बीते वर्ष पांच जून को निजी संस्थान ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम सेव सॉइल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल में सरकार की नीतियों पर बात रखते हुए कहते हैं, “साथियों मुझे संतोष है कि देश में पिछले आठ साल में जो योजनाएं चल रही हैं, जो प्रोग्राम चल रहे हैं, सभी में किसी न किसी रूप से पर्यावरण संरक्षण का आग्रह है। स्वच्छ भारत मिशन हो या वेस्ट टू वेज से जुड़े कार्यक्रम। अमृत मिशन के तहत शहरों में आधुनिक सीवेज प्लाट का निर्माण हो या फिर सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान या नमामि गंगे के तहत गंगा स्वच्छता का अभियान, सोलर एनर्जी पर फोकस हो या एथेनॉल के उत्पादन पर्यावरण रक्षा के भारत के प्रयास बहुआयामी रहे।” आपको बता दें कि ईशा फाउंडेशन पर पर्यावरण उल्लंघन के अनेक आरोप लग चुके हैं। बहरहाल पर्यावरण पर बोलते हुए मोदी ने खुद की सरकार की नीतियों को श्रेष्ठ बताते हुए दुनिया में पर्यावरण की समस्या पर बोलते हुए कहा कि कैसे भारत जैसे देश दुनिया की गलत पर्यावरण नीतियों की वजह से इस समस्या का समाधान कर रहे हैं।
वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से जारी घोषणापत्र संकल्प पत्र में पार्टी ने दावा किया था कि देश में लगभग 9,000 वर्ग किमी वन क्षेत्र जोड़ा गया है। भाजपा की ओर से कहा गया कि देश को हरा-भरा बनाने के लिए हम इस गति को बरकरार रखेंगे। साथ ही सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना को मिशन में बदलते हुए इसमें शामिल शहरों का प्रदूषण स्तर 35 फीसदी नीचे ले आने का वादा किया। पार्टी ने आदिवासी हितों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देने का भी वादा किया था। मोदी सरकार के अबतक के एक दशक के कार्यकाल में ऐसी कई योजनाओं की घोषणा हुई है जो पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर केंद्रित है। यह आवश्यक भी है क्योंकि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता वर्तमान समय में सबसे बड़ी चुनौतियां है।
वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव और प्राइवेट प्लेयर्स की एंट्री
सरकार ग्लोबल स्तर पर अपनी छवि बनाने के लिए इस दिशा में बड़े वादे और बयान जारी करती दिखती है लेकिन सरकारी आंकड़े और नीतियों में बदलाव दिखाता है कि किस तरह से मोदी सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। सरकारी आंकड़े ही दिखाते हैं कि सरकारी नीतियां न तो पर्यावरण के हित में है और न ही आदिवासियों के। मुख्य रूप से सरकार व्यापार को जोर देने के लिए जल, जंगल और ज़मीन से जुड़े कानूनों को बदल रही है। मोदी सरकार लगातार व्यावसायिक पौधारोपण के लिए जंगलों को खोलने के रास्ते खोज रही थी। द रिपोर्टर्स क्लेक्टिव की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने साल 2015 से ही जंगलों को प्राइवेट प्लेयर्स के लिए खोलने के तरीकों को खोजने की शुरुआत कर दी थी। साल 2016 व 2018 में राष्ट्रीय वन नीति ड्राफ्ट के साथ ये कवायद आगे बढ़ती रही।
मोदी सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में हालिया संशोधनों के जरिए जंगल की जमीन को प्राइवेट पार्टियों के लिए खोल दिया है। साल 2022 में जुलाई में वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत आने वाले नियमों को बदल दिया गया, जिनके जरिए आदिवासियों और वन घूमंतु समुदायों की सहमति के बिना ही सरकार वन भूमि को प्राइवेट डेवलपर्स को दे सकती है। जबकि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत इन समुदायों की अनुमति लेना ज़रूरी है। 2023 जुलाई में इस अधिनियम में संशोधन कर व्यवसायिक पौधारोपण करने वालों के प्रवेश के लिए नया कानून बना दिया गया। सरकार ने वनों की कानूनी परिभाषा बदल दी है। संशोधित वन अधिनियम में वन्यजीव प्रबंधन के सेक्शन में इको टूरिज्म मॉडल्स और जूलॉजिकल गार्डन्स को भी डाला गया था। इस सेक्शन में वे गतिविधियां शामिल थीं जिनके लिए केंद्र से पूर्व अनुमति की ज़रूरत नहीं होगी। नये संशोधनों के बाद चिड़ियाघरों, सफारी और इको टूरिज्म को वन संरक्षण अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है।
