने के लिए दिल्ली और हरियाणा पुलिस ने एड़ी चोटी का जोर लगाया और इस संघर्ष में काफी किसान घायल हुए हैं। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त किसान मोर्चा नेता दर्शन पाल ने कहा कि एसकेएम पंजाब ने जनता विरोध के लिए टोल प्लाजा को मुक्त करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि पंजाब- हरियाणा की शंभू सीमा पर विरोध प्रदर्शन में 100 से अधिक किसान घायल हो गए हैं। रिपोर्टों से पता चलता है कि पुलिस द्वारा इस्तेमाल की गई रबर की गोलियों से करीब 130 किसान घायल हो गए हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार शंभू बॉर्डर पर गुरदास पुर जिले के चाचेकी गाँव के रहने वाले 65 वर्षीय किसान ज्ञान सिंह की मौत हो गई।
वहीं पंजाब स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार अब तक तीन किसानों की आंखों की रोशनी खराब हो गई है। पंजाब स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर बलबीर सिंह ने कहा है, “अब तक तीन किसानों की आंखें खराब हो गई है। एक मरीज जीएमसीएच 32 चंड़ीगढ़ और दो राजेन्द्र हॉसपिटल पटियाला में एडमिट थे। हमने उनका परीक्षण किया लेकिन उनकी आंखों को बचाया ना जा सका। हरियाणा पुलिस ने केवल पानी और आंसू गैस शैल छोड़े बल्कि गोलियां और पैलेट गन का भी इस्तेमाल किया।” मंत्री ने साथ में यह भी कहा कि लगभग दर्जन भर किसान पैलेट से जख्मी है। हालांकि हरियाणा एडीजीपी ने कहा है कि आंसू गैस के अलावा रबड़ बुलेट का इस्तेमाल किया है।
मीडिया पर रोक, स्वतंत्र मीडिया के अकाउंट संस्पेड
किसान आंदोलन को हर स्तर पर कमजोर करने के लिए सरकार कोई कमी नहीं छोड़ रही है। एक तरफ सरकारी प्रो मीडिया किसान आंदोलन के बारे में प्रोपगैंडा फैला रहा है वही स्वतंत्र मीडिया को आंदोलन कवर करने से रोका जा रहा है। आंदोलन के चलते हरियाणा के सात जिलों में इंटरनेट भी बंद किया। किसान नेता समेत पत्रकारों के सोशल मीडिया हैंडल को बंद कर दिया गया है। द स्क्रोल में प्रकाशित ख़बर के अनुसार सरवन सिंह पंढेर, तेजवीर सिंह अंबाला, रमनदीप सिंह मान, सुरजीत सिंह फुल और हरपाल संघा सहित किसान नेताओं के एक्स (ट्विटर) और फेसबुक पेज को भारत में रोक दिया गया है। किसानों के विरोध पर रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार संदीप सिंह, मनदीप पुनिया के एक्स अकाउंट बुधवार दोपहर को ही रोक दिए गए। मनदीप पुनिया द्वारा संचालित खेती-किसानी पर ख़बरें देने वाले हैंडल गांव सवेरा और उनके यूट्यूब चैनल को भी हटा दिया गया। विरोध प्रदर्शन से जुड़ी जानकारी देने वाले अन्य पेजों को भी भारत में ब्लॉक कर दिया है जिनमें टैक्टर टू ट्विटर, भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह) शामिल हैं। भारतीय किसान यूनियन ( शहीद भगत सिंह) हरियाणा के अंबाला जिले में विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठनों में से एक है। सोशल मीडिया अकाउंट के ख़िलाफ़ कार्रवाई सरकार ने पहले भी की थी।
एक तरफ मीटिंग का दौर शुरू
किसानों के दिल्ली चलो मार्च के बाद अब तक किसान संगठनों और सरकार के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है। केंद्र सरकार ने पंजाब-हरियाणा सीमाओं पर पर चल रहे विरोध प्रदर्श को खत्म करने के लिए चौथी दौर की बैठक 18 फरवरी को देर रात एक बजे खत्म हुई। पिछले दौर की सारी बातचीत अनिणार्यक रही क्योंकि किसानों की एमएसपी की मांग की कानूनी गांरटी को साफ तौर पर संबोधित करने में सरकार विफल रही। सरकार की तरफ से बातचीत के लिए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पीयूष गोयल और नित्यानंद राय शामिल रहे। इस मीटिंग के शुरू होने से पहले किसान नेताओं की ओर से कहा गया कि गेंद सरकार के पाले में है।
18 फरवरी को देर रात चौथे दौर की वार्ता खत्म होने के बाद सरकार की ओर से मीडिया को संबोधित किया गया। केंद्र सरकार ने एमएसपी पर पांच साल की योजना सहित कुछ और प्लान पेश किए। वहीं किसान नेताओं ने कहा कि हम किसानों से बाद करने के बाद ही आगे कदम उठाएंगे। किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए समय मांगा है। द टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के अनुसार इस बातचीत में सरकार ने किसानों के सामने दालों, मक्का और कपास पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाले प्रस्ताव की पेशकश की।
इस प्रस्ताव के बाद किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने सोमवार को को कहा कि सरकार को तिलहन और बाजरा को भी एमएसपी के तहत जोड़ना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा, “अगर केंद्र सरकार 21 फरवरी तक नहीं मानी तो हरियाणा भी आंदोलन में शामिल होगा। उन्होंने कहा कि सरकार के पास 21 तारीख का समय है। सरकार को सोचना होगा और समझना चाहिए यह दो चीजें हमारी महत्वपूर्ण फसल है जो बिकती नहीं है। आज सरसों बाजार में 4200 रूपये पर उपलब्ध है लेकिन यह एमएसपी से 2000 रूपये कम पर बिक रही हैं।” हालांकि सरकार का रवैया और कुप्रचार दिखाता कि सरकार खेती-किसानी से जुड़े मामलों को लेकर कोई गंभीर नहीं है लेकिन शंभू बॉर्डर पर टैक्टरों की कतार और किसानों के हौसले भी कम नहीं है और इस बार वे पूरी तैयारी के साथ के साथ अपनी मेहनत के वाजिब हकों को लेने आए हैं। द वॉयर में प्रकाशित ख़बर के अनुसार 19 फरवरी को देर रात किसान यूनियनों ने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। अब वे 21 फरवरी को दिल्ली मार्च के साथ आगे बढ़ेंगे।