किसी भी देश में बच्चे की शिक्षा या स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि बाकी जरूरतों पर भी परिवार खर्च के मामले में चिंता करते हैं। परिवारों में खासकर लड़कियों के लिए इस खर्च के लिए लोग या तो तैयार नहीं होते या झिझकते हैं। अक्सर महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य, खान-पान में कटौती की जाती है। लेकिन महिलाओं में निवेश करना आर्थिक अनिवार्यता ही नहीं मानवाधिकार मुद्दा भी है। जीवन में रास्ता तय करने के लिए शिक्षित होना, कमाऊ होना और अच्छा स्वास्थ्य जरूरी है। महिलाओं में निवेश करने से महिलाएं आगे बढ़ने में सक्षम होती हैं, जो समृद्धि में योगदान देती है जिसे वित्तीय रूप से मापा जा सकता है।
इसमें घर, परिवार से सरकार की नीतियों तक सब कुछ शामिल है। सामाजिक सुरक्षा की बात हो, या जलवायु परिवर्तन या फिर प्राकृतिक आपदा, महिलाएं हर तरह से ज्यादा प्रभावित होती हैं। आज दुनिया लोगों के समानता, स्वास्थ्य और खुशहाली की बात कर रही है। हमारे सतत विकास लक्ष्य ऐसे हैं कि हम महिलाओं को पीछे नहीं साथ लेकर चलने की बात करते हैं। वर्तमान वित्तीय प्रणाली लाभ से संचालित होती है। इसमें महिलाओं को बाहर रखा जा सकता है, अगर निवेशकों के हित महिलाओं की जरूरतों और प्राथमिकताओं के साथ मेल नहीं खाएं। महिलाओं पर निवेश न सिर्फ जरूरी है बल्कि यह भी जरूरी है कि सही समय पर उचित निवेश किया जाए। यह समझना जरूरी है कि महिलाओं पर आर्थिक निवेश से उनकी आर्थिक स्वतंत्रता और समृद्धि सुनिश्चित होगी।
महिलाओं पर निवेश के माध्यम से स्वायत्तता और गरिमा की बात
महिलाओं में निवेश करने का मतलब है उन्हें अपने व्यक्तिगत और आर्थिक विकास और सशक्तिकरण के लिए संसाधनों और अवसरों से लैस करना और बढ़ावा देना। इसका मतलब है महिलाओं को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करना और ऐसे मंच तैयार करना, जहां वे अपनी स्वायत्तता और गरिमा को बनाए रखते हुए खुद को व्यक्त कर सकें और बदलाव ला सकें। महिलाओं पर निवेश के कई फायदे हैं।
उदाहरण के लिए, अक्सर महिलाएं अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा को प्राथमिकता देती हैं और अपने ज्ञान को अपने समुदायों और बच्चों के साथ साझा करती हैं। महिलाएं सामाजिक चुनौतियों के प्रभावी समाधानों की ज्यादा पहचान और कार्यान्वयन कर सकती हैं। जब महिलाओं के पास राजनीतिक या सामाजिक सत्ता होता है, तो कम संघर्ष, कम हिंसा होती है और महिलाओं के लिए जरूरी मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।
महिलाओं के शिक्षा में निवेश
हमारे देश में शिक्षा के लिए भले यह कहा जाए यह सरकारी संस्थानों में कम कीमत पर या मुफ़्त उपलब्ध है, सच्चाई ये है कि लोग सरकारी संस्थानों में बच्चों को भेजने से कतराते हैं। स्कूली शिक्षा का एक वर्ष किस हद तक उपयोगी कौशल और ज्ञान बढ़ाने में मदद करता है, इस मामले में अलग-अलग देशों में व्यापक भिन्नता है। इसलिए, स्कूली शिक्षा के साल और असल शिक्षा को पर्यायवाची के रूप में नहीं माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, बिहार के मुंगेर जिले में रहने वाले चंद्रशेकर कुमार एक निजी स्कूल में शिक्षक हैं। इनकी एक बेटी और एक बेटा है। बेटी एक निजी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ती है, पर बेटे को जिले के सबसे अच्छे माने जाने वाले स्कूल में भेजा जाता है। दोनों स्कूलों के बुनियादी ढांचा में ही नहीं, शिक्षा के स्तर, स्कूल में बच्चों के लिए सुविधाएं और मासिक फीस में लगभग 3000-4000 का अंतर है।
यानि कई बार महिलाओं का भले पुरुषों के समान ही स्कूली शिक्षा के साल हो, शिक्षा के स्तर में अंतर पाया जाता है जो महिलाओं को उच्च शिक्षा और अच्छी नौकरी से दूर करता है। ईटी ऑनलाइन के शोध के अनुसार, भारत में 3 साल से 17 साल की उम्र तक एक बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाने का कुल खर्च 30 लाख रुपये है। 4 साल के बीटेक या 3 साल के बीएससी के लिए आईआईटी या किसी अन्य अच्छे निजी संस्थान में दाखिला लेने पर लगभग 4-20 लाख रुपये का खर्च आता है। समझा जा सकता है कि जिस देश में महिलाओं के शिक्षा पर खर्च को अतिरिक्त बोझ के तरह देखा जाता हो, एक आम परिवार के लिए उनके शिक्षा पर इस कदर खर्च करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
शिक्षा के क्या हैं लाभ
कहा जाता है कि एक महिला अगर शिक्षित है तो वह वह तीन पीढ़ियों के लिए फायदेमंद है। साइंस डायरेक्ट में छपे एक शोध अनुसार महिलाओं की स्कूली शिक्षा के कारण बाल मृत्यु दर में प्रति वर्ष 7-9 फीसद की गिरावट आती है। 219 देशों के 915 डेटा के इस्तेमाल से एक विश्लेषण में यह दावा किया गया कि महिला स्कूली शिक्षा ने साल 1970 और 2000 के बीच 5 वर्ष से कम उम्र के 4.2 मिलियन बच्चों की मृत्यु को रोका है। इसी तरह, स्कूली शिक्षा के वर्षों को परिवार के आकार की प्राथमिकता, शादी की उम्र और गर्भनिरोधक के उपयोग और बाल कुपोषण को कम करने से जोड़ा गया है।