ईआईए 2020 का नया ड्राफ्ट और मंजूरी में तेजी
मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत के पर्यावरण नियमों में कई बार संशोधन किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा एनवॉयरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट (ईआईए) 2020 के मसौदे के तहत सरकार सरकार पर्यावरण रेगुलेशन को कमजोर और प्रभावित समुदायों को चुप कराने का एक प्रयास है। डॉउन टू अर्थ में छपी जानकारी के अनुसार यह ड्राफ्ट उद्योगों के पक्ष में दिखता है और पर्यावरण संरक्षण की बड़े पैमाने पर अवहेलना करता है। इससे अलग सरकार का तर्क है कि नया ड्राफ्ट पारदर्शिता को मजबूत करेगा और प्रक्रिया तेज करेगा। एनवॉयरमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट (ईआईए), पर्यावरण संरक्षण एक्ट, 1986 के तहत एक प्रक्रिया है जो औद्योगिक और ढांचागत (इन्फ्रॉस्ट्रक्चर) परियोजनाओं को तय निरीक्षण के बिना पास होने से रोकती है।
ईआईए कोयला या अन्य खनिजों के खनन, इन्फ्रॉस्टक्चर डेवलेपमेंट, थर्मल, न्यूक्लियर और हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट, रियल स्टेट और अन्य इंडस्ट्री प्रोजेक्ट जैसी योजनाओं को कवर करता है। ईआई का नया ड्राफ्ट 2020 के अनुसार पोस्ट-फेक्टो की मंजूरी देता है। इसका मतलब यह कि भले ही कोई प्रोजेक्ट बिना किसी पर्यावरण सुरक्षा उपायों के बिना या बिना पर्यावरणीय मंजूरी के हो वह नये ड्राफ्ट के अनुसार चल सकता है। यह बहुत खतरनाक है क्योंकि देश में पहले से ही ईआईए की मंजूरी के बिना अनेक परियोजनाएं चल रही है। ईआई प्रक्रिया में पब्लिक पार्टिसिपेशन बहुत महत्वपूर्ण रहा है यह समुदायों को न केवल अपने क्षेत्रों में प्रस्तावित प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देता है बल्कि प्रोजेक्ट को लेकर चिंताओं के बारे में बात करने में भी मदद करता है।
मोदी सरकार का एक अहम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’
सत्ता में आने से पहले लोकसभा सीट के नामांकन के समय मोदी ने मीडिया संबोधन में कहा था कि उन्हें माँ गंगा ने बुलाया है। सरकार ने बड़े प्रचार-प्रसार के तहत गंगा नदी की सफाई के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट शुरू किया। नैशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा में छपी जानकारी के अनुसार सरकार ने 20,000 करोड़ रूपये के बजट के साथ यह कार्यक्रम शुरू किया था। लेकिन सरकारी डेटा दिखाता है कि बड़े बजट और तमाम प्रोग्राम के बावजूद गंगा की सफाई नहीं हो सकी। स्क्रॉल में छपी जानकारी के अनुसार साल 2014 के बाद से अक्टूबर 2022 तक 13,000 करोड़ रूपये आवंटित किए गए थे। मीडिया में प्रकाशित अलग-अलग जानकारी के अनुसार यह प्रोग्राम बहुत देरी से चल रहा है। बड़ी संख्या में गंगा की सफाई के जारी बजट तक खर्च नहीं हो पा रहा है। गंगा अभी भी प्रदूषित है लेकिन विज्ञापनों पर पैसा जमकर खर्च हो रहा है। द वॉयर में प्रकाशित जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित विज्ञापनों पर खर्च की जानकारी मांगने के लिए आरटीआई के जवाब के अनुसार इस अवधि में 20 नवंबर 2018 तक विज्ञापनों पर कुल 36.7 करोड़ रूपये खर्च किए गए हैं।