विश्व बैंक के अनुसार भारत शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का महज 4.6 प्रतिशत खर्च करता है। फर्स्टपोस्ट के अनुसार 15-18 वर्ष की आयु की लगभग 40 फीसद किशोरियों को किसी भी प्रकार की स्कूली शिक्षा तक पहुंच नहीं है। लड़कियों की स्कूली शिक्षा लड़कों से चार साल से कम होने की संभावना दोगुनी है। साल 2014 की विश्व बैंक की रिपोर्ट में पाया गया कि स्कूली शिक्षा के प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष के साथ पुरुषों की 9.6 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं की कमाई में औसतन 11.7 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
महिलाओं के स्वास्थ्य में निवेश
हालांकि स्वास्थ्य किसी के लिए भी मायने रखता है। लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह महिलाओं के लिए और भी जरूरी है। ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन में छपी रिपोर्ट के अनुसार भारत में सामाजिक-आर्थिक कारकों के बावजूद, बेटे को प्राथमिकता देने के कारण, लड़कियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल की मांग और टीकाकरण कवरेज कम है। हालांकि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं, लेकिन उनकी विशिष्ट स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतें पूरी नहीं होती हैं और मोरबीडीटी अधिक होती है।
ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन की रिपोर्ट बताती है कि स्वस्थ महिलाएं बीमारी के कारण कम कार्यदिवस गंवाती हैं और जब वे काम करती हैं तो अधिक उत्पादक होती हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिला चाय बीनने वालों के बीच मल्टीमाइक्रोन्यूट्रिएंट पूरकता ने उनकी उत्पादकता में 12 फीसद की वृद्धि की। साथ ही यह भी जरूरी है कि महिलाएं घर में सबसे आखिर में सबसे अपौष्टिक खाना न खाए। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, बेहतर मानसिक स्वास्थ्य और रोग कम हो तो महिलाओं के रोजगार में वृद्धि होती है।
महिलाओं के सुरक्षा और कानून में निवेश
महिलाओं के कामकाज और सामान्य जीवन के लिए यह जरूरी है कि हम हर जगह को सुरक्षित बनाएं। सुरक्षित जगह चिंतामुक्त जीवन के लिए जरूरी है। जैसे, असम के चाय बागानों में महिलाएं आधे कार्यबल का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिनमें से अधिकांश चाय तोड़ने का काम करती हैं। लेकिन कई महिलाएं घर पर, काम के दौरान और सार्वजनिक स्थानों पर हिंसा का सामना करती हैं। 2015 में, असम में महिलाओं के खिलाफ पतियों या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के 11,225 मामले दर्ज किए गए थे। महिलाओं का हिंसा सामना उनके जीवन के गुणवत्ता पर सीधा असर है। विश्व बैंक द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट ‘वुमन, बिजनस एण्ड द लॉ’ के अनुसार, हिंसा और बच्चों की देखभाल से जुड़े कानूनी मतभेदों के मद्देनजर महिलाओं को पुरुषों के दो-तिहाई से भी कम अधिकार प्राप्त होते हैं।
हालांकि महिलाएं आर्थिक रूप से भागीदारी देती हैं। पर हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के योगदान, अनुभवों और अवसरों को देखने का नजरिया बहुत अलग है। उदाहरण के लिए, काम की दुनिया में महिलाओं के बारे में पितृसत्तात्मक मानदंडों और दृष्टिकोण के कारण, महिलाएं पुरुषों के तुलना में अधिक अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम करती हैं, जिससे उनकी आर्थिक एजेंसी, स्वायत्तता और कल्याण बाधित होता है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं, जिसका आर्थिक मूल्य अनदेखा किया जाता है क्योंकि यह सकल घरेलू उत्पाद में अदृश्य है।
महिलाओं में निवेश के कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं कि वित्तीय संपत्ति महिलाओं के हाथों में हो, लड़कियों को पूरी और अच्छी शिक्षा मिले, महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार हो, परिवार नियोजन तक पहुंच महिलाओं की पहुंच और एजेंसी हो और परिवार और समाज महिलाओं के नेतृत्व और काम का समर्थन करें। महिलाओं में निवेश का मतलब यह सुनिश्चित करना है कि आधी से अधिक वैश्विक आबादी किसी भी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य कार्यक्रम या विकास के अवसर से वंचित न रहे। महिलाओं में निवेश का मतलब यह भी है कि हम एक शिक्षित, स्वस्थ और समृद्ध पीढ़ी बनाने में योगदान दे रहे हैं।