मोदी सरकार के काल की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक नदियों को जोड़ना है। हालांकि विशेषज्ञ, सरकार के इस कदम को अवैज्ञानिक और विनाशकारी तक करार दे चुके हैं। सरकार की योजना के अनुसार जलाशयों, बांधों और 14,000 किलोमीटर से अधिक लंबी नहरों के निर्माण के माध्यम से पूर्वी भारत में ब्रह्मपुत्र और निचली गंगा घाटियों से पानी को पश्चिमी और मध्य भारत के पानी की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिए बड़े पैमाने पर इंजीनियरिंग हस्तक्षेप शामिल है। भाजपा सरकार ने इसे हर साल भारत में आने वाली बाढ़ और सूखे की समस्या का समाधान बताया है।
वन्य जीव संरक्षण और अफ्रीकी चीता
सिंतबर 2022 को प्रधानमंत्री मोदी के 72वें जन्मदिन पर दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते मध्यप्रदेश के कुनो नैशनल पार्क में लाए गए। मार्च 2023 से अब तक नौ चीतों की मौत हो चुकी है जिनमें से यहां पैदा हुए चार शावकों में से तीन भी शामिल है। वर्तमान में 14 चीते बचे हुए हैं जिसमें सात नर, छह मादा और एक मादा शावक है। द गार्जियन में छपी रिपोर्ट के अनुसार बहुत से वन्यजीव और संरक्षण इस परियोजना की आलोचना कर चुके हैं। विशेषज्ञों ने इसे जल्दबाजी में मोदी सरकार का प्रचार स्टंट कहते हुए कुनो नैशनल पार्क को चीतों के लिए अनुपयुक्त जगह बताया है।
ग्रीन और कार्बन क्रेडिट
मोदी सरकार ने कार्बन क्रेडिट को बढ़ावा देने के लिए बड़े स्तर पर वादे कर चुके हैं। साल 2022 में मोदी सरकार ने ग्रीन क्रेडिट के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना शुरू की। इसमें ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम भी लॉन्च किया गया जिसमें वृक्षारोपण, जल संरक्षण, टिकाऊ कृषि आदि के माध्यम से व्यापार करने की अनुमति देता है। यह योजना मुख्य रूप से बंजर जमीन पर पेड़ लगाकर ग्रीन क्रेडिट उत्पन्न करने पर जोर देती है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों से मोदी यह ऐलान कर चुके है कि साल 2070 तक भारत नेट जीरो एमीशन का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री मोदी इंडोनेशिया जी-20 समिट में कहा कि भारत 2030 तक नवीकरणीय स्रोतों से 50 फीसदी बिजली पैदा करने के लक्ष्य को हासिल करने की राह पर है। मोदी सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन कर प्रदूषण को रोकने के कदम भी उठाए है। 1 जुलाई 2022 को सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह से बैन लगाने की घोषणा की थी। डीडब्ल्यू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने प्रतिबंध जारी किया है लेकिन कार्यान्वयन राज्य सरकारों और उनके राज्य प्रदूषण बोर्डों के पास है। इस लिहाज से सरकार के पास प्रतिबंध को पूरी तरह लागू करने के लिए प्रभावी नीति का अभाव है।
साल 2014 से 2024 तक के कार्यकाल में मोदी पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के लिहाज से कई मुद्दों पर बोलते नज़र आए हैं। बड़े वादे किए गए है और अंतरराष्ट्रीय मंचों से आह्वान किए गए है। एनवॉयरमेंटल परफॉर्मेस इडेक्स 2022 में 180 देशों की सूची में भारत को सबसे नीचे रखा गया है। साल 2014 में भारत की रैंक 155 थी। व्यापारिक फैसलों में तेजी लाने और निवेश की बाधाओं को दूर करने के वादे के सहारे सरकार पर्यावरणीय नियमों को ताक पर रखती आई है। आर्टिकल 14 में छपी रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने पश्चिमी घाट के पारिस्थिकी रूप से बेहद संवेदनशील जंगलों में अडानी ग्रुप की कंपनी की तीन बड़ी जल विद्युत प्रोजेक्ट को शुरुआती मंजूरी देने के लिए चुनिंदा व्याख्या की है। इतना ही नहीं उसी क्षेत्र में मंजूरी देने से अडानी ग्रुप में दो और अदानी परियोजनाओं के लिए रास्ता खुल गया है। तमाम आंकड़े यह दिखाते है कि मोदी सरकार ने विकास और व्यापर के नाम पर पर्यावरण के नियमों को लगातार ताक पर रखा है लेकिन पर्यावरण नीतियों पर मोदी सरकार की नीतियों की सबसे कम आलोचना हुई है। इस मुद्दे पर सरकार की जवाबदेही और नीतियों पर उस तरह से चर्चा नहीं हुई जितनी आवश्यकता है